♦जाँच टीम ने कई वाहनों का किया चालान, कई को किया सीज।
कानपुर: जन सामना संवाददाता। बिगत दिनों जिले के बिल्हौर क्षेत्र अन्तर्गत अरौल में घटित हादसे का संज्ञान लेते हुए सम्भागीय परिवहन के अधिकारियों ने स्कूली वाहनों के मानकों की चेकिंग के लिये अभियान शुरू कर दिया है। इसी क्रम में शुक्रवार को आरटीओ प्रवर्तन की टीम ने शहर के विभिन्न स्थानों पर चेकिंग अभियान चलाया। इस दौरान 9 वाहनों का चालान किया गया एवं दो स्कूली वाहनों को सीज करने की कार्यवाही की गई।
एआरटीओ प्रवर्तन कहकशा खातून ने बताया कि अरौल में स्कूल की वैन हादसे का शिकार हो गई थी, यह घटना बहुत ही दर्दनाक और दुःखद है। जिससे विभाग पूरी अपनी संवेदना प्रकट करता है।
उन्होंने बताया कि सड़क सुरक्षा माह का कार्यक्रम 15 जनवरी से 14 फरवरी 2024 तक चलाया जा रहा है जिसमें प्रमुख रूप से वाहन चलाने को लेकर को जानकारियां व पत्रक देकर उन्हें जागरूक करने का कार्य किया जा रहा है। स्कूली वाहन जो कि दुर्घटना ग्रस्त हुआ है उस वाहन की जांच और स्कूल प्रबंधन से वाहन व ड्राइवर के बारे में जानकारी ली जा रही है। दुर्घटनाओं में कमी लाने और लोगो को जागरूक करने का कार्य भी किया जा रहा है।
बताते चलें कि एआरटीओ प्रवर्तन कहकशा खातून, पीटीओ मानवेन्द्र प्रताप सिंह, आर. के. निगम ने शहर के विभिन्न स्थानो पर चेकिंग अभियान चलाया जिसमें मानक के विपरीत स्कूली वाहनों के प्रति चालान की कार्यवाही की गई और दो स्कूली वाहनों को अर्मापुर थाने में सीज किया गया।
उन्होंने बताया है कि सभी स्कूलों को नोटिस दिया जा रहा है जिनकी गाड़ियां अनफिट हैं और मानक पूरे नहीं है वह जल्द उसे पूरा कर ले अन्यथा विभाग द्वारा कठोर कार्यवाही की जाएगी।
अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को घरों से स्कूल और स्कूल से घरों तक बच्चों को ले जाने वाले वाहनों के बारे में जानकारी रखना क्या सिर्फ सम्भागीय परिवहन निगम का ही कार्य है ? जो जवाब यह है कि नहीं !
बच्चों के अभिभावकों की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अभिभावक को बच्चों की महंगी फीश भरना तो स्वीकार्य है किन्तु रोज आने-जाने के लिये वाहनों को सस्ता से सस्ता खोजते हैं। ऐसे में जो वाहन सबसे सस्ता मिलेगा, उसी को लगा लेते हैं लेकिन वाहन के मानक जैसे- कामर्शियल है या नहीं, वाहन की फिटनेश है या नहीं आदि…के प्रति जरा भी ध्यान नहीं देते हैं अर्थात कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो बच्चों के अभिभावक वाहनों के मानकों को पूरी तरह से नजरअन्दाज करते हैं। जबकि अभिभावकों की सबसे पहले यह जिम्मेदारी बनती है कि जिस वाहन से अपने बच्चे को स्कूल भेज रहे हैं, उसके बारे में यह जानकारी अवश्य करें कि चालक का वैध लाइसेंस है या नहीं, वाहन का बीमा, फिटनेश वैध है या नहीं, कामर्शियल परमिट है या नहीं आदि।
वहीं वाहन मालिकों की बात अपनी बचत ज्यादा करने के लालच में व अन्य खर्चे बचाने के चक्कर में अपने वाहनों के लिये अनिवार्य किये गये सभी नियम कायदों को किनारे रखते हुए बच्चों की अधिक से अधिक संख्या में भर कर चलाने में जुटे रहते हैं। इसके साथ ही वाहन मालिक अपनी कमाई ज्यादा करने की जुगाड़ में बच्चों की जानमाल की परवाह को किनारे किये रहते हैं, न तो समय पर बीमा करवाते हैं और न ही समय समय पर की जाने वाली फिटनेश का परीक्षण! ऐसे में वाहन मालिकों का यह फर्ज बनता है कि बच्चों के अभिभावकों से अपना उचित किराया तय करें किन्तु वाहनों के लिये तय किये गये मानकों के प्रति समझौता न करें और ज्यादा बचत के लालच में बच्चों की जानमाल के साथ खिलवाड़ करना बन्द करें।
वहीं सम्भागीय परिवहन के अधिकारियों को चाहिये कि किसी हादसे के बाद ही सक्रिय होने की छवि को बचायें और समय-समय वाहनों का परीक्षण करते रहें। वहीं विभाग में सभी वाहनों का लेखाजोखा होता है, ऐसे में जिस वाहन के लिये जो मानक नियत हो, उसकी आवधिकता समाप्त होने से पहले ही उसके बारे में एक संदेश डिजिटल प्लेटफॉमों के माध्यम से पंजीकृत वाहन स्वामी तक अवश्य भेजने का प्रचलन शुरू करें। अब डिजिटल युग है और संशाधनों के अभाव का रोना कतई जायज नहीं है।
- S.S. Panwar.