खुशी का कोई भौतिक स्वरूप नहीं है, वो एक भाव है जो दिखाई नहीं देता तो वो इन भौतिक चीजों में मिलती भी नहीं है। वह मिलती भी उन्हीं भावों में है जो दिखाई नहीं देते।
हमारी संस्कृति ने हमें शुरु से यह ही सिखाया है कि खुशी त्याग में है,सेवा में है, प्रेम में है मित्रता में है, लेने में नहीं देने में है, किसी रोते हुए को हँसाने में है, किसी भूखे को खाना खिलाने में है।
जो खुशी दोस्तों के साथ गली के नुक्कड़ पर खड़े होकर बातें करने में है वो अकेले माल में फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने में भी नहीं है।
ताजा ग्लोबल हैप्पीनैस इंडैक्स में 155 देशों की सूची में भारत 122 स्थान पर है। भारत जैसा देश जहाँ की आध्यात्मिक शक्ति के वशीभूत विश्व भर के लोग शांति की तलाश में खिंचे चले आते हैं , उस देश के लिए यह रिपोर्ट न सिर्फ चैकाने वाली है बल्कि अनेकों प्रश्नों की जनक भी है।
यह समय हम सभी के लिए आत्ममंथन का है कि सम्पूर्ण विश्व में जिस देश कि पहचान अपनी रंगीन संस्कृति और जिंदादिली के लिए है, जिसके ज्ञान का नूर सारे जहाँ को रोशन करता था आज खुद इस कदर बेनूर कैसे हो गया कि खुश रहना ही भूल गया?
आज हमारा देश विकास के पथ पर अग्रसर है, समाज के हर वर्ग का जीवन समृद्ध हो रहा है, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुई हैं, भौतिक सुविधाएं अपनी श्रेष्ठता पर हैं, मानव ने विज्ञान के दम पर अपने शारीरिक श्रम और कम्प्यूटर के दम पर अपने मानसिक श्रम को बहुत कम कर दिया है तो फिर, ऐसा क्यों है कि सुख की खोज में हमारी खुशी खो गई? चैन की तलाश में मुस्कुराहट खो गई? क्यों हम समझ नहीं पाए कि यह आराम हम खरीद रहे हैं अपने सुकून की कीमत पर।
लेख/विचार
आर्थिक समृद्धि के शिखर पर गरीबी और हिंसा
– पंकज के. सिंह
भ्रष्टाचार एवं कालेधन से मुक्त एक संतुलित एवं स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए बैंकिंग सुधार एक आवश्यक शर्त है। विकसित देशों ने बैंकिंग सुधार की दिशा में काफी उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए सामयिक एवं प्रासंगिक बैंकिंग सुधार एक बड़ी चुनौती है। स्विटजरलैंड ने अपनी बैंकिंग प्रणाली से अवैध धन को दूर रखने के लिए इसकी निगरानी और अन्य कानूनी प्रयास तेज कर दिया है। भारत और कुछ अन्य देशों द्वारा स्विस बैंकों में छिपाकर रखे गए काले धन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दिए जाने के बाद इस यूरोपीय देश ने इस मुद्दे पर सख्ती बरतने का फैसला किया है। वित्त बाजार पर्यवेक्षण प्राधिकरण के अनुसार, यह फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब कई स्विस संस्थाओं को ग्राहकों द्वारा दी गई टैक्स संबंधी जानकारी गलत पाई गई है। वित्त बाजार पर्यवेक्षण प्राधिकरण को मनी लांड्रिंग पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी भी दी गई है।
