उपवास सेहत के लिए एक उपहार है क्योंकि उपवास एक सरल और मुफ्त उपचार है । हमारा देश में अनेक त्योहारों पर उपवास रखने का प्रचलन है जैसे नवरात्रि, करवा चौथ, रमजान आदि मौकों पर, लोग उपवास रखकर अपने इस देवता या खुदा के प्रति श्रद्धा दिखाते हैं। उपवास को व्रत और फास्टिंग के नाम से भी जाना जाता है बताइए उपवास का धार्मिक महत्व तो सदा से है किंतु वैज्ञानिकों को ने यह पुष्टि कर दी कि उपवास सेहत के लिए वरदान है और अनेक बीमारियों से मुक्ति दिलाने में बेहद मददगार है ।इन उपवासों से हमारा तन मन स्वस्थ रहता है और डिटॉक्सिफिकेशन होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार उपवास अगर सही तरीके से रहा जाए तो यह हमारे तन, मन को डिटॉक्सिफाई कर संतुलित एवं स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान रखता है। अगर आप हफ्ते में सिर्फ एक दिन का उपवास रखें और बाकी दिन अपना खानपान अच्छे से ले तो इससे आप रोग मुक्त और दीर्घायु की चमत्कारी क्षमताएं देखने को मिलेगी।
रूस के साइबेरिया में उपवास द्वारा उपचार की पद्धति का प्रचलन गोर्याचिंस्क नमक अस्पताल में होता है जो की सुरम्य शहर में है वहां दूर-दूर से ऐसे लोगों का उपचार होता है जो आधुनिक महंगी चिकित्सा पद्धति से निराश हो चुके हैं और इस इलाज में जो भी खर्च आता है उसकी सरकार उठती है। उपवास बौद्ध धर्मियों के बहुमत वाले बुर्यातिया की स्वास्थ्य नीति का अभिन्न अंग है।
स्वास्थ्य
मानसिक प्रदूषणः सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग?
बहुत तरह के प्रदूषण की चर्चाएं होती हैं जैसे ध्वनि जल थल वायु आदि किंतु सबसे खतरनाक प्रदूषण का कोई चर्चा का विषय नहीं बनाता यह मानसिक प्रदूषण है।
हर मानव ही मानसिक प्रदूषण से पीड़ित है और समाज में तेजी से इसे फैलाने का योगदान भी निभा रहा है किंतु अनजाने में इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है और इसीलिए यह चर्चा का विषय भी नहीं बन पाता है।
मानसिक प्रदूषण प्राचीन काल से मौजूद है ।मानसिक प्रदूषण पूरी मानव जाति के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह अन्य प्रदूषण का जनक है और इसके दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए मनुष्य को बहुत संयम से काम लेना पड़ेगा, मानसिक प्रदूषण का जन्म होता है इस वाक्य से-
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ?
क्या कहेंगे लोग इस चक्कर में इंसान इतना मानसिक प्रदूषित हो रहा है और समाज में फैला रहा है।
यह विनाशकारी भावनाएं मनुष्य में मानसिक प्रदूषण का जन्म देती हैं। मानसिक प्रदूषण मानव मन और व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने वाली प्रक्रिया को बाधित करता है मन प्रदूषित तो तन,पर्यावरण ,समाज सब धीरे-धीरे प्रदूषित हो जाता है यह विभिन्न तत्वों से उत्पन्न होता है जैसे उदाहरण -अत्याचार, क्रोध, काम, लोभ, ईर्ष्या आदि ।
विटामिन डी : मानव शरीर में उपयोगिता एवं कमी

मूड स्विंग – मन की मनमानी
⇒आजकल यह मूड स्विंग एक महामारी का रूप लेता जा रहा है।आइए जानते हैं मूड स्विंग क्या होता है ?
