Sunday, November 24, 2024
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‘‘तेरा धीमे से कुछ कहना’’

2016-10-14-5-sspjs-kanchanपरीशाँखातिरी दिल को जुदाई क्यूँ नहीं देता
पिघलती आग पर शब-ए-खुदाई क्यूँ नहीं देता।

मेरी तन्हाइयों में हर तरफ बिखरा है सन्नाटा
तेरा धीमे से कुछ कहना सुनाई क्यूँ नहीं देता।

फलक तक बादलों के संग चलती हैं थकी आँखें
तुम्हारा झूम कर आना दिखाई क्यूँ नहीं देता।

वो तय करता है जिद्दत से सफर आकाश से मन का
मगर सपनों के पंखों को ऊँचाई क्यूँ नहीं देता।

ये जो विश्वास फागुन-सा निखरकर गुनगुनाता है
निराशा के धुंधलके को विदाई क्यूँ नहीं देता।

दरारें आईने पर रोज देना खुशमजाकी में
बीमार-ए-दिल को अच्छी-सी दवाई क्यूँ नहीं देता।

झुकी पलकों पे बैठीं हैं हजारों बूंदें सिसकी की
गजब बर्बादे दिल फिर भी दुहाई क्यूँ नहीं देता।

बसारत अनगिनत लहरों पर जाकर लौट आती है
वह चेहरा चाँद-सा कंचन दिखाई क्यूँ नहीं देता।

Written By: Kanchan Pathak, Mumbai