Saturday, November 23, 2024
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चमोली ग्लेशियर हादसा, वैश्विक जलवायु परिवर्तन का आकस्मिक परिणाम

चमोली जिले में विदेशिया पिघलने की घटना अचानक नहीं हुई, इसकी पृष्ठभूमि में जलवायु परिवर्तन के घटक तत्व अंतर्निहित है| इस दुर्घटना में अभी तक 26 शव बरामद हुए हैं एवं कुल 171 लोग लापता भी हैं| ऐसा क्यों होता है की उत्तरांचल में हिमस्खलन या ग्लेशियर के पिघलने की घटना पिछले कई वर्षों से होती आ रही है| हम सोचते हैं कि प्राकृतिक आपदा है| निसंदेह यह प्राकृतिक आपदा है, पर इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन एवं इस क्षेत्र में ऊंचाई पर बनाए गए मानव निर्मित कई बड़े बांध भी इसके जिम्मेदार हैं| ग्लेशियर के फटने से ऋषि गंगा परियोजना के रूप में जाने जाने वाले तपोवन हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर डैम पूरी तरह तबाह और ध्वस्त हो गया है| सैकड़ों लोगों की गुमशुदगी के साथ वहां के निवासी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं|
जलवायु परिवर्तन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण प्रबुद्ध मंडल यानी कि थिंक टैंक की स्थापना की गई है| जो समय समय पर विश्व स्तरीय पर्यावरण से संबंधित सार्वजनिक नीतियों को स्पष्ट करने तथा कई देशों को संकट से उबारने हेतु चेतावनी देने की स्थिति से अवगत कराने हेतु निर्मित की गई है| दरअसल यह एक ऐसी स्वतंत्र पर्यावरण चिंतन की संस्था है जो मानव अधिकार के पालन और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर विविध पहलुओं पर जोर देकर सावधानी हेतु सलाह भी देता है| यह समय-समय पर वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक देकर मौसम संबंधी घटनाएं जैसे बाढ़ तूफान भूस्खलन भूकंप तथा उष्मीय किरणें के बारे में विश्व के देशों को आगाह करने का काम भी करता है| भारत का इस संस्था द्वारा सूचकांक 18.1 7 बताया गया था यह वर्ष 17 18 का सूचकांक था| 1 वर्ष की अवधि में अचानक जलवायु परिवर्तन सूचकांक बढ़ जाने से जलवायु परिवर्तन के खतरे पहले की अपेक्षा कितनी त्वरित गति से बढ़ते गए हैं| जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम के अनियमित तथा अनियंत्रित होने से भारत में ही ही 2018 में सर्वाधिक 2018 मौतें हुई हैं| जबकि जापान 1282 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है| जर्मनी तीसरे नंबर पर रहा| प्राकृतिक आपदा में दो हजार से ज्यादा जाने जाने के बावजूद भारत सरकार ने तटीय और उत्तर के हिमालय से सटे राज्यों में कोई बचाओ के तौर पर प्रभावी कदम नहीं उठाया| एक रिपोर्ट के मुताबिक वि गत 100 वर्षों में सर्वाधिक 15 गर्म वर्ष में से 11 सर्वाधिक गर्म वर्ष भारत में ही हुए हैं| इन 11 सर्वाधिक गर्म वर्ष में भारत में भीषण गर्मी, लू, सूखा, तथा तूफान जैसी घटनाएं होकर बड़ी संख्या में आम जनमानस की मृत्यु हुई है| एवं हजारों लोगों की गुमशुदगी भी प्रमाणिक तौर पर बताई गई| और भारत सरकार को अरबों रुपयों का नुकसान भी झेलना पड़ा| भारत सरकार को सूचकांक तथा वैश्विक बौद्धिक संस्था द्वारा दी गई चेतावनी के बाद राजनीतिक तौर पर सचेत तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे हैं प्रयासों की निगरानी तथा लगातार समीक्षा की की जानी चाहिए थी,| क्योंकि संवेदनशील जगहों पर पानी को रोकने की व्यवस्था के लिए किसी भी बांध का डैम बनाने की आवश्यकता को ध्यान में रखने एवं उस पर गहन अनुसंधान करने की आवश्यकता पड़ती है, जो कि उत्तराखंड के ऊपर ग्लेशियर को पिघलाने के लिए मजबूर करता है| भारत सरकार जलवायु परिवर्तन तथा प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए गंभीर तो है किंतु राज्य सरकारों की सजगता की कमी के कारण ऐसे हादसे उत्तरांचल तथा उत्तराखंड की हिमभूमि पर होते रहते हैं| जलवायु परिवर्तन में विकासशील देशों में किए जा रहे उपाय अभी उतने प्रभावी नहीं है की उन पर 100% नियंत्रण रखा जा सके| ऐसे में भारत सरकार को संवेदनशील क्षेत्र में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन प्रबुद्ध संघ से लगातार संपर्क में रहकर उनका लाभ उठाते रहना चाहिए| तभी इस तरह के हिमस्खलन पर नियंत्रण पाया जा सकता है|
संजीव ठाकुर, स्वतंत्र लेखक रायपुर छत्तीसगढ़