31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के नाडियाड में एक किसान परिवार में जन्मे सरदार वल्लभ भाई पटेल को एकता की मिसाल कहा जाता है क्योंकि देश की एकता को सर्वोपरि मानते हुए उन्होंने देश को एकजुट करने में सदैव महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर मजबूत और एकीकृत भारत के निर्माण में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। जिस समय देश आजाद हुआ, तब यह कई छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था, जिन्हें एकजुट करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था। आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की राजनीतिक और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है। भारत के राजनीतिक एकीकरण के लिए सरदार पटेल के इसी अविस्मरणीय योगदान को चिरस्थायी बनाए रखने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 31 अक्तूबर 2014 से उनकी जन्मतिथि 31 अक्तूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई। तभी से सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
देश की आजादी के उपरांत 500 से भी ज्यादा देशी रियासतों का एकीकरण किया जाना सबसे बड़ी समस्या थी। दरअसल अंग्रेज भारत से जाते-जाते कुटिल चाल चलते हुए करीब 550 देशी रियासतों को खुद ही अपने भविष्य के निर्णय का अधिकार दे गए थे। उसके पीछे उनका उद्देश्य था कि इतनी बड़ी संख्या में रियासतों के स्वायत्त रहते भारत के लिए स्वयं को एकजुट रख पाना बेहद मुश्किल होगा। सरदार पटेल ने अपने ‘लौहपुरूष’ व्यक्तित्व का परिचय देते हुए इस गंभीर चुनौती को न केवल स्वीकार किया बल्कि बहुत ही कम समय में बड़ी कुशलता से इतनी सारी रियासतों के एकीकरण का कार्य सम्पन्न कराने में सफल भी हुए। उन्होंने आजादी के ठीक पहले पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देशी रियासतों को भारत में मिलाने का कार्य आरंभ कर दिया था। उस समय देशभर में सैंकड़ों ऐसी देशी रियासतें थी, जो स्वयं में सम्प्रभुत्ता प्राप्त थी, जिनका अपना अलग झंडा और अलग शासक था। दोनों ने देशी रियासतों के शासकों को समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना संभव नहीं होगा। इसका असर यह हुआ कि केवल तीन रियासतों को छोड़कर बाकी सभी रियासतों-राजवाडों ने अपनी मर्जी से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
लेख/विचार
विश्व युद्ध की तरफ बढ़ती इजराइल हमास जंग
इजराइल तथा फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास के बीच जारी जंग को तीन सप्ताह पूरे होने वाले है। दोनो तरफ से जारी युद्ध में अब तक भयंकर रुप से जन धन का नुकसान हो चुका है। इस लड़ाई में 25 अक्टूबर तक इजराइल के 1400 लोग मारे जा चुके हैं और 222 लोगों को हमास ने बंधक बना रखा है। वहीं दूसरी तरफ इजराइल के आक्रमण से 6546 फिलिस्तीनी लोगों की जान जा चुकी है। इसमें 2404 बच्चे बताए जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि हमास द्वारा इजराइल पर 7 अक्टूबर को हमला किया गया था। इजराइल से हमदर्दी, सहयोग और एकजुटता दिखाने के लिए अमेरिकी राश्ट्रपति जो बाइडेन, जर्मनी के चांसलर ओलाक स्कोल्ज, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों तथा ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक इजराइल का दौरा कर चुके हैं।
बदलती रामलीलाः आस्था में अश्लीलता का तड़का