स्विटजरलैंड इन दिनों टैक्स मामले पर भारत और कुछ अन्य देशों के साथ आपसी सहयोग बढ़ाने के प्रयास कर रहा है। कर चोरी के मामलों को लेकर कई स्विस बैंकों पर अदालतों में मामले चल रहे हैं। प्राधिकरण ने कहा कि सीमा पार से धन प्रबंधन को लेकर 2014 में अंतरराष्ट्रीय दबाव बना रहा। वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षो में भी वित्तीय क्षेत्र पर यह दबाव बना रहेगा। इसने कहा कि अमेरिका की तर्ज पर चलते हुए जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम और अर्जंेटीना ने हाई प्रोफाइल आपराधिक जांच की शुरूआत की है। साथ ही भारत और इजरायल ने आपराधिक जांच शुरू करने की धमकी दी है। नियामक संस्था स्वयं भी इन मामलों पर अपनी निगाह बनाए हुए है।
हृदयनरायण दीक्षितः राजनीति में कैद सांस्कृतिक चेतना का शिखर पुरूष
उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के रूप में दीक्षित जी सदन का गौरव बढ़ायेंगे।
-एम. अफसर खां सागर
वह जो ठान लेते हैं, वही करते हैं। उनका व्यक्तित्व सागर के समान सरल है, तो कृतित्व पर्वत के समान अटल। उनके जीवन का कोई भी पहलू आसान नहीं है। विशाल व जीवट अस्तित्व के गढ़े एक दिलचस्प व सरल व्यक्त्वि के धनी हैं हृदयनरायण दीक्षित। इनके चिंतन व लेखन से भारत का सम्पूर्ण हिन्दी भाषी समाज परिचित है। सामाजिक समरस्ता, सांस्कृतिक चिंतन, वैदिक व्याख्या के पर्याय है दीक्षित जी। हिन्दी पत्रकारिता के शिखर पर दीक्षित जी का नाम स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। बहुत विरले ही होते हैं वो इंसान जो राजनीतिक झंझावतों के बावजूद देश के पचासों अखबारों के लिए नियमित स्तम्भ लिख कर समाज को दिशा देने का काम करते हैं। हृदयनरायण दीक्षित की पत्रकारिता को यही अवदान है कि उनके पत्रकारिता जीवन पर डॉ अनुभव अवस्थी ने शोध कर पीएचडी की डिग्री हासिल किया है। अनुभव द्वारा लिखित ‘हृदयनरायण दीक्षित और उनकी पत्रकारिता’ नमक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसके अलावा दीक्षित जी के पत्रकारिता पर अनुभव के आठ शोधपत्र भी छपे हैं। दीक्षित जी का मानना है कि समाज सेवा के लिए राजनीति में सक्रिय हूं और भारतीय संस्कृतिमूलक विचार संवर्द्धन के लिए पत्रकारिता में। निःसंदेह दीक्षित जी विश्व में भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े व्याख्याता हैं। इन्हें 21वीं सदी का दीनदयाल उपाध्याय कहा जाता है, जिसे सभी राजनीतिक दल के लोग स्वीकार भी करते हैं। उत्तर प्रदेश विधानसा अध्यक्ष के पद पर दीक्षित जी का चयन सबसे योग्य व्यक्ति का चयन है। सदन का लम्बा अनुभव के साथ संसदीय कार्यों की बेहतर व सटीक जानकारी है इनके पास। सदन के सफल संचालन में इनका तजुर्बा व ज्ञान काम आयेगा।
‘योगी के अपराध मुक्त सपनों का यूपी बना सकते हैं सूर्य कुमार’
डीजीपी के रूप में अपराध नियंत्रण व कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाने में कारगर साबित होंगे।
एम. अफसर खां सागर
