Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

अभी कठिन है डगर मन्दिर की

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्रीराम मन्दिर के पक्ष में दिये गए ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व निर्णय के बाद 491 वर्ष से चले आ रहे विवाद का अन्त भले ही हो गया हो, परन्तु मन्दिर निर्माण पर घमासान होना अभी शेष है। शीर्ष अदालत के आदेशानुसार मन्दिर निर्माण का दायित्व केन्द्र सरकार द्वारा गठित न्यास या ट्रस्ट को सौंपा जायेगा। उसके बाद यह ट्रस्ट ही तय करेगा कि मन्दिर कब और कैसे बनेगा। इस ट्रस्ट में कौन-कौन होगा इसके लिए केन्द्र सरकार ने अन्दर ही अन्दर कवायद शुरू कर दी है। इसके साथ ही ट्रस्ट में महती भूमिका निभाने तथा मन्दिर निर्माण का श्रेय लेने के लिए विभिन्न धर्मगुरु, राजनेता तथा अनेक हिन्दू संगठन भी पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। जिसकी परिणिति अन्ततोगत्वा एक दूसरे की टांग खिंचाई के रूप में होने की पूर्ण सम्भावना है।
गौरतलब है कि सन 1989 में रष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं ने भव्य राम मन्दिर निर्माण हेतु शिलान्यास करवाया था। इसमें गोरखनाथ मन्दिर के तत्कालीन महन्त अवैद्यनाथ की भी महती भूमिका रही थी। गोरखनाथ मन्दिर के वर्तमान महन्त मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ हैं। अतः ट्रस्ट में योगी आदित्यनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। वहीं संघ भी ट्रस्ट में अपनी विशेष भूमिका चाहेगा।

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सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती विशेष

सरदार वल्लभभाई पटेल जिनको लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। चूंकि भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरूष कहा गया। इनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 में हुआ। भारत के लौह पुरुष के साथ-साथ भारत का बिस्मार्क के रूप में भी जाना जाता हैं। इन्होंने आज़ादी के बाद विभिन्न रियासतों के एकीकरण में प्रमुख भूमिका निभाई और भारत के और टुकड़े होने से बचाया हैं। सरदार  वल्लभभाई  पटेल का विचार था  की,”शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।”
भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। बारडोली सत्याग्रहका नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम है।

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कुर्सी का जोड़ तोड़ बनाम जनादेश !

चुनावो से ठीक पहले आर्थिक मंदी बेरोजगारी और जनवसुली योजना अर्थात महँगे यातायात चालान ने भाजपा की लुटिया डुबाई और सचेत किया होगा। हरियाणा और महाराष्ट्रा विधानसभा चुनाव परिणाम ने भाजपा को पंगु बना दिया क्योकि अब वो जेजेपी और शिवसेना के भरोसे पर ही स्थायी सरकार बना पाएगी। अब प्रश्न ये उठता है कि क्या सचमुच महाराष्ट्र व हरियाणा में 370 कमाल नहीं कर पाया ? क्या सच में गडकरी और योगी भाजपा के लिए किरकिरी बन गए है ? क्या बेरोजगारी ने भाजपा से यूपी 2022 छिन लिया है ? आइये जरा विश्लेषण करते है।
महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों राज्यों में भाजपा ने विजय जरूर प्राप्त की। महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन को आसानी से बहुमत प्राप्त हो गया तो हरियाणा में बहुमत से 6 कदम दुर रह गई। टीवी पर बैठे पैनेलिस्टों ने बिना चुनावी डाटा के अध्ययन किए हुए यह कहना शुरु कर दिया कि धारा-370 दोनों राज्यों में कोई मुद्दा नही बन पाया।

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प्रकृति ही देगी प्लास्टिक का हल

“आदमी भी क्या अनोखा जीव है, उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता है, फिर बेचैन हो जगता है और ना ही सोता है।”  आज जब पूरे विश्व में प्लास्टिक के प्रबंधन को लेकर मंथन चरम पर है तो रामधारी सिंह दिनकर जी की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाता है । वैसे तो कुछ समय पहले से विश्व के अनेक देश सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग बंद करने की दिशा में ठोस कदम उठा चुके हैं और आने वाले कुछ सालों के अंदर केवल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का ही उपयोग करने का लक्ष्य बना चुके हैं। भारत इस लिस्ट में सबसे नया सदस्य है। जैसा कि लोगों को अंदेशा था, उसके विपरीत अभी भारत सरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को कानूनी रूप से बैन नहीं किया है केवल लोगों से स्वेच्छा से इसका उपयोग बन्द करने की अपील की है। अच्छी बात यह है कि लोग जागरूक हो भी रहे हैं और एक दूसरे को कर भी रहे हैं। 

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प्लास्टिक बंद लेकिन विकल्प क्या..?

