Monday, July 1, 2024
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गरीबदास का बैंक खाता (बैताल पचीसी)

बैताल ने सम्राट विक्रमादित्य से कहना प्रारम्भ किया। हे! सम्राट, दो चार दिन पहले बासठ-त्रेसठ साल की एक देहाती अनपढ़ औरत सरकारी बैंक से बाहर निकली। बाहर निकलते ही उसे चक्कर आ गया। उसके मुँह से निकला ‘‘हे! राम अब मैं क्या करूँ ?’’ ऐसा कहते हुए वह जमीन पर गिर गई। पास से गुजर रहे लोग उसके पास पहुँचे। पास ही चाय की दूकान थी। चाय वाला गिलास में पानी लेकर दौड़ा और उस वृद्धा के मुँह पर पानी के छींटे मारे। जब वह वृद्धा कुछ समाचेत हुई तो लोगों ने उसे बैठाया और कुछ पूछा। लोगों के कुछ पछते ही वह वृद्धा फफक फफक कर रो पड़ी। बमुष्किल उसने रोते रोते अपनी राम कहानी बताई।
बैताल ने सम्राट विक्रमादित्य से पूछा-हे! राजन वह देहाती अनपढ़ औरत आखिर किस पीड़ा से पीड़ित हो गई जिसके कारण वह बेहोष होकर गिर पड़ी और समाचेत होने के बाद लोगो द्वारा कुछ पूछे जाने पर फफक फफक कर रो पड़ी, इस विषय में कुछ प्रकाश डालिए।
सम्राट विक्रमादित्य ने बैताल से कहा- हे! बैताल उस वृद्धा का नाम राधा था। उसके पति का नाम गरीबदास था। वह ग्राम लछमनपुर, तहसील रामपुर जिला बैकुण्ठपुर की रहने वाली थी। उसके पति गरीबदास ने एक सरकारी बैंक में अपना बचत खाता खोला था। गरीबदास के पास जब कभी पच्चीस पचास रुपये हो जाते वह उन्हें बैंक में जमा कर देता। 23 जुलाई 2017 को अचानक उसे दिल का दौरा पड़ा और सरकारी अस्पताल पहुँचते पहुँचते अस्पताल के गेट पर ही उसने दम तोड़ दिया। गेट पर कुछ पूछताछ में अस्पताल के कर्मचारियों ने नर्सों ने दस मिनट का समय बर्बाद कर दिया अन्यथा वह बचाया भी जा सकता था। मृत घोषित कर उसे गेट से ही वापस कर दिया गया। वहां के रजिस्टर में मरीज के आने की प्रविष्टि भी नहीं की गई। राधा पर दुख का पहाड़ अूट पड़ा। ईश्वर की इच्छा के सामने भला वह क्या कर सकती थी।
जैसे तैसे दषगात्र और तेरहवीं हुई। राधा के दो लड़के और एक लड़की थी। तीनों विवाहित थे। तेरहवीं होने के बाद दोनों लड़के अपना अपना बही-खाता लेकर बैठ गये और राधा को हिसाब बताने लगे कि उनने अपने बाप के इस कार्यक्रम में कितनी राषि व्यय की है। अलबत्ता लड़की दामाद ने इस पर चुप्पी साध ली ,बस इतना कहा कि उनने हिसाब किताब रखने के लिए खर्च नहीं किया जो किया फर्ज समझकर किया। किन्तु राधा के दोनों लड़कों में खर्च को लेकर तनातनी भी हो गई। उनकी तनातनी से दुखी होकर राधा ने कहा- बेटो आपस में मत लड़ो जिसका अधिक खर्च हो गया है समय आने पर मैं वह भरपाई कर दूँगी। ऐसा कहकर कमरे के अन्दर जाकर सुबकती रही।
