Saturday, May 4, 2024
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सरकारें कर रहीं नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़

2017.07.01.1 ssp schoolअधिकारियों पर चढ़ा है कुर्सी का नशा
प्राईमरी स्कूलों की हो रही दुर्दशा
कुत्तों और सुअरों के बीच बैठाकर तैयार किया जा रहा है नौनिहालों का भविष्य
शहर के कई स्कूल परिसरों में चट्टे व अवैध कब्जे
प्रधानाध्यापिका बोली कई बार कर चुके शिकायत
कानपुर, अर्पण कश्यप । लोग कहते हैं जिन्हें अपने बच्चों का भविष्य खराब करना हो तो सरकारी प्राईमरी स्कूल में दाखिला करा दो। वास्तव में बात गलत नहीं बल्कि सही है। चाहे केन्द्र सरकार हो या प्रदेश सरकार, दोनों ही सरकारें शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी प्राईमरी स्कूलों के प्रति उदासीन हैं। हां, यह तो जरूर है कि प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों को भरपूर वेतन जरूर दिया जा रहा है लेकिन उनसे शिक्षा का कार्य नहीं बल्कि अन्य कार्य जैसे चुनावी ड्यूटियां, वोटर कार्ड बनवाने आदि का कार्य ले लिया जाता है। शायद ही कोई शहर हो जहां प्राथमिक स्कूलों में शिक्षण कार्य समुचित तरीके से किया जा रहा हो। जब सभी जगह खराब हालात हों तो फिर शहर के प्राईमरी स्कूलांे की दशा कैसे ठीक रह सकती है। हालांकि कानपुर महानगर को स्मार्ट सिटी बनाने पर पूरा जोर है लेकिन बिना सही शिक्षा के स्मार्ट सिटी कैसे बन सकता है हमारा शहर, यह एक सोचनीय तथ्य है। एक कटु सच्चाई है कि शहर के ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के प्रपाथमिक स्कूलों की दशा बहुत ही दयनीय है। वहीं अब ऐसे नजारे दिखने लगे है कि सरकारी स्कूलों का उपयोग बच्चों की पढ़ाई के लिए नहीं होता है बल्कि शहर के कई स्कूल ऐसे हैं जहां स्थानीय लोग अपनी सुविधा के लिए उनका उपयोग कर रहे हैं। कई स्कूल में तो अराजकतत्वों ने भी अपना ठिकाना बना लिया हैं।
उदाहरण के तौर पर शहर बर्रा क्षेत्र के जे ब्लाॅक विश्व बैंक में स्थित एक प्राईमरी स्कूल की दीवार तोड़ कर कब्जेदारांे ने स्कूल के अन्दर तक कब्जा कर लिया है। लोगों ने स्कूल परिसर में चट्टे बना रखे है। जहां दुधारू पशुओं को रखा जा रहा है और यहीं से दूध का कारोबार किया जाता है। नाम छापने की शर्त पर क्षेत्र के एक युवक ने बताया कि क्षेत्रीय पार्षद पति श्रवण बाजपेयी की सह पर पार्क में ठेकेदार ने राॅ निर्माण सामग्री रखी थी, पर अब यह सामग्री डालते डालते नजदीक दीवार तोड़ कर स्कूल के अन्दर तक आ गये। वही स्कूल की प्रधानाध्यापिका नीलम अवस्थी ने ताया कि 2011 में उनकी पोस्टिंग यहां पर हुई थी। उन्होंने बताया कि पोस्टिंग के बाद से कई बार उन्होंने इसकी शिकायत बीएसए व नगर निगम के आफिस में लिखित रूप से की चुकी हैं पर अधिकारियो ने अपनी आंख पर पट्टी बांध रखी है जिससे उनको कुछ नहीं दिख रहा। वही पीछे बने चट्टे से इकट्ठा होने वाले गोबर की दुर्गंध से सांस लेना मुश्किल होता है बच्चों ने पुछने पर बताया कि कई को सांड़ व गाय हमला कर देते है। ऐसे में बच्चों की जान पर भी बनी हुई हैं पर जिम्मेदारों के कान पर जूॅं तक नहीं रेंग रहीं।
कुछ भी हो सरकारे ही शिक्षा व्यवस्था को बिगाड़ने पर पूरा जोर दिए हुए हैं जिससे कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर बिगड़ा हुआ है। यह कटु सत्य है कि प्राथमिक स्कूलों में मध्यान्ह भोजन व वजीफा देकर लालच दे रहे हैं और देश के लाखों बच्चों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इससे प्राईवेट स्कूलों को बढ़ावा मिल रहा है। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर अच्छा न होने के कारण निजी प्रबन्ध तंत्र अपनी मनमानी करते हैं और गरीबों के बच्चे मजबूरी में शिक्षा से वंचित रहते हैं।
साथ ही गौर करने वाला तथ्य यह है कि सरकारी स्कूलों में जो ड्रेस दी जा रही है क्या वह जनप्रतिनिधि कहलाने वाले या ड्रेस का कपड़ा चुनने वाले लोग अपने बच्चों को यहीं ड्रेस पहनाकर स्कूल भेज सकते हैं?