जब आस्था में अश्लीलता का तड़का लगा दिया जाता है तो वह न सिर्फ उपहास का कारण बन जाती है बल्कि बहुसंख्यक लोगों की भावनाएं भी आहत होती हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र समाज को प्रेम, उदारता, सम्मान व सद्भाव का संदेश देता है। पर अफसोस, राम के चरित्र व आदर्शों को प्रस्तुत करने वाली रामलीला आज के दौर में अश्लीलता परोसने का साधन बन गई है। संपर्क साधनों का विकास, विशेष रूप से टेलीविज़न धारावाहिक, रामलीलाओं के दर्शकों में कमी का कारण बन रहा है, और इसलिए रामलीलाएँ, लोगों और समुदायों को एक साथ लाने की अपनी प्रमुख भूमिका खो रही हैं। आधुनिकता की चकाचौंध ने नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति, सभ्यता एवं संस्कारों से अलग कर दिया है। नई पीढ़ी ने अपने आपको इंटरनेट, लैपटॉप, मोबाइल की दुनिया तक ही सीमित कर लिया है। उसे बहरी दुनिया से कोई सरोकार नहीं रह गया है। आज नई पीढ़ी हमारे परम्परागत तीज त्योहारों को भूलती जा रही है। इन लोगों को मेला,रामलीला या दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रम समय की बर्बादी नज़र आने लगे है। जिसके फलस्वरूप हमारे कार्यक्रमों के तौर तरीकों में परिवर्तन आये है और भावना बदली है।
-डॉ सत्यवान सौरभ
रामलीला, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘राम का नाटक’ है, रामायण महाकाव्य का एक प्रदर्शन है जिसमें दृश्यों की एक श्रृंखला में गीत, कथन, गायन और संवाद सम्मिलित होते हैं। यह पूरे उत्तर भारत में हर साल शरद ऋतु में अनुष्ठान कैलेंडर के अनुसार दशहरे के त्योहार के दौरान प्रदर्शित किया जाता है। अयोध्या, रामनगर और बनारस, वृंदावन, अल्मोड़ा, सत्तना और मधुबनी की रामलीलाएँ सबसे अधिक प्रतिनिधिक हैं। रामायण का यह मंचन देश के उत्तर में, सबसे लोकप्रिय कहानी कहने की कला वाले रूपों में से एक, रामचरितमानस, पर आधारित है।
’दिखावा’ तेजी से फैलता एक सामाजिक रोग
समय के साथ बदलते समाज में दिखावे की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। आजकल ज्य़ादातर लोग दूसरों के सामने अपनी नकली छवि पेश करते हैं। काफी हद तक ईएमआइ की सुविधाओं ने भी लोगों में दिखावे की इस आदत को बढ़ावा दिया है। दूसरे के पास कोई भी नई या महंगी चीज देखकर लोगों के मन में लालच की भावना जाग जाती है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की वजह से भी युवाओं में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। रिलेशनशिप को भी सोशल साइट्स पर दूसरों को दिखाने के लिए ही अपडेट किया जा रहा है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ेगी, आपके आचार, विचार और व्यवहार में गंभीरता आएगी। तब कभी आप सोचेंगे कि अगर मैं 300 रुपए की घड़ी पहनूं या 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी। मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा। सोने के लिए एक बेड ही पर्याप्त होगा। फिर आपको ये भी लगेगा कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा। या फिर रेलवे केे स्लीपर क्लास में यात्रा करो या एसी में, ट्रेन एक ही समय में दोनों को पहुंचाएगी। इसलिए अपनी आवश्यक आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए न कि व्यर्थ के दिखावे पर फोकस करना चाहिए।
किसी भी चीज का दिखावा करने की आपको कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इससे क्षणिक फायदा मिलता है। हमें कुछ भी काम करना है वह दूर दृष्टि को ध्यान में रखते हुए करना है।
शक्ति आराधना पर्व नवरात्रि
