Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

अकती खेलन कैसें जाऊँ री…..

बुन्देलखण्ड में दूर.दराज गांवों में अखती अपने ही ढंग से मनाई जाती है। अब से 45 वर्ष पूर्व के वो दिन मुझे याद हैं जब मेरे जन्म स्थान खुटगुवां ग्राम उ.प्र. में अलग ही तरह से अक्षय तृतीया मनाई जाती थी। इसे खेल और पूजा दोनों तरह से मनाते थे। वहां इसे अकती कहते हैं। यह तो मुझे बाद में ज्ञात हुआ कि अक्षय तृतीया का ही अपभ्रंस अकती है। अकती. अखती. आखाती. अक्षय तीज. अक्षय तृतीया। यहां यह मुख्यता से महिलाओं का त्योहार बन गया है। विशेषतः कुँवारी कन्याएँ इसमें भाग लेती हैं। वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन घर में मिट्टी के छोटे छोटे कलश, एक बड़ा कलश, भींगी हुई चने की दाल आदि रखकर पूजा करतीं। दूसरे दिन रात्रि को ग्राम के बाहर जाकर लगभग एक घंटे तक बरगद के पेड़ की पूजा करने के बाद पुतरा.पुतरिया (गुड्डा.गुड्डी) द्ध का ब्याह रचाया जाता। जिसमें विवाह की सभी रश्में की जाती। लड़कियाँ पूजा से लौटते समय रास्ते में मिलने वाले लोगों को सौन भेंट करती आती हैं। वे झुंड बनाकर घर.घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और सोन बांटतीं है।

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कोरोना महामारी की गांवों में तीव्रता से दस्तक

– संक्रमण फैलने से रोकने महायुद्ध स्तर पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी
– भारत गांव प्रधान देश है गांव में कोविड-19 इलाज का सुचारू प्रबंधन, झोलाछाप चिकित्सकों पर सख्त कार्यवाही, टीकाकरण, जनजागरण अभियान जरूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से मानव को तीव्रता से संक्रमित कर रही कोरोना महामारी के अब सिम्टम्स पर भी नियंत्रण नहीं रहा।बड़ी तेजी से सिम्टम्स का बदलना, वैश्विक रूप से बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। 2020 में जिसके कुछ सीमित सिम्टम्स से लेकिन अब 2021 में इस महामारी ने भयंकर तांडव मचाते हुए अपने सिम्टम्स में विशालता लाकर विस्तृत परिक्षेत्र में समायोजित कर मानव को घेर रही है जिसमें मानव उसको पता ही नहीं चल पाता और उसके फेफड़े संक्रमित हो चुके होते हैं।….बात अगर हम भारत की करें तो यह एक गांव प्रधान देश है हमारी करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है।

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मरीज़ों से नर्स का सौहार्दपूर्ण नाता

हर साल12 मई को हम वर्ल्ड नर्स डे मनाते है ममता का दूसरा नाम है नर्स क्यूँकि ‘स्पर्श, प्यार और परवाह दवाई का दूजा नाम जब पिलाए परिचारिका अपने हाथों से दवाई या काढ़ा मरीज़ के हर दर्द भागे छुड़ाकर तन से नाता ईश्वर ने स्त्री के भीतर ममता और संवेदना का स्त्रोत कूट.कूट कर भर दिया है। तभी तो परिवार हो या पेशन्ट सबके प्रति सौहार्द भाव से अपना कर्तव्य निभाते जादूई स्पर्श की परत लगाते दर्द से निजात दिलाने में एक नर्स का काम कर रही स्त्री माहिर होती है। इस महामारी में अपने स्वास्थ्य की और परिवार की परवाह न करते मरीज़ों की सेवा में दिन रात अपना योगदान दे रही हर परिचारिकाओं को सौ सलाम। कई जगह पर बिना वेतन के भी सरकारी अस्पताल में सेवाएं दे रही कुछ नर्स,कोरोना मरीज़ो का मुफ्त में इलाज कर निभा रहीं हैं।

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क्यों हो रही है रेमडेसिविर के लिए इतनी मारामारी? कोरोना की रामबाण दवा नहीं है रेमडेसिविर

कोरोना की दूसरी लहर भारत में इतना भयानक रूप धारण कर चुकी है कि पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट को कहने पर विवश होना पड़ा कि यह दूसरी लहर नहीं बल्कि सुनामी है और अगर हालात ऐसे ही चलते रहे तो अनुमान लगाए जा रहे हैं कि अगले कुछ महीनों के भीतर मौतों का कुल आंकड़ा कई लाखों में पहुंच सकता है। इन दिनों कोविड संक्रमण के प्रतिदिन साढ़े चार लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और हजारों लोगों की रोजाना मौत हो रही हैं। यही कारण है कि कोरोनावायरस के तेजी से बढ़ते मामलों की वजह से देशभर में अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन सिलेंडर तथा कोरोना के इलाज में बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित कुछ दवाओं की मांग में इतनी जबरदस्त वृद्धि हो गई है कि स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ने लगी हैं

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शादीशुदा बेटे की विडंबना समझो

शायद इस विषय के बारे में कोई सोच भी नहीं रहा। हर विषय, हर किरदार पर लिखा गया है पर शादीशुदा बेटे कि हालत और मन: स्थिति को शब्दों में ढ़ालना आसान नहीं। ये एक ऐसा किरदार है जिस पर दोगुनी जिम्मेदारी होती है। बेटा खुद को माँ-बाप का कर्ज़दार समझता है क्यूँकि जन्म दिया है। और पत्नी का रखवाला क्यूँकि अग्नि को साक्षी मानकर ताउम्र साथ निभाने का वचन दिया है, तो हुआ न सैंडविच।
अक्सर हम कई घरों में सास बहू को लड़ते झगड़ते देखते है। दोषारोपण और तू तू मैं मैं से शुरू होते परिस्थिति अलग होने की कगार तक आ जाती है। जब बेटे की शादी होती है तो यहाँ पर एक माँ को कुछ बातों के लिए खुद को तैयार करना जरूरी होता है। पहले तो आपका औधा एक पायदान उपर उठता है, यानी कि माँ से आप सासु माँ बनने जा रही है।

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कोविड-19 – कोरोना वैक्सीन पेटेंट संरक्षण अस्थाई रूप से सस्पेंड कर मानव प्राण बचाना जरूरी

विश्व व्यापार संगठन ने सभी देशों की सहमति बनाकर शीघ्र निर्णय लेना जरूरी
कोरोना वैक्सीन बौद्धिक संपदा अधिकार स्थगित करना जरूरी – वैक्सीन उत्पादन बढ़ेगा, मानवता का भला होगा – एड किशन भावनानी
विश्व के मानवों को कोरोना महामारी अपने फंदे में जकड़ तीव्रता से निकल रही है और हम मानव अभी तक वैश्विक रूप से आपस में ही उलझ कर रह गए हैं। हालांकि हर देश एक दूसरे की मेडिकल संसाधनों से मदद कर रहे हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्रसंघ भी हरकत में आए हैं परंतु वर्तमान समय में जरूरत है विश्व व्यापार संगठन को अत्यंत तात्कालिक रूप से सभी सदस्य 160 सदस्य देशों की सम्मिट आयोजित कर कोरोना वैक्सीन से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार को अस्थाई अवधि के लिए तात्कालिक सस्पेंड करने का प्रस्ताव पास करने की ओर ठोस कदम बढ़ाने की जरूरत है ताकि लाखों लोगों की जो विश्व स्तर पर सांसे अटकी हुई है, उन्हें जीवन दान देनेमें यह ठोस प्रस्ताव पारित कर सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा सकता है।