जिसका ओढ़ना-बिछौना ही पुलिसिंग है। जो दिन रात पुलिस महकमा को आमजन के दुख-दर्द को बांटने वाला बनाने के लिए लगा रहता हो। जिसकी छवि बेदाग व ईमानदार के साथ मिलनसार भी है। जिसे कम्यूनिटी पुलिसिंग में महारत हासिल है। यह नाम है डा0 सूर्य कुमार का। यूपी कैडर के 1982 बैच के वरिष्ठतम् आईपीएस डा0 सूर्य कुमार को इनकी बहादुरी और सूझ-बूझ के लिए महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अनेक बार सम्मान किया जा चुका है। इन्होने पुलिस विज्ञान में शोध किया है। अनेक ग्रंथो के रचयिता सूर्य कुमार कम्युनिटी पुलिसिंग के लिए जाने जाते हैं। अपराध नियंत्रण व सटीक निशानदेही में इन्हे महारत हासिल है। आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक को अपनाते हुए ये पुलिस महकमे को अपराध नियंत्रण के काबिल बनाने में कारगर सबित होंगे।
प्रखर राष्ट्रवादी डा0 सूर्य कुमार वर्तमान में पुलिस महानिदेशक अभियोजन, उत्तर प्रदेश के पद पर कार्यरत हैं। ये लगातार अपराधियों के खिलाफ बेहतर पैरवी करावा कर तथा गवाहों को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराकर भारी संख्या में मुल्जिमों को सजा कराने में विगत वर्षों में सफल हुए हैं। नियमित कार्यशाला का आयोजन कर पूरे प्रदेश भर में अभियोजन विभाग के सथा आम लोगों को जागरूक करने का काम किया है।
समाजवादी विचार धारा से सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे डा.लोहिया
जयंती पर विशेष- डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म 23 -03-1910 में अकबरपुर गाँव में हुआ था। उन्होंने राजनीति में प्रवेश सन् 1920 में तिलक दिवस पर मुम्बई में एक विद्यालय में हड़ताल करवाकर की थी तथा सक्रिय राजीनीति की शुरुआत सन् 1928 में साइमन कमीशन वापस जाओ आंदोलन में भाग लेकर की थी।
डॉ. लोहिया समाजवादी विचार धारा के जरिये सामजिक परिवर्तन लाना चाहते थे।
डॉ. लोहिया कहते थे कि हे भारत माता शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का ह्रदय तथा राम का कर्म और वचन दो।
डॉ. लोहिया का मानना था कि सामजिक और आर्थिक समानता एक स्वस्थ समाज के लिए पहली जरूरत है जिसके बिना बिना मानव का सर्वांगीण विकास हो पाना सम्भव नहीं है।
डॉ. लोहिया के समाजवाद के चिंतन में समाज की सबसे निचली पायदान पर खड़ा व्यक्ति सबसे अधिक महत्व पूर्ण था परंतु आज के समय समय में निचले पायदान पर रहने बाले व्यक्तियों का शोषण हो रहा है जिसकी दशा पर चिंतन करने वाला कोई नहीं है। डॉ. लोहिया ने अपने जीवन में निजी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को कभी महत्व नहीं दिया समाज के हर तबके के साथ एकाकार होकर चलना ही उनकी राजनीति थी।
सरकारी मशीनरी के पुराने ढर्रे में बदलाव लायें योगी
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए। सभी प्रदेशों की सरकारें बन गईं लेकिन उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिले प्रचण्ड बहुमत ने भाजपा के सामने कई चुनौतियां भी खड़ी कर दीं हैं। ऐसा माना जाता है कि देश की राजनीति उत्तर प्रदेश से चलती है लेकिन यहां की जनता परिवर्तन करने में देर नहीं लगाती। बिगत कई उदाहरणों ने स्पष्ट कर दिया है कि यहां की जनता परिवर्तन करने में जरा भी हिचक भी नहीं रखती। भाजपा को प्रचण्ड बहुमत मिलना इसका जीता जागता उदाहरण है। पिछली सपा सरकार के कार्यकाल की अगर बात करें तो ‘काम बोलता है’ को पूरी तरह से नकारते हुए सूबे की जनता ने मोदी में अपनी रूचि दिखाई और अनुमान से अधिक सीटों