मोहन दे माता मंदिर के इतिहास पर भक्तों ने डाला प्रकाश
फिरोजाबाद, एस0 के0 चित्तौड़ी। मां दुर्गा की छठवीं शक्ति का नाम कात्यायनी है। इसलिए छठवें दिन घर घर मां के कात्यायनी स्वरूप की पूजा अर्चना की गयी। इसके साथ ही शहर के प्रमुख मंदिरों पर नेजा चढ़ाने व कई जगह देवी जागरण आदि आयोजन भी होने लगे। इसके साथ ही नवरात्र नजदीक आते आते लगने वाले मेलों की रौनक भी बढ़ गयी। क्योंकि श्रद्धालुआं की भीड़ बढ़ेगी तो रौनक तो स्वतः ही बढ़ जायेगी। शहर की विभिन्न गलियों में स्थित मंदिरों पर भी श्रद्धालुओं का सुबह सुबह खूब तांता लगा रहा।
नवरात्र के छठवें दिन नगर के राज-राजेश्वरी कैला देवी मंदिर, गोपाल आश्रम स्थित माता मंदिर, जलेसर रोड काली मंदिर, आर्यनगर स्थित माता मंदिर, सुहागनगर स्थित मां का मंदिर, करन सिंह नगला रोड स्थित माता मंदिर, लेबर कालोनी स्थित मां के मंदिर व उसायनी स्थित मां वैष्णो देवी धाम के अलावा शहर के कई मंदिरों में श्रद्धालुआं की भीड़ विगत दिवस की अपेक्षा अधिक दिखी तो उसायनी व राज-राजेश्वरी कैला देवी मंदिर प्रांगण पर लगने वाले मेले में भी लोगों की चहल-पहल दिखी। खास बात यह रही कि दोनों ही स्थानों पर भक्ति का ऐसी झलक देखने को मिलती है कि मां के दर्शन करने के दौरान नजर हटती नहीं। छठवां दिन बीतने के साथ ही नवरात्र का उत्साह और बढ़ गया है। शहर में कई स्थानों पर देवी जागरण शुरू हो गये हैं तो किसी ने सप्तमी तो किसी ने अष्टमी को कन्यायें खिलाने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं चैबान मुहल्ला स्थित अति प्राचीन मनोकामना पूर्ण करने वाली श्री मोहन दे माता के पीछे का इतिहास बताते हुए बुजुर्गवार कहते है कि इन माता रानी की मोहनी सूरत होने के कारण इनका नाम मोहन दे माता पडा। चैबान मुहल्ला के चैबे हाउस में खुदाई के समय यह मुर्ति मिली थी जिस जगह यह मंदिर आज है लगभग तीन सौ साल पहले यह एक टीले के रूप में विद्वमान थी, तथा टीले पर ही सडक की ओर एक मठिया थी। मठिया कच्ची ककईया ईटों से बनी हुई थी,उस कच्ची मिटटी से बनी मठिया में एक आला था वहीं मोहन दे माता विराजमान थी । उस समय माता रानी की पूजा अर्चना हेतु भक्त मठिया में झुक कर घुस कर पूजा करते थे। समय समय पर मंदिर पर जीर्णोद्वार होता गया है मंदिर का आकार तो बढ़ गया है लेकिन मोहन दे माता जिस जगह पर दो सौ साल पहले विराजमान थी वह वही पर आज भी विराजमान है। टीले के पास ही पीपल का विशालकाय पेड़ था तथा उसके समीप ही टीन की चादर पडी हुई थी। समय समय पर माता के मंदिर का निर्माण कार्य होता रहा ,मंदिर परिसर में विस्तार होता गया किन्तु आज भी माता का वह आला जिसमें मोहन दे माता विराजमान थी वे आज भी उसी कोने पर विराजमान है किसी तरह की कोई छेडछाड नहीं की गई। मंदिर का परिसर बडा जरूर है किन्तु मोहन दे माता रानी उसी कोने में आज भी वही विराजमान है। माता रानी के नियमित भक्त शैलेेन्द्र कुमार चतुर्वेदी बताते है कि है कि वे नियमित रूप से प्रातकाल उठने के बाद मोहन दे माता रानी के दर्शन करते है इससे उन्हें आत्मीक सुख प्राप्त होता है। मंदिर के महंत रामदास भारद्वाज कहते है कि मोहनदे माता रानी ने स्वप्न में मुझे आदेश दिया कि मेरा रोज चोला चढाओं तथा नित्य नये नये मेरे रूपों में भक्तों को दर्शन कराओं तुम्हारे बिगडे सभी काम बनेगें तथी से में माता रानी की सेवा में लगा हुआ हुॅ तथा मुझे कोई परेशानी नहीं होती तथा मेरे बिगड़े हुए माता रानी की कृपा से सभी काम बनते चले जा रहे है।