1975 में लगाया गया आपातकाल आज भी लोग याद करते हैं और याद करने के साथ-साथ उस वक्त की दबंगई को भी याद करते हैं। आज भी बढ़ती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है और इसे रोकने के लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए। अब तक जो भी नियम कानून इस मुद्दे को लेकर बने हैं वह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए हैं। आज देश में हर मिनट पर 42 बच्चों का जन्म हो रहा है हर दिन 61,000 बच्चों का जन्म होता है। ये बढ़ती हुई आबादी रोजगार के अवसरों को खत्म कर रही है साथ ही गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी को बढ़ावा दे रही है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या की सबसे बड़ी समस्या स्थान की है, साथ ही बिजली और पानी की भी है। लगातार कट रहे जंगल प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और उसका खामियाजा भी हम भुगत रहें हैं। गरीबी और खाद्यान्न की समस्या का कारण जनसंख्या वृद्धि ही है और इसका दुष्प्रभाव चिकित्सा की बद इंतजामी के रूप में भी दिखाई देता है।
योगी सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून शायद राज्य की बढ़ती हुई आबादी को रोकने में सफल हो। ऐसी कई बातें हैं जिन पर अमल किए बिना जनसंख्या वृद्धि को रोक पाना संभव नहीं है। बढ़ती आबादी पर नियंत्रण का लक्ष्य वाकई काबिले तारीफ है। ये नियम कि दो बच्चों से ज्यादा वाले व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी सराहनीय है और एक बच्चा पैदा करने पर कई प्रोत्साहन पुरस्कार की बात भी सराहनीय है। असम सरकार का फैसला भी इस मुद्दे पर काबिले तारीफ है।
आज जरूरत है कि सबसे पहले लोगों में जागरूकता पैदा की जाए। लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता की सबसे ज्यादा जरूरत है, ताकि लोगों का मानसिक विकास हो सके। आज कोरना के दौर में लोग सुरक्षा के लिए मास्क तक नहीं लगाते, सोशल डिस्टेंसिंग भी मेंटेन नहीं करते। ये शिक्षा का ही अभाव है कि वे इसके दुष्परिणामों से अनजान रहते हैं। शिक्षा द्वारा इनका मानसिक विकास के साथ यह सही गलत का फर्क करना समझेंगे साथ ही समाज में फैली रुढ़िवादिता से भी बाहर आ सकेंगे। शिक्षा एक अहम मसला है लोगों को जागरूक करने के लिए साथ ही लोगों को स्वास्थ्य संबंधित जानकारी से लेकर बढ़ती हुई जनसंख्या के दुष्प्रभाव से भी अवगत करवा कर सकेगी। जागरूकता के अभाव में व्यक्ति कई – कई बच्चों को जन्म देता है और गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी को बढ़ावा देता है। जनसंख्या वृद्धि के प्रति वही लापरवाह हैं जो शैक्षिक व सामाजिक रूप से पिछड़े हैं।
आज यह भी जरूरी है कि धर्म और आस्था के नाम पर जनसंख्या बढ़ाने जैसी बातों का बहिष्कार किया जाए। जनसंख्या नियंत्रण संबंधी कानून धर्म और जाति से दूर रहे और नेताओं के बेतुके बयानों को भी प्रतिबंधित किया जाये साथ ही सभी के लिए एक ही नियम कानून मान्य होना चाहिये। हम कट्टरता से बाहर आकर ही इस योजना को साकार कर सकते हैं। बहुसंख्यक अल्पसंख्यक को मुद्दा ना बनाकर बल्कि जनता के हितों का मुद्दा बनाकर योजनाएं सफल की जा सकती है। परिवार नियोजन की नीति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और इसके नुकसान – फायदे के बारे में बता कर लोगों को जागरूक किया जाए ताकि सीमित परिवार के साथ साथ स्त्री के स्वास्थ्य की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो। गौरतलब है कि योगी सरकार ने जो नियम कानून प्रस्तावित किया है वो प्रोत्साहन के लिए तो ठीक है लेकिन दंडात्मक प्रावधान से असमानता बढ़ेगी। एक बच्चे की नीति से जनसंख्या पर निगेटिव इम्पैक्ट पड़ेगा। यह तात्कालिक उपाय तो हो सकता है लेकिन स्थाई नहीं।
कहीं ऐसा ना हो कि योजनाएं तो बना दी गई लेकिन कार्यान्वित नहीं हो पाईं और कुछ समय बाद ठंडे बस्ते में चली गई। बेहतर होता कि 2021 की (जो कोविड के कारण नहीं हो सकी) जनगणना कराने के बाद नियम कानून बनाने की बात की जाती। कोविड में हमने कितनों को खो दिया व इसका जनसंख्या पर क्या असर पड़ा। इसका सही आंकलन अभी तक नहीं हो सका है। 2011-21 के दशक में जनसंख्या वृद्धि दर क्या रही इसका भी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात