Tuesday, April 23, 2024
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सताने को मुझे कुछ इस कदर बेताब है……

अमिता दीक्षित, कानपुर

सताने को मुझे कुछ इस कदर बेताब है ये दिल,
निगाहें उनकी चिलमन पर लगाये आज बैठा है।
ये उल्फत है दिल नादाँ, मेरा महबूब है जालिम,
जलाने को मुझे, शम्मा जलाये आज बैठा है।
मेरी हर एक धड़कन की सदा, उस ओर जाती है,
वो जज़्बातों को बेदर्दी दबाये आज बैठा है।
उम्मीदों के परों पर आसमाँ में उड़ रहा पंछी,
तेरी राहों पे वो पलकें बिछाये आज बैठा है।
उसी के तीर है दिल पर, वही हमदर्द है मेरा,
कि जख्मों पर मेरे मरहम लगाये आज बैठा है।
मोहब्बत की उमर क्या है मेरे दिल से ये न पूछो,
कि सूने घर में एक दीपक जलाए आज बैठा है।
ना सुनता है किसी की ये बड़ा मगरूर आशिक है,
तेरी चौखट पे सर अपना झुकाये आज बैठा है।