Tuesday, November 26, 2024
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कुर्सी का जोड़ तोड़ बनाम जनादेश !

चुनावो से ठीक पहले आर्थिक मंदी बेरोजगारी और जनवसुली योजना अर्थात महँगे यातायात चालान ने भाजपा की लुटिया डुबाई और सचेत किया होगा। हरियाणा और महाराष्ट्रा विधानसभा चुनाव परिणाम ने भाजपा को पंगु बना दिया क्योकि अब वो जेजेपी और शिवसेना के भरोसे पर ही स्थायी सरकार बना पाएगी। अब प्रश्न ये उठता है कि क्या सचमुच महाराष्ट्र व हरियाणा में 370 कमाल नहीं कर पाया ? क्या सच में गडकरी और योगी भाजपा के लिए किरकिरी बन गए है ? क्या बेरोजगारी ने भाजपा से यूपी 2022 छिन लिया है ? आइये जरा विश्लेषण करते है।
महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों राज्यों में भाजपा ने विजय जरूर प्राप्त की। महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन को आसानी से बहुमत प्राप्त हो गया तो हरियाणा में बहुमत से 6 कदम दुर रह गई। टीवी पर बैठे पैनेलिस्टों ने बिना चुनावी डाटा के अध्ययन किए हुए यह कहना शुरु कर दिया कि धारा-370 दोनों राज्यों में कोई मुद्दा नही बन पाया।
मेरे समझ में कुछ चुनावी विश्लेषकों ने भाजपा फोबिया से ग्रसित होने के कारण और कुछ ने बिना डाटा अध्ययन किए हुए ऐसा कह रहे हैं। आईए टीवी पैनलिस्टो से अलग हटकर हकिकत से रू-बरू होते हैं। सबसे पहले जो लोग यह कह रहे हैं कि पिछले चुनाव के अपेक्षा इस बार दोनों राज्यों में भाजपा की कम सीट आई उनकों इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि पिछले चुनाव के मुकाबले में इस बार वोट पोल भी कम हुआ था। महाराष्ट्र में पिछले चुनाव के मुकाबले 4 प्रतिशत कम वोटिंग हुई थी तो वहीं हरियाणा में 11 प्रतिशत कम वोटिंग हुई थी। यह महत्वपूर्ण तथ्य है जिसे आप मुंह चुरा नही सकते। दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार थी एंटी इम्बैक्सी फैक्टर होना स्वभाविक बात है किंतु इसके बावजुद महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना ने 160 सीटें जीती तो हरियाणा में 40 सीट जीती। पिछले चुनाव परिणाम के मुकाबले देखा जाए तो महाराष्ट्र में 24 सीट और हरियाणा में 7 सीट कम हो गई। दूसरा पहलु यह देखा जाए कि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना के 114 बागी उम्मीदवार ताल ठोक रहे थें जिनमें 71 लोगों को मना लिया गया था फिर भी 43 लोग मैदान में थे इनमें से 18 बागीयों को जीत मिली है तो 9 सीट बागीयों के मैदान में रहने के कारण हार मिली है। टोटल करेगें तो 18+9 – 27 सीट पर बागीयों के कारण भाजपा- शिवसेना को हार मिली। अब हरियाणा तो वहां भाजपा के 11 बागी मैदान में थे। आपको यह जानकर हैरत होगी कि इन 11 बागीयों में 5 जीतकर विधायक बन चुके हैं। (1) रणधीर सिंह गोल्लेन पुंद्री विधानसभा सीठ से जीते। (2) सोमवीर सांगवान दादरी सीट से जीते। (3) धर्मपाल गोंडर नीलोखेड़ी सुरक्षित सीट से जीते हैं अनुसूचित जाति से आते हैं। (4) बलराज कुंडू मेहम सीट से जीतें। (5) नयन पाल रावत पृथला सीट से जीतें। उपरोक्त सभी 5 निर्दलीय विधायक भाजपा के बागी नेता है भाजपा ने जब इनको टिकट नही दिया तो निर्दलीय खड़े होकर जीत गयें। अब इन 5 बागीयों को जोड़ लिया जाए तो 45 सीट हो जाता है। और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह की पिछले चुनाव के मुकाबले हरियाणा में 11 प्रतिशत कम वोटिंग हुई उसके बाद भी भाजपा का वोट शेयर 2014 के अपेक्षा 3 प्रतिशत बढकर 36.49 प्रतिशत हो गया।
मैं गृह राज्य उत्तर प्रदेश की बात करूँ तो यहां 11  विधानसभा सीट पर उपचुनाव था,  8 कब्जा किया भाजपा ने जब की 1 का नुकसान हुआ। बिहार में भी  लोकसभा सीट पर भाजपा के मित्र लोजपा को जीत मिली किंतु 5 विधानसभा सीट पर मात मिली तो इसका कारण यह है कि इसमें से 4 सीट मुस्लिम बाहुल्य था तो एक बेलहर सीट यादव बाहुल्य था जो राजद का वोट बैंक रहा है। किशनगंज सीट 65 प्रतिशत मुस्लिम बहुल जहाँ ओवैसी की पार्टी का कमरूल होडा जीता। सिमरी बख्तियारपुर यहां 36 प्रतिशत मुस्लिम रहते हैं जहाँ से राजद का जफर आलम जीता। नाथनगर सीट पर भी मुसलमानों का दबदबा है यहां से भी राजद की रबिया खातुन जीती।
अतः धारा 370 भाजपा के लिए काम नही आया यह कहना बेवकूफी है इसके बदौलत ही भाजपा ने मंदी और एंटी-इम्बैकसी फैक्टर दोनों को मात देने में पुरी तरह सफल रही है। यही आज के चुनाव परिणाम का कड़वा सच है बाकी सब झुठ। अब भाजपा को थोड़ा सचेत होना होगा अपने यूपी के मंत्रियो को आगाह करना होगा की केवल पदयात्रा, निमन्त्रण खाना, फोटो खीचाना और सोशल मीडिया से प्रचार कराना पर्याप्त नही बल्कि आम कार्यकर्ता की तरह सामान्य जनपरेशानियो को समझना सुनना और निवारण करना मुख्य उद्देश्य बनाकर चलना होगा।
– पंकज कुमार मिश्रा जौनपुर