इन दिनों प्लास्टिक विरोध की चर्चा बहुत जोरों पर है और होनी भी चाहिए जो हमारे पर्यावरण और जनजीवन को नुकसान पहुंचा रहा हो उसका विरोध होना लाजमी है। प्लास्टिक की पन्नी से कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है इससे सभी अवगत हैं। गाय प्लास्टिक खा जाती हैं जो उनकी मृत्यु का कारण बनता है यहां वहां फैली प्लास्टिक कचरे के साथ साथ बीमारियों को भी जन्म देती है। नदियों का दूषित होना जिसकी वजह से पानी में रहने वाले जंतु मरते जा रहे हैं। ये वजह काफी है प्लास्टिक विरोध के लिए। बारिश में जब बाढ़ आती है या नदियां उफान पर होती है और बाद में जब पानी का स्तर अपने वास्तविक रूप में आता है तो नदियों के किनारे या सड़कों के किनारे पर जगह-जगह प्लास्टिक और गंदगी बिखरी पड़ी रहती है जिससे दुर्गंध और बीमारियां फैलती है इस लिहाज से प्लास्टिक किसी भी तरह से उपयोगी नहीं है।

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मानव का ‘मन’ सबसे अच्छा तीर्थस्थान है!

मनुष्य का जन्म तो सहज होता है लेकिन मनुष्यता उसे कठिन परिश्रम से प्राप्त करनी पड़ती है। सब कुछ हमारे अंदर स्थित मन रूपी तीर्थस्थान में ही है। स्वर्ग-नरक कहीं बाहर या आसमान में नहीं वरन् हमारे मन में ही है। यदि मन में हमने ईश्वरीय विचारों को बसा रखा है तो हमारे अंदर ही स्वर्ग है। यदि हमने अपने मन में स्वार्थ से भरे विचार भर रखे हैं तो जीवन नरक के समान है। हम संसार के किसी भी तीरथ में चले जाये यदि हमारे मन में अशांति है तो किसी भी तीरथ में शांति नहीं मिल पायेगी। क्योंकि हम अशांति की अपनी पूंजी साथ-साथ लेकर जायंेगे। अन्त में हम इस निष्कर्ष में पहंुचते है कि मानव का मन सबसे अच्छा तीर्थस्थान है।  मानव प्राणी अपने प्रभु से पूछे किस विधि पाऊँ तोहे, प्रभु कहे तू मन को पा ले, पा जायेगा मोहे। आइये, मन के महत्व को एक सुन्दर भजन की इन पंक्तियों द्वारा समझते हैं – तोरा मन दर्पण कहलाये भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये। मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय। मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय। इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये। सुख की कलियाँ, दुख के कांटे, मन सबका आधार। मन से कोई बात छुपे ना, मन के नैन हजार। जग से चाहे भाग ले कोई, मन से भाग न पाये। तन की दौलत ढलती छाया मन का धन अनमोल। तन के कारण मन के धन को मत माटी मंे रौंद। मन की कदर भुलाने वाला हीरा जनम गवाये।  मानव शरीर भगवान् की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म भगवान का हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार है। जीवन को छोटे उद्देश्यों के लिए जीना तो जीवन का अपमान है। अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों को भुलाकर उसे समाज विरोधी कामांे, भोग एवं वासनाओं में लगाना बेहोशी में जीवन बर्बाद करने के समान है। जीवन अनन्त है हमारी शक्तियाँ भी अनन्त हंैं, हमारी प्रतिभाएँ भी अनन्त हैं। ऐसा मानना है कि हम अपनी मानसिक शक्तियों का मात्र 1 प्रतिशत से अधिकतम 8 प्रतिशत तक ही उपयोग कर पाते हैं। अभी तक संसार का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति 8 प्रतिशत तक ही अपनी बुद्धि का उपयोग कर पाया है। यह मानव जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है कि मनुष्य की 92 प्रतिशत बुद्धि सुप्त अवस्था में ही है। कैरियर, नौकरी या व्यवसाय के द्वारा हम अपने अंदर के संगीत को बिना खुलकर तथा खिलकर अभिव्यक्त किये अपनी कब्र में साथ लेकर चले जाते हंै। सिकुड़कर जीना प्रभु प्रदत्त अनमोल हीरे जैसे जीवन को कोयले के मूल्य में आंकना के समान है।  