Thursday, May 2, 2024
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सम्पादकीय

स्वच्छ भारत एक अभियान

देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी की सरकार के स्वच्छता अभियान-स्वच्छ भारत अभियान के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं। वहीं मोदी सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती के अवसर पर दो अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच से मुक्त भारत का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। तीन वर्ष की इस अवधि में इस दिशा में कुछ कुछ सफलता दिