-जिला प्रशासन ने अपनी लापरवाही छुपाने के लिये पत्रकारों पर लिखवा दिया मुकदमा
-कार्यक्रम में बिना मास्क लगाये आलाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा या जुर्माना क्यों नहीं?
कानपुर देहातः जन सामना ब्यूरो। उप्र के स्थापना दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में जिला प्रशासन की लापरवाही दिखाने पर बेसिक शिक्षा अधिकारी ने तीन पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार के-न्यूज टीवी चैनल के पत्रकार मोहित कश्यप व अन्य दो पत्रकार अमित सिंह व यासीन अली ने जिले में उप्र के स्थापना दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में छात्रों को कड़ाके की ठंड के दौरान बिना स्वेटर खुले आसमान के नीचे देर तक खड़ा रखे जाने व बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने की खबर दिखाई थी।
ज्ञात हो कि आयोजित कार्यक्रम के दौरान सभी छात्रों को भीषण सर्दी में खुले आसमान के नीचे खड़ा किया गया था। इस दौरान बच्चे खुले आसमान के नीचे हाफ पैंट और शर्ट में थे। बच्चे बिना स्वेटर के ठिठुरते रहे। जबकि इस मौके पर कई आलाधिकारी व जनप्रतिनिधि भी वहां पर मौजूद थे लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
इस कार्यक्रम को डीएम दिनेश चंद्र और बीएसए सुनील दत्त ने आयोजित करवाया था और इस कार्यक्रम में पुलिस अधीक्षक, राज्यमंत्री अजीत पाल, विधायक विनोद कटियार, विधायक प्रतिभा शुक्ला और निर्मला संखवार मौजूद थीं। इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि कोरोना महामारी के दौरान कई नेता व अधिकारी बिना मास्क के दिखाई दिये लेकिन उनपर ना तो महामारी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया और ना उन पर जुर्माना लगाया गया, जबकि सार्वजनिक स्थानों पर बिना मास्क के मिलने पर जुर्माना का प्रावधान है।आलाधिकारियों की लापरवाही उजागर करने पर तीन पत्रकारों पर दर्ज करवाये गये मुकदमे से प्रतीत होता है कि उप्र में हिटलरशाही का दौर चल रहा है? वहीं सवाल यह भी उठता है कि अफसरों की यह हिटलरशाही किसके इशारे पर चल रही है? क्या सच उजागर करना अपराध है?
हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है। ऐसे तमाम मामले पहले भी प्रकाश में आ चुके हैं। ऐसा ही मामला सूबे के मिर्जापुर जिले में प्रकाश आ चुका है जब एक प्राथमिक स्कूल में छात्रा- छात्राओं को नमक रोटी बांटने की खबर चलाने पर एक पत्रकार पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करवाया गया था। वहीं अगर पड़ोसी जिला कानपुर नगर की बात कर लें तो राजकीय बालिका संरक्षण गृह की खबर चलाये जाने से नाराज जिला प्रशासन तो सारी हदें पार करते हुए अज्ञात मीडिया संस्थानों के खिलाफ स्वरूप नगर में मामला दर्ज करवा कर भय का माहौल बनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी थी।
इसी तर्ज पर बाबूपुरवा थाना में भी कोरोना महामारी के दौरान एक पत्रकार को निसाना बनाया गया था। इस पत्रकार ने ड्यूटी में तैनात होमगार्डो का दर्द बयां किया था। जब पत्रकार ने इस खबर को चलाया था तो जिले के आलाधिकारियों ने सच को दबाते हुए और अपनी नाकामियों को छुपाने के लिये गंभीर धाराओं में मामला दर्ज करवा दिया था।
अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आलाधिकारियों को क्या संवैधानिक ज्ञान अर्जित करने की जरूरत है ? क्योंकि अगर उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि खबर तथ्यहीन है या कूटरचित है तो सम्बन्ध में सवसे पहले सम्बन्धित मीडिया संस्थान के सम्पादक से स्पष्टीकरण लेना चाहिये, उसके बाद कानूनी कार्यवाई करने हेतु पहल करना चाहिये। लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं किया जा रहा है बल्कि अपनी नाकामी छुपाने के लिये पत्रकारों पर मुकदमें लिखवाना ज्यादा आसान दिखता है। यह प्रेस की आजादी पर सीधा हमला है और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये खतरा है।