मेरा शरीर मैं नहीं हूँ, शरीर मेरा मित्र है। मेरा मन मैं नहीं हूँ, मन मेरा औजार है। हवेली में जब मालिक आता है तो सारे नौकर आलस्य छोड़कर अपने काम में लग जाते हैं। अर्थात जब हमारे शरीर रूपी मंदिर से होने वाले प्रत्येक कार्य-व्यवसाय आत्मा की इच्छा तथा आज्ञा के अनुसार होते हैं तो पांचों इन्द्रियां (आंख, कान, नाक, जीभ तथा स्पर्श) तथा छठीं इंद्रिय मन रूपी नौकर अपने-अपने कार्यों को अखण्ड आज्ञाकारी सेवक की तरह करते हुए महान उद्देश्य की प्राप्ति कराते हैं। इसलिए जरूरी है कि हमें शरीर रूपी मंदिर में आत्मा के रूप में ईश्वर की स्थापना करनी चाहिए। सारे कार्य ईश्वर की इच्छा तथा आज्ञा के अनुकूल होने चाहिए।  संसार में मिट्टी, पत्थर, लोहे तथा गारे से बने जिन मंदिरों, मस्जिदों, गिरजों तथा गुरूद्वारों में हम श्रद्धा के साथ जाते हैं। ये मनुष्य ने सामूहिक रूप से किसी पवित्र स्थान में बैठकर पूजा, पाठ, इबादत, नमाज, प्रेयर, सबत आदि करने के लिए बनाये हैं। ये मंदिर, मस्जिद, गिरजा तथा गुरूद्वारा मनुष्य द्वारा निर्मित हंै तथा मानव शरीर रूपी मंदिर, मस्जिद, गिरजा तथा गुरूद्वारा ईश्वर निर्मित हैं। इस ईश्वर निर्मित मानव शरीर को सर्वोच्च महत्व देना चाहिए क्योंकि शरीर के द्वारा ही जीवन के महान उद्देश्य अपनी आत्मा का विकास किया जा सकता है।   शरीर के ऊपर इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के ऊपर मन, मन के ऊपर बुद्धि, बुद्धि के ऊपर आत्मा का स्थान होना चाहिए। इसके क्रम के बिगड़ने से जीवन असंतुलित हो जाता है। शरीर से लेकर आत्मा तक के सही क्रम को कायम रखने के लिए हमें स्वयं के सत्य अर्थात मैं कौन हूं? इस संसार में किस महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आया हूं?, पांच इन्द्रियों (आंख, कान, नाक, जीभ तथा स्पर्श) के सत्य तथा मनोशरीर यंत्र के सत्य का ज्ञान होना चाहिए। हमारा जीवन संसार में इन्हीं सत्यों की वास्तविकताओं के चारों तरफ घूमता है। असहज मन जब हमारे जीवन को अपनी मर्जी के अनुसार चलाने लगता है तब जीवन अनेक कठिनाइयों तथा दुखों से घिर जाता है। इसलिए हमें मन को अपना बनाने के लिए कार्य करना चाहिए। मन हमारा अकंप हो, मन हमारा प्रेम से भरा हो, मन हमारा निर्मल हो तथा मन हमारा अखण्ड आज्ञाकारी हो। आत्मा ईश्वरीय गुणों के प्रकाश से प्रकाशवान होती है। प्रकाशित आत्मा संसार से ‘और अधिक की चाह’ को समाप्त कर ‘सब कुछ अंदर है’ के विश्वास को जगाती है। हमें प्रभु की इच्छा को अपनी इच्छा बनाना चाहिए ना कि अपनी इच्छा को प्रभु की इच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। गीता हमें सीख देती है कि अब कर्म करते हुए फल की इच्छा नहीं करना चाहिए वरन् अब यज्ञ करना चाहिए। अर्थात सीधे अपने स्रोत से महाफल की चाह के साथ महाकर्म करना चाहिए।  एक व्यक्ति एक संत के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचा। उस व्यक्ति ने संत से दुःखी होकर निवेदन किया कि उसकी प्रबल इच्छा है कि वह अपने जीवन काल में एक सुन्दर तथा भव्य मंदिर बनाये। लेकिन उस भव्य मंदिर को बनाने के लिए उसके पास पैसा नहीं है। संत ने मुस्कराकर उससे कहा कि तुम्हें दुःखी होने के कोई आवश्यकता नहीं है। बस तुम एक काम करो अपने मन को ही भगवान का मंदिर बनाने का निर्माण कार्य इसी क्षण से शुरू कर दो। यदि उसके बाद भी तुम्हारे अंदर और मंदिरों का निर्माण करने की इच्छा जाग्रत हो तो अपने आसपास के लोगों के जीवन को भी इसी प्रकार अच्छा बनाने के लिए निरन्तर मनोयोगपूर्वक लगे रहना। संत के सुझाव से उस दुःखी व्यक्ति की समस्या का समाधान सहजता से हो गया।  मन रूपी मंदिर को बनाने में कोई खर्चा नहीं आता केवल हृदय को पवित्र बनाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए मस्तिष्क से हृदय तक 13 इंची सुंरग खोदकर हृदय से मस्तिष्क तक आध्यात्मिक मार्ग बनाना चाहिए। सबसे पहले कोई विचार हृदय से उठता है, फिर वह मस्तिष्क में जाता है, जहां उस विचार की मस्तिष्क के द्वारा मालिश-पालिश होती है।

