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खबरदार, मोदी नही इंदिरा और नेहरू

2017.05.29 01 ravijansaamnaभारतीय राजनीति में आम जनता के दिलों दिमाग में लंबे समय तक राज करने वाले नेताओं की अब खासी कमी होती जा रही है। अब नेता केवल लोगों के दिलों में उतने समय तक जिंदा रहता है जितने समय तक एक इंसान को शराब या अन्य व्यसन का नशा होता है। मतलब साफ है कि जो नेता जितने समय तक पद पर बने रहेगा तब तक याद किया जाएगा जैसे ही पद से हटा उसके बाद जनता के जैहन से भी हट जाएगा। हालाकि देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर एक किताब के विमोचन पर यह कहना कि ‘पीएम मोदी सबसे प्रभावी वक्ता हैं, पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से उनकी तुलना की जा सकती है। इसके साथ ही आगे कहा कि जब तक कोई प्रभावी वक्ता नहीं बनता, उससे करोड़ों लोगों का नेतृत्व करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी भोपाल में ‘मोदी सरकार बेमिसाल’ विषय पर भाजपा के प्रदेश भर के मीडिया प्रभारियों और प्रवक्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि वर्षों बाद आज भी लोगों में यह धारणा है कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने ही देश का विकास किया है। इसलिए अब तक उनका वोट बैंक भी बना हुआ है। हमें भी प्रधानमंत्री मोदी की इसी तरह की छवि और ऐसा ही वोट बैंक बनाना है। इसलिए चाल, चरित्र और चेहरा पारदर्शी रखकर ऐसा काम करें ताकि कोई अंगुली नहीं उठा सके। शिवराज ने इस मौके पर इस बात का ज्रिक भी विशेष तौर पर किया कि भाजपा समर्थक इन पूर्व प्रधानमंत्रियों का सोशल मीडिया पर भले ही कितना मजाक बनाते हों लेकिन आज भी आमजन के बीच इनकी छवि अलग तरह की बनी है। बता दे कि शिवराज जब से सीएम बने है उसके बाद से वे पहली बार भाजपा के मीडिया प्रभारियों और प्रवक्ताओं की एक दिवसीय प्रदेश स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इसमें प्रदेश के 56 संगठनात्मक जिलों के मीडिया प्रभारी एवं सहायक प्रभारी मौजूद थे। बहरहाल इस कार्यशाला में उनको ये क्यों बोलना पड़ा कि मोदी की छवि को नेहरू और इंदिरा के समान बनाना होगा ये बात इन दिनों सत्ता के गलियारों में खूब चर्चा का विषय बनी हुई है। बेशक शिवराज भारतीय जन मानस में मोदी की ठीक वही छवि देखना चाहते हैं जो छवि अब तक देश के विकास में नेहरू और इंदिरा की बनी हुई है। जी हां बिल्कुल सही सुना आपने शिवराज चाहते हैं कि इस देश के लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वैसे ही याद रखें जैसे अब तक इंदिरा और नेहरू को अपने जैहन में रखा हुआ है। अब आपको ये भी बताते चले कि आखिर शिवराज इंदिरा और नेहरू की छवि को अपनाने की गुहार क्यों लगा रहे है, इसके लिए थोडे पीछे सन 2013 के मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव की तरफ लौटना होगा। यही वो दौर था जब शिवराज ने ”इंदिराÓÓ स्टाइल अपना कर कांग्रेस से सत्ता हथिया ली थी। उस समय सिंधिया के साथ सभी कांग्रेसी नेताओं की एकजुटता और सत्ता परिवर्तन रैलियों में उमड़ रही भीड़ ने बीजेपी की हैट्रिक की राह को कठिन बना दिया था। ऐसे में सोच-समझकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने 1971 में इंदिरा गांधी की अपनाई शैली को अपने भाषणों में समाहित कर समूची कांग्रेस पर निशाना साधना शुरू कर दिया। ग्वालियर की राहुल की रैली से पहले चौहान अपनी जन आशीर्वाद यात्रा पर कटनी में थे। वे अपने भाषणों में खुद के शासन की उपलब्धि, अगले पांच साल की योजना और केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार से लेकर सौतेले व्यवहार का जिक्र किया करते थे। कांग्रेस की ओर से घोषणावीर सीएम होने के आरोपों का जवाब वे कुछ इस तरह दे रहे थे कि , ”घोषणा कायर नहीं, वीर ही करते हैं जबकि राहुल और सिंधिया अपने भाषणों में आम जनता को भोजन, सूचना, शिक्षा, रोजगार के अधिकार देने का दंभ भरते थे। इसके एवज में  भी शिवराज इंदिरा स्टाइल में कहते कि कैसे उन्होंने किसानों से सारा अनाज खरीदा, बोनस दिया और फिर 1 रु. किलो गेंहू दिया। इसके साथ ही लगे हाथों वे सवाल भी पूछते थे कि आखिर कांग्रेस ने क्या दिया? वे अपनी चुनावी सभाओं में इंदिरा गांधी की तरह भावनात्मक लहर भी पैदा करते थे। कुछ इस तरह से कि ”मैं कहता हूं गरीबी हटाओ, वो कहते हैं शिवराज हटाओ। मैं कहता हूं पानी लाओ, वो कहते हैं शिवराज हटाओ…। बता दे कि कुछ इसी तरह से इंदिरा गांधी भी आमजन से सीधे जुडती थी। इंदिरा का यह स्टाइल अपना कर शिवराज आज भी सत्ता में है और विरोधी सत्ता से बेदखल। बेशक न तो शिवराज इंदिरा है न मोदी इंदिरा -नेहरू होगें लेकिन ये सब प्रपंच फिर से केन्द्र में मोदी की सरकार बनाने के लिए ही रचा जा रहा है। हालाकि इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अखबारों व टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर ऐसा बताने की कोशिश की जा रही है कि वे इस समय देश की जनता के सबसे लोकप्रिय और महान नेता है। लेकिन यह सरासर तब गलत साबित होगा जब वे पद से हटेगें। भविष्य में पद से हटने के बाद देश की जनता अगर नरेन्द्र भाई मोदी को कभी याद भी रखेगी तो केवल इसलिए कि वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिनने व्यवहारिकता के धरातल पर न सोच कर देश की जनता को नये-नये सब्जबाग दिखाते हुए नोटबंदी जैसा फैसला लेकर असामयिक इमरजेंसी में धकेल दिया। अभी नरेन्द्र भाई मोदी को केन्द्र की सरकार में राज करते हुए तीन साल हुए है। इस बीच उनकी छवि को कभी गरीब हितैषी बनाने की पहल की गई तो कभी किसान हितैषी। अब सरकार के तीन साला जश्र के मौके पर उनकी छवि को नेहरू और इंदिरा की तरह याद करने वाले नेता के रूप में बनाने की पहल की जा रही है। इसमें दोराय नही है कि सामाजिक और राजनीतिक जीवन में हर नेता की अपनी एक अलग छवि और पहचान होती है। कभी भी,कोई भी नेता किसी की छवि का हकदार नही बन सकता है,क्योंकि सार्वजनिक जीवन में उसकी छवि ही काम करती है। हर नेता की अपनी एक अलग पहचान होती है। यह पहचान उसके काम करने के तौर-तरीके से बनती है। अब सवाल तो ये भी है कि जब मोदी, मोदी है तो फिर उनकी छवि को नेहरू और इंदिरा के समान बनाने की बात क्यों की जा रही है। असल में यह एक षडयंत्र है। वह यह कि केन्द्र में तीन साल सत्ता का मजा चखने के बाद भी मोदी उदारवादी लोगों के दिलों में अपना स्थान नही बना पाए है। हिंदूओं और उग्र हिंदूओं के बीच भले ही वे खुदा करार दिए गए हो लेकिन इनकी तादात मुठ्ठी भर है। इन तीन सालों में मोदी उन गरीब- गुरबा लोगों, छोटी जोत के किसानों , दलित- आदिवासी, मुस्लिम और महिलाओं के बीच वह पहचान स्थापित नही कर पाए कि वे सब यह कह सके कि नरेन्द्र भाई उनके प्रधानमंत्री है। हालाकि इसके लिए वे स्वंय जिम्मेदार है। नरेन्द्र मोदी दिल से