बात 1988 की है। मेरी इंटरमीडिएट की परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं और मैं बेसब्री से रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था। जून के मध्य में परिणाम आ गया। उस जमाने में आज के जैसी नेट की कोई सुविधा नहीं हुआ करती थी। परीक्षा परिणाम अखबारों के विशेष संस्करण में छपा करते थे। और दूसरे दिन देखने को मिला करते थे। रिजल्ट देखा, द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था, मुहल्ले के कुछ सहपाठी फेल हो गये थे और कालेज का रिजल्ट भी द्वितीय श्रेणी का था।। मुझे याद है, मेरी इस उपलब्धि पर भी घर और पास-पडोस में लड्डू बांटे गये थे। जुलाई आया और बी.ए. में स्थानीय महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया था। एक दिन बस ऐसे पिता जी ने पूछ लिया था कि मुझे आगे क्या करना है। मेरा उत्तर उन्हें खुश कर गया था क्योंकि मैंने परिवार की शिक्षकीय परम्परा को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था। मैंने कहा था,‘‘ मुझे सरकारी प्राईमरी स्कूल में शिक्षक बनना है। और अभी जल्दी बीटीसी प्रशिक्षण के लिए आवेदन हेतु विज्ञापन आने वाला है, मैं फाॅर्म डाल दूंगा।‘‘ ध्यान देना होगा कि उस समय प्राइमरी शिक्षक को बहुत कम वेतन मिलता था और बहुत कम बच्चे प्राथमिक शिक्षा में एक शिक्षक के रूप में जाना चाहते थे।
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