Saturday, May 18, 2024
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वर्क फ्रॉम होम में बच्चों का अहम रोल

कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। कोरोना के खतरे के चलते अधिकतर कंपनियों व कुछ सरकारी विभागों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी है। ये जहां एक तरह की सुविधा है वहीं महिलाओं के लिए थोड़ी समस्या भी खड़ी करती है। बच्चों और परिवार के साथ घर से कार्य करना जरा मुश्किल भरा होता है। यही वजह है कि वर्क फ्रॉम होम करते हुए माता-पिता के लिए बच्चों को बिजी रखने के नित नये तरीके निकालते होते हैं। बड़ों के विपरीत अधिकांश बच्चे यह नहीं जानते हैं कि खुद का मनोरंजन कैसे करना है। इस मामले में बच्चों को थोड़ा प्रोत्साहन और कुछ प्रशिक्षण देेने की आवश्यकता होती है, जैसे किताबे पढना या ड्राइंग बनाना, खिलौनों से खेलना। बच्चे इन कम रोमांचक लेकिन आनंददायक गतिविधियों के साथ रच-बस जाते हैं, तो वे अपना ध्यान इन पर जमाना सीखते हैं और बाद में इनका आनंद भी उठाने लगते हैं।
प्राथमिक विद्यालय निनायाँ प्रथम सरवनखेड़ा में कार्यरत सहायक अध्यापिका दीप्ती कटियार का कहना है कि जब वे अपने स्कूल के बच्चों की ऑनलाइन क्लास ले रही होती हैं तब वो अपनी 5 वर्षीय पुत्री आज्ञा कटियार को स्केचबुक में ड्रॉइंग करने व खिलौनों से खेलने के लिए कह देती हैं। उनकी पुत्री आज्ञा कटियार ने कोरोना जागरूकता पर लॉकडाउन की अवधि में कई पेंटिंग बनाई हैं। दीप्ती कटियार का कहना है कि स्केजबुक पेंटिंग प्री स्कूल या इससे बड़े बच्चों के लिए बहुत अच्छी गतिविधि होती है। यह बच्चों को घंटों तक लुभाएं रख सकती है। हालांकि अगर यह एक स्वतंत्र गतिविधि है, तो बच्चों को ड्रॉइंग सेटअप करने और बाद में जगह की सफाई करने में सक्षम होना चाहिए। इसलिए इसे सरल रखें। छोटे बच्चों के लिए ड्रॉइंग के साथ कटिंग वाले प्रोजेक्ट भी हैं तो आप उन्हें पहले से कटिंग करके रख सकते हैं। कम उम्र के बच्चों के लिए इसे रंगों से खेलने भर जितना सरल बनायें।
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गोगुमऊ सरवनखेड़ा में कार्यरत अनुदेशिका ज्योति पाण्डेय का कहना है कि मेरी दो बेटियाँ नित्या मिश्रा व मिशिका मिश्रा हैं। जब मैं ऑनलाइन अपने स्कूल के बच्चों को पढ़ाती हूँ तब अपनी दोनों बेटियों को चित्रांकित किताबें देती हूँ। पेंटिग करने के लिए भी बोल देती हूँ। हमारे यहाँ कई सरल चित्रात्मक किताबें हैं जो सभी उम्र और पढ़ाई के स्तर वाले बच्चों को पसंद आयेगीं। उनका कहना है कि मेरी दोनों बेटियों ने कोरोना जागरूकता पर पेंटिंग भी बनाई हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति घर पर काम करते समय अपने बच्चों को किसी अनिच्छुक या संघर्षरत या कुछ कठिन पढने के लिए या करने के लिए देता है तो वह बच्चों में किताबों से प्यार करने वाली आदत को विकसित नहीं करवा पायेगा।
प्राथमिक विद्यालय भागीरथपुर सरवनखेड़ा में कार्यरत प्रधानाध्यापक गोरेन्द्र कुमार सचान का कहना है कि हमारे दो बच्चे हैं। हम इस लॉकडाउन में बच्चों को कुछ देर पढ़ाते हैं, कुछ देर खिलाते हैं। उनका मानना है कि बच्चे अपने खिलौनों में जल्दी ही दिलचस्पी खो देते हैं। इसीलिए हम अपने यहाँ बोर्ड गेम, कार्ड्स, कंस्ट्रक्शन टॉयज, ट्रेन, प्लेसेट और पजल कुछ ऐसे ही अच्छे खिलौने रखते हैं जो बच्चों को घंटों तक बांधे रखते हैं। लेकिन कभी-कभी उन्हें इन खिलौनों की याद दिलानी पड़ती है। जब हमारे बच्चे खेलने में मशगूल हो जाते हैं तब हम अपने विभागीय कार्यों को निपटा लेते हैं।
उपर्युक्त तथ्यों से समझा जा सकता है कि घर से काम करने में मुश्किलें भी हैं जो छोटे बच्चों की उपस्थिति में थोड़ी बढ़ जाती हैं, मगर आपसी समझबूझ से हम अपने कार्य को आसानी से कर सकते हैं।