Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

आंखों की देखभाल, महत्व, अंधापन व दृष्टि बाधिता की ओर जागरूक करने का दिन है विश्व दृष्टि दिवस

विश्व दृष्टि दिवस गुरुवार इस बार 12 अक्टूबर 2023 को मनाया जाएगा। विश्व दृष्टि दिवस प्रतिवर्ष अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को मनाया जाता है। यह एक वैश्विक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य आंखों की देखभाल उनके महत्व, अंधापन और दृष्टि बाधिता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। विश्व दृष्टि दिवस 2023 दृष्टि बाधिता, अंधापन और नेत्र स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। यह दिन नियमित आंखों की जांच, आंखों की समस्याओं का शीघ्र पता लगाने और उपचार, और सभी के लिए आंखों की देखभाल तक पहुंच की आवश्यकता की याद दिलाता है।
विश्व दृष्टि दिवस रोकथाम योग्य अंधेपन को खत्म करने और दृष्टि बाधिता वाले व्यक्तियों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के वैश्विक प्रयास पर भी प्रकाश डालता है। इस वर्ष भी लोगों को उनकी आंखों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए व्यापार जगत के रहनुमानाओं से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया है कि आंखों की देखभाल सुलभ, समावेशी और श्रमिकों के लिए हर जगह उपलब्ध हो।
विश्व दृष्टि दिवस दृष्टि की शुरूआत दृष्टि बाधिता और अंधेपन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अंतर्राष्ट्रीय अंधता निवारण एजेंसी (आईएपीबी) ने 1998 में पहली बार की थी और तब से यह दुनिया भर के विभिन्न संगठनों, सरकारों और नेत्र देखभाल पेशेवरों द्वारा समर्थित एक वैश्विक पहल बन गया है। इसकी शुरूआत के बाद से, विश्व दृष्टि दिवस ने नेत्र स्वास्थ्य की वकालत करने, रोकथाम योग्य अंधेपन को कम करने और गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पृथ्वी पर लगभग हर एक व्यभक्ति अपने जीवनकाल में नेत्र स्वास्थ्य समस्या का अनुभव करता है। दृष्टि हानि सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करती है और अधिकांश प्रभावित लोग 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं।

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वोट बटोरने का शॉर्टकट ‘रेवड़ी की राजनीति’

मुफ्तखोरी की संस्कृति इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है कि कुछ राजनीतिक दलों का अधिकांश चुनावी एजेंडा, एक सोची-समझी रणनीति के तहत केवल मुफ्त की पेशकशों पर आधारित है, जो मतदाताओं को स्पष्ट रूप से एक संदेश भेज रहा है कि यदि राजनीतिक दल जीतता है तो उन्हें ढेर सारी मुफ्त चीजें मिलेंगी। इससे कई सवाल खड़े होते हैं, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या मतदाताओं के दिमाग में हेरफेर करने और सत्ता में आने के लिए मुफ्त उपहार देने की ऐसी रणनीति लोकतंत्र में नैतिक, कानूनी और स्वीकार्य है? राजनीतिक दलों को सूचित करना चाहिए कि क्या मुफ्त के लिए धन सरकारी खजाने से आएगा और यदि ऐसा है तो यह केवल एक जेब से पैसा लेना और मतदाता की दूसरी जेब में डालना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बड़े पैमाने पर, अनियंत्रित मुफ्तखोरी संस्कृति हमारे जैसे लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की छत को हिला देती है।
राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त बिजली, मुफ्त सार्वजनिक परिवहन, मुफ्त पानी और लंबित बिलों और ऋणों की माफी जैसे वादों की एक श्रृंखला को अक्सर मुफ्त उपहार माना जाता है।

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समय के साथ निरंतर ताकतवर होती भारतीय वायुसेना