पर विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया। अबकी बार के चुनाव नतीजों पर यह कहना अनुचित नहीं होगा कि मोदी ने भावनात्मक बयार को फैलाते हुए सूबे की जनता को अपने विश्वास में लिया और अखिलेश व राहुल के गठबन्धन की धज्जियां उड़ा दीं। कहने का मतलब है कि सूबे की जनता धार्मिकता को ज्यादा पसन्द करती है, शायद इसी लिए पार्टी के चर्चित चेहरों को जो मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे दिख रहे थे सबको किनारे करते हुए मोदी जी ने कट्टर हिन्दूवादी छवि रखने वाले योगी जी को सूबे की कमान सौंप दी है। हालांकि पार्टी में सन्तुलन साधने के लिए दो उपमुख्यमंत्री भी बनाये गए, वहीं मन्त्रिमण्डल में भी जातीय सन्तुलन को ध्यान में रखा गया।
Read More »महिलाओं का संघर्ष तो माँ की कोख से ही शुरु हो जाता है
महिलाओं ने स्वयं अपनी ‘आत्मनिर्भरता ‘ के अर्थ को केवल कुछ भी पहनने से लेकर देर रात तक कहीं भी कभी भी कैसे भी घूमने फिरने की आजादी तक सीमित कर दिया है। काश कि हम सब यह समझ पांए कि खाने पीने पहनने या फिर न पहनने की आजादी तो एक जानवर के पास भी होती है। लेकिन आत्मनिर्भरता इस आजादी के आगे होती है, हमारी संस्कृति में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा जाता है।
अगर आँकड़ों की बात करें यह तो हमारे देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अनेक कानून और योजनाएं हमारे देश में बनाई गई हैं लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि हमारे देश की महिलाओं की स्थिति में कितना मूलभूत सुधार हुआ है।
चाहे शहरों की बात करें चाहे गांव की सच्चाई यह है कि महिलाओं की स्थिति आज भी आशा के अनुरूप नहीं है। चाहे सामाजिक जीवन की बात हो, चाहे पारिवारिक परिस्थितियों की,
चाहे उनके शारीरिक स्वास्थ्य की बात हो या फिर व्यक्तित्व के विकास की,
महिलाओं का संघर्ष तो माँ की कोख से ही शुरु हो जाता है।
हास्य-व्यंग्य : हमें गर्व है कि हम गधे हैं……..
23 फरवरी के बाद से जंगल के राजा की नीद उड़ी हुई थी। अपने प्रकृति निर्मित आवास के शयनकक्ष में आज सुबह से ही इधर से उधर चक्कर पे चक्कर मारे जा रहे थे। दो, तीन बार बाहर भी झाँक आये थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों। बच्चों के साथ छू-छू खेल रही महारानी तिरछी निगाहों से बड़ी देर से उन्हें निहार रही थीं। आखिर उन्होंने पूंछ ही लिया “क्या बात है प्राणनाथ, बड़े परेशान दिखायी दे रहे हो? क्या किसी ने आपकी गैरत को ललकारा है जो इतने व्यग्र हो रहे हो, मुझे आदेश दीजिये प्राणेश्वर, कौन है गुस्ताख, मै एक ही पंजे से उसके प्राण पखेरू कर दूंगी”। चेहरे पर परेशानी का भाव लिये महाराज ने महारानी की ओर देखा और बोले “नहीं ऐसा कुछ भी नहीं करना है महारानी, कोई विशेष बात नहीं है। गजराज को बुलाया है, उनके आने के बाद ही कुछ सोचूंगा“ , “ऐसा क्या है जो आप मुझे नहीं बताना चाहते हैं ?” महारानी के इतना पूंछते ही दरबान लकड़बग्घा आ गया और सर झुकाकर बोला “महाराज की जय हो, महामन्त्री गजराज पधारे हैं, आपका दर्शन चाहते हैं, सेवक के लिए क्या आदेश है