Wednesday, November 27, 2024
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व्यंग दावत

जबसे सरकार ने सामूहिक प्रसंगों पर कौड़ा चलाया हैं, निमंत्रको की संख्या घटादी हैं मुझे कही से भी निमंत्रण पत्र नहीं आ रहे हैं।पड़ोसी की बेटी की शादी में दो सो लोगों को ही बुलाने की इजाजत थी, सबसे पहले दोस्तों की सूची बनी,एक के बाद एक सभी के दोस्तों के नाम कटते गए क्योंकि रिश्तेदार को बुलाना ज्यादा जरूरी हैं। फिर भी देखो हजार बंदे हो रहे थे तो पड़ोसियों की सूची को कम करते गए और मेरा नाम भी कमी हो गया फिर भी थोड़े कम तो हुए किंतु नियंत्रित संख्या से काफी ज्यादा थे।और उन्हें भी एक घर से सिर्फ दो लोगों को ही निमंत्रित किया गया,यही आसान उपाय था।अब आई रिश्तेदारों की बारी,उन्हे भी एक घर से सिर्फ दो लोगों को ही आमंत्रित किया गया तब जा के चार सो लोग हुए,और शादी में बुलाए जाने वाले मेहमानों की सूची का काम निबट गया।दूरदर्शन पर देखी एक सीरियल याद आ गई।जिसमे एक महाशय रोज रात को अपने कपड़ों को धो कर सुबह इस्त्री करके तैयार रखता था।और शाम को किसी न किसी की शादी की दावत में घुस कर भरपेट मिठाईयों का भोग लगाता था।कोई पूछे कि किसकी और से आए हो तो कन्या पक्ष के बंदे को बोलता था वरपक्ष से हूं और वरपाक्ष वालों को बताता था कन्या पक्ष से हूं।ऐसे कई साल चला, लेकिन एक बार पकड़ा गया और जो फजिता हुआ पूछो मत। ये तरीका तो कुछ भय पैदा करने वाला था,पकड़े जाने की स्थिति में कुछ पंगे की आशंका थी।बहुत दिनों से कही से भी दावत का निमंत्रण पत्र नहीं आने से जी कर रहा था कि दावत का आनंद लिया जाएं वैसे तो दावत का आनंद होटल में जा लिया जा सकता था किंतु शादी की दावत का मजा ही और था।यही सोच मैंने भी कुछ ऐसा ही करने की सोची किंतु अब वो दूरदर्शन सीरियल वाला फंडा चलने वाला नहीं था।तो बहुत सोचने के बाद एक कारगर तरीका सूझा,क्यों न सरकारी अधिकारी बना जाएं? और अच्छी सी कमीज और पतलून पहन कर, चकाचक जूते पहन कर तैयार हो लिया और हाथ में ऑफिस वाला बैग ले पहुंच गया पास की ही गली में लगे पंडाल में और प्रवेश द्वार पर ही शुरू करदी गिनती आने वाले मेहमानों की।कुछ देर तो किसी ने देखा नहीं तो जरा जोर से हाथ हिला हिला कर गिनती करनी शुरू करदी और वर पक्ष से हैं या कन्या पक्ष से ये पूछना शुरू किया और ये देखो ,आए दौड़ते हुए कुछ लोग ओर मेरी तारीफ पूछने लगे तो बता ही दिया कि सरकार ने आमंत्रितो की गिनती करने के लिए कुछ अफसरों की नियुक्ति की हैं उन में से हम भी एक थे।आमंत्रित मेहमानों की संख्या तय आंकड़ों से ज्यादा थी तो अपना मान पान तो खूब बढ़ गया ,और देखो भूल गए बारातियों की खातिरदारी और सब की नज़र हमारे उपरकेंद्रित हो गई।एक और ले जा बिठाया बड़े मानपूर्वक और एक वेटर को लगा दिया सेवा में।खाने की प्लेट लगा कर ले आया वह,काजू खोए की सब्जी, पनीर लबाबदार, मटर भिंडी की सब्जी, दाल मखानी और क्या क्या नहीं था प्लेट में!फिर दौर शुरू हुआ मिठाई का एक से बढ़कर एक प्लेट आती गई और हम खाते गाएं। घरमे चाहे कितने भी पकवान बने लेकिन शादी वाले खाने जैसे मज़ा नहीं आता, और वह भी मुफ्त में, न ही सगन डालना और न ही कोई सौगात देनी।
अब हुआ की नहीं खाया जाएगा तो खाने से भरी तौंद को सहलाते हुए बाहर जाने की चेष्टा कर ही रहा था कि वेटर आया और जबरदस्ती आइसक्रीम की प्लेट पकड़ा दी और वह भी खानी पड़ी। अब सोचा बहुत हो गया और वेटर की नजर चुरा के जाने की सोची लेकिन वह तो अपनी फर्ज में बड़ा ही कर्मठ था।हमे बिठाकर फिर से आइसक्रीम लेने चला गया शायद दावत पूरी नहीं हो जाएं तब तक मुझे रोक रखने की हिदायत का अनुसरण कर रहा था वह।किंतु हम भी समज चुके थे कि अब विदा होने में ही अपनी भलाई हैं। जैसे ही वह आइसक्रीम लेने गया हम भी आहिस्ता से खिसक लिए और बाहर आके एक दमदार श्वास ले घर की और स्कूटर दुडवाई, अगर कोई देख लेगा तो वापिस से खाने का आग्रह कर लेगा तो अस्पताल जाना पक्का था।

जयश्री बिरमी, अहमदाबाद