हिजाब विवाद हाई कोर्ट के फैसले के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा की पीएम मोदी कहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं उन्हें आशीर्वाद दे रही हैं तो बीजेपी मुस्लिम लड़कियों से हिजाब पहनने का अधिकार क्यों छीन रही है? अधिकार छीनना क्या होता है? जब महिलाओं के साथ अठारहवीं सदियों वाला व्यवहार किया जाए, बेटियों को न पढ़ने-लिखने की आज़ादी, न कहीं बाहर जाने की या घूमने फिरने की आज़ादी, न मुँह दिखाने की आज़ादी, न काम करने की या आगे बढ़ने की आज़ादी न दी जाए इसे कहते है अधिकार छीनना। भारत में अल्पसंख्यक जितने सुखी और खुशहाल है उतने शायद कुछ इस्लामिक देशों में भी नहीं होंगे। भारत लोकतांत्रिक देश है यहाँ सबको अपने तौर तरीकों से जीने की पूरी आज़ादी है। पर स्कूल कालेजों के अपने कुछ नियम होते है उसे फ़ोलौ करना हर नागरिक की ज़िम्मेदारी और कर्तव्य है। कितनी नफ़रत फैला रखी है इन धर्माधिकारीयों ने, भड़काऊँ भाषणों से देश को बांट रहे है।
और देशों के मुकाबले तुलना करके देखिए, यहाँ की मुस्लिम महिलाओं की जीवनशैली बेहतर और सुरक्षित है।
दुनिया भर में अफगान महिलाएं स्कूलों में तालिबान के नए हिजाब फरमान का सोशल मीडिया पर रंग-बिरंगे पारंपरिक पोशाक पहने अपनी तस्वीरें पोस्ट कर विरोध कर रही है। तालिबान ने कक्षाओं में लड़का, लड़की छात्रों को अलग बैठने के लिए अनिवार्य कर दिया है और कहा है कि महिला छात्रों, लेक्चरर और कर्मचारियों को शरिया कानून की समूह की व्याख्या के अनुसार हिजाब पहनना चाहिए। क्या हिजाब पहनोगे तभी आप अपने धर्म का पालन करने वाले कहलाओगे? लड़कियां फैशनेबल कपड़े पहनने के लिए बेताब होती है। किसको अच्छा लगता है 24 घंटे नखशिख ढ़के रहना, और क्या गारंटी है की उपर से नीचे तक तन को ढ़क कर रखोगे तो ही अपनी हिफ़ाज़त कर पाओगे? जी नहीं दरिंदों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, हिजाब चीरकर भी अपनी हवस पूरी कर लेंगे।
अफगानिस्तान में आजकल तालिबान का शासन है। अगस्त, 2021 में जब भारत अपनी आज़ादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहा था तब अफगानिस्तान में तालिबान औरतों को तालों में बंद कर रहा था। उनकी नौकरियां छीन रहा था, उनका बलात्कार किया जा रहा था, हक की आवाज़ उठाने पर उनकी हत्या कर दी जा रही थी। वहां के हालात बहुत खराब हैं, डराने वाले हैं, वहां औरतों के लिए किसी भी चीज़ से ज्यादा ज़रूरी इस वक्त ज़िंदा रह पाना है। क्या इनमें से एक भी अत्याचार आजतक भारत में अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ हुआ?
परंपराओं के नाम पर लादी गई गलत चीजों का विरोध करना चाहिए मोदी ने जैसे तीन तलाक हटाकर महिलाओं को उनका हक दिलवाया, वैसे अगर घूँघट प्रथा की तरह हिजाब से भी छुटकारा दिलाना चाहे तो क्या गलत होगा। खुद के विकास के लिए ज़रूरी है कि हम अपने से बेहतर कर रहे लोगों को देखें और उनसे सीखें, खुद से पीछे चल रहे इंसान की तुलना में हम आगे है, इसका ये मतलब नहीं कि हम जहां है वहीं खड़े रहे। या उसका साथ देने के लिए पीछे की तरफ कदम बढ़ाएं, बल्कि हमें आगे बढ़ते हुए पीछे वाले को खींचने की कोशिश पर ज़ोर देना चाहिए। हिजाब का समर्थन नहीं विरोध करना सीखो। जो लड़कियाँ हिजाब को हटाने की मांग कर रही है वह अपना हक और अधिकार मांग रही है की हमें भी इस नखशिख लादी गई परंपरा से छुटकारा चाहिए। अपनी पसंद के सलिकेदार कपड़े पहनने का हक मांगो, इस देश में मुमकिन है।
“पसंद के कपड़े पहनने है” पाकिस्तान में ये बोलकर देखो। संसद में बराबर रिप्रेजेंटेशन चाहिए? मिडिल ईस्ट में जाकर देखो, वहां तो रेप का आरोप भी बिना पुरुष गवाह के औरत नहीं लगा सकती। भारत की मुस्लिम लड़कियों को कुछ कट्टरवादी भड़काने का काम कर रहे है, ये विवाद उसी का नतीजा है। बाकी अल्पसंख्यकों के लिए भारत जितना सुरक्षित और आराम से रह सके ऐसा और कोई देश नहीं।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलोर, कर्नाटक)