Friday, November 1, 2024
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मजदूरों के अधिकारों को छीन शोषण को बढ़ावा दे रही सरकार

श्रम कानून का निलम्बन और 8 से बढाकर 12 घण्टे काम करने के प्रस्ताव पर भङके श्रमिक संगठन बोले 
यूपी समेत देश के कई राज्यों ने किया श्रम कानून में बदलाव
उद्योगपतियों को सहूलियत के लिए मजदूरी की बदहाली पर उतरी सरकार
पंकज कुमार सिंह-
कानपुर। कोविड-19 की महामारी के दौर में जिन्दगी की जंग लङ रहे गरीब मजदूरों पर सरकार ने रहम की जगह उनके शोषण के रास्ते तैयार कर दिए हैं। इनके लिए देश के उत्तर प्रदेश सहित गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा आदि राज्यों ने श्रम कानून में बदलाव कर बहुत से नियमों को आगामी तीन साल के लिए निलम्बित कर दिया है। ऐसे में सरकार ने उद्योगपतियों को उन जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जिसमें मजदूरों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए कानूनन उन्हें माननी पङती थी। उद्योगपतियों का मजदूरों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना कानूनन दायित्व रहा है लेकिन अब ऐसा नहीं रहेगा। सरकार ने हवाला दिया है कि श्रम कानून में बदलाव से प्रदेश में औद्योगिक निवेश के लिए दरबाजे खोल दिए है। चीन, ताईवान जैसे देशों की कंपनियों को यह बदलाव रास आएंगे। मसलन मजदूरों के हितों पर चाबुक चलाकर उद्योगपतियों को सहूलियतें दी जाएंगी। दरअसल, कई राज्यों ने अपने यहां श्रमिकों के लिए कामकाज के घंटे को 8 से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। गत शनिवार को यूपी सरकार द्वारा जारी अध्यादेश में यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि श्रमिक हित के पर्यवेक्षण के लिए कोई भी श्रम अधिकारी उद्योंगों के दरबाजे 3 साल तक नहीं जाएगा। श्रमिक संगठनों का कहना है कि जब पूरा देश कोविड-19 की महामारी से जूझ रहा है तो पहले से ही मुसीबतों के बोझ तले दबे गरीब मजदूरों को राहत देने के बजाय भाजपा सरकारें कोरोना संकट की आड़ में उन्हें उनके ही अधिकारों से वंचित कर रही हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई राज्यों में श्रम कानूनों में संशोधन किए जाने पर ट्वीट कर कहा है कि , ‘अनेक राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन किया जा रहा है। हम कोरोना के खिलाफ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन यह मानवाधिकारों को रौंदने, असुरक्षित कार्यस्थलों की अनुमति, श्रमिकों के शोषण और उनकी आवाज दबाने का बहाना नहीं हो सकता। इधर बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा मायावती ने मजदूरों से 12-12 घंटा काम कराने के प्रस्ताव का विरोध किया है। उन्होंने शनिवार को एक के बाद एक लगातार चार ट्वीट किए और सरकार पर हमला बोला। मायवती ने कहा कि मजदूरों का पहले ही बुरा हाल है, अब आठ की जगह 12 घंटे काम लेना गलत है।मायावती ने आगे लिखा है कि परमपूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने श्रमिकों के लिए प्रतिदिन 12 नहीं बल्कि 8 घंटे श्रम व उससे ज्यादा काम लेने पर ओवरटाइम देने का युगपरिवर्तनकारी काम तब किया था जब देश में श्रमिकों/मजदूरों का शोषण चरम पर था। इसे बदलकर देश को उसी शोषणकारी युग में ढकेलना क्या उचित है?
