Sunday, November 24, 2024
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निजी स्कूलों की मनमानी से कट रही अभिभावकों की जेब

फतेहपुरः जन सामना संवाददाता। मार्च का महीना बच्चों की परीक्षा के लिए जाना जाता है तो अप्रैल निजी स्कूलों की मनमानी के आगे अभिभावकों की परीक्षा लेता है। किताब, कॉपी, ड्रेस, जूता के लिए अभिभावकों की दौड़ स्कूल और स्कूल द्वारा बताई गई दुकानों के बीच लगी रहती है। हर बार की तरह निजी स्कूल कमीशन का खेल खेलने की राह पर इसबार भी निकल गए हैं।
जिले के कई नामी और बड़े स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों को सीधे स्कूल से ही किताब बेची जा रही है। कॉपी भी ब्रांडेड लेने का दबाव है। लिहाजा यह तय है कि कॉपी का मूल्य भी अभिभावकों को सामान्य से ज्यादा देना होगा। जिन स्कूलों ने अभिभावकों को किताबांे की लिस्ट दी है, उन स्कूलों ने बुक लिस्ट में दुकान के नाम भी दिए हैं, जहां से अभिभावकों को किताबें खरीदने को कहा गया है। पूरे बाजार ढूंढ़ने के बाद भी किताबें सिर्फ वहीं मिलेंगी, जिस दुकान की सांठ-गांठ स्कूल के साथ है। किताबें एमआरपी पर मिल रही हैं।
जबकि निजी पब्लिकेशन की किताबों पर अमूमन 20 से 40 प्रतिशत तक की छूट दी जाती है, लेकिन किताब खरीदने वाले अभिभावकों को यह छूट मिलने के बदले छूट की रकम कमीशन के रूप में स्कूलों के खाते में चली जाती है। नाम न छापने की शर्त पर जिले के बड़े पुस्तक विक्रेता ने बताया कि स्कूल प्रबंधक जितना कमीशन मागते हैं हमें देना पड़ता है। स्कूल प्रबंधक जितना अधिक कमीशन लेगे उतनी ही पुस्तके महंगी होंगी। जिससे छूट तो छोड़िए कभी-कभी 10रु वाली पुस्तक को 50रु मे बेचना पड़ता है।
सरकारी स्कूलों की दुर्दशा के कारण निजी स्कूलों के प्रति आम जनता में आकर्षण है, जो इन स्कूलों को मनमानी करने का मौका देता है। सरकारी स्कूलों के प्रति सरकार की बेरुखी भी एक बड़ा कारण है। सरकारी स्कूलों के स्तर का अंदाजा यहीं से लग जाता है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक खुद अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते। सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं न के बराबर हैं। शिक्षा का स्तर प्राइवेट स्कूल के मुकाबले कहीं टिकता नहीं है। जब तक सरकार से मोटी रकम लेने वाले सरकारी कर्मचारी अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे तब तक सरकारी स्कूल सिर्फ सफेद हाथी ही बने रहेंगे। सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाकर ही प्राइवेट स्कूल की मनमानी पर ब्रेक लग सकती है।