Saturday, November 23, 2024
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राष्ट्र गान देशभक्ती की चेतना अवश्य जगाएगा

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डाँ नीलम महेंद्र, ग्वालियर (मप्र)
हम सभी अपने माता पिता से प्रेम करते हैं उनका सम्मान करते हैं। हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि अपने दिन की शुरुआत हम अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेकर करें और उनका स्मरण उनका आशीर्वाद लेने का कोई दिन अथवा समय निश्चित नहीं है हम जब भी चाहें ले सकते हैं  किसी विशेष दिन का इंतजार नहीं करते कि अपने जन्मदिन पर ही लेंगे या फिर नए साल पर ही लेंगे तो फिर यह देश जो हम सबकी शान है हमारा पालनहार है उसके आदर उसके सम्मान के दिन सीमित क्यों हों उसके लिए केवल कुछ विशेष दिन ही निश्चित क्यों हों ?

” एक बालक को देशभक्त नागरिक बनाना आसान है बनिस्बत एक वयस्क के क्योंकि हमारे बचपन के संस्कार ही भविष्य में हमारा व्यक्तित्व बनते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सिनेमा हॉल में हर शो से पहले राष्ट्र गान बजाना अनिवार्य होगा।हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है और चूँकि हम लोग अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति बेहद जागरूक हैं और हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल है तो हम हर मुद्दे पर अपनी अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और किसी भी फैसले अथवा वक्तव्य को विवाद बना देते हैं, यही हमारे समाज की विशेषता बन गई है। किसी सभ्य समाज को अगर यह महसूस होने लगे कि उसके देश का राष्ट्र गान उस पर थोपा जा रहा है और इसके विरोध में स्वर उठने लगें तो यह उस देश के भविष्य के लिए वाकई चिंताजनक विषय है।
“राष्ट्र गानदेश प्रेम से परिपूर्ण एक ऐसी   संगीत रचना जो उस देश के इतिहास  सभ्यता संस्कृति एवं उसके पूर्वजों के संघर्ष की कहानी अपने नागरिकों को याद दिलाती है । “राष्ट्र गान जिसे हम सभी ने बचपन से एक साथ मिलकर गाया है , स्कूल में हर रोज़  और 26 जनवरी 15 अगस्त को हर साल।
इसके एक एक शब्द के उच्चारण में हम सभी ने एक गर्व, एक अभिमान इस देश पर अपने अधिकार एवं उसके प्रति अपने कर्तव्य, ऐसे अनेकों मिश्रित भावों से युक्त एक स्फूर्ति की लहर अपने भीतर से  उठती हुई सी महसूस की है।
हमारा राष्ट्र गान  ‘जन गण मन ‘ जो मूलतः गुरुदेव रबीन्द्र नाथ ठाकुर ने बांग्ला भाषा में लिखा था, भारत सरकार ने 24 जनवरी 1950 को राष्ट्र गान के रूप में अंगीकृत किया था। यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर विश्व के एकमात्र व्यक्ति हैं जिनकी  रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्र गान का दर्जा प्राप्त है। बांग्लादेश का राष्ट्र गान  ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी उन्हीं की रचना है। विश्व के हर देश का अपना राष्ट्र गान है और उसके सम्मान से जुड़े कानून। जैसे यूनाइटेड स्टेट्स में जब भी राष्ट्र गान बजता है, सभी को सावधान की मुद्रा में अपना दांयाँ हाथ अपने सीने  (दिल पर  रखकर अपने राष्ट्रीय ध्वज की ओर मुख करके खड़ा रहना होता है और अगर राष्ट्रीय ध्वज मौजूद न हो तो राष्ट्र गान के स्रोत की ओर मुख करके खड़ा होना आवश्यक है।
थाइलैंड में हर रोज राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रात: 8 बजे और संध्या 6 बजे उनके राष्ट्र गान का प्रसारण होता है तथा स्कूलों में रोज बच्चे सुबह 8 बजे अपने राष्ट्रीय ध्वज के सामने राष्ट्र गान गाते हैं। इतना ही नहीं सरकारी कार्यालयों एवं सिनेमाघरों में भी इसे नियमित रूप से बजाया जाता है ।
रशिया में भी अपने राष्ट्र गान का अनादर करने पर आर्थिक दंड के साथ साथ जेल में डाल देने का प्रावधान है। अफ्रीका के एक देश ‘डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ काँगो’ का राष्ट्र गान अपने नागरिकों से पूछता है ” एंड इफ वी हैव टू डाई , डज़ इट रीयली मैटर ? ”  अर्थात्  अगर हमें अपनी जान भी देनी पड़े तो भी क्या फर्क पड़ता है ?
यहाँ पर इन तथ्यों का उल्लेख इसलिए नहीं किया गया है कि चूँकि अन्य देशों में ऐसा होता है तो हमारे देश में भी होना चाहिए और ऐसा भी नहीं है कि अगर अन्य देशों में ऐसा कुछ नहीं है तो फिर हमारे देश में क्यों  ?
