बागपत। दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने बड़ौत के ऋषभ सभागार में आयोजित धर्म सभा में प्रवचन करते हुए कहा कि विवेकी मानव की सोच, विचार विशाल होते हैं। उसकी दृष्टि विस्तृत होती है। दूर दृष्टि ही विचारों से महान् बन सकता है। दृष्टि में अनेकान्त, वाणी में स्याद्वाद, क्रिया में अहिंसा श्रेष्ठता की पहचान है। श्रेष्ठ मनुष्य हमेशा मधुर-वचनों का प्रयोग करता है। धैर्यशीलता, नम्रता, विचारों की उच्चता, मधुर-व्यवहार सज्जन-पुरुष की पहचान है। मानव को कोई अन्य दुःख नहीं देता, स्वयं ही मानव दुःख के साधनों को एकत्रित कर दुःखी होता है। स्वयं के विचारों से ही मानव कार्य करता है, अन्य कोई ईश्वर हमें सुख दुःख नहीं देता है। स्वयं का ही कर्म स्वयं को कष्ट देता है। यदि आपको कष्टों से बचना है, तो अपने भावों को सँभाली। मानव स्वयं ही स्वयं का कर्ता है। स्वयं के भाव ही भव प्रदान करते हैं। अन्य कोई न कष्ट देता है और न ही सुख देता है। जो भी सुख-दुःख प्राप्त हो रहा है, वह स्वयं कृत कर्म का ही फल है। संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा में प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन, दिनेश जैन, वरदान जैन, राकेश सभासद, विनोद जैन एडवोकेट, धन कुमार जैन, धनेंद्र जैन, सतीश जैन, अशोक जैन, मनोज जैन, पुनीत जैन आदि उपस्थित थे।