भारतीय वायुसेना 8 अक्तूबर को अपना 91वां स्थापना दिवस मना रही है और इस खास अवसर पर वायुसेना अपने शौर्य और शक्ति का अभूतपूर्व प्रदर्शन करेगी। वायुसेना के स्थापना दिवस पर इस बार प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर एक घंटे तक भव्य एयर शो का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें वायुसेना के लड़ाकू विमान आसमान में ऐसी कलाबाजियां करेंगे कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएंगे। वायुसेना की परेड सुबह के समय और एयर शो दोपहर दो बजे से होगा। इस भव्य एयर शो के दौरान वायुसेना के 100 से भी ज्यादा लड़ाकू विमान आसमान में हैरतअंगेज करतब दिखाएंगे। भारतीय वायुसेना दिवस के अवसर पर हर साल एयर शो आयोजित करने का प्रमुख उद्देश्य न केवल पूरी दुनिया को भारत की वायुशक्ति से रूबरू कराना है बल्कि युवाओं को वायुसेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना भी है। भारतीय वायुसेना द्वारा एयर शो के लिए फुल ड्रैस रिहर्सल मध्य वायु कमान मुख्यालय बमरौली में 6 अक्तूबर को आयोजित किया गया था, जिसमें जांबाज वायुवीरों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया। फुल ड्रैस रिहर्सल के दौरान 10 स्काई पैराजंपर 8000 फीट की ऊंचाई से ए-32 विमान से 150 किलोमीटर की रफ्तार से नीचे कूदे, उसके बाद ट्रेनी वायु योद्धाओं ने जिप्सी के पुर्जों को खोलकर केवल पांच मिनट में ही उसे जोड़ने का हैरतअंगेज कारनामा दिखाया। विंग कमांडर अशोक ने पैरा हैंग ग्लाइडर से 200 फीट की ऊंचाई से हैरतअंगेज प्रदर्शन किया और फिर पैरा मोटर्स से भी वायुसेना के जाबांजों ने करतब दिखाए। आसमान में वायुवीरों के इन प्रदर्शनों को देखकर हर कोई रोमांच से भर उठा।
अब 8 अक्तूबर के एयर शो में विंटेज विमान टाइगर मॉथ, हार्बट ट्रेनर, ट्रांसपोर्ट जहाज सी वन थर्टी, आईएल 78, चेतक हेलीकॉप्टर, रुद्र हेलीकॉप्टर इत्यादि के जरिये वायुवीर अपने करतब दिखाएंगे। स्वदेशी फाइटर प्लेन तेजस आसमान की ऊंचाईयों पर उड़ान भरेगा जबकि कारगिल की जंग में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाला मिराज 2000 भी हवा से बातें करेगा। एयर शो में इस बार वायुसेना के बेड़े में अपना समय पूरा कर चुके मिग-21 का आखिरी शो भी देखने को मिलेगा और इस प्रदर्शन के बाद प्रयागराज से मिग-21 की विदाई भी होगी।

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महिला आरक्षण बिल क्यों जरूरी ?

महिला आरक्षण विधेयक पर यूं तो 45 साल पहले 1974 में सवाल उठ चुका था और महिला आरक्षण बिल पहली बार 1996 में देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था और उसके बाद कम से काम 10 बार यह बिल पेश किया गया लेकिन आपसी सहमति न होने के कारण और महिलाओं को आरक्षण की जरूरत ही क्या है ? इस विचार के मद्देनजर इस बिल को मान्यता नहीं मिली। यहां तक कि इस बिल को लेकर मारपीट तक की नौबत आ गई थी। शरद यादव यहां तक कह चुके थे कि, ‘इस बिल से परकटी महिलाओं को ही फायदा होगा।’
2010 में जब राज्यसभा में यह बिल पास हुआ तो करण थापर ने एक प्राइम टाइम बहस में कहा कि, ‘महिलाओं को सशक्त बनाना तो ठीक है लेकिन इसके लिए आरक्षण की जरूरत क्या है?’ इन सब बातों के बीच में एक सवाल मेरे मन में भी आया कि महिलाओं को आरक्षण की जरूरत क्या है? जब हम बराबरी की बात करते हैं तो महिलाओं को आरक्षण क्यों चाहिए? जब इतना माद्दा है कि आप अपने आपको काबिल साबित कर सकती हैं तो आरक्षण क्यों? और यूं भी आरक्षण द्वारा चुनकर आई हुई महिलाएं सिर्फ राजनीतिक मोहरा भर होती है। हमारे विविधता वाले देश में जात-पात का मुद्दा बहुत बड़ा है जिसे राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हित के लिए उत्थान के नाम पर ‘आरक्षण’ की बैसाखी थमा रखी है। जब तक आरक्षण रहेगा तब तक जाति रहेगी,जब तक जाति रहेगी तब तक कुछ लोगों की राजनीति रहेगी और जब तक उनकी राजनीति रहेगी तब तक आरक्षण रहेगा।

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गुमनाम नायकः पत्रकार और उनके परिवार !