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पुतला रावण का ही क्यों जलाते हैं हम हर साल, मन के रावण को भी मारें आओ हम इस बार।

बुराई पर अच्छाई के विजय प्रतीक के रूप में प्रतिवर्ष अश्विन शुक्ल की दशमी को मनाये जाने वाले पर्व विजयदशमी की प्रासंगिकता संदेहास्पद प्रतीत होती है। हम इस दिन रावण, मेघनाद और कुंभकरण के प्रतीकात्मक पुतलों को जलाकर दशहरा त्योहार की औपचारिकता पूर्ण कर लेते हैं। वास्तव में यह पर्व दस प्रकार के पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों के त्याग की प्रेरणा देता है। हम अपने अंदर रखतबीज जैसे पनप रहे इन दस रावण में से संभवत किसी एक का भी संहार नहीं कर पाते हैं। यदि ऐसा कर पाते तो संस्कार, संस्कृति और सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देश का वर्तमान स्वरूप ऐसा न होता। यद्यपि विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में हमने अपार सफलता प्राप्त की है और विश्व में अपनी उपस्थिति दर्ज की है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि विश्व के ऐसे बहुत से देश हैं जिन्होंने इन क्षेत्रों में अपनी धाक जमाई है फिर भी ऐसा क्या है की विदेश भी हमारे आगे नतमस्तक हैं स्पष्ट है कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही है जो लोगों का ध्यान आकृष्ट करती हैं। लेकिन चारों ओर व्याप्त भ्रष्टाचार ,छल कपट, जाति धर्म के नाम पर हो रहे बवाल, मासूमों पर होते अत्याचार, मोब लीचिंग की घटनाएं, हमारी धरोहर और पहचान माने जाने वाले नैतिक मूल्यों की विलुप्ति इत्यादि आज भी हमें जग सिरमौर बनने से रोक रहे हैं।
राम का वेश धारण कर आजकल जाने कितने रावण घूम रहे हैं। भ्रष्टाचार,व्यभिचार सुरसा की तरह मुंह बाए खड़े हैं । सत्य का बोलबाला, झूठे का मुंह काला जैसी कहावतें और लोकोक्तियों का तो जैसे कोई अर्थ ही नहीं रह गया है। दिलों में नफरतों का सैलाब लिए लोग गले मिल रहे हैं रिश्तो का अवमूल्यन होता जा रहा है जाने कितने रावण और सोने की लंका आज भी सांसे ले रहे हैं। कहा जाता है कि यदि रावण का वध भगवान श्रीराम ने न किया होता तो सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो जाता। यदि समय रहते हमने अपने अंदर फल फूल रहे अवगुण रूपी रावण का संहार नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश की आन बान का सूर्य अस्त होने से कोई नहीं रोक सकेगा । कलयुग में कोई राम या हनुमान नहीं आएगा जो कुछ भी करना है हमें मिलजुलकर करना है।अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा है। बस आवश्यकता है तो दृढ़ संकल्पित होने की।

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दोष किसका..

हममें से ऐसे कितने लोग हैं जो रामायण पढ़ते हैं या चौपाइयां जानते हैं?
हंसी मजाक तक तो बात ठीक है लेकिन सोनाक्षी सिन्हा का ट्रोल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है… सेलिब्रिटी है… मीडिया पर हैं इसलिए लोगों के सामने आ गई लेकिन ये सच बात है कि आज हमारे बच्चे कितना रामायण महाभारत गीता यह सब पढ़ते हैं? और कितनी जानकारी है उन्हें? बच्चों की छोड़िए हममें से ऐसे कितने लोग हैं जो रामायण पढ़ते हैं या चौपाइयां जानते हैं? या उनका अर्थ जानते हैं? और चलिए मान भी लिया कि हम पढ़ते हैं.. हमें जानकारी है तो हम अपने बच्चों को कितना प्रेरित करते हैं कि वो रामायण, गीता पढ़ें। अब तो वो वक्त रहा नहीं जब बच्चों को दादी नानी रात में अपने पास में लेकर भगवान की कहानियां सुनाती थीं। तब बच्चों को बहुत सी जानकारियां कहानियों से ही मिल जाती थी बिना पढ़े। मुझे याद है मेरी ताई जी जो बहुत ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन रामायण पढ़ती थी और बाद में हिंदी में उसका मतलब भी हमें समझाती थी। यह बचपन की बात है बाद में हम धीरे-धीरे व्यस्त होते गए… इतना वक्त नहीं रहा कि ये सब पढ़ें। बच्चे सीरियल और किताबों के जरिए जो जानकारी हासिल कर ले वह बहुत है और आजकल टीवी पर भी धार्मिक सीरियलों में पूरा सच नहीं दिखाते हैं।

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केवल जन आन्दोलन से प्लास्टिक मुक्ति अधूरी कोशिश होगी

प्लास्टिक का बेहतर विकल्प प्रस्तुत करना होगा
वैसे तो विज्ञान के सहारे मनुष्य ने पाषाण युग से लेकर आज तक मानव जीवन सरल और सुगम करने के लिए एक बहुत लंबा सफर तय किया है। इस दौरान उसने एक से एक वो उपलब्धियाँ हासिल कीं जो अस्तित्व में आने से पहले केवल कल्पना लगती थीं फिर चाहे वो बिजली से चलने वाला बल्ब हो या टीवी फोन रेल हवाईजहाज कंप्यूटर इंटरनेट कुछ भी हो ये सभी अविष्कार वर्तमान सभ्यता को एक नई ऊंचाई, एक नया आकाश देकर मानव के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव का कारण बने। 1907 में जब पहली बार प्रयोगशाला में कृत्रिम “प्लास्टिक” की खोज हुई तो इसके आविष्कारक बकलैंड ने कहा था, “अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मेरा ये अविष्कार एक नए भविष्य की रचना करेगा।” और ऐसा हुआ भी, उस वक्त प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने अपने मुख्य पृष्ठ पर लियो बकलैंड की तसवीर छापी थी और उनकी फोटो के साथ लिखा था, “ये ना जलेगा और ना पिघलेगा।”

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तन्हाई

पंसद है मुझे यूँ तन्हा रहना,
यूँ अकेले अपने आप से बात करना,
सोचकर कभी किसी बात को,
आ जाती है चेहरे पर मुस्कान कभी,
तो बहने लग जाती हैं अचानक ही आंसुओं की धारा कभी,
उठाती हूँ सुबह चाय की प्याली को हाथ से जब,
तो काँपने लग जाते हैं ये दो लब मेरे तब,
उठ जाती हूँ रात के किसी भी पहर अब,
और करती हूँ शुरू गिनती तारों की आसमां में तब
कभी ये तन्हाई नासूर बन जाती है,
तो कभी जीने का मकसद दे जाती है
मोनिका जैन द्वारका (दिल्ली)

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