Saturday, May 18, 2024
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कोरोना काल में भी कैसे संजीदा रखें रोमांटिक लाइफ -संजय रोकड़े

आज तक जितनी भी महामारियां संसार में फैली है उन सबने मानव जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है। एक तरफ वह भूखमरी और बेरोजगारी का संकट पैदा करती है तो दूसरी तरफ इंसानी जिंदगी की रूमानियत को भी प्रभावित करती है। कोरोना ने भी इंसान की रोमांटिक लाईफ को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
कोरोना जैसी महामारी पर अंकुश लगाने के लिए शासन-प्रशासन का तमाम तंत्र होम क्वारंटीन को ज्यादा से ज्यादा अपनाने के लिए सलाह दे रहा है या दबाव बना रहा है। हालाकि इसके फायदे हैं तो नुकसान भी है।
इस समय होम क्वारंटीन के चलते तमाम लोगों के बीच दूरी बनाएं रखने की बात की जा रही है। शादीशुदा महिला-पुरूष को भी एक दूसरे के बीच विशेष रूप से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जा रही है।
इसमें दो राय नही है कि कोरोना ने हम सबको घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया है। पर इसको लेकर सबका एक ही कहना पड़ रहा है कि ऐसे कब तक बसर करना पड़ेगा। इसका उत्तर अभी तो यही है कि- कहा नहीं जा सकता है कब तक।
खुद को और दूसरों को बचाना है तो घरों की ये कैद मंजूर करनी ही होगी। लेकिन, घर में हर समय परिवार के सभी लोगों की मौजूदगी ने मियां-बीवियों की प्राइवेट स्पेस को खत्म कर दिया है। इसका सीधा असर उनकी रोमांटिक लाइफ याने सेक्स जीवन पर भी पड़ रहा है। अगर आप अपने पार्टनर से दूर आइसोलेशन में हैं, तो जाहिर है उनकी कमी बेइंतहा खल रही होगी। और जो घरों में है वे परिवार के लोगों की मौजूदगी के कारण अपनी रोमांटिक लाईफ से परे होते जा रहे है। अब संकट के इस काल में रिश्तों की रूमानियत को कैसे बरकरार रखा जाए?
इस दौर में प्रेमी-प्रेमिका भी एक दूसरे से संवाद स्थापित नही कर पा रहे है। उनको भी संवाद करने में खासी मुश्किल हो रही है। गर वे किसी को फोन करके अपने दिल की बात कहना चाहे तो आसान नही रह गया है। हालाकि आइसोलेशन हमें सिखा रहा है कि ना तो हमेशा एक दूसरे के नजदीक रहना अच्छा है, ना ही हमेशा दूर रहना- दोनों के फायदे और नुकसान हैं। लेकिन रिश्ते मजबूत रखने के लिए उनमें थोड़ी दूरी बनी रहे तो बेहतर है। अभी मुश्किल वक्त है। उम्मीद है कि ये जल्द ही गुजर जाएगा। फिर एक नए दिन की तरह हम सभी के रिश्तों और जिंदगी की एक नई शुरुआत होगी।
हालाकि ऐसे समय में भले ही तकनीक की मदद से स्काइप या वीडियो कॉल से ढेरों बातें कर ले। एक दूसरे से दिल की बात कह लें, फिर भी एक दूसरे का हाथ थाम कर बात करने का जो लुत्फ है वो दूर रहने पर नहीं मिल पाता है। दिल और दिमाग को सुकून देने वाली एक दूसरे के वजूद की खुश्बू कहीं गुम रहती है। मानवीय जीवन के रिश्तों पर अध्ययन करने वाले समाजविज्ञानी इसे स्किन हंगर कहते हैं। यानी एक दूसरे के वजूद की गर्मी महसूस करने की ललक।
अब हम यहां रोमांटिक जीवन पर क्वारंटीन के असर पर बात करते है। क्वारंटीन का समय किसी के लिए भी आसान नहीं है। इस दौैरान हमारे मानसिक और शाररिक जीवन पर गहरा असर होता है। क्वारंटीन में मानवीय सोच और उसके व्यवहारिक जीवन में क्या असर होता है इस पर अभी नए सीरे से रिसर्च जारी है। हालाकि अभी तक जितने रिसर्च हुए है उसमें पाया गया है कि क्वारंटीन के समय बोरियत, झुंझलाहट और गुस्सा बढ़ जाता है। और ये असर काफी लंबे समय तक हावी रहता है।