माँ शब्द में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है। यह सृष्टि भी तो हमारी माँ ही है, जो हमारा लालन-पालन और भरण-पोषण करती है। उदार भाव से हमारे उत्थान को प्रबलता प्रदान करती है। इसी भाव के कारण हम सदैव पूजा-अर्चना में सर्वप्रथम पृथ्वी माँ को ही प्रणाम करते है। इस समय तो ममतामयी माँ शेर पर सवारी कर भक्तों के कल्याण के लिए आई है। हमें सकारात्मक ऊर्जा एवं शक्ति प्रदान करने के लिए माँ अखंड ज्योत के द्वारा हमारे जीवन के अंधकार का भी समूल नाश कर देती है। करुणामयी, भक्तवत्सल माँ तो शुभता प्रदान करने वाली है। मन के संशय को नाश करने एवं हमारी अभिलाषाओं को साकार रूप देने माँ नौ दिन विभिन्न-विभिन्न रूपों से हमें गुण, ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से भर देंगी। हमें अपने आनंद का विस्तार करने के लिए माँ के सच्चे दरबार पर अडिग विश्वास करना होगा। भक्तिभाव में मग्न होकर हमें माँ की पूजा-अर्चना एवं उपासना करनी है। विघ्नों को हरने वाली माँ, नव उत्साह जननी माँ, धन-धान्य के भंडार देने वाली माँ, त्रिभुवन में निवास करने वाली माँ, मन के द्वार को आलौकित करने वाली माँ की स्तुति हम मंगल कलश की स्थापना के साथ करेंगे। भय हारिणी एवं भव तारिणी माँ के प्रत्येक स्वरुप का नमन और वंदन करेंगे।
देवी दुर्गा तो दुर्गति का भी विनाश कर देती है। हर नवरात्रि की तरह इस बार भी हम देवी के दर्शन, उनकी दया, कृपा, करुणा एवं आशीर्वाद के अभिलाषी होंगे। उत्साह, उमंग और भक्ति भाव से ओत-प्रोत होकर हमें देवी के आराधना पर्व को उत्सव का स्वरुप देना होगा। बच्चों को भी माँ के विभिन्न स्वरूपों से अवगत कराना होगा। माँ की आराधना हमें बहन-बेटी के सम्मान को सुरक्षित रखने की भी प्रेरणा देती है। माँ के प्रति अगाध श्रृद्धा हमें एक सम्मानित समाज के निर्माण की ओर अग्रसर करती है, जिसमें समस्त प्राणियों में नारी के प्रति सम्मान का भाव सदा जीवंत रहें। माँ तो धैर्य, साहस, शक्ति एवं वात्सल्य का अप्रतिम रूप है। माता हमें जीवन में नवीन दिशा प्रदान करें।
आंखों की देखभाल, महत्व, अंधापन व दृष्टि बाधिता की ओर जागरूक करने का दिन है विश्व दृष्टि दिवस
विश्व दृष्टि दिवस गुरुवार इस बार 12 अक्टूबर 2023 को मनाया जाएगा। विश्व दृष्टि दिवस प्रतिवर्ष अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को मनाया जाता है। यह एक वैश्विक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य आंखों की देखभाल उनके महत्व, अंधापन और दृष्टि बाधिता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। विश्व दृष्टि दिवस 2023 दृष्टि बाधिता, अंधापन और नेत्र स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। यह दिन नियमित आंखों की जांच, आंखों की समस्याओं का शीघ्र पता लगाने और उपचार, और सभी के लिए आंखों की देखभाल तक पहुंच की आवश्यकता की याद दिलाता है।
विश्व दृष्टि दिवस रोकथाम योग्य अंधेपन को खत्म करने और दृष्टि बाधिता वाले व्यक्तियों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के वैश्विक प्रयास पर भी प्रकाश डालता है। इस वर्ष भी लोगों को उनकी आंखों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए व्यापार जगत के रहनुमानाओं से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया है कि आंखों की देखभाल सुलभ, समावेशी और श्रमिकों के लिए हर जगह उपलब्ध हो।
विश्व दृष्टि दिवस दृष्टि की शुरूआत दृष्टि बाधिता और अंधेपन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अंतर्राष्ट्रीय अंधता निवारण एजेंसी (आईएपीबी) ने 1998 में पहली बार की थी और तब से यह दुनिया भर के विभिन्न संगठनों, सरकारों और नेत्र देखभाल पेशेवरों द्वारा समर्थित एक वैश्विक पहल बन गया है। इसकी शुरूआत के बाद से, विश्व दृष्टि दिवस ने नेत्र स्वास्थ्य की वकालत करने, रोकथाम योग्य अंधेपन को कम करने और गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पृथ्वी पर लगभग हर एक व्यभक्ति अपने जीवनकाल में नेत्र स्वास्थ्य समस्या का अनुभव करता है। दृष्टि हानि सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करती है और अधिकांश प्रभावित लोग 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं।
