हम आयुष्मान कार्ड दिखा-दिखाकर थक गए हैं,इसका कोई फायदा नहीं है:पीड़िता
ऊंचाहार,रायबरेली,पवन कुमार गुप्ता।आम जनमानस को सुविधा देने के लिए सरकार नित्य नए कार्यक्रम आयोजित कर सुविधा देने के लिए लोगों जागरूक कर रही है।बावजूद इसके कुर्सी पर बैठे अधिकारी प्रमाण पत्र से लैस पीड़ित अभ्यर्थियों को सुविधा नहीं दिला पा रहे हैं।पीड़ित व्यक्ति दर-दर ठोकर खाने के लिए मजबूर है।बताते चलें कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान कार्ड को लोगों ने बनवाया।जिसके तहत बीमारी में लगभग ₹500000 का इलाज नि:शुल्क ही कराया जा सकता है।इसी प्रकार श्रम कार्ड भी बराबर लोगों का बनवाया जा रहा है।जिससे श्रमिक लोगों को भी लाभ दिया जा सके।लेकिन इन सब प्रमाणपत्रों के होने के बावजूद भी लोग सुविधा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं।जिसका जीता जागता उदाहरण रायबरेली जनपद के तहसील ऊंचाहार की खुर्रमपुर ग्राम सभा के निरंजनपुर गांव में देखने को मिला है।जबकि पीड़ित खुद स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत है।
बताते चलें तो ऊंचाहार सीएचसी में आशा बहू की पद पर तैनात सरोज कुमारी विश्वकर्मा ने बताया कि उनके बेटे प्रिंस उम्र 26 वर्ष का पैर दुर्घटना में टूट गया था।जिसका इलाज बराबर अब तक अपने खर्चे से करा रही थी।लेकिन आयुष्मान कार्ड और ई श्रम कार्ड बन जाने के बाद उन्हें थोड़ा सी तसल्ली मिली कि अब बेटे के पैर का इलाज सही ढंग से अच्छे अस्पताल में हो जाएगा।फिर भी आशा बहू लखनऊ,रायबरेली और प्रयागराज के कई अस्पतालों में जा चुकी है।जहां पर आयुष्मान कार्ड दिखाया और बेटे का इलाज कराना चाहा परंतु किसी भी अस्पताल में उन्हें आयुष्मान कार्ड के माध्यम से कोई सुविधा प्राप्त नहीं हुई जबकि डॉक्टरों ने पैर की सर्जरी के लिए लाखों रुपए का खर्च बताया है।पीड़िता अपने इकलौते बेटे के इलाज के लिए सगे-संबंधियों से पैसे मांग-मांग कर इकठ्ठे कर रही है लेकिन कार्ड का उपयोग कहीं नहीं हो पा रहा है।जिससे कि वह अपने बेटे का पैर सही करवा सकें।आशा बहू ने ग्राम प्रधान से लेकर ऊंचाहार स्थानीय विधायक तक की चौखट पर माथा टेका लेकिन कहीं से कुछ भी सहयोग मिलना संभव नहीं हो सका।उन्होंने अधिकारियों से बातचीत कर बेटे के पैर के इलाज के लिए हर तरह से गुहार लगाई किंतु सफलता कहीं प्राप्त नहीं हुई।उन्हें हर जगह से निराशा ही मिली है।स्वास्थ्य विभाग में आशा बहू के पद पर कार्यरत होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी इस संबंध में उसकी मदद करने से पीछे हट रहे हैं और कोई भी सही सलाह देने से इनकार करते दिख रहे हैं।थक हार कर निराश मां बेटे की इलाज की चिंता को लेकर बैठ गई।लेकिन कहीं से कोई भी मदद नहीं मिली।आखिरकार अब सवाल उठता है कि आयुष्मान कार्ड,ई-श्रम कार्ड इस तरह के जितने भी गरीब इंसानों की सुविधाओं के लिए कार्ड बनवाए गए हैं।उनका उपयोग कब कहां और किस अस्पताल में होगा जहां पर वह कार्ड के माध्यम से अपनी बीमारियों का इलाज करवा सकें।
पीड़िता की मानें तो प्रधानमंत्री योजना के तहत बना यह आयुष्मान कार्ड रद्दी कागज मालूम पड़ता है जिसका उपयोग किसी भी चिकित्सालय में होना संभव नहीं है।अस्पताल में इलाज के दौरान जब पैसों की मांग की गई तो मैंने बताया कि मरीज के पास आयुष्मान योजना का कार्ड है।तब अस्पताल कर्मियों ने इस कार्ड को मानने से इनकार कर दिया और इलाज के बदले रुपए मांगे।
जबकि देखा जा रहा है कि कई जिलों में जिला अधिकारियों द्वारा आयुष्मान कार्ड और गोल्डन कार्ड आदि के बनाने पर निरंतर जोर दिया जा रहा है।आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में रुपये खर्च कर इलाज कराना पड़ रहा है।