महाराज” , “ठीक है उन्हें अन्दर भेज दो“, “जो आज्ञा महाराज“ कहते हुए लकड़बग्घा चला गया। थोड़ी देर में गजराज आ गये उन्होंने महाराज का अभिवादन किया “आओ गजराज आओ, बड़ी देर कर दी आने में“, “कुछ नहीं महाराज, दरअसल हमारे पड़ोस में बनबिलार और बन्दर में सुबह-सुबह विवाद हो गया था, बस उन्हीं को शान्त कराने के चक्कर में थोड़ी देर हो गई” , “अच्छा-अच्छा, निपट गया, क्यों लड़ गये थे दोनों ?”, “कुछ नहीं महाराज, बस यूँ ही गधे के चक्कर में…….”, “ग..ग..ग..गधे के चक्कर में“ कहते हुए महराज को जैसे चक्कर आ गया हो।
Read More »यह कैसी पढ़ाई है और ये कौन से छात्र हैं
आजादी का मतलब बेलगाम होना कतई नहीं होता। दुनिया का हर आजाद देश अपने संविधान एवं अपने कानून व्यवस्था के बन्धन में ही सुरक्षित होता है। आजादी तो देश के हर नागरिक को हासिल है अगर आप आजाद हैं अपनी अभिव्यक्ति के लिए तो दूसरा भी आजाद है आपका प्रतिकार करने के लिए। वह भी कह सकता है कि आप उनके विरोध का विरोध करके उसकी आजादी में दखल दे रहे हैं।
9 फरवरी 2016 में जेएनयू के बाद एक बार फिर 21 फरवरी 2017 को डीयू में होने वाली घटना ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्यों हमारे छात्र संगठन राजनैतिक मोहरे बनकर रह गए हैं और इसीलिए आज एक दूसरे के साथ नहीं एक दूसरे के खिलाफ हैं।
इन छात्र संगठनों का यह संघर्ष छात्रों के लिए है या फिर राजनीति के लिए?
इनकी यह लड़ाई शिक्षा नौकरी बेरोजगारी या फिर बेहतर भविष्य इनमें से किसके लिए है?
इनका विरोध किसके प्रति है भ्रष्टाचार भाईभतीजावाद या फिर गुंडागर्दी ?
इनका यह आंदोलन किसके हित में है उनके खुद के या फिर देश के?
अफसोस तो यह है कि छात्रों का संघर्ष ऊपर लिखे गए किसी भी मुद्दे के लिए नहीं है।
चिकित्सा – मानवता से जुड़ा एक पेशा
मनुष्य, जीवन जीने के लिए किसी न किसी विधि से उपार्जन करता है l इसके लिए वह विभिन्न पेशों, व्यवसायों या कार्यों का चुनाव करता है लेकिन मानवीय दृष्टि से अगर कोई पेशा या कार्य सबसे ज्यादा पवित्र, उत्तरदायित्वपूर्ण व संवेदनपूर्ण होता है तो वह है चिकित्सक का पेशा l किसी भी मानव या जीव को सबसे ज्यादा प्रिय उसके प्राण होते हैं और इस दृष्टिकोण से सृष्टि में ईश्वर के बाद अगर किसी का स्थान आता है तो वह है एक चिकित्सक का … जो अपनी सेवा और हुनर से मरते हुए इन्सान को बचाकर नया जीवन देता है l यही एक चिकित्सक का धर्म भी होता है पर आज चिकित्सा भी एक धंधा बन गया है .. मरीज़ों के शोषण का l कारण तो एक हीं है कि, पैसा आज मानवीय मूल्यों, भावों और सरोकारों से ऊपर हो चुका है किन्तु इसके आलावा मेडिकल कॉलेजों की कम संख्या, चिकित्सा की पढाई में होने वाला भारी खर्च, न्यूनतम सीटें आदि अनेक वजहें भी इसके लिए जिम्मेवार है l मानवीयता जैसे गुण और सेवा-भाव के प्रति समर्पण जैसी भावना एक तो वैसे हीं लोगों में बहुत कम रह गए हैं ऊपर से इन्ट्रेंस टेस्ट में इन चीजों को वरीयता देने की कतई जरूरत नहीं समझी जाती जबकि चिकित्सा क्षेत्र के लोगों का यही चरम लक्ष्य और प्रयोजन भी होना चाहिए l
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