दरअसल इन तथ्यों का उल्लेख इसलिए कि हम इस भावना के मूल को समझें कि जितना यह सत्य है कि दुनिया के हर देश के नागरिक अपने देश से प्रेम करते हैं और उनके ह्रदय में अपने देश के लिए अभूतपूर्व सम्मान की भावना होती है  उतना ही बड़ा एक सत्य यह भी है कि जिस देश के नागरिक अपने देश से प्रेम एवं उसका सम्मान नहीं करते वह देश  गुलामी की राह पर अग्रसर होने लगता है  ।
हम सभी अपने माता पिता से प्रेम करते हैं उनका सम्मान करते हैं। हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि अपने दिन की शुरुआत हम अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेकर करें और उनका स्मरण उनका आशीर्वाद लेने का कोई दिन अथवा समय निश्चित नहीं है हम जब भी चाहें ले सकते हैं  किसी विशेष दिन का इंतजार नहीं करते कि अपने जन्मदिन पर ही लेंगे या फिर नए साल पर ही लेंगे तो फिर यह देश जो हम सबकी शान है हमारा पालनहार है उसके आदर उसके सम्मान के दिन सीमित क्यों हों उसके लिए केवल कुछ विशेष दिन ही निश्चित क्यों हों ?
एक तथ्य यह भी है कि आज के इस दौर में कोई भी व्यक्ति फिल्म देखने सप्ताह अथवा महीने में एक बार या अधिक से अधिक दो बार ही जाता होगा रोज रोज दिन में तीनों चारों शो तो शायद ही कोई देखता हो तो सप्ताह अथवा महीने में एक या दो बार भी हमें अपने राष्ट्र गान को सम्मान देने में कठिनाई हो रही है, यह एक विचारणीय विषय है।
कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि जब हम फिल्म देखने जाते हैं तो हम मनोरंजन के लिए जाते हैं तो ऐसे में राष्ट्र गान और मनोरंजन दोनों मानसिक स्थितियाँ मेल नहीं खातीं  तो एक उदाहरण का उल्लेख यहाँ उचित होगा।
स्कूल के दिनों में बच्चे फ्री पीरियड या फिर गेम्स पीरीयड के लिए लालायित रहते हैं और इन पीरियड में वे निश्चिंत होकर खेलते हैं लेकिन अगर उस समय  उनके सामने प्राचार्य या अध्यापक कोई भी आ जाता है तो वे अपना खेल रोककर उनका अभिवादन करना नहीं भूलते। वे यह नहीं कहते कि अभी तो हम खेल रहे हैं हम अपने मनोरंजन में बाधा नहीं डाल सकते इसलिए आपका अभिवादन बाद में करेंगे आखिर स्वतंत्रता और स्वछन्दता में एक महीन सा अन्तर होता है। वही पतंग आकाश में ऊँची उड़ान भर पाती है जो अपनी डोर से बंधी हो इसलिए नियमों के बन्धन ऊँची उड़ान के लिए आवश्यक होते हैं। आप मनोरंजन के लिए लाँग ड्राइव पर जा रहे हैं तो गाड़ी की स्पीड रोमांच और मनोरंजन दोनों देती है लेकिन आपकी कुशलता के लिए आपका अपनी गाड़ी की गति पर नियंत्रण आवश्यक है। अगर आपकी गाड़ी कहे कि इस समय तो मैं ऊँची उड़ान और तेज रफतार की मानसिक स्थिति में हूँ मैं ब्रेक नहीं लगने दूंगी तो आप अंदाज लगा सकते हैं आपकी क्या दशा होगी। तो आप मनोरंजन के लिए जाएं लेकिन फिल्म से पहले राष्ट्र गान के रूप में अपने राष्ट्र के गौरव को याद करने एवं उसके प्रति सम्मान का प्रदर्शन करने से आपके मनोरंजन में कोई कमी नहीं आएगी अपितु एक राष्ट्र प्रेम की चेतना अवश्य आ जाएगी।
यहाँ कुछ व्यवहारिक परेशानी विकलांगों के साथ अवश्य हो सकती है तो सरकार एवं सिनेमाघर यह सुनिश्चित करें कि विकलांगों के बैठने की व्यवस्था अलग से की जाए ताकि राष्ट्र गान के समय न तो इन्हें असुविधा हो और न ही इनके खड़े न होने की स्थिति में वहाँ के वातावरण में अराजकता अथवा असंतोष की कोई अप्रिय स्थिति निर्मित हो।
यहाँ पर यह जानकारी रोचक होगी कि चीन से युद्ध के बाद भारत के सिनेमाघरों में फिल्म खत्म होने के बाद राष्ट्र गान बजाने की परंपरा थी लेकिन फिल्म खत्म होने के बाद लोगों के बाहर निकलने की जल्दी में राष्ट्र गान का अनादर होने की स्थिति में इस परम्परा को कालांतर में बन्द कर दिया गया था हालांकि एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार के मनोरंजन कर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सिनेमाघरों को सरकार की ओर से कभी भी यह आदेश नहीं दिया गया कि राष्ट्र गान बन्द कर दिया जाए तो 30 सितंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा निर्देश निश्चित ही सराहनीय हैं न सिर्फ देश के वर्तमान के लिए बल्कि उसके भविष्य के लिए भी  लेकिन हर बात को विवाद बना देना न तो देश के वर्तमान के लिए अच्छा है न भविष्य के लिए ।
डॉ नीलम महेंद्र