लड़कों ने कहा पिताजी का बैंक में खाता था ,बैंक की पासबुक हमें दिखाओ। राधा ने उनके सामने बैंक की पासबुक लाकर रख दी। लड़कों ने देखा उसमें चार हजार एक सौ नब्बे रुपये अठारह पैसे जमा हैं। बड़े लड़के ने पासबुक अपने कब्जे में कर ली और दूसरे दिन चुपचाप जाकर यह कोषिष की कि उसके पिता गरीबदास के नाम जमा राषि उसके खाते में तबादला हो जाये। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। उसने और भी उपाय पूछे किन्तु उसके हाथ निराषा ही लगी। उसने पासबुक अपनी माँ राधा को वापस कर दी और कहा बैंक का काम स्वयं बैंक जाकर निपटा लो और इस रकम में जो मेरा हिस्सा है मुझे दे दो। बेचारी राधा क्या करती। लड़कों की आषा थी कि वे बैंक का काम निपटा लेंगे किन्तु लड़के ने तो बोल दिया कि बैंक का काम स्वयं निपटा लो।
राधा बैंक गई। बैंक के कर्मचारियों ने कहा कि वह मैनेजर साहब से मिले। वह मैनेजर की केबिन के पास खड़ी हो गई। एक के बाद एक जेन्टलमेन मैनेजर की केबिन में जाते आते रहे किन्तु उसका नम्बर नहीं लगा। जैसे तैसे उसे मौका मिला तो वह अन्दर गई और केबिन में एक तरफ खड़ी हो गई। जेन्टलमेन आते जाते रहे। कभी विजय माल्या, कभी नीरव मोदी, कभी कोठारी का जिक्र कर खूब ठहाके लगाते रहे। विजय माल्या, नीरव मोदी, कोठारी आदि बैंकों के कितने हजार करोड़ रुपये डकार गये, यही चर्चा छाई रही। खड़े खड़े उसे चक्कर आने लगे थे। बेचारी कुर्सी पर बैठ नहीं सकती थी। घन्टे डेढ़ घन्टे बाद मैनेजर का ध्यान उसकी तरफ गया। मैनेजर ने बात सुनी और फिर तीस बत्तीस पेज का कागज का पुथन्ना उसको थमा दिया। पास में बैठे वकील को मैनेजर ने कहा कि इस वृद्धा को षपथपत्र , लेटर आफ डिस्क्लेमर, लेटर आफ इन्डेमनिटी के विषय में सब कुछ समझा दे।
वकील ने राधा के हाथ से वह पुथन्ना ले लिया और राधा सहित बाहर आ गया। वकील ने ग्यारह बारह प्रकार के दस्तावेजों के विषय में बताया, साथ ही यह भी कहा कि इस काम को पूरा करने में कम से कम दो हजार रुपये लगेंगे। राधा कागजों के नाम भूल गई ,उसे बस यह याद रहा कि उसे अपने ही चार हजार एक सौ नब्बे रुपये अठारह पैसे पाने के लिए दो हजार रुपये व्यय करना पड़ेंगे। वकील समझाकर और वह पुथन्ना तथा अपना विजिटिंग कार्ड देकर चला गया। राधा ने वह सब लिया और बाहर आ गई। उसे चक्कर आ गये और वह गिर पड़ी।
बैताल ने सम्राट विक्रमादित्य से पूछा- राजन एक तरफ तो बड़े कहे जाने वाले लोग बैंकों का हजारों करोड़ रुपये डकार कर देष से बाहर भाग जा रहे हैं दूसरी तरफ राधा जैसी गरीब वृद्धा अपनी ही मामूली सी रकम पाने में लाचार हो रही है। क्या इस प्रक्रिया को सरलीकृत नहीं किया जा सकता ? सम्राट विक्रमादित्य ने कहा- हे! बैताल मंषा हो तो सब कुछ हो सकता है। राधा के पास आधार कार्ड है। उसमें उसके पति का नाम एवं गाँव का पता लिखा हुआ है। उसका मिलान उसके पति की पास बुक से किया जा सकता है। गाँव के सरपंच से प्रमाण मांगा जा सकता है। उसके बेटों, बेटी के आधार कार्ड का भी सहारा लेकर नो आब्जेक्षन सर्टीफिकेट आदि लिया जा सकता है किन्तु वकीलों को भी तो धन्धा चाहिए। बड़ों के लिए कानून एक जाल है जिसे तोड़ कर वह निकल भागते हैं और छोटे बेचारे उस जाल में फंसे तड़फते रहते हैं।
सम्राट विक्रमादित्य की बातें सुनकर बैताल उनके कन्धों से छिटक कर फिर से पेड़ पर जा लटका। –(लेखक-आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ‘‘राजगुरु’’, सिहोरा, जबलपुर म.प्र. 483225 मो.9424767707)