एक ओर जहां रूप बदल-बदलकर कोरोना वायरस पिछले डेढ़ वर्षों से पूरी दुनिया में लोगों पर कहर बरपा रहा है और लाखों लोगों को अपना निवाला बना चुका है, वहीं भारत में अब इस बीमारी से ठीक होने वाले कुछ लोगों पर विभिन्न प्रकार के खतरे मंडरा रहे हैं। देशभर में ब्लैक फंगस के हजारों मामले सामने आने के बाद अब कोरोना से उबरे मरीजों में व्हाइट फंगस, यैलो फंगस और एस्पेरगिलिस फंगस के मामले भी मिलने लगे हैं। हालांकि अभी तक यैलो और एस्पेरगिलिस फंगस के गिने-चुने मामले ही मिले हैं लेकिन व्हाइट फंगस से संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 29 मई को तो गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में फंगस के 23 नए मरीजों की पहचान हुई, जिनमें से व्हाइट फंगस के ही 17 मरीज थे।
व्हाइट फंगस के कारण अब एक महिला मरीज की छोटी और बड़ी बांत में छेद होने का दुर्लभ मामला भी सामने आया है। हालांकि दिल्ली में गंगाराम अस्पताल में डॉक्टरों ने 49 वर्षीया इस महिला की सर्जरी कर उसकी जाच बचा ली लेकिन उनका कहना है कि व्हाइट फंगस का आंत में अटैक करने का यह पूरी दुनिया में पहला मामला है। महिला पेट में बहुत तेज दर्द और उल्टी की शिकायत लेकर गंगाराम अस्पताल पहुंची थी, जिसकी कुछ समय पहले ही ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी भी हुई थी और चार सप्ताह पहले ही उसे कीमोथैरेपी भी दी गई थी। सीटी स्कैन करने पर उसके पेट में हवा, लिक्विड होने और आंत में छेद का पता चला और आंत से लिए टुकड़ों की बायोप्सी से स्पष्ट हुआ कि उसकी आंतों में व्हाइट फंगस है, जिसने आंतों के अंदर खतरनाक फोड़ेनुमा घाव कर दिए थे, जिससे फूड पाइप से लेकर छोटी आंत और बड़ी आंत में छेद हो गए थे।
व्हाइट फंगस नामक बीमारी को ‘एस्परगिलोसिस’ (कैंडीडायसिस) कहा जाता है, जिसे चिकित्सकीय भाषा में कैंडिडा भी कहते हैं, जो रक्त के जरिये होते हुए शरीर के हर अंग को प्रभावित कर सकता है। यह त्वचा, पेट, किडनी, ब्रेन, मुंह, फेफड़े, नाखून, जननांग इत्यादि को संक्रमित कर सकता है। कुछ लोगों का मानना है कि ब्लैक फंगस के मुकाबले व्हाइट फंगस ज्यादा खतरनाक है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसका कोई पुख्ता आधार नहीं है। अधिकांश विशेषज्ञों का यही मानना है कि यदि व्हाइट फंगस को सही समय पर पहचानकर इलाज शुरू करा लिया जाए तो इसका शत प्रतिशत उपचार संभव है। ब्लैक फंगस जहां साइनस, आंखों और फेफड़ों को मुख्य रूप से निशाना बनाता है, वहीं व्हाइट फंगस में सिरदर्द, चेहरे के एक तरफ दर्द, सूजन, आंखों के विजन का कमजोर पड़ना, मुंह में छाले जैसे लक्षण दिख सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर नाक, होंठ और मुंह के अंदर देखने को मिलता है। डॉक्टरों के मुताबिक व्हाइट फंगस का शीघ्र इलाज कराया जाना जरूरी है, जो एक-डेढ़ महीने तक चल सकता है। वैसे व्हाइट फंगस संक्रमण सामान्य एंटी-फंगल दवाओं से ठीक किया जा सकता है और इसके उपचार के लिए सामान्यतः ब्लैक फंगस की भांति महंगे इंजेक्शनों की जरूरत नहीं पड़ती।
पिछले कुछ दिनों के भीतर व्हाइट फंगस के जितने भी मामले मिले हैं, सभी पोस्ट कोविड के बाद संक्रमित हुए हैं और लगभग सभी डायबिटिक हैं। फंगस के ये मामले उन मरीजों में भी देखे जा रहे हैं, जिनकी इम्यूनिटी काफी कमजोर है। व्हाइट फंगस संक्रमण से बचने के लिए भी डॉक्टरों की सलाह यही है कि बिना डॉक्टरी सलाह के मरीज स्टेरॉयड न लें। दरअसल व्हाइट फंगस उन्हीं लोगों को अपना शिकार बनाता है, जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो और जो पहले से मधुमेह, कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं झेल रहे हों। यह लंबे समय तक स्टेरॉयड ले रहे कोरोना संक्रमित मरीजों पर और विशेषकर मधुमेह मरीजों पर आसानी से हमला करता है। इसके अलावा कोविड संक्रमित गंभीर मरीज, जिन्हें ऑक्सीजन दी जा रही हो और उनकी नाक या मुंह पर लगे उपकरण फंगलयुक्त हों, उन्हें भी संक्रमण हो सकता है, यह उनके फेफड़ों को संक्रमित कर सकता है। इसलिए इम्युनिटी कम होने की स्थिति में मरीज द्वारा किसी भी प्रकार के फंगल इंफैक्शन को लेकर अत्यधिक सतर्कता की जरूरत है क्योंकि इसकी अनदेखी जानलेवा हो सकती है।
रक्त के जरिये त्वचा में व्हाइट फंगस इंफैक्शन फैलने पर छोटे-छोटे फोड़े हो सकते हैं, जो प्रायः दर्दरहित होते हैं, यह संक्रमण का शुरुआती लक्षण है। यदि संक्रमण का असर शरीर के जोड़ों पर हो तो इससे जोड़ों में दर्द होने लगता है, दिमाग तक पहुंचने पर सोचने-विचारने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता दिखता है, जिससे तेज सिरदर्द के साथ उल्टियां हो सकती हैं और मरीज को बोलने में भी परेशानी हो सकती है। यदि मरीज के शरीर पर चकत्ते, आंखों में जलन, जीभ में फोड़ा, गला जाम, थूक निगलने में परेशानी जैसी शिकायतें हैं तो ये व्हाइट फंगस के लक्षण हो सकते हैं, इन लक्षणों को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। व्हाइट फंगस आंख, गला, आंत, लीवर, जीभ जैसे मरीज के नाजुक अंगों पर हमला करता है और अंग के सेल्स को तेजी से नष्ट कर देता है, जिससे अंग कार्य करना बंद कर देता है। इसका हमला इतना तेज होता है कि फंगस कुछ ही दिनों में शरीर के प्रमुख अंग को खराब कर सकता है और ऐसे कुछ मामलों में शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंगों के फेल होने पर मरीज की मौत हो सकती है।
व्हाइट फंगल इंफैक्शन कोविड की भांति व्यक्ति के फेफड़ों पर अटैक करता है, जिसमें प्रायः सांस फूलना, सीने में दर्द जैसे कोविड-19 जैसे ही लक्षण नजर आते हैं, इसलिए भी सतर्क रहना बेहद जरूरी है। जिन मरीजों में कोविड से ठीक होने के बावजूद लगातार खांसी हो रही है, वे डॉक्टरी सलाह से स्पटम कल्चर करा सकते हैं। फेफड़ों पर असर होने पर कोरोना जैसे लक्षण दिखने पर कई बार लोग बिना जांच के स्वयं को कोरोना संक्रमित मानकर घर पर ही बिना डॉक्टरी सलाह के दवाएं लेने लगते हैं, जिससे हालात बिगड़ जाते हैं। ऐसे में फंगस संक्रमण शरीर के मुख्य अंगों को चपेट में ले सकता है, जिससे ऑर्गन फेल होने से मरीज की मौत हो सकती है। अधिकांश डॉक्टरों का कहना है कि व्हाइट फंगस कोई बड़ी बीमारी नहीं है बल्कि यह कैंडीडायसिस नामक इंफैक्शन है, जो काफी आम है, जिसका इलाज आसानी से किया जा सकता है और अधिकांश मामलों में यह संक्रमण जानलेवा साबित नहीं होता।
व्हाइट फंगस संक्रमण को आसानी से पहचाना जा सकता है लेकिन यह तब खतरनाक साबित हो सकता है, जब मरीज द्वारा अपने भीतर नजर आ रहे सभी लक्षणों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाए। इस संक्रमण का इलाज एंटी-फंगल दवाओं से शुरू होता है लेकिन ये दवाएं अक्सर तभी ज्यादा असरदार होती हैं, जब बीमारी शुरूआती अवस्था में ही पकड़ में आ जाए। इसलिए शरीर में कुछ भी असामान्य महसूस होने पर अविलंब डॉक्टर से परामर्श करें। देर से इलाज शुरू करने पर मरीज की स्थिति गंभीर हो सकती है। शुरूआती अवस्था में इलाज शुरू हो जाने पर एंटी-फंगल दवाओं से मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है, इसलिए इससे घबराने के बजाय सचेत रहने की आवश्यकता है।
(लेखक योगेश कुमार गोयल वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)
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