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सकारात्मक पहल…

यह सही है कि इस महामारी के दौर में भयानक रूप से संक्रमित हो रहे लोग और उससे भी भयानक मृत्यु के आंकड़ों ने सभी को भयभीत कर रखा है। ऐसे समय में सरकारी व्यवस्थाएं नाकाम साबित हो रही है। लोग बाग बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए परेशान हो रहे हैं। जहां लोग आपदा में अवसर तलाश कर भ्रष्टाचार और कालाबाजारी को बढ़ावा दे रहे हैं, जो मानवता को दरकिनार कर संवेदनहीन होकर सिर्फ अपना लाभ अर्जित कर रहे हैं उन्हें इंसान होने का दर्जा कतई नहीं दिया जा सकता है। उन्हें मानव समाज कभी माफ नहीं करेगा। मगर ऐसे विपत्ति के समय में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मरीजों की सेवा में जी जान से जुटे हुए हैं। इन लोगों के सेवा भाव के कारण इंसानियत पर भरोसा टिका हुआ है।

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मदर्स डे एक ज़रिया माँ के प्रति सौहार्द भाव जताने का

हर स्त्री माँ बनने के बाद ही खुद को पूर्ण महसूस करती है शिशु का आगमन स्त्री के जीवन को मायने देता है। एक माँ जब पहली बार बच्चे का मुख अपनी हथेलियों में भरती है उस सुख की चरम का वर्णन शायद शब्दों के ज़रिए मुमकिन नहीं। माँ के दिल से दुआओं का समुन्दर उठता है, खुशियों की लहर धसमसती है, आँखें नम होते भी लब मुस्कुरा देते है। अपने बच्चे के सामने दुनिया की हर खुशी बेमानी लगती है। बच्चे में अपनी दुनिया देखती माँ खुद को भी भूल जाती है।
माँ शब्द चिड़ीया के पंख सा या तितली के पर सा कितना मखमली और मक्खन सा मुलायम होता है, फूट पड़ता है बच्चे के मुँह से। माँ को देखते ही बच्चे की आँखों में सुकून और चेहरे पर आत्मविश्वास छलक जाता है। माँ की ममता का शामियाना बच्चे की पूरी दुनिया होता है। माँ के आँचल में बच्चा खुद को महफ़ूज़ महसूस करता है।

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5G से नहीं फैलता कोरोना

देश में बढ़ रही पोप्युलेशन की जरूरतों को पूरा करने के लिए आधुनिकरण ने सीमा लाँघ ली है। हर चीज़ के उत्पादन के लिए यांत्रिकरण के चलते इलेक्ट्रॉनिक और परमाणु से चलने वाले कारखानों के जंगल खड़े हो गए है। मोबाइल नेटवर्क और और वाई-फाई को घर घर तक पहुँचाने के लिए जगह जगह टावर खड़े कर दिए जाते है। जिसकी वजह से हमारे आसपास प्रदूषण और नुकसान कारक रेडिएशन की भरमार फैली है। शुद्ध हवा और शुद्ध पानी एक सपना बन गया है। हमारे आसपास कई फैक्ट्रियाँ धुआँ उगल रही है, कई टावर रेडिएशन फैला रहे है, धूल मिट्टी और गंदगी पनप रही होती है, नदी नाले झरनों में फैक्ट्रीयों का गंदा पानी बहा कर प्रदूषित कर दिया जाता है।

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राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर डालेंगे चुनावी नतीजे?

चार राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणामों का समग्रता से आकलन करें तो जहां केरल और असम में पहले से सत्तारूढ़ दल ही पुनः सत्ता हासिल करने में सफल हुए हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में 200 पार का नारा लगाकर सत्ता पाने के लिए मीडिया मैनेजमेंट और साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल कर अपनी सारी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा 80 सीटें भी नहीं जीत पाई जबकि तृणमूल कांग्रेस तीसरी बार रिकॉर्ड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी है। पुडुचेरी में भाजपा गठबंधन सरकार बनाने में सफल हुआ है लेकिन केरल में उसका खाता तक नहीं खुला और तमिलनाडु में सहयोगी अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद वह काफी पिछड़ गई, जहां एक दशक बाद जनता ने द्रमुक को शासन संभालने का अवसर दिया है। बहरहाल, इन पांच प्रदेशों के जो चुनाव परिणाम सामने आए हैं, वे आने वाले समय में न केवल इन राज्यों की राजनीति पर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा असर डालेंगे और सबसे ज्यादा असर पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों का होगा।

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