वोट बटोरने का शॉर्टकट ‘रेवड़ी की राजनीति’
मुफ्तखोरी की संस्कृति इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है कि कुछ राजनीतिक दलों का अधिकांश चुनावी एजेंडा, एक सोची-समझी रणनीति के तहत केवल मुफ्त की पेशकशों पर आधारित है, जो मतदाताओं को स्पष्ट रूप से एक संदेश भेज रहा है कि यदि राजनीतिक दल जीतता है तो उन्हें ढेर सारी मुफ्त चीजें मिलेंगी। इससे कई सवाल खड़े होते हैं, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या मतदाताओं के दिमाग में हेरफेर करने और सत्ता में आने के लिए मुफ्त उपहार देने की ऐसी रणनीति लोकतंत्र में नैतिक, कानूनी और स्वीकार्य है? राजनीतिक दलों को सूचित करना चाहिए कि क्या मुफ्त के लिए धन सरकारी खजाने से आएगा और यदि ऐसा है तो यह केवल एक जेब से पैसा लेना और मतदाता की दूसरी जेब में डालना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बड़े पैमाने पर, अनियंत्रित मुफ्तखोरी संस्कृति हमारे जैसे लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की छत को हिला देती है।
राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त बिजली, मुफ्त सार्वजनिक परिवहन, मुफ्त पानी और लंबित बिलों और ऋणों की माफी जैसे वादों की एक श्रृंखला को अक्सर मुफ्त उपहार माना जाता है।
समय के साथ निरंतर ताकतवर होती भारतीय वायुसेना
भारतीय वायुसेना 8 अक्तूबर को अपना 91वां स्थापना दिवस मना रही है और इस खास अवसर पर वायुसेना अपने शौर्य और शक्ति का अभूतपूर्व प्रदर्शन करेगी। वायुसेना के स्थापना दिवस पर इस बार प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर एक घंटे तक भव्य एयर शो का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें वायुसेना के लड़ाकू विमान आसमान में ऐसी कलाबाजियां करेंगे कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएंगे। वायुसेना की परेड सुबह के समय और एयर शो दोपहर दो बजे से होगा। इस भव्य एयर शो के दौरान वायुसेना के 100 से भी ज्यादा लड़ाकू विमान आसमान में हैरतअंगेज करतब दिखाएंगे। भारतीय वायुसेना दिवस के अवसर पर हर साल एयर शो आयोजित करने का प्रमुख उद्देश्य न केवल पूरी दुनिया को भारत की वायुशक्ति से रूबरू कराना है बल्कि युवाओं को वायुसेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना भी है। भारतीय वायुसेना द्वारा एयर शो के लिए फुल ड्रैस रिहर्सल मध्य वायु कमान मुख्यालय बमरौली में 6 अक्तूबर को आयोजित किया गया था, जिसमें जांबाज वायुवीरों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया। फुल ड्रैस रिहर्सल के दौरान 10 स्काई पैराजंपर 8000 फीट की ऊंचाई से ए-32 विमान से 150 किलोमीटर की रफ्तार से नीचे कूदे, उसके बाद ट्रेनी वायु योद्धाओं ने जिप्सी के पुर्जों को खोलकर केवल पांच मिनट में ही उसे जोड़ने का हैरतअंगेज कारनामा दिखाया। विंग कमांडर अशोक ने पैरा हैंग ग्लाइडर से 200 फीट की ऊंचाई से हैरतअंगेज प्रदर्शन किया और फिर पैरा मोटर्स से भी वायुसेना के जाबांजों ने करतब दिखाए। आसमान में वायुवीरों के इन प्रदर्शनों को देखकर हर कोई रोमांच से भर उठा।
अब 8 अक्तूबर के एयर शो में विंटेज विमान टाइगर मॉथ, हार्बट ट्रेनर, ट्रांसपोर्ट जहाज सी वन थर्टी, आईएल 78, चेतक हेलीकॉप्टर, रुद्र हेलीकॉप्टर इत्यादि के जरिये वायुवीर अपने करतब दिखाएंगे। स्वदेशी फाइटर प्लेन तेजस आसमान की ऊंचाईयों पर उड़ान भरेगा जबकि कारगिल की जंग में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाला मिराज 2000 भी हवा से बातें करेगा। एयर शो में इस बार वायुसेना के बेड़े में अपना समय पूरा कर चुके मिग-21 का आखिरी शो भी देखने को मिलेगा और इस प्रदर्शन के बाद प्रयागराज से मिग-21 की विदाई भी होगी।
महिला आरक्षण बिल क्यों जरूरी ?
