Thursday, May 16, 2024
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विविधा

अहं परिवार का शत्रु

क्या मेरा कामकाजी होना मेरे परिवार और स्वयं मेरे लिए अभिशाप है। यदि नहीं तो फिर मैं क्यों सदैव तनाव में रहती हूं। जीवन में हंसी, स्नेह एवं सरसता के सारे स्रोत सूख से क्यों गए हैं? ऐसे अनेक प्रश्न मेरे जेहन में एक-एक कर उठते रहते हैं लेकिन न जाने क्यों मैं इनके समाधान तलाश नहीं कर पाती हूं।
मैं चाहे कितनी भी योग्य और बड़ी क्यों न बन जाऊं आखिर तो मैं उनके नियंत्रण में ही रहूंगी, मेरा यह बी. ए., एम.ए. पास होना, यह ऊंचा ओहदा, चार अंकों में मिलने वाली अच्छी खांसी तनख्वाह, यह रौब रुतबा, उस समय सब फीके लगते हैं जब घर में पहुंचते ही ‘मां जी’ मेरी किसी स्थिति का कोई मूल्यांकन किए बिना ही कह उठती है, ‘बहू आज कितनी देर कर दी तुमने आने में। जल्दी-जल्दी 5-7 आदमियों का खाना बना लो, वो आते ही होंगे……।
तब ऐसा लगता है कि जैसे मैं इस घर की पढ़ी-लिखी बहुरानी नहीं कोई खरीदी हुई नौकरानी हूं, तब अंदर ही अंदर टूटने लगती हूं। समझ में नहीं आता घर के सभी पुरुषों से ज्यादा कमाती हूं। ज्यादा पढ़ी-लिखी हूं। ईश्वर की कृपा से रंग रुप भी अच्छा है। फिर भी जब देखो ताने, व्यग्य, जली कटी….. सब के नाज-नखरे सहते-सहते मैं तो टूट गई हूं। जी चाहता है कि सबको मुंह तोड़ जवाब दूं……।
कामकाजी सैंकड़ों, हजारों महिलाओं, बहुओं, लड़कियों को आज इस प्रकार की मानसिकता में जीना पड़ रहा है। जिससे भी बात करो…..बससतही तौर पर जितनी शांत दिखाई देती हे, अंदर उतना ही भयानक असंतोष, विद्रोह दबा दिखाई देता है।

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बूढ़े पिता का फैसला…

घर में बडी चहल-पहल थी, तीनो भाई और बहुएं मंत्रणा में व्यस्त थे, इसी बीच दोनों चाचा भी घर का एक चक्कर लगा, भतीजों से गुपचुप बात कर लौट चुके थे, बस केवल बच्चों और वयोवृद्ध पिताजी को मालूम नहीं था कि माजरा क्या है, दूसरे दिन सुबह तीनो पुत्र दोनों चाचा के साथ घर आकर पिताजी की आराम कुर्सी के पास इकट्ठे हुए, बड़े बेटे ने कहा पिताजी माताजी तो अब रही नही, ऐसे में घर का बटवारा हो जाना चाहिए, छोटा भाई ज्यादा कमाऊ नहीं, यह बड़ा घर उसके नाम कर देतें हैं, और दो अन्य मकान जो किराये पर आपने घर खर्च के लीये दिए हुए है, हम दोनों भाइयों को विभाजित कर दीजिए, आपके लिए एक अच्छे वृद्धा आश्रम में जगह देख ली गई है, वहां आप अपने बुजुर्ग साथियों के साथ आराम से अपना बाकी का समय बिता सकते हैं, दोनों चाचा ने इस बात का पुरजोर समर्थन भी किया,

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ग्रेच्युटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