रोमेंटिक रिलेशनशिप वालों पर इसका और भी गहरा असर पड़ता है। ऐसे समय में उनका एक दूसरे से दूर रहना और भी मुश्किल हो जाता है। जिन लोगों का पारिवारिक जीवन पहले से ही खराब है उनके लिए तो ये समय भरपूर तनाव पैदा करने वाला है। अगर आप अपने किसी अजीज से दूर हैं तो उसकी भेजी गई चीज उस कमी को पूरा कर सकती है। जैसा कि खतों-किताबों के दौर में होता था। लोग बड़े प्यार से अपने जज्बात शब्दों में पिरो कर एक कागज पर उतार देते थे। खत पढऩे वाले उन शब्दों में खत भेजने वाले की मौजूदगी महसूस कर लिया करते थे। कागज के उस डुकड़े को सीने से लगा लेते थे। क्योंकि कागज का यही टुकड़ा तो उनके अपनों के हाथों में था। हो सकता है लिखने वाले ने चूम कर लिफाफा बंद किया हो। वो एहसास खत पढक़र हो ही जाता है।
जानकार कहते हैं कि अकेले रहना कोई बुरी चीज नहीं है। रिश्तों की तंदुरुस्ती और उसमें मिठास बनाए रखने के लिए कभी-कभी एक दूसरे से दूर रहना जरुरी भी है। संकट के इस दौर में सब कुछ उलझा हुआ है। एक ही जगह रहते हुए काम और रिश्ते निभाना मुश्किल होता है। पता ही नहीं चलता कब ऑफिस की जिम्मेदारी पूरी हुई और कब रिश्ते निभाने का काम शुरु हुआ। ऐसे में मौजूदा दौर में रिश्तों के लिए समय मिल भी पा रहा है या नहीं।
पर चिंता तो ये है कि तालाबंदी खत्म होने के बाद भी हम सबके लिए सामान्य जीवन शुरु करना कितना आसान हो पाएगा। इसीलिए इस तरह की पाबंदियां हटने के बाद हम कैसे अपना जीवन आगे बढ़ाएंगे उसके लिए भी हमें अभी से खुद को तैयार कर लेना चाहिए। इस तैयारी में सबसेे पहले ये करे कि जहां तक हो सके झगड़ों को अपने जीवन से दूर ही रखे। कोशिश यही करें कि एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय हंसी-खुशी से बिताएं।
अब हम बात करते है इस समय एक-दूसरे की कमी के एहसास पर। इस संबंध में जानकारों का मानना है कि एक दूसरे से दूर रहकर एक दूसरे की कमी महसूस करना इस बात की दलील है कि आपका रिश्ता कितना मजबू है। कुछ समय अलग रहने के बाद जब आप फिर से मिलते हैं तो एक अलग ही ताजगी का एहसास होता है। नए जोश और उत्साह के साथ एक दूसरे से मिलते है। एक दूसरे की छोटी-छोटी गलतियां या कमियां नजर अंदाज कर देते है।
वहीं हमेशा एक साथ रहने पर अक्सर एक दूसरे से चिड़चिड़ाने लगते है। एक वक्त के बाद तो ऐसे लगने लगता है के जैसे पर्सनल स्पेस ही खत्म हो गयी हो। जो लोग कभी एक दूसरे से दूर नहीं होते उन्हें ये एहसास भी नहीं होता कि वो एक दूसरे के लिए कितने अहम हैं। एक दूसरे से अलग रहना ही चुनौतीपूर्ण नहीं है बल्कि अकेले रहने के बाद फिर से मिलना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। इसकी बेहतरीन मिसाल उन लोगों की जिंंदगी में देखने को मिलती है जो रिटायर होने के बाद सारा समय परिवार के साथ घर में रहते हैं। जब तक हम काम करते हैं उस वक्त तक पूरी आजादी और मर्जी से जिंदगी गुजारते हैं। ऑफिस में बिताए समय में किसी की दखलअंदाजी नही सहते है। लेकिन रिटायर होने के बाद जब हर वक्त घर में ही रहते हैं तो ना सिर्फ समय बिताना मुश्किल होता है बल्कि परिवार के साथ सौहार्दपूण संबंध बनाना भी मुश्किल हो जाता है।
याद होगा कि बहुत से लोग मौज-मस्ती और प्यार के कुछ पल साथ बिताने के लिए बाहर जाया करते थे। पार्टी करते थे। अब ऐसे लोगों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। अभी तक हम सभी अपनी-अपनी जिंदगी में इतने वयस्त थे कि हमारे पास किसी के लिए समय ही नहीं था और अब समय काटे नही कट रहा है। किसी भी इंसान के लिए इतनी जल्दी मानवीय व्यवहार में बदलाव करना आसान नही रह गया है। इस समय शायद यही बदलाव इंसान को हैरान-परेशान कर रहा है और अपनी रोमांटिक लाईफ के लिए कष्टदायी मान रहा है। बहरहाल इस मानसिक परेशानी से निजात पाने का एक ही हल है कि इस समय जितना अधिक से अधिक सकारात्मक सोच सके सोचे।
लेखक द इंडिय़ानामा पत्रिका का संपादन करने के साथ ही स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सम-सामयिक विषयों पर समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए कलम चलाते है।