पत्रकारिता एक महान पेशा है जो कहानियों को आकार देने, सच्चाई को उजागर करने और परिवर्तन को प्रज्वलित करने की शक्ति रखता है। जबकि पत्रकार केंद्र में हैं, हम अक्सर उनकी कलम और कैमरे के पीछे के गुमनाम नायकों- उनके परिवारों- को नज़रअंदाज कर देते हैं। इस लेख का उद्देश्य पत्रकारों के सामने आने वाली अनोखी चुनौतियों और उनके परिवारों द्वारा प्रदान किए गए अटूट समर्थन पर प्रकाश डालना है।
अनिश्चितता के बीच डटे रहना: पत्रकार अनिश्चितताओं से भरे करियर को अपनाते हैं। अनियमित कामकाजी घंटों से लेकर अप्रत्याशित कार्यों तक, उनके परिवार उनके जीवन की बदलती लय के अनुरूप ढलकर ताकत के स्तंभ बन जाते हैं। वे लंबे समय तक खड़े रहते हैं और निरंतर गति के बावजूद स्थिरता प्रदान करते हैं।
जिम्मेदारी का भार: पत्रकार अपने कंधों पर सच्चाई का भार रखते हैं, क्योंकि वे भ्रष्टाचार को उजागर करने, बेजुबानों को आवाज देने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने का प्रयास करते हैं। उनके परिवार उनके मिशन के महत्व और उसके साथ आने वाले बलिदानों को समझते हैं, अटूट समर्थन और समझ प्रदान करते हैं।
अनदेखे जोखिमों के साथ रहनाः संघर्ष क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करना, खतरनाक विषयों की जांच करना और शक्तिशाली संस्थाओं का सामना करना पत्रकारों को अंतर्निहित जोखिमों का सामना करना पड़ता है। पत्रकारों के परिवार अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए निरंतर चिंता और चिंता में रहते हैं, सच्चाई की अग्रिम पंक्ति से उनकी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करते हैं।
अशांत समय में भावनात्मक समर्थन: पत्रकार अक्सर मानवीय पीड़ा, त्रासदी और आघात के गवाह होते हैं। इससे होने वाला भावनात्मक प्रभाव बहुत अधिक हो सकता है। ऐसे समय में, उनके परिवार एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं – एक सुनने वाला कान, सहारा लेने के लिए एक कंधा और आराम का एक स्रोत। तूफान के बीच उनका अटूट समर्थन जीवन रेखा बन जाता है।
काम और पारिवारिक जीवन में संतुलन: पत्रकारिता की मांगलिक प्रकृति काम और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन को बिगाड़ सकती है। अनियमित कार्यक्रम, छूटे हुए पारिवारिक कार्यक्रम और समय-सीमा और गुणवत्तापूर्ण समय के बीच निरंतर बाजीगरी रिश्तों में तनाव पैदा कर सकती है। फिर भी, उनके परिवार समझदार बने हुए हैं और पेशे की अनूठी मांगों को अपना रहे हैं।
व्यावसायिक कलंक का सामना करनाः पत्रकारों को अक्सर अपने काम के लिए आलोचना, धमकियों और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों का सामना करने में, उनके परिवार उनके अभयारण्य बन जाते हैं, उन्हें आश्वासन देते हैं और उनके मिशन के महत्व की याद दिलाते हैं। अपने प्रियजनों के काम में उनका दृढ़ विश्वास प्रेरणा का स्रोत है।

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स्वच्छ मन से स्वच्छता की ओर

स्वच्छ भारत अभियान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने शुरू किया, जिसके तहत सफाई को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है। यह अभियान 2 अक्टूबर 2014 को नई दिल्ली से राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष में शुरू हुआ था। स्वच्छ भारत का सपना गांधी जी का था। स्वच्छ भारत अभियान में भारत सरकार की सराहनीय कोशिश है।
स्वच्छ मन से निर्मित होता है स्वच्छ एवं सुरक्षित समाज जो सफल एवं सशक्त राष्ट्र की नींव होती है।
मन स्वच्छ होगा तो ही हम अपना वातावरण, पर्यावरण, समाज स्वच्छ एवं सुरक्षित रख पाएंगे नहीं तो सिर्फ दिखावा और झूठ होगा।
अब समय है मन की स्वच्छता पर ध्यान देने की। हमारे देश में जिस तरह से अपराध बढ़ रहे हैं। उज्जैन में हाल ही में 12 साल की मासूम बच्ची क बच्ची के साथ बलात्कार हुआ यह दर्शाता है कि स्वच्छ भारत अभी भी गंदा और सुरक्षित है इसीलिए मानसिक तौर से स्वच्छ है बेहद जरूरी है । नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की नई रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में भारत में हर दिन औसतन 86 रेप के मामले दर्ज हुए इसका मतलब है कि हर मिनट में तीन रेप की घटनाएं हो रही है जिसमें से राजस्थान में सबसे ज्यादा रेप पाए गए । हाल ही में एनसीआरबी के अनुसार 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 428,278 मामले दर्ज किए गए जिसमें अपराध की दर 64.5 प्रतिशत थी । ऐसे अपराधों में 77.1 प्रतिशत मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए। वहीं भारत में अन्य अपराध जैसे चोरी, डकैती, साइबर क्राइम, फिरौती, मर्डर, घरेलू हिंसा, यातायात नियमों का उल्लंघन, वित्तीय मामले, जमीनी मामले, नशा आदि पाए जाते हैं।
मन शरीर और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध होता है। हमारे मानसिक स्वास्थ्य का पर्यावरण और समाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