महिला आरक्षण विधेयक पर यूं तो 45 साल पहले 1974 में सवाल उठ चुका था और महिला आरक्षण बिल पहली बार 1996 में देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था और उसके बाद कम से काम 10 बार यह बिल पेश किया गया लेकिन आपसी सहमति न होने के कारण और महिलाओं को आरक्षण की जरूरत ही क्या है ? इस विचार के मद्देनजर इस बिल को मान्यता नहीं मिली। यहां तक कि इस बिल को लेकर मारपीट तक की नौबत आ गई थी। शरद यादव यहां तक कह चुके थे कि, ‘इस बिल से परकटी महिलाओं को ही फायदा होगा।’
2010 में जब राज्यसभा में यह बिल पास हुआ तो करण थापर ने एक प्राइम टाइम बहस में कहा कि, ‘महिलाओं को सशक्त बनाना तो ठीक है लेकिन इसके लिए आरक्षण की जरूरत क्या है?’ इन सब बातों के बीच में एक सवाल मेरे मन में भी आया कि महिलाओं को आरक्षण की जरूरत क्या है? जब हम बराबरी की बात करते हैं तो महिलाओं को आरक्षण क्यों चाहिए? जब इतना माद्दा है कि आप अपने आपको काबिल साबित कर सकती हैं तो आरक्षण क्यों? और यूं भी आरक्षण द्वारा चुनकर आई हुई महिलाएं सिर्फ राजनीतिक मोहरा भर होती है। हमारे विविधता वाले देश में जात-पात का मुद्दा बहुत बड़ा है जिसे राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हित के लिए उत्थान के नाम पर ‘आरक्षण’ की बैसाखी थमा रखी है। जब तक आरक्षण रहेगा तब तक जाति रहेगी,जब तक जाति रहेगी तब तक कुछ लोगों की राजनीति रहेगी और जब तक उनकी राजनीति रहेगी तब तक आरक्षण रहेगा।
गुमनाम नायकः पत्रकार और उनके परिवार !
पत्रकारिता एक महान पेशा है जो कहानियों को आकार देने, सच्चाई को उजागर करने और परिवर्तन को प्रज्वलित करने की शक्ति रखता है। जबकि पत्रकार केंद्र में हैं, हम अक्सर उनकी कलम और कैमरे के पीछे के गुमनाम नायकों- उनके परिवारों- को नज़रअंदाज कर देते हैं। इस लेख का उद्देश्य पत्रकारों के सामने आने वाली अनोखी चुनौतियों और उनके परिवारों द्वारा प्रदान किए गए अटूट समर्थन पर प्रकाश डालना है।
अनिश्चितता के बीच डटे रहना: पत्रकार अनिश्चितताओं से भरे करियर को अपनाते हैं। अनियमित कामकाजी घंटों से लेकर अप्रत्याशित कार्यों तक, उनके परिवार उनके जीवन की बदलती लय के अनुरूप ढलकर ताकत के स्तंभ बन जाते हैं। वे लंबे समय तक खड़े रहते हैं और निरंतर गति के बावजूद स्थिरता प्रदान करते हैं।
जिम्मेदारी का भार: पत्रकार अपने कंधों पर सच्चाई का भार रखते हैं, क्योंकि वे भ्रष्टाचार को उजागर करने, बेजुबानों को आवाज देने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने का प्रयास करते हैं। उनके परिवार उनके मिशन के महत्व और उसके साथ आने वाले बलिदानों को समझते हैं, अटूट समर्थन और समझ प्रदान करते हैं।
अनदेखे जोखिमों के साथ रहनाः संघर्ष क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करना, खतरनाक विषयों की जांच करना और शक्तिशाली संस्थाओं का सामना करना पत्रकारों को अंतर्निहित जोखिमों का सामना करना पड़ता है। पत्रकारों के परिवार अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए निरंतर चिंता और चिंता में रहते हैं, सच्चाई की अग्रिम पंक्ति से उनकी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करते हैं।
अशांत समय में भावनात्मक समर्थन: पत्रकार अक्सर मानवीय पीड़ा, त्रासदी और आघात के गवाह होते हैं। इससे होने वाला भावनात्मक प्रभाव बहुत अधिक हो सकता है। ऐसे समय में, उनके परिवार एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं – एक सुनने वाला कान, सहारा लेने के लिए एक कंधा और आराम का एक स्रोत। तूफान के बीच उनका अटूट समर्थन जीवन रेखा बन जाता है।
काम और पारिवारिक जीवन में संतुलन: पत्रकारिता की मांगलिक प्रकृति काम और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन को बिगाड़ सकती है। अनियमित कार्यक्रम, छूटे हुए पारिवारिक कार्यक्रम और समय-सीमा और गुणवत्तापूर्ण समय के बीच निरंतर बाजीगरी रिश्तों में तनाव पैदा कर सकती है। फिर भी, उनके परिवार समझदार बने हुए हैं और पेशे की अनूठी मांगों को अपना रहे हैं।
व्यावसायिक कलंक का सामना करनाः पत्रकारों को अक्सर अपने काम के लिए आलोचना, धमकियों और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों का सामना करने में, उनके परिवार उनके अभयारण्य बन जाते हैं, उन्हें आश्वासन देते हैं और उनके मिशन के महत्व की याद दिलाते हैं। अपने प्रियजनों के काम में उनका दृढ़ विश्वास प्रेरणा का स्रोत है।