बहुत ही बुरा दिन हमने जेलें हैं ये विष्णुओं की वजह से ,दिन नहीं साल बोलेंगे तो ही सही रहेगा। जब पहले चीन में हुई शुरुआत तो वीडियो देख दिल तो दहल जाता था किंतु ये नहीं सोचा था कि अपने देश या बोले तो दुनियां में भी ये इतना प्रभावी तरीके से फेल जायेगा।और जब आया तो ,पहली लहर जो मानसिक दबाव की ज्यादा थी क्योंकि उस वक्त जो वेरिएंट था वह उतना भी भयावह नहीं था जो दूसरी लहर वाला था।लेकिन बीमारी के लक्षणों से अपरिचित,दवाइयों या वेक्सीन का नहीं होना आदि से हम परेशान थे। अंधेरे में तीर चल रहे थे ,कोई कहता था मलेरिया की दवाई हिड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन असरदार हैं तो कुछ डॉक्टर्स पेट के कीड़े मारने वाली दवाइयां भी दे रहे थे।आयुर्वेद में भी शरीर की रोग प्रतिकरक शक्ति को बढ़ाने के लिए भांति भांति के चूर्ण दे रहे थे और घर घर में काढ़े बन रहे थे। इन्हे बनाने के लिए उतने ही व्हाट्स एप और दूसरे मध्यमों से वीडियो और मैसेज आ रहे थे।घर से निकलना मुश्किल हो गया था।चूहे जैसी जिंदगी हो गई थी,खाना बटोर घर के बिल में घुस जाना ही व्यवहार था जिंदगी का। सोचते थे कि दरवाजे के बाहर खड़ा कोविड बाहर निकलते ही अपने को लग जायेगा।इसलिए सब कुछ ही घर पर ऑर्डर कर के मंगवाया जाता था। तब विदेशों की अति विषम परिस्थितियों से अपने देश में काफी ठीकठाक था, दुनियां में अपने देश में हुए वायरस के कंट्रोल के चर्चे हो रहे थे।पाश्चात्य देशों में रोगियों की संख्या और उससे मरने वालों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि पूछो मत।देख सुन के प्रलय सा ही प्रतीत होता था।और एक समय आया कि लगा अपने देश में से तो नामोनिशान मिट गया हैं कोवीद का ,लेकिन जब दूसरी लहर आई तो पहले से भी ज्यादा खतरनाक साबित हुईं।लाखों में कैसिज थे और हजारों में मौत के आंकड़े पहुंच गए थे।अंतिम संस्कार करने के लिए लाइन लगी थी।उनको स्मशान या कब्रिस्तान में ले जाने के लिए कोई वाहन या सुविधा नहीं होने से लोग बाइक या रिक्शा या साइकिल का उपयोग करते दिखाए जा रहे थे,ये सब दिल को जकजोर के रख देता था।जिसने भी ये सब देखा सुना हैं वह आजीवन भूलेंगे नहीं ये प्रलयकारी दृश्यों को।दिल दहल जाता था लगातार एम्यूलेंस की आवाजे सुन सुनकर। अभी भी दुनियां के कई देशों में ये कहर चल ही रहा हैं ये चिंता का विषय हैं। करोना के विषाणुं शरीर के डीएनए के साथ मिल नए नए वेरिएंट बनाते जा रहे हैं ऐसे में ये जितना कम फैले उसके लिए कदम उठाना बहुत आवश्यक हैं।वही कोविड के लिए आवश्यक,मास्क पहनना,बार बार हाथ धोना और दो गज की दूरी रखना जरूरी हैं।अब तो बहुत प्रकार की वेक्सीन उपलब्ध हैं जो कारगर भी हैं किंतु कब तक,अगर नए नए वेरिएंट्स निकलते गए गए और वेक्सीन ने काम करना कम कर दिया तो? ये भी बहुत बड़ा प्रश्न हैं।अपने देश में पिछले तीन महीनों से १०००० से भी कम केसेज आ रहे हैं लेकिन गफलत में रहने से दूसरी लहर सा हाल न हो ये खास जरूरी हैं।१२० करोड़ लोगों को लगी वैक्सीन एक सुरक्षा चक्र के समान हैं लेकिन दूसरे देशों में आए नए वेरिएंट्स ज्यादा असुरक्षा की भावना देती हैं। जैसे दक्षिण अफ्रीका ,हांगकांग, बोत्सवाना के नए वेरिएंट्स अपने देश में आने वाले प्रवासियों से फैल वापिस से केहर बरपा सकते हैं। दुनियां में कुल २६ करोड़ केसेज हुए है जिनमें से ५२ लाख जीतने मृत्यु हुए जो रिकॉर्डेड से काफी ज्यादा भी हो सकता हैं।दक्षिण अफ्रीका का नया वेरिएंट डेल्टा, जो दूसरी लहर में केहर बारपा गया उससे भी ज्यादा खतरनाक हैं।इस वेरिएंट के उपर वैक्सीन का भी ज्यादा असर नहीं दिखाई देता हैं।इस वायरस के भी ३२ नए म्यूटेंट्स बन चुके हैं।ये वायरस जल्दी फैलता हैं और जानलेवा भी हैं।वैसे इसके अभी ज्यादा केसेज नहीं हैं लेकिन अगर फैला तो दुनियां के लिए खतरनाक परिस्थिति उत्पन्न होगी। दूसरे देशों में फ़ैल रहे कॉविड के आंकड़े अपने देश के लिए बहुत बड़ी चेतावनी हैं दूसरी लहर में भी यही हुआ था ,कम केसेज की वजह से हुई लापरवाही ने देश को कहां पहुंचा दिया था? दुनियां में बदनाम करके रख दिया था। स्वास्थ्य विभाग ने सभी राज्यों को विदेशी प्रवासियों के बारे में सचेत कर दिया हैं।उनका देश में प्रवेश से पहले कोविड टेस्ट करना आवश्यक किया गया हैं।क्या उनका आगमन के बाद क्वारेंटाइन करना कंपलसरी करना भी जरूरी बन गया हैं।शेर बाजार भी दुनियां में बढ़ रहे करोना के केसेज की वजह से गिरावट का आना भी आर्थिक संकट की निशानी हैं।अब फिर आर्थिक,सामाजिक और स्वास्थ्य के प्रश्नों का उद्भव होना संभावित लग रहा हैं।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद