Saturday, November 23, 2024
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रो लूं

दिल करे यूं आज तुमको
याद कर के रो लूं
एक भी बूंद अश्क़ के ना बचे आंखों
जी भर के रो लूं
ना सोचूं मैं ये
कोई कहेगा क्या
और मेरे साथ क्या होगा हादसा
यूं खुद को मैं तबाह कर के रो लूं
हौसला ना रहा रूह के
सिहरन को रोक लूं
आग दामन के
आंखों में आज भर के रो लूं
तुमने निहायत ग़मगीन लम्हों में
साथ निभाया भी है
तनहा मुझे छोड़ दिल दुखाया भी है
मैं फिर भी तुम्हें माफ़ कर के रो लूं
क़ाश इस करूण मौन रूदन की पुकार
तुम्हारे हृदय तक पहुंच जाते
पल भर को तुम सारे बंधन तोड़ कर आते
और मैं तुम्हारी बाहों में ठहर के रो लूं
तुम आत्मा के मेरे ही अंश लगते हो
मेरे यादों में जकड़े हो
मुझसे ख्वाबों में कहते हो
तुम्हें यादों से अपने आजाद कर के रो लूं
फिर मुझमें एक कतरा
ना रहे जिंदगी की
मैं हदों से यूं गुजरूं
और बिखर के रो लूं
स्वरचित कविता
बीना राय, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश