आज पूरे विश्व में योग की महत्ता बढ़ गई है। शारीरिक बीमारियों से लेकर मानसिक तनाव को दूर करने में योग सक्षम है। सुबह सुबह का योग व्यक्ति को दिन भर ऊर्जावान बनाए रखता है। ऐसे बहुत से आसन है जो व्यक्ति की शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है। 21 जून यानी उत्तरी गोलार्ध का सबसे लंबा दिन है जिसे कुछ लोग ग्रीष्म संक्रांति भी कह कर बुलाते हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। कहा जाता है कि दक्षिणायन का समय आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त करने में बहुत लाभकारी होता है और इसी वजह से 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। योग का अर्थ है “जुड़ना” यानि मन को वश में करना। सदियों पहले महर्षि पतंजलि ने मुक्ति के आठ द्वार बनाए थे जिन्हें हम अष्टांग योग कहते हैं। मौजूदा वक्त में अष्टांग योग के कुछ अंगों जैसे आसन, प्राणायाम व ध्यान को ही हम जान पाए हैं। सही मायनों में आठ अंकों की पूरी जानकारी ही योग को पूर्ण करती है।
1. यम : मतलब संयमित या मर्यादित व्यवहार
2. नियम: जीवन में कुछ नियम जरूर स्थापित करना चाहिए
3. आसन: मौजूदा वक्त में यह सबसे प्रचलित है अनेक तरह के व्यायाम आसन को प्रतिपादित करते हैं।
4. प्राणायाम: आती जाती सांसों के प्रति सजगता
5. प्रत्याहार: इंद्रियों पर नियंत्रण
6. धारणा: मन को एकाग्र करना
7. ध्यान: जो कहता है कि जब लगातार धारणा बनी रहती है तो ध्यान घटित होता है और ध्यान के नाम पर हम जो भी विधि या प्रक्रिया अपनाते हैं वह हमें धारणा अर्थात एकाग्रता की ओर ले जाती है ध्यान मतलब शून्यता
8. समाधि: यह शब्द सम यानि समता से आया है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि जब योगी स्वयं के वास्तविक स्वरूप में लीन हो जाता है तब साधक की वह अवस्था समाधि कहलाती है।
समाधि पूर्ण योगस्थ स्थिति का प्रकटीकरण है। कबीर इस अवस्था को व्यक्त करते हुए कहते हैं, “जब जब डोलूं तब तक परिक्रमा, जो जो करूं सो सो पूजा।”
बुद्ध ने योग को निर्वाण और महावीर ने कैवल्य कहा है।हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में अष्टांग योग के यम एवं नियम इन दो नियमों के आधार पर शारीरिक व्याधियों की उत्पत्ति और प्रतिबंधन हेतु सर्वाधिक प्रयोग किया गया है। उल्लेखित है श्योगे मोक्षे च सवार्सॉ वेदना नाम वर्तनम्श् अर्थात योग के माध्यम से समस्त वेदनाओं का शमन आयुर्वेद बताता है। आयुर्वेद में वर्णित आचार रसायन योग के अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि सिद्धांतों के परिपालन से रसायन की तरह शरीर का पोषण करने का निर्देश देता है।आयुर्वेद द्वारा निर्दिष्ट आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य योग के विस्तृत महत्व को प्रतिपादित करता है। योगाभ्यास के द्वारा आयुर्वेद के चिकित्सा सिद्धांतों का परिणाम परिष्कृत रूप में प्राप्त किया जा सकता है। योग हमारे शरीर को भौतिक रूप से ही स्वस्थ नहीं करता बल्कि मानसिक रूप से भी सुदृढ बनाता है।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
गुजरात