खुश होना, फिर पल भर में उदास हो जाना या एक दम से मूड बदल जाना, किसी इंसान की भावनात्मक स्थिति में बदलाव होना, अचानक और बिना किसी वजह मूड खराब हो जाना और उतनी ही जल्दी ठीक भी हो जाना। इसे मूड स्विंग होना कहते हैं। मूड स्विंग का मतलब थोड़े समय के अंदर मूड में जल्दी-जल्दी बदलाव होना होता है. इसको तनाव या चिंता ना समझें, यह बिल्कुल अलग है। मूड स्विंग कोई बाइपोलर डिसऑर्डर नहीं है हालांकि बाइपोलर डिसऑर्डर भी मूड स्विंग में पाये जाते हैं। कहने का तात्पर्य है जब भावनाएं नियंत्रित नहीं रहतीं, हावी होने लगती हैं और उनसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर पड़ने लगता है. और साथ ही साथ आपके अपने आसपास के वातावरण में परिवर्तन में भी मूड स्विंग का होना निर्भर करता है। हमारे शरीर में मानसिक तनाव और हार्माेन के बदलाव से भी मूड स्विंग होता है । मूड स्विंग एक बहुत ही चिंता का विषय बनता जा रहा है क्योंकि मूड पर काबू पाना आपकी जिम्मेदारी है। मूड माना आपका है, आप ही इसके शासक हो, आपके कंट्रोल में चीजें होनी ही चाहिए, हालांकि यह बाहरी वातावरण से प्रभावित होता है और पूरी तरह से इस पर निर्भर हो जाना भी गलत है, क्योंकि इससे आपकी निजी ज़िंदगी खराब हो सकती है।
सर्दी में दिल की देख भाल
सर्दियों में हार्ट अटैक ज्यादा होते हैं क्योंकि ठंड में शरीर को गर्म रखने के लिए हृदय को दुगनी मेहनत करनी पड़ती है। सर्दियों में रक्त की कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं। इससे हृदय सुचारू रूप से काम करने में ज्यादा दबाव और दिक्कत का सामना करता है जिससे सर्दियों में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। इस समय भारत के उत्तरी हिस्से में शीत लहर चल रही है जिसकी वजह से ठंड ज्यादा पड़ रही है और तापमान में तेजी से गिरावट हो रही है। हृदय के रोगियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, अस्पतालों में इतना बेड नहीं है जितनी तेजी से मरीज बढ़ रहे हैं और बहुत दुख की बात है कि बहुत सारे हृदय रोगी अस्पताल ले जाने से पहले ही रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। ठंड की वजह से रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं ब्लड फ्लो में अधिक दबाव की आवश्यकता होती है और हृदय की मांसपेशियों में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता, जिससे रक्त के थक्के बनाने लगते हैं जिससे हार्टअटैक तेजी से बढ़ता है।
आइए अब जान लेते हैं किन लोगों को सर्दियों में अपना खास ख्याल रखने की जरूरत है पहले के समय में हार्टअटैक 40 की उम्र के बाद लोगों को आता था पर आज के समय में हृदयघात आना एक 25 साल के युवक से लेकर 80 साल के वर्षों में किसी भी उम्र में पाया जा सकता है, क्योंकि प्रदूषण, तनाव और हमारी जीवन शैली बिल्कुल बदल गई है।
90 प्रतिशत मरीज गलत तरीके से लेते हैं इन्हेलर : डॉ. सलिल भार्गव
इन्हेलर दवाई लेने का वह उपकरण है जिससे वाष्पीकृत दवा मुँह से ले जाती है और जो स्वांस नलिका में जाकर एक सेकेन्ड के अन्दर अपना कार्य संपादित करने लगती है तथा मरीज को त्वरित लाभान्वित करती है। इन्हेलर उपकरण से स्वांस, दमा, सर्दी, ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी आदि के रोगियों को दवा लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि 90 प्रतिशत लोग इन्हेलर गलत तरीके से लेते हैं। जब दवा ही ठीक से नहीं ली जायेगी तो मरीज ठीक कैसे होगा ? किसी से भी डॉक्टर पूछता है कि वह इन्हेलर लेना जानता है, प्रथमतः वह कह देता है- हाँ, जानते हैं। प्रायःकर लोगों ने फिल्मों में देखा होता है, किसी दमा की मरीज महिला से जबरन नृत्य करवाया जाता है, उसकी स्वांस फूलने लगती है, वह इन्हेलर निकालती है तो उससे वह छीन लिया जाता है या निकट कहीं रखा होता है, तो उसे लेने नहीं दिया जाता। तंग करने के उपरांत जब उसके प्राणों पर बन आती है तब उसे इन्हेलर लेने देते हैं। इन दृश्यों को देखकर लोग समझते हैं, केवल इन्हीं आपात स्थितियों में ही इन्हेलर लिया जाता है, जबकि संबंधित रोगियों को इन्हेलर लेना एक नियमित दवा है।
