हमे चीन को पहचानने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती। हम १९६२ से जानते है उस देश की नीतियों को, लोमड़ी सा चंट और चालबाज। हिंदी चीनी भाई भाई बोलते बोलते अपनी चालाकी से अक्साई चीन हथिया लिया। और उसके बाद भी बार बार हमलों की तैयारी बता कर हमारी जमीनों पर अतिक्रमण करता रहा। अभी हर हाल में उसे अतिक्रमण करके अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाना हैं।
अपने देश में ही अत्याचार करके देश की उन्नति चाहने वाला चीन आर्थिक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन दे चीन ने पूरी दुनियां में निर्यात कर अपना पैर पसार दिया हैं। हर मुल्क में अपना सस्ता और नीची गुणवत्ता का उत्पाद बेच अपने उपर आश्रित बना लिया है। कुटिल नीति के तहत गरीब और जरूरतमंद देशों को ऊंचे व्याज पर कर्ज दे उन्हें कर्जों में डूबो दिया है और उनकी हालत गुलामों से बदतर कर दी हैं। शायद पूरी दुनियां पे शासन बढ़ने के स्वप्न को पूरा करने के लिए नैतिकता को छोड़ कुटिलता अपना ली हैं।
और जो आजकल हो रहा हैं वो? वो तो ऐसा दु:स्वप्न हैं जो पीढ़ियां याद रखेगी। अगर ये विषाणु चीन की एक चाल है तो शायद उसने अपने लिए आर्थिक गढ्ढा खोदा है। जिस देश की अर्थव्यवस्था निर्यात पर आधारित है उसने उन्ही देशों की आर्थिक दुर्बलता दी है ये महामारी फैला के। सभी देशों को अपने उद्योग, रोजगार सब बंद करने से बहुत ही बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ हैं, और जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो वह कैसे उनसे आयत करेंगे या बढ़ाएंगे? खास करके संपन्न देश हैं वो तो क्रमश: अपना आयात चीन से कम करते जा रहे हैं, विकल्प के रूप में दूसरे देशों से आयात शुरू कर देंगे।
उपर से चीन के प्रति सब सभी देशों मे एक दुर्भाव जो पैदा हुआ हैं उसका भी प्रभाव गंभीर और लंबे समय तक रहेगा। अपने देश के संसाधनों से वह अपनी जनसंख्या का पालन नहीं कर पाएगा। तुघलगी निर्णय ले वह तत्कालीन समस्याओं का निराकरण जरूर ला सकेगा, जैसे माओ ने लिया था अन्न और खाद्यपदार्थों की कमी के समय– सब कुछ जो चलता हैं वह खाने के लिए प्रोत्साहित किया था अपनी जनता को। लोगो ने सब कीड़े मकोड़े, पक्षी जानवर सब खाना शुरू कर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया हैं तो वहां अन्न उत्पादन में क्रमश: कमी आती गई।
अब देखे तो चीन की बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी एवर ग्रैंड, जो दुनियां की ५०० सबसे बड़ी कंपनियों में एक हैं और चीन की सबसे बड़ी कंपनी हैं जिसका दिवालिया निकालना पूरी दुनियां को आर्थिक अंधेरे की गर्त में डाल सकता हैं। वैसे तो चीन में से कोई सही समाचार बाहर नहीं आ सकते लेकिन ये तो इतने बड़े समाचार हैं कि छुपाना मुश्किल हैं। अगर चीन की सरकार ने उसे मदद नहीं की होती तो आज २००८ जैसी आर्थिक मंदी आई होती। अभी भी अंदरूनी हालत क्या है नहीं कह सकते हैं। कभी भी दबे हालत सतह पर आए तो पूरी दुनियां के अर्थतंत्र को तबाही की राह पर ले जायेगा। चीन में खाद्य पदार्थों की जो किल्लत हैं वह भी माओ के जमाने के में हुई किल्लत ने जो हालत पैदा किए उससे भी ज्यादा भयावह होंगे ये तय हैं।
पूरी को कोविड़–१९ वायरस से आतंकित करने वाला चीन २/३ लॉकडाउन के अंर्तगत बंद पड़ा हैं। बीमारी देने वाले की वैक्सिन भी इतने कारगर नहीं हैं तभी तो बीमारी फैले जा रही हैं।
उपर से अपनी विस्तार वादी नीति से अपने सैन्य की तीनों शाखाओं में अत्याधुनिक आयुधों का समावेश कर अपनी ताकत बढ़ा दुनियां को डरा रहा हैं। म्यांमार को तो अपने अंडर में रखा हुआ हैं और ताइवान को भी डरा ने के लिए नई नई तरकीबें आजमा रहा हैं।
ऐसे ही दूसरों का बुरा चाहने वालों को फल अच्छा कैसे मिल सकता है? अब सभी देश धीरे धीरे दूसरे विकल्प देख चीन को और चीन के उत्पादकों को त्याग देना शुरू किया हैं जिसमे अपना भारत वर्ष प्रथम हैं। इस दीपावली में अपने देश में रिकॉर्ड खरीदी हुई हैं लेकिन स्वदेशी चीजों की ही खरीदी ज्यादा हुई हैं। अंदाजन ५००००० करोड़ का चीन को चुना लग चुका हैं और यही जारी रहने वाला हैं।
अपनी ही नीति रीति से ही चीन बर्बाद होने वाला हैं ये तय हैं।तो क्या अपने को ज्यादा सयाने मानने वाला चीन– कौआ … … पर जा बैठा है?
जयश्री बिर्मी, अहमदाबाद