Monday, November 25, 2024
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सभ्यता, संस्कृति, भाषा और जमीर की जननी नदियां

जन सामना संवाददाता; बड़ौत, बागपत। एनवायरनमेंट एंड सोशल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एस्रो) के तत्वाधान में आज ‘नदियों का दर्द, एस्रो की जुबानी’ श्रृंखला के अंतर्गत संस्कृति पब्लिक स्कूल शबगा और ऋषिकुल विद्यापीठ जागोस के प्रांगण में ‘आओ नदी को जाने’ नामक युवा संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें सभी बच्चों ने अपने विचार व अनुभव साझा किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रीतम सिंह वर्मा एवं जलपुरूष राजेंद्र सिंह के गुरु रमेश चंद्र शर्मा ने की।
संवाद कार्यक्रम में एस्रो के निदेशक संजय राणा ने कहा कि नदियां मानव सभ्यताओं को जन्म देने वाली होती है। वहीँ नदियां ही मानव की संस्कृति और जमीर भी तय करती है। बड़े बुजुर्गाे ने कहा है कि ‘जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन, जैसा पियोगे पानी वैसी रहेगी वाणी’ अर्थात मानव के जमीर को नदियों का जल प्रभावित करता है। इसीलिये भारतीय संस्कृति में नदियों को माँ का दर्जा दिया जाता है। मगर आज के परिदृश्य में मानव नदियों के महत्व को भूल चुका है, इसीलिये नदियां आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।कार्यक्रम में बच्चों से अनेक प्रश्न भी पूछे गये जिनके बच्चों ने बड़े उत्साहित होकर उत्तर दिये। कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों को समझाया गया कि नदियों को माँ क्यों माना जाता है और क्यों इन्हें जीवनदायिनी कहते हैं। नदियों को साफ, अविरल और स्वच्छ बनाने की आवश्यकता ही नहीं होगी अगर हम उन्हें प्रदूषित करना बंद कर दें। संचालन प्रधानाचार्य हरिदत्त शर्मा और प्रधानाचार्य राजीव शर्मा ने किया। इस अवसर पर आर आर डी उपाध्याय, डायरेक्टर दिनेश शर्मा, प्रबंधक विनीत शर्मा, संतोष शर्मा, संगीता, हिना चौधरी, सोनम चौधरी, नीतू चौधरी, कृपा शर्मा, अर्चना शर्मा आदि का सहयोग रहा।