कभी मुस्लिमों के हितैषी नही रहे , जिनकी देश में आज की तारीख में करीब 18 फीसदी आबादी है। वोट की राजनीति के लिए जरूर वे गिरगिट की तरह रंग बदलते रहे। कभी टोपी पहनने से नकारते तो कभी मुस्लिम को गले लगाते। ऐसा करके वे यह दिखाने का प्रयास करते कि मैं ही आपका सबसे बड़ा और सच्चा सेवक हूं। ठीक इसी तरह का आचरण वे दलितों के साथ भी करते, जिनकी इस समय देश में करीब 25 फीसदी से अधिक आबादी है। यह कितनी अजीब बात है कि जिस देश के प्रधानमंत्री के राज में दलितों पर घोर अन्याय-अत्याचार कर उनके साथ मार काट की जाए , उनकी मां-बहन- बेटियों-बहुओं की सरेआम इज्जत- आबरू लूटी जाए , उनका जीना हराम कर दिया जाए बावजूद इसके इतने घोर अत्याचार के बाद भी एक राष्ट्र का प्रमुख ये कहे कि मेरे दलित भाई बहनों को मारने की बजाय मेरी छाती पर गोली मार दो पर उनको न मारों। ये कितना हास्यास्पद है। एक देश का प्रधानमंत्री दलितों के मानवीय अधिकारों की रक्षा करने की बजाय स्वंय मरने की बात करता हो यह कितना तर्क संगत है। देश में ऐसा कौन सा हिंदू है जो ये मूर्खता भरा काम करेगा कि दलितों को मारने की बजाय प्रधानमंत्री के सीने को छलनी करेगा। ये समझ में नही आता है कि आखिर इस तरह की बातें करके वे किनको मूर्ख बनाना चाहते है। असल सवाल तो ये है कि जब वे सत्तारूढ होने के बावजूद गरीब औैर दलित लोगों के दिलों में ये विश्वास पैदा नही कर पाए कि वह उनकी रक्षा करने में सफल है तो फिर कैसे वे इंदिरा और नेहरू के समान अपनी इमेज बना पाएगें। बताते चले कि जब 2014 में देश में बड़े बहुमत के साथ नरेन्द्र मोदी केन्द्र में प्रधानमंत्री बन कर गए थे उस समय भी मात्र बत्तीस फीसदी मतदाताओं ने ही उनको चुन कर भेजा था जबकि एक सामान्य से बच्चे को परीक्षा में पास होने के लिए भी 33 फीसदी अंकों की आवश्कता होती है। खैर। कहने का मतलब है कि मोदी जब भी पूरे देश की जनता की परीक्षा में पास होकर नही गए थे। जिन मतदाताओं ने उनको दिल्ली में राज करने के लिए भेजा था उनके बीच भी बड़ी तेजी से अब उनकी नकारात्मक छवि का उभार हुआ है। सही मायने में इन जीन सालों में उनके बीच मोदी मैजिक का असर कम हुआ है। ये बात अलग है कि बिकाऊ मीडिय़ा जरूर यह डिंगे हाक रहा है कि आज अगर चुनाव हो जाए तो मोदी पिछली जीत से भी बढ़कर सदन में जाएगें। यह एक कटु सत्य है कि जिसकी सत्ता उसकी लाठी होती है। अखबार मालिक चाटुकारिता के इस दौर में मीडिय़ा की नैतिकता को भूल कर वही सब करना चाहते है जो सत्ता को अच्छा लगता है और वे कर भी वही रहे है। जब सच को नजरअंदाज करके किसी की छवि को गडऩे का काम किया जाएगा तो आप ही सोचो वह कितना कारगर और असरकारी साबित होगा। मैं अखबारों की मजबूरी को तो समझ सकता हूं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के हालातों को भी खासे करीब से जानता हूं लेकिन ये समझ से परे है कि आखिर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को ये कहने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा कि ‘पीएम मोदी सबसे प्रभावी वक्ता हैं, पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से उनकी तुलना की जा सकती है। जब तक कोई प्रभावी वक्ता नहीं बनता, उससे करोड़ों लोगों का नेतृत्व करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। यहां प्रणवजी से सवाल सीधा और सच्चा है कि क्या एक नेता को जननेता बनने के लिए केवल प्रभावी वक्त