कर्मचारी पर बकाया है तो उसकी ग्रेच्युटी का पैसा रोका या जप्त किया जा सकता है
नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच बकाया विवाद को पूर्णविराम लगा – एड किशन भावनानी
भारत में सरकारी, अर्ध सरकारी व अन्य कर्मचारियों को उनके नियोक्ताओं द्वारा अनेक सुविधाएं दी जाती है, जो कि उनके सेवानिवृत्त होने पर भी बहुत काम आती है, और उनका भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित हो जाता है, इसलिए ही नौकरी पेशा पसंद करने वाले अधिकतम लोगसरकारी, अर्ध सरकारी विभाग में सेवा करना अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में भविष्य सुरक्षित करने की अनेक योजनाएं दी जाती है जैसे पेंशन स्कीम,लीव ट्रैवल कंसेशन स्कीम, ग्रेच्युटी स्कीम, पीपीएफ, सप्ताह के 5 दिन काम, महिलाओं को मातृत्व अवकाश, मेडिकल लीव, इत्यादि अनेक सुविधाएं मिलती है….. बात अगर हम ग्रेच्युटी की करें तो अगर कोई भी कर्मचारी 10 उससे से अधिक कर्मचारी वाले वाले स्थान पर काम करता है, तो वह ग्रेच्युटी अधिनियम, १९७२ के तहत कवर किया जाएगा।

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नवजात कन्या अभिशाप नहीं, सौगात

भारत में कई प्रांतों तथा स्थानों में पैदा हुई नवजात कन्या का परिवार में खुले दिल से स्वागत नहीं किया जाता है| उसे अभिशाप समझ उसके साथ तिरस्कार का व्यवहार किया जाता है, इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को हमेशा निचले स्तर का व्यवहार झेलना पड़ता है| इसके लिए समाज के कई तबकों में स्वयं स्त्रियां भी जिम्मेदार होती है, स्त्री के गर्भवती होते ही परिवार में संतान के रूप में लड़का यानी पुत्र की कल्पना की जाने लगती है, और यह माना जाने लगता है कि पुत्र ही इस वंशावली को आगे बढ़ाएगा एवं उनके पूरे कुल को वही खुशहाली और प्रसन्नता प्रदान करेगा| पुत्री या कन्या के होते ही पूरे परिवार के चेहरे मायूसी से भर जाते हैं|

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स्वराज और सुराज

“स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे “-लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के द्वारा उद्घोषित इस वाक्य ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा प्रदान की थी और आम मानस में इक नई ऊर्जा का प्रवाह किया था। प्रकृति का हर अव्यव स्वाधीनता से जीना चाहता है और मानव इस प्रकृति की सर्वश्रेठ कृति है अतः उसके लिए स्वाधीनता और भी जरूरी अंग है, जैसे कि साँस लेना और धमनियों में खून का प्रवाह होना। स्वराज की परिकल्पना लोमान्य बालगंगाधर तिलक और ऐनी बेसेंट के द्वारा चलाए गए होम रूल मूवमेंट से भी परिभाषित होती है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियाँ भी स्वराज की प्राथमिकता को दर्शाती हैं –

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क्या मोबाइल भी फैला रहा है कोरोना संक्रमण

ऑस्ट्रेलिया की नेशनल साइंस एजेंसी सी एस आई आर ओ ने अपनी नई रिसर्च में दावा किया है, कि कोरोना वायरस मोबाइल फोन, करेंसी नोट्स और स्टील पर सबसे ज्यादा यानी 28 दिनों तक जीवित रह सकता है। जबकि ऐसी स्थितियों में फ्लू का वायरस केवल 17 दिनों तक जीवित रहता है। यह रिसर्च प्रयोगशाला के अंधेरे कमरे में 20 डिग्री तापमान पर की गई।तापमान जितना कम होता है,

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सहारे का सहारा

संजना तीस वर्ष की एक अविवाहित लड़की थी जिसे बहुत दौरे पड़ते रहते थे क्योंकि उसे मिर्गी की बिमारी थी। दो वर्ष पूर्व उसके पिता का साया उठ गया था और उसके भाई भाभी दोनों ही बहुत स्वार्थी और बहुत चालाक किस्म के थे। दोनों भाई भाभी नोकरी का बहाना कर के संजना और उसके मां का कोई ख्याल नहीं रखते और न हीं उन्हें कभी अपने साथ रखते। पिता के मृत्यु के बाद उसकी मां भी बहुत बहुत उदास रहती और कभी किसी से वो कुछ बात भी करतीं तो उसमें भी अपनी बेटी के अविवाहित होने की ही हमेशा जिक्र किया करतीं जिस वजह से इस पड़ोस की औरतें भी उनसे जादे बात भी नहीं करना चाहतीं क्यों कि एक ही बात और दुःख सुनते उनका भी दिल भर गया था। शक्ल सुरत और कद काठी से तो संजना बहुत अच्छी थी पर अपनी ऐसी बिमारी और स्वार्थी भाई भाभी के व्यवहार के तनाव से वो अपनी उम्र से बहुत बड़ी, बहुत उदास लगती। विवाह कर के अपना घर बसाने की चाहत तो हर लड़की की तरह उसे भी बहुत थी पर अपनी बिमारी, उदास ज़िंदगी और बीतते उमर की ख्याल से उसने सादी के ख्वाब देखने भी छोड़ दिया था।

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बौना कद।

ऑफिस में अच्छी खासी चर्चा थी बड़े साहब से लेकर लिपिक और चपरासी तक चिंतित थे ऑफ़िस की अविवाहित 45 वर्षीया महिला लेखपाल ने लोन लेकर अपना छोटा सा घर बनवाया था और उसी घर के गृह प्रवेश की, सत्यनारायण भगवान् की पूजा, वास्तु पूजा और फिर भोजन के लिए आमंत्रित किया था, चर्चा और चिंता इस बात की थी कि कम से कम कीमत पर उन्हें क्या उपहार दिया जाए, व्यक्ति अलग अलग उपहार दे या सामूहिक एक ही उपहार दिया जाये पर दोपहर तक वहा जाने के पहले आम सहमति नहीं बन पायी, फिर बड़े साहब और उनके सहायक साहब ने बाजार से गुजरते हुए साझा करके एक दीवाल घड़ी खरीदी, घडी सुदर थी और सस्ती भी दोनों साहब खुश हुऐ पैसे बचे, उधर एक अन्य साहब व पूरा स्टाफ अलग वाहन में एक उपहार बाजार से खरीदकर खुश होते हुए गए कि पैसे भी बचे और रस्म अदायगी भी हो गयी।

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मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, युवा हो रहे आत्मनिर्भर स्वावलम्बी

प्रदेश के शिक्षित बेरोजगार युवकों की बेरोजगारी की समस्या दूर करने व जनपद के हुनरमंद व कर्म युवाओं को अपने पैरो पर खड़ा करने के प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की शुरुवात की है। इस योजना का उद्देश्य युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना है। मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना से प्रदेश के शिक्षित युवा बेरोजगारों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना संचालित की जा रही है। इस योजनान्तर्गत उद्योग स्थापना हेतु रू० 25.00 लाख तक एवं सेवा क्षेत्र हेतु रु0 10.00 लाख तक का ऋण बैंको के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है। राज्य सरकार द्वारा 25 प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करायें जाने का प्रविधान है जो कि उद्योग क्षेत्र हेतु अधिकतम रू0 6.25 लाख तथा सेवा क्षेत्र हेतु रु0 2.50 लाख है।

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प्रदेश सरकार के विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से पारम्परिक कारीगरों का हो रहा है आर्थिक विकास

मनुष्य के जीवन में विविध भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती है और उन वस्तुओं की आपूर्ति समाज के विभिन्न पारम्परिक कारीगरों, हस्तशिल्पियों द्वारा निर्मित वस्तुओं से होता है। आज के मशीनरी एवं वैज्ञानिक युग में औद्योगिकीकरण से प्रदेश की परम्परागत शिल्प का ह्मस होता जा रहा है। जबकि परम्परागत शिल्पियों की दैनिक जीवन में अति आवश्यकता है। प्रदेश में विभिन्न वर्गों के परम्परागत कारीगरी, शिल्प को बढ़ावा देने तथा लोगों को स्वरोजगार देने के उद्देश्य से ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने प्रदेश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के पारम्परिक कारीगरों बढ़ई, लोहार, दर्जी, टोकरी बुनकर, नाई, सुनार, कुम्हार, हलवाई, जूते-चप्पल बनाने वाले आदि स्वरोजगारियों तथा पारम्परिक हस्तशिल्पियों की कलाओं के प्रोत्साहन एवं संवर्द्धन तथा उनकी आय में वृद्धि के अवसर उपलब्ध कराने हेतु प्रदेश में विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना लागू किया है।

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