Monday, November 11, 2024
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ज्ञान, कर्म और उपासना, समृद्ध वैभव की भूमि है अयोध्या – स्वामी राम दिनेशाचार्य

रायबरेली। आध्यात्मिक त्रिदिवसीय पर्व मानस संत सम्मेलन के द्वितीय दिवस के अवसर पर जगद्गुरू स्वामी रामदिनेशाचार्य जी महाराज काशी एवं हरिधाम पीठाधीश्वर अयोध्या धाम ने अपने प्रवचन में पारिवारिक शिक्षा, सामाजिक शिक्षा के साथ ही ज्ञान कर्म, उपासना आदि विषयों पर विस्तार से श्रोताओं को बताया। जगद्गुरू ने कहा कि सुख समृद्धि और वैभव की राजधानी अयोध्या धाम में ज्ञान रूपी माता कौशल्या, कर्म रूपी माता केकई और उपासना रूपी माता सुमित्रा पर विस्तार से बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि महाभारत कभी एक दूसरे देश से नहीं होता, एक परिवार का होता है और महाभारत का उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि पाण्डव और ध्रतराष्ट्र दोनो सगे भाई थे, दोनो के वंशजों में युद्ध हुआ था। किसी देश से नहीं यह पारिवारिक युद्ध था। अयोध्या में भी युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी । महारानी केकई ने अपने विवाह के समय मांगे गये, सुरक्षित वरदान पर बल पूर्वक महाराज दशरथ पर दबाव बनाते हुए। अपने बातों पर अड़ गयी और महाराज से उनकी मौन स्वीकृति प्राप्त कर राम को राज्याभिषेक से वंचित करके 14 वर्षाे के वनवास का आदेश दिया और अपने सुपुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने के लिए आदेश दिया। राम माता केकई के आदेश को सिरोधार करते हुए वन जाने के लिए तैयार हो गये। केकई कर्म की प्रतीक थी और उन्होने कर्म को ही कार्यरूप दिया। इस आदेश के बाद राम माता सुमित्रा से मिलने नहीं गये। बल्कि अपने अनुज लक्ष्मण को छोटी माता के पास भेजा, यह सोचकर कि छोटी माता यदि आदेश दे देंगी कि राम तुम वन नहीं जाओगे। केकई तुम्हारी सौतेली मॉ के आदेश से जा रहे हो तो मै भी तुम्हारी सौतेली मॉ हूॅ और मै भी तुम्हे आदेश देती हूॅ कि तुम राजा बनोगे।
राम ने कहा कि राजा बनने से अधिक खुशी मुझे राजा के बड़े भाई होने पर होगी। सुख समृद्धि जीवन के क्षणिक सुख है। इसे त्याग कर बैराग अपनाकर श्रीराम ने सम्पूर्ण मानव को जो दिशा दर्शन दिया, यही कारण है कि राम मर्यादा पुरूषोत्तम बन पाये। वास्तविकता तो यह है कि अयोध्या में भगवान शंकर की तरह विषपान केकई ने किया। केकई राम से बेहद स्नेह रखती थी। परन्तु मंथरा के षड़यंत्र और केकई के जिहवा पर सरस्वती का प्राकट्य होने से राम को वन जाना पड़ा। गुरू जी ने कहा कि उपासना मूक होता है। उसमें किसी प्रकार का आवाज नहीं होता है। मूकवाणी से बाहर का नहीं अन्दर के भाव को प्रकट करना होता है और उपासना से ही परमात्मा की प्राप्त होती है। वैराग्य त्याग का साधन होता है। रामचरितमानस में भारतीय संस्कृति संविधान के समान है। जिसमें मानवीय आचारसंघिता को प्रदर्शित किया गया है और जब मां सरस्वती किसी की जिव्हा पर स्थान प्राप्त कर लें तो वह कुछ भी कर सकता है। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने सर्वप्रथम सरस्वती फिर विनायक की प्रार्थना की है।
जब व्यक्ति में धर्म समाविष्ट होता है तो उसके अन्दर विनम्रता का वास होता है। जगद्गुरू ने कहा कि प्रवचन सुनने के लिए बैठना और अपने जीवन में कथा का उतारना बड़ी बात है कथा का अंश यदि मानव में समाहित हो जाये तो वह वास्तव में भक्त है। अभिमान समाप्त होने पर भक्ति उसमें समाविष्ट हो जाती है। केकई के साथ-साथ जगतगुरू ने भरत के चरित्र का भी विस्तार से वर्णन किया। उन्होने कहा कि भरत रूपी कमल को जन्म देने वाली माता केकई ही थी और केकई ने ही राम को मर्यादा पुरूषोत्तम बनने में सहायक हुई।
जगतगुरू के आगमन पर मानस संत सम्मेलन समिति के पदाधिकारियों ने सम्मेलन परिसर में स्वागत द्वार से मंच तक गुलाबों की पंखुरिया बरसाते हुए घण्टा व शंख ध्वनि के साथ मार्ग प्रशस्त किया। मंच पर आसन ग्रहण करने के उपरान्त पादुका पूजन के लिए बाल जी त्रिपाठी सपत्नी ने किया। यज्ञाचार्य देवी प्रसाद पाण्डेय द्वारा पूजन कार्यक्रम सम्पन्न कराया गया। जगतगुरू के अभिनंदन के लिए सदर विधायक अदिति सिंह उनकी माता जी अमावॉ ब्लाक प्रमुख वैशाली सिंह, समिति के महामंत्री ज्योर्तिमयानंद जी, कोषाध्यक्ष उमेश सिकरिया, मंत्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ल, सुक्खू लाल चांदवानी, महेन्द्र अग्रवाल, राजेन्द्र अवस्थी आदि ने भी अभिनंदन किया। जगतगुरू के प्रवचन से पूर्व स्वामी रामकिंकर मानस आलोक जी के मार्मिक प्रवचन से श्रोता मंत्रमुग्ध हुए साथ ही श्रीरामदास रामायणी राम प्रकाश मिश्र भजनोपदेशक और देवी शशि भारती मानस माधुरी द्वारा मनमोहक प्रवचन से श्रोतागण गदगद हो गये। संचालन डा0 अम्बिकेश त्रिपाठी ने किया।
इस अवसर पर राधेश्याम लाल कर्ण, पुष्पेन्द्र सिंह, राघव मुरारका, संजय जीवनानी, महेन्द्र गुप्ता, यश श्रीवास्तव, राघवेन्द्र द्विवेदी, राम बिहारी अवस्थी, गणेश गुप्ता आदि बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।