पैदल चलिए, मोटापा घटाएं
बदन का भारी होना, मोटापा, भोजन का ठीक से एवं समय से न पचना तथा कब्ज की षिकायत का आए दिन बने रहना, खट्टी डकारें, छाती की जलन, गैस, थकान एवं बदन के जोड़-जोड में दर्द और अकड़न का रहना इन तमाम षिकायतों का एक ही सटीक इलाज है- घूमना यानी पैदल चलना। आज जब इंसान भौतिक सुख-सुविधाओं की लिप्सा एवं दौड़भाग में पड़ा है, उसके पास वक्त की निहायत कमी हो गई है। जरा भी कहीं चार कदम भी चलना पड़ता है, तो वह गाड़ी, स्कूटर की जरुरत महसूस करता है।
एलोवेरा में बड़े-बड़े गुण
यह ‘कुमारी’ हमारे आपके सबके परिचय की है। इसे ही कन्या, घृतकुमारी, घीकुआर, ग्वारपाठा, स्थूलदला या ‘एलोएवेरा’ कहते हैं।
कुमारी के बाहर के पत्तों के सूखने पर भी इसके भीतर से नए पल्लव़ आते रहते हैं। यह हमेशा ताजी रहती है, इसलिए इसे कुमारी कहते हैं। हम इसे अपने घर में भी लगा सकते हैं। यदि वनस्पति जड़ के साथ घर में लटका दी जाए फिर भी काफी दिनों तक ताजी रहती है। यह इसकी विशेषता है। इसका पेड़ छोटा होता है, पत्ते लंबे, रसपूर्ण और किनारे से कांटेदार होते हैं। पुराना हो जाने पर इस पेड़ के मध्य से एक डंडी निकलती है और उस पर काले रंग के फूलों का गुच्छा आ जाता है।
घृतकुमारी स्वाद में बहुत कड़वी होती है परंतु शरीर पर इसका षीत प्रभाव पड़ता है।
प्रतिवर्ष 70 लाख लोगों की जान ले रहा है वायु प्रदूषण – योगेश कुमार गोयल
स्विस संगठन ‘आईक्यू एयर’ द्वारा हाल ही में 2021 की ‘वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट’ जारी की गई है, जिसमें दुनियाभर के कुल 117 देशों के 6475 शहरों के डेटा का विश्लेषण करने के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है कि विश्व का कोई भी शहर ऐसा नहीं है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित किए गए मानकों पर खरा उतरता हो। डब्ल्यूएचओ की यूएन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी द्वारा इस रिपोर्ट के आधार पर विश्वभर के शहरों की एयर क्वालिटी की जो रैंकिंग जारी की गई है, उसके मुताबिक वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति तो बेहद खराब है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित देशों में भारत छठे स्थान पर है लेकिन चौंकाने वाली स्थिति यह है कि प्रदूषण पर लगाम लगाने की तमाम कवायदों के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली फिर से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में सामने आई है।
मेडिटेशन से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाइए
अगर यह बात पौराणिक संदर्भ में कही जाती तो शायद यकीन नहीं होता, लेकिन अब विज्ञान भी मानने लगा है कि ध्यान से एक अदृश्य कवच जैसा बनता है। उस माहौल में वह कवच शरीर के आस-पास छाए संक्रमणों से बचाता है। हॉवर्ड विश्वविद्यालय में कार्डियो फैकल्टी में शोध निर्देशक डॉ. हर्बर्ट वेनसन का कहना है कि नियमपूर्वक 20 मिनट प्रतिदिन ध्यान (मेडिटेशन) किया जाए, तो शरीर में ऐसे बदलाव आने लगते हैं कि वह रोग और तनाव के आक्रमणों का मुकाबला करने लगता है। इसके लिए अलग से चिकित्सकीय सावधानी बरतनी पड़ती।