होना ही काफी है या उसके साथ और भी बहुत कुछ। क्या कोई नेता देश की एक बड़ी आबादी को जाति और धर्म के खाके में बांधकर उनके साथ उपेक्षा का भाव रखे ,फिर भी वह जननेता बन सकता है क्या। बेशक नही। मोदी को नेहरू भले ही नही लेकिन इंदिरा बनने के लिए ही सही मायने में दलितों व मुस्लिमों के दिलों में यह विश्वास पैदा करना होगा कि मोदी केवल हिंदूवादी ताकतों के ही रक्षक नही  है बल्कि दलित- मुस्लिम के भी अभिभावक है। मोदी की इस बात से हर कोई इत्तेफाक रखता है कि लोकतंत्र में सरकारें जवाबदेह होती हैं, उन्हें जनता-जनार्दन को हिसाब देना चाहिए लेकिन हिसाब देने की भी तो कोई तारीख मुकम्मल होनी चाहिए। लोगों के हित में काम हो रहा है यह अखबारों के विज्ञापनों में ही नजर क्यों आए , जमीनी धरातल पर क्यों न दिखे। दावों और हकीकत के बीच अभी भी बड़ा फासला क्यों है। साथ है विश्वास है तक भी ठीक है, लेकिन हो रहा विकास है, इस पर आज भी सवाल है। यही सवाल मोदी को मोदी और नेहरू-इंदिरा को नेहरू- इंदिरा बने रहने पर मजबूर करता है। बता दूं कि नेहरू एक सार्वजनिक शख्सियत थे। वे शहरी पार्टियों और जलसों से घबराते थे ठीक इसके उलट शहरी पार्टियां मोदी की पंसददीदा रही है। मोदी आज भी आम गरीब और किसान के बीच जाने से बचते है जबकि नेहरू जलसों से बेहतर किसानों की संगत को मानते थे। किसानों के धरती से लगाव के कारण ही नेहरू को उनमें स्थिरता, जीवंतता और सच्चाई दिखाई देती थी जो शहरी बनावट में नही है। नेहरू को सड़क, पगडंडियों और खेतों की धूल से परहेज नहीं था जबकि मोदी को ये सब पसंद नही है। नेहरू तुच्छ, फूहड और सड़कछाप लोगों से सख्त नफरत करते थे जबकि आज मोदी के सबसे प्यारे यही सड़कछाप है। जब चाहे, जिसे चाहे, कहीं भी, कभी भी गाय के नाम पर तो कभी लव जिहाद के नाम पर तो कभी धर्मातंरण के नाम सुली पर टांग सकते है। मोदी कभी नेहरू नही हो सकते है उसके भी अपने मायने है। नेहरू की व्यक्तित्व की खास बात ये रही कि उनके विरोधी भी उनकी शख्सियत के कायल रहे है। बिहार के एक समाजवादी नेता के पुत्र और खुद को समाजवादी मानने वाले राजनेता ने आत्मस्वीकृति करते हुए लिखा था कि उन जैसों की जिंदगी नेहरू से नफरत करते हुए निकल गई क्योंकि उन्हें लोहियावादी राजनीति ने यही सिखाया था। अपने जीवन के उत्तरार्ध में नेहरू को जब उन्होंने पढऩा शुरू किया तो पछतावा हुआ कि इतना वक्त क्यों व्यर्थ जाया किया। क्या मोदी भी कभी इस हद तक एक इंसान के दिल में इतना उदार स्थान पा सकते है। बेशक इस पर शंका ही जाहिर की जा सकती है। आज तो आलम ये है कि जो भी मोदी के संबंध में कोई कुछ बोलेगा वह जान से मारा जाएगा। इस समय ऐसी ताकतें व्यापक स्तर पर मौजूद है जिनकी खिलाफत स्वंय मोदी नही कर सकते है। खैर। ये एक चुनावी शगुफा है और इस तरह की अफवाहें अब तेजी से फैलने लगेगी। केन्द्र के चुनावी समय कीउल्टी गिनती जो शुरू हो गई है। इसके पहले मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव भी होने है। अब भाजपा में नेताओं को कभी कुछ तो कभी कुछ बनाने का खेल शुरू हो गया है। बेशक  मोदी अभी कुछ लोगों के लिए खुदा है, जिनके लिए नही है उनको भी सन 2019 आने तक खुदा मानना पड़ेगा नही तो फिर किसी शिवराज जैसे नेता को पूरे देश में मोदी को खुदा बनाने के लिए अभियान छेडऩा पड़ेगा। अब हर तरह से लोगों को सिर्फ और सिर्फ भ्रम में ड़ालने का काम किया जाएगा। खबरदार। –  संजय रोकड़े