Monday, November 25, 2024
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मोदी को हराने के लिए पटना में 16 दलों का हल्ला-बोल

नई दिल्ली/पटनाः राजीव रंजन नाग। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महत्वाकांक्षी भाजपा विरोधी मोर्चे का रोडमैप तैयार करने के लिए 16 विपक्षी दल आज पटना में हुई बैठक में शामिल दलों ने संगठित होकर भाजपा की सरकार को सत्ता से बाहर करने पर आम सहमति कायम करने में सफल रहे।
बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार, जो अपने डिप्टी और राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव के साथ बैठक की मेजबानी की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, संगठन के प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल और पार्टी नेता राहुल का हवाई अड्डे पर स्वागत किया।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो 16 दलों की बड़ी विपक्षी बैठक के मेजबान थे, ने कहा कि सभी दल एक साथ चुनाव लड़ने के लिए सहमत हो गए हैं, लेकिन मुद्दे को अंतिम रूप देने के लिए अगले महीने शिमला में एक और बैठक होगी। तीन घंटे चली बैठक में आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन संयुक्त संवाददाता सम्मेलन से अनुपस्थित थे, हालांकि श्री कुमार ने दावा किया कि वे चले गए क्योंकि उन्हें अपनी उड़ानों में वापस जाना था।
जब एकता प्रदर्शित करने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस चल ही रही थी, आम आदमी पार्टी ने यह कहते हुए बम फोड़ दिया कि वह भविष्य में होने वाली किसी भी विपक्षी सभा का हिस्सा नहीं बनेगी, जब तक कि कांग्रेस सार्वजनिक रूप से केंद्र के उस विवादास्पद अध्यादेश का विरोध नहीं करती, जो दिल्ली सरकार का प्रशासनिक सेवाओं पर से नियंत्रण छीन रहा है।
जानकारी के अनुसार, बैठक में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच तीखी नोकझोंक हुई। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश मुद्दे पर सबसे पुरानी पार्टी का रुख मांगा, जबकि कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने आप की मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ के आरोप को उठाया कि कांग्रेस भाजपा के साथ समझौते के कारण कोई रुख नहीं अपना रही है। सुश्री कक्कड़ ने बैठक से कुछ मिनट पहले एक टीवी चौनल को बताया कि उन्हें विश्वसनीय स्रोतों से पता चला है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच आम सहमति है। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यादेश का विरोध नहीं कर रही है।
नीतीश कुमार ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, शिमला बैठक में सीट बंटवारे और पार्टी-वार विभाजन सहित विवरण को अंतिम रूप दिया जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अगली बैठक अस्थायी तौर पर 10 या 12 जुलाई को होगी, जिसमें सभी राज्यों के लिए रणनीति पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा, हमें 2024 में एक साथ चुनाव लड़ना है। हमने भाजपा को उखाड़ फेंकने का फैसला किया है और अगली सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त हैं।
राहुल गांधी ने लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कथित हमले का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, यह विचारधाराओं की लड़ाई है। हमारे बीच कुछ मतभेद हो सकते हैं लेकिन हमने अपनी विचारधारा की रक्षा के लिए लचीलेपन के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया है। यह एक प्रक्रिया है और हम इसे जारी रखेंगे। जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने भी इस बात पर जोर दिया कि इसमें भाग लेने वाली पार्टियां एक होकर लड़ेंगी।
सुश्री बनर्जी ने आपातकाल के दौरान प्रतिष्ठित जेपी आंदोलन की ओर इशारा करते हुए कहा, पटना से जो शुरू होता है वह एक जन आंदोलन बन जाता है। उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली में बैठकों का कोई नतीजा नहीं निकला। ममता ने कहा, तीन चीजें हल हो गई हैं। हम एकजुट हैं, हम एकजुट होकर लड़ेंगे और हमारी लड़ाई को विपक्ष की लड़ाई नहीं कहा जाना चाहिए, बल्कि भाजपा की तानाशाही और उनके काले कानूनों के खिलाफ लड़ाई और उनके राजनीतिक प्रतिशोध से लड़ना चाहिए। “उन्होंने आगे कहा, और दावा किया कि अगर भाजपा सत्ता में लौटती है तो देश को दूसरा चुनाव नहीं देखना पड़ेगा। बीजेपी चाहती है कि इतिहास बदला जाए, लेकिन इतिहास बिहार से बचाया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि जो चीजें जम्मू-कश्मीर में होती थीं, वही अब शेष भारत में हो रही हैं। उन्होंने कहा, जिस तरह से लोगों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, खासकर अल्पसंख्यकों के साथ, हम नहीं चाहते कि गांधी का राष्ट्र गोडसे के राष्ट्र में बदल जाए। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक 17 पार्टियां सत्ता के लिए नहीं, बल्कि सिद्धांतों के लिए एक साथ आई हैं।
शिव सेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि वैचारिक मतभेदों के बावजूद, पार्टियों ने लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला करने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ देश की रक्षा करने की कसम खाई है। उन्होंने कहा, मैं सचमुच मानता हूं कि जब शुरुआत अच्छी होगी तो अच्छी चीजें होंगी।
राष्ट्रीय राजधानी की नौकरशाही पर अपनी पकड़ को कमजोर करने वाले केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध आम आदमी पार्टी ने धमकी दी है कि अगर कांग्रेस अध्यादेश के खिलाफ एकजुट होने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हुई तो बड़ी बैठक को पटरी से उतार देगी। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस पर सवालों से बचते हुए कहा कि वे संसद सत्र से पहले ऐसे मुद्दों पर फैसला करते हैं, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने इसे श्दबाव की रणनीतिश् बनाने की कोशिश की है।
खड़गे ने कहा कि इसका विरोध करना या इसका प्रस्ताव रखना बाहर नहीं संसद में होता है। संसद शुरू होने से पहले सभी दल तय करते हैं कि उन्हें किन मुद्दों पर मिलकर काम करना है। वे यह जानते हैं, और यहां तक कि उनके नेता भी हमारी सर्वदलीय बैठकों में आते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता इसके बारे में बाहर इतना प्रचार क्यों है। आप ने आरोप लगाया है कि बीजेपी के साथ डील की वजह से कांग्रेस कोई स्टैंड नहीं ले रही है। आप की मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने एक टीवी चौनल से कहा कि उन्हें विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि ष्कांग्रेस और बीजेपी के बीच आम सहमति है। यही कारण है कि सबसे पुरानी पार्टी अध्यादेश का विरोध नहीं कर रही है।
बहुजन समाज पार्टी की मायावती आमंत्रित नहीं किये जाने के बावजूद ट्वीट किया कि वह इसमें शामिल नहीं होंगी। जबकि राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने कहा कि उन्हें पूर्व-निर्धारित पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होना है लिहाजा वह बैठक में शामिल नहीं हो करेंगे। हालाँकि जयंत चौधरी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि बैठक ष्विपक्षी एकता की राह में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगी।
हालांकि पहली बैठक में न्यूनतम साझा कार्यक्रम को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। अगले महीने शिमला में होने वाली बैठक में इस पर विचार किया जा सकता है। नीतीश कुमार द्वारा पेश किए गए एक सीट, एक उम्मीदवार फॉर्मूले के लिए सीट बंटवारे के पेचीदा मुद्दे पर भी चर्चा होने की संभावना है।
यह पहली बार है कि क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के कारण कांग्रेस से नफरत करने वाली कई पार्टियां मंच साझा करने के लिए तैयार हैं। नीतीश कुमार, जिन्हें इन दलों को एक साथ लाने का काम सौंपा गया था, ने ऐसे दलों- आप, तृणमूल कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के प्रमुखों से मुलाकात की ताकि उन्हें एक साथ आने के लिए मनाया जा सके। तेलंगाना के मुख्यमंत्री और बीआरएस प्रमुख के.चंद्रशेखर राव, हालांकि संयुक्त विपक्ष के विचार के पक्ष में थे, उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि उनकी पार्टी भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी पर रहेगी।
शिवसेना (यूबीटी) ने शुक्रवार को कहा कि अगर 2024 के बाद लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो राजनीतिक दलों को मतदाताओं के बीच विश्वास पैदा करने के लिए राष्ट्रीय हित में बड़ा दिल दिखाना होगा। उच्च स्तरीय विपक्षी बैठक में 15 दलों के 27 नेता मौजूद रहे। इनमें कांग्रेस के राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, टीएमसी के ममता बनर्जी, अभिषेक बनर्जी, शिवसेना (UBT) के उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे, डीएमके के एमके स्टालिन, आप के अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, एनसीपी के शरद पवार, सुप्रिया सुले, प्रफुल्ल पटेल, सपा के अखिलेश यादव, सीपीएम के सीताराम येचुरी, सीपीआईएमएल के दीपांकर भट्टाचार्य, जदयू के नीतीश कुमार, ललन सिंह, संजय झा, राजद के लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव और मनोज झा बैठक में शामिल हुए।
भाजपा ने 2019 में 303 लोकसभा सीटें जीती थीं, जो 2014 की तुलना में 21 अधिक है। सिर्फ हिंदी पट्टी में, पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 141 सीटें जीतीं – जो कि उसके द्वारा लड़ी गई सीटों का 71 प्रतिशत था- 50 से अधिक के साथ: वोट शेयर. पार्टी ने विपक्ष की बैठक को महज फोटो-सेशन बताकर खारिज कर दिया।
उधर, जम्मू में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, चाहे कितनी भी पार्टियां बैठक के लिए आ जाएं, वो कभी एकजुट नहीं हो सकतीं। उन्होंने कहा- आज पटना में एक फोटो सेशन चल रहा है। वे (विपक्ष) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए को चुनौती देना चाहते हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि पीएम मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटों के साथ अपनी सरकार बनाएंगे।
मिली जानकारी के अनुसार आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश के मुद्दे पर विपक्षी दलों से समर्थन मांगा, लेकिन एक दल ने इस पर पलटवार कर दिया। सूत्रों के मुताबिक, केजरीवाल ने इस बैठक में कहा कि केंद्र के लाए अध्यादेश का हम विरोध कर रहे हैं और बाकी दलों को इस मुद्दे पर हमारा समर्थन करना चाहिए। जैसे ही केजरीवाल ने यह बात कही, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एतराज जताया। उन्होंने कहा कि जब कश्मीर से 2019 में अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब तो आपकी पार्टी ने हमारा समर्थन नहीं किया था और संसद में सरकार का साथ दिया था।