Monday, November 25, 2024
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दधिकांदो मेला में श्रीकृष्ण-बलदाऊ के रोमांचक दर्शन पाकर भक्त हुए निहाल

दधिकांधो मेला 1890 में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में हुई थी शुरूआत
इलाहाबाद, मिथलेश कुमार वर्मा। दधिकांदो मेला पूरे इलाहाबाद में हर क्षेत्र में बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। कई दिनो पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू हो जाती रविवार को शाम से लेकर देर रात तक भव्य दधिकांधो मेला का आयोजन प्रारम्भ हुआ यह मेला बरसों से सम्पन्न होता आ रहा है। यह मेला राधा कृष्ण के जीवन लीला पर आधारित है। इस दधिकन्दो मेले में तरह तरह के झाँकियों के माध्यम से भगवान की लीलाओं को प्रस्तुत किया जाता है। जैसे कृष्ण, राधा, राम, सीता के जीवन की लीला एवं शंकर जी का विकराल रूप देखकर लोग रोमांचित हो उठते है। यह दधिकांदो मेला बहुत विख्यात मेला है, यह मेला हिन्दुओं के धर्म के आस्था से जुड़े होने के कारण पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस मेले में सैकड़ों गाँव के लोग छोटे-बड़े, बच्चे, महिला, पुरुष हर जाति के लोग एकत्रित होते है और भगवान की लीलाओं को झाँकियों के माध्यम से दर्शन करके प्रफुल्लित होते है। यह मेला हिन्दुओं के पर्व से जोड़ा गया है इस मेले में पुलिस प्रशासन बहुत चुस्त दुरुस्त दिखाई दी जिससे मेले को ठीक ढंग से सम्पन्न कराया जा सके।
रविवार को सुलेमसराय से लेकर बमरौली मंदरमोड़ तक में दधिकांदो मेले की धूम रही। चौफटका पुल से लेकर मुंडेरा मंडी तक का तकरीबन 07 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र बिजली की रंगीन झालरों से जगमग हुआ। आकर्षक चौकियों संग कान्हा और बदलाऊ का दल निकला। पूरे क्षेत्र में उत्सव के उमंग में पूरी रात जागता रहा। दधिकांदो मेले में शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के लोगों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी दर्ज कराई।
इस ऐतिहासिक मेले में अगर कोई परम्परा आज भी सैकड़ों सालों से निभाई जा रही है तो वह यही है। लोग श्रीकृष्ण-बलदाऊ की एक झलक पाने के लिए भी बेकरार होते है। बमरौली निवासी मो. मोहसिन ने बताया इस मेले को अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में आम जनमानस को एकजुट करने के लिए शुरू किया गया था। यह ठीक उसी तरह की शुरुआत थी जैसा की महाराष्ट्र में गणेश पूजा पर होता था। तीर्थराज प्रयाग में इसके लिए दिन चुना गया और वह दिन था भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का छठवां दिन। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद उनकी छठी मानने का धार्मिक कारण दर्शा कर लोगों को एकत्रित किया गया और अब सैकड़ों साल बाद भी यह क्रम चल रहा है।

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मेले में मोतीलाल अग्रहरी ने बताया दधिकांदो का अर्थ है दही क्रीड़ा। सबको पता है की भगवन श्रीकृष्ण दही और मक्खन की कैसी-कैसी लीला करते थे। इसलिए इस मेले का नाम भी दधिकांदो रखा गया था।