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अंदरुनी गुणों की अभिव्यक्ति है सुंदरता

संसार में कोई मानव सामान्य अथवा अनाकर्षक नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने आप में एक चमत्कार है। ऐसे में अपने आपको कुरुप या अनाकर्षक समझकर हीन भावना से पीड़ित रहना भारी भूल है। सौंदर्य मात्र गोरे रंग या तीखे नैन-नक्श में नहीं होती, अपितु आकर्षक व्यक्तित्व का मूल मोती की तरह सीप में छिपा है, उसके अक्षुण्ण सुंदरता की आभा अंदर से ही फूटती है। सचमुच व्यक्ति के अंदर ही सुंदरता का बीज निहित होता है। किसी भी व्यक्तित्व में आकर्षण उसके अंदर से आता है। अपने आप क्या अनुभव कर रहे हैं। आपका रंग इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करता है। कहा जाता है कि चेहरा मन की बात बता देता है। इसलिए व्यवहार तथा विचारों की झलक चेहरे पर स्पष्ट हो जाती है। किसी मुस्कान में भी अंदर के भावों तथा विचारों को पढ़ा जा सकता है। इन भावों और विचारों से न केवल आपके नेत्रों की चमक अपितु त्वचा का रंग भी प्रभावित होता है, किसी भव्य व्यक्तित्व में जितना अंश शारीरिक सुंदरता का होता है, उतना ही मानसिक सुंदरता का होता है।

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ग़ज़ल

बात इसमें भला बड़ी क्या थी।
काम बिगड़ा तो रहबरी क्या थी।
खुदकुशी देखती रही दुनिया,
क्या पता उसकी बेबसी क्या थी।
खूब सबको दिखा मियाँ मैज़िक,
गेंदबाज़ी मे ताज़गी क्या थी।
बेसबब क्यूँ झगड़ पड़े आखिर,
कुछ बताओ तनातनी क्या थी।
आसमानी दिमाग़ था उसका,
उससे मेरी बराबरी क्या थी।

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“देश की आबो-हवा”  

कवि की सृजनात्मकता हो,
या कुंभकार की अद्भुत कला।
शिल्पकार की कल्पना हो,
चित्रकार की चित्रकारिता।
जब ये अपने पर आ जाते हैं,
तो देश क्रांति में हो जाता है।
सत्य की ओर उन्मुख हो जाते,
तो उभर के आती छुपी भावना।
कोई हाथों से रेखा खींचकर,
बनाता अनेक अनेक तस्वीरें।
कोई गढ़-गढ़ उन्हें सजाता है,
अपने पूर्वजों की दुर्लभ धरोहर।
कोई रेखा खींच यहां पर,
रचता है प्रेरणा के सुंदर गीत।
किसी की हस्त रेखाओं ने,
दिखाया है उसको गगनचुंबी।

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एक साथ चुनाव भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों?

“एक साथ चुनावों से देश की संघवाद को चुनौती मिलने की भी आशंका है। एक साथ चुनाव होने से लोकतंत्र के इन विशिष्ट मंचों और क्षेत्रों के धुंधला होने का खतरा है, साथ ही यह जोखिम भी है कि राज्य-स्तरीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों में समाहित हो जाएंगे। अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए गए तो ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें।”

एक साथ चुनाव का तात्पर्य है कि पूरे भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे, जिसमें संभवतः एक ही समय के आसपास मतदान होगा। एक साथ चुनाव, या “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का विचार पहली बार औपचारिक रूप से भारत के चुनाव आयोग द्वारा 1983 की रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था। एक साथ चुनाव कराने के कुछ संभावित लाभों के साथ-साथ कुछ कमियां भी हैं, जो सवाल उठाती हैं: क्या एक साथ चुनाव कराना भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक है?
एक देश एक चुनाव के विरोध में विश्लेषकों का मानना है कि संविधान ने हमें संसदीय मॉडल प्रदान किया है जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाएँ पाँच वर्षों के लिये चुनी जाती हैं, लेकिन एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर हमारा संविधान मौन है। संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो इस विचार के बिल्कुल विपरीत दिखाई देते हैं। मसलन अनुच्छेद 2 के तहत संसद द्वारा किसी नये राज्य को भारतीय संघ में शामिल किया जा सकता है और अनुच्छेद 3 के तहत संसद कोई नया राज्य राज्य बना सकती है, जहाँ अलग से चुनाव कराने पड़ सकते हैं।

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