आपको बता दें कि श्रमिकों से जुड़े कानून संविधान की समवर्ती सूची में हैं, इसलिए इन्हें बदलाव किए जाने का निर्णय केंद्र सरकार की अनुमति के बिना नहीं लिया जा सकता है। इसके लिए विपक्षीदल सहित श्रमिक संगठनों ने मोदी सरकार से मांग की हैं कि वो इन कानूनों में बदलाव करने के लिए अपनी अनुमति न दें, जिनसे मजदूरों के अधिकार उनसे छीन लिए जाएंगे और उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा।आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के उ.प्र. संयोजक अवधेश वर्मा ने सूबे के श्रममंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के आवास पर जाकर श्रमकानून के बदलाव के विरोध में आपत्ति दर्ज कराते हुए ज्ञापन सौपा। अखिल भारतीय आम्बेडकर महासभा की प्रमुख विद्या गौतम ने कहा है श्रमिकों के हितों से खिलवाङ हम बरदास्त नहीं कर सकते किसान और मजदूर ही देश की रीङ है इनके हितों पर कुठाराघात देश के साथ बेमानी है। सरकार श्रमिक कानून संसोधन वापस ले वरना हम सङकों पर उतरने के लिए वाध्य होंगे।
श्रमकानून निलम्बन से मजदूरी की हालात होगी बद्तर
नए नियमों के प्रस्ताव को लेकर श्रमिक संगठन उद्वेलित हैं। उनका कहना है कि इससे एक बार फिर औद्योगिक क्रांति से पहले जैसे हालात पैदा हो जाएंगे।
उनका आरोप है कि श्रमिकों को बंधुआ मजदूरी की तरफ धकेला जा रहा है।
लेकिन सरकारों ने महामारी का सहारा लेते हुए ‘श्रम क़ानून’ को मालिकों के पास गिरवी रख दिया है।
हालांकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के फ़ैसलों पर केंद्र सरकार ने अभी तक मुहर नहीं लगाई है।
केंद्र सरकार के अनुमोदन के बाद ही सभी राज्यों ने जो श्रम क़ानून में बदलाव लाने के प्रस्ताव रखे हैं, वो लागू हो जाएंगे।
श्रमिकों को काम के आठ घण्टे तय की ऐसे हुई शुरूआत
औद्योगिक क्रांति के समय कर्मचारी प्रतिदिन 10 से 16 घण्टे तक काम किया करते थे। 25 सितम्बर 1926 को फोर्ड मोटर कंपनी के संस्थापक हेनरी ने फेक्टरियों में काम करने वाले लोगों के लिए सप्ताह में 5 दिन और रोज आठ घण्टे काम करने की योजना पहली बार लागू की थी। इसके बाद अमेरिकी संसद ने 1938 में सप्ताह में काम के 44घण्टे के साथ फेयर लेबर स्टेण्डर्ड एक्ट पारित किया।24 अक्टूबर 1940 को काम के आठ घण्टे दुनियांभर के विभिन्न उद्योगो में एक स्टेण्डर्ड के रूप में आया।
डाॅ. आम्बेडकर के बनाए कानून पर सरकार का कुठाराघात
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि श्रमिकों को 12 से कम कर 8 घण्टे काम करने का कानून लागू करने में देश के संविधान निर्माता बाबा साहब डाॅ.आम्बेडकर के अथक प्रयासों से सम्भव हुआ था। परन्तु वर्तमान में भाजपा शासित सरकारें ने इस पर कुठाराघात करने पर आमादा हो गई। बाबा साहब ने 27 नव्बर 1942 को नई दिल्ली में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7 वें सत्र में इस योजना को लागू करने का प्रस्ताव रखा था।इस सम्मेलन में शामिल केन्द्र व प्रांतीय सरकारों के प्रतिनिधियों, नियोक्ता और श्रमिक संगठनों ने सर्व सम्मति से प्रतिदिन काम के आठ घण्टे व सप्ताह में कुल 48 घण्टे के सिद्धान्त का समर्थन किया गया था। आजादी के बाद कारखाना अधिनियम के तहत आठ घण्टे से अतिरिक्त एक निश्चित समयावधि के लिए ओवर टाईम वर्क के लिए अतिरिक्त मजदूरी देने का प्रावधान था साथ ही सप्ताह में एक दिन अवकाश का प्रवधान भी था।
कुछ प्रावधानों पर नज़र डालें जो अगले तीन साल तक के लिए निरस्त कर दिए गए हैं-
-काम की जगह या फैक्ट्री में गंदगी पर कार्रवाई से राहत
-वेंटिलेशन या हवादार इलाक़े में काम करने की जगह नहीं होने पर कोई कार्रवाई नहीं
-किसी मजदूर की अगर काम की वजह से तबीयत ख़राब होती है तो फैक्ट्री के मैनेजर को संबंधित अधिकारियों को सूचित नहीं करना होगा
-शौचालयों की व्यवस्था नहीं होने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होगी।
-इकाइयां अपनी सुविधा के हिसाब से मज़दूरों को रख सकती हैं और निकाल सकती हैं वो भी अपनी ही शर्तों पर
-बदहाली में काम करने का न तो श्रमिक अदालत संज्ञान लेगी और ना ही दूसरी अदालत में इसको चुनौती दी जा सकती है।
इसके अलावा श्रमिकों के लिए रहने और आराम करने की व्यवस्था या महिला श्रमिकों के लिए बच्चों की देखभाल के लिए क्रेच भी बनाना नई कंपनियों के लिए अनिवार्य नहीं होगा।
और न ही इन इकाइयों का कोई सरकारी सर्वेक्षण ही किया जाएगा।