Thursday, November 14, 2024
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नन्हा पौधा

नन्हा पौधा बोल उठा,
मस्ती में आंखें खोल उठा।
हंसने दो मुझको ज़रा यहां,
करने दो वसुंधरा हरा भरा।
मैं जीवन बनकर हूं आया ,
धरती से उपजी मेरी किया।
तू जान सका ना प्रभु माया,
अंबर धरती पर क्यों छाया।
जीवन देकर जीवन पाया,
ये भेद तुम्हें सिखाने आया।
लक्ष्य भेद न भूलो अपना,
साथ सदा तुम रखो सपना।
जीवन नाज़ लहक उठेगा,
जग उपवन सारा महक उठेगा।
-डॉ० साधना शर्मा (राज्य अध्यापक पुरस्कृत) इ० प्र० अ० पूर्व मा०वि० कन्या सलोन, रायबरेली