Saturday, May 4, 2024
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क्या यूपी के निकाय चुनाव तय करेंगे 2024 के लोकसभा चुनाव की दिशा ?

इस समय उत्तर प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव सम्पन्न हो रहे हैं। चार मई को पहले चरण के लिए वोट पड़ चुके हैं। जबकि द्वितीय एवं अन्तिम चरण के लिए 11 मई को मतदान होगा। अगले वर्ष देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों पर दृष्टि लगाये हुए हैं। क्योंकि भले ही इन चुनावों का केन्द्र की राजनीति से कोई सीधा सम्बन्ध न हो परन्तु देश की वर्तमान राजनीति के तौर तरीकों ने सब कुछ गड्ड-मड्ड करके रख दिया है। जो चुनाव स्वास्थ्य, स्वच्छता, बिजली, पानी तथा सड़क जैसे विकास परक मुद्दों पर लड़े जाने चाहिए उनमें भी कानून व्यवस्था, आतंकवाद तथा विदेशी सम्बन्धों पर जोर-शोर से चर्चा होती है। साथ ही जाति एवं सम्प्रदाय के नाम पर मतदाताओं को गोलबन्द करने का प्रयास किया जाता है। शहर-कस्बों से लेकर महानगरों तक कहीं भी आप चले जाइये। मुख्य मार्गों को यदि छोड़ दें तो गलियों में जगह-जगह लगा कूड़े का ढेर, बजबजाती नालियां तथा मार्ग पर अतिक्रमण आज एक आम समस्या बन चुका है। जरा सी बरसात में सड़कें नदी बन जाती हैं। जगह-जगह घूमते आवारा पशु मार्ग दुर्घटना का कारण बन रहे हैं। शायद ही कोई ऐसी गली हो जहाँ कुत्तों का झुण्ड नजर न आये। बन्दरों के आतंक की भी खबरे यदा-कदा सुनने को मिल जाती हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि नगरीय निकाय चुनाव में इन मुद्दों पर चर्चा करता हुआ कहीं कोई नही दिखाई देता है। इसका कारण यही हो सकता है कि या तो इन समस्याओं के प्रति प्रत्याशियों की रूचि नहीं है या फिर इनके स्थाई समाधान हेतु इनके पास कोई कार्य योजना नहीं है। अतः इमोशनल ब्लैक मेलिंग द्वारा येनकेन प्रकारेण चुनाव जीतना ही सबका परम लक्ष्य बनना स्वाभाविक है।यह विद्रुप ही है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश का मतदाता लोकतन्त्र की गरिमा और महत्व को समझने के लिए तैयार नहीं है। नगर निकाय चुनाव के प्रथम चरण में 48 प्रतिशत मतदाता तो वोट डालने ही नहीं गये और जो गये भी उनमें से कितने ऐसे हैं जिन्होंने बिना किसी भावनात्मक दबाव तथा पैसे की चकाचौंध से परे हटकर वोट दिया हो। किसी भी क्षेत्र में देख लीजिये पार्षद से लेकर मेयर तक एक-एक सीट पर 10 से 15 तो कहीं इससे भी अधिक प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन क्षेत्रीय लोगों के मुताबिक मुख्य मुकाबला सिर्फ दो या तीन प्रत्याशियों के बीच होता हुआ दिखाई देता है। वह भी उन प्रत्याशियों के बीच जो या तो किसी बड़े दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं या फिर प्रचार-प्रसार में जमकर पैसा खर्च कर रहे हैं। लग्जरी गाड़ियों से चुनाव प्रचार करने वाले प्रत्याशी आम मतदाता की दृष्टि में लड़ाई में सबसे आगे होते हैं जबकि ईमानदार तथा बहुत कुछ कर गुजरने का हौसला लेकर चुनाव में नामांकन कराने के बाद पैदल चलकर वोट मांगने वाला प्रत्याशी कहीं किसी गणना में नहीं होता है। तब फिर प्रश्न उठता है कि ऐसे लोग आखिर चुनाव लड़ते ही क्यों हैं? शायद इसलिए कि उन्हें इस बात का अत्यधिक भरोसा होता है कि लोग उनकी ईमानदारी तथा कर्मठता को अन्ततोगत्वा अवश्य महत्व देंगेद्य परन्तु मतदान की तिथि आते-आते पैसे की चकाचौंध में उनका यह भरोसा चकनाचूर हो जाता है और उन पर बेचारे का लेबल लग जाता है। यही सब विधान सभा तथा लोकसभा के चुनावों में भी होता है। सम्भवता इसी कारण राजनीतिक विश्लेषक नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम से लोकसभा चुनाव की दिशा तय करना चाहते हैं।
नगर निकाय या नगर निगम की स्थापना तब होती है जब किसी बस्ती को स्वशासन का अधिकार दिया जाता है। इसकी स्थापना एक कानूनी पत्र जारी करके होती है। इस पत्र में प्रशासन सञ्चालन, अधिकारियों के चुनाव एवं नियुक्ति सम्बन्धी नियमावली का वर्णन होता है। नगर निगम बनने के लिए किसी भी नगर की जनसंख्या 5 लाख से अधिक होनी चाहिए। एक से पांच लाख के बीच जनसंख्या होने पर नगर पालिका बनती है तथा एक लाख से कम परन्तु 30 हजार से अधिक जनसंख्या वाले ग्राम को नगर पञ्चायत का दर्जा दिया जाता है। नगर निगम के प्रमुख को मेयर या महापौर तथा नगर पालिका एवं नगर पञ्चायत के प्रमुख को अध्यक्ष या चेयरमैन कहा जाता है।
उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव के लिए अधिकृत मतदाताओं की कुल संख्या 4 करोड़ 32 लाख बताई गयी है। पहले चरण में प्रदेश के नौ मण्डलों में 37 जिलों के 10 नगर निगमों, 104 नगर पालिकाओं तथा 276 नगर पंचायतों के लिए 2 करोड़ 40 लाख मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना था। परन्तु मात्र 52 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया है। दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत क्या होगा इस सन्दर्भ में फ़िलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन मतदान प्रतिशत में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। बीते वर्ष यू.पी.विधान सभा के लिए हुए चुनाव में मतदान प्रतिशत 62 के आसपास रहा था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 15 करोड़ 4 लाख 67 हजार के लगभग है। जबकि पूरे देश की मतदाता संख्या 90 करोड़ के आसपास है। इस दृष्टि से भारत के लगभग 13.50 प्रतिशत मतदाता उत्तर प्रदेश से आते हैं। राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने के लिए यह एक पर्याप्त संख्या हो सकती है। परन्तु नगरीय निकाय चुनाव के मतदान प्रतिशत के आधार पर यदि बात करें तो 4 करोड़ 32 लाख के 52 प्रतिशत अर्थात लगभग सवा दो करोड़ मतदाताओं का चुनाव परिणाम 90 करोड़ मतदाताओं के रूख का सही-सही आकलन करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। लेकिन देश की वर्तमान राजनीतिक दिशा और दशा के आधार पर यदि बात करें तो कुछ भी असम्भव नहीं है। क्योंकि भारत में मतदाताओं का रूख प्रत्याशियों की कर्मठता, समर्पण तथा उनकी विकासपरक सोच के आधार पर न तय होकर जुमलेबाजी तथा जाति एवं सम्प्रदाय की गोलबन्दी के आधार पर तय होता है।

डॉ. दीपकुमार शुक्ल

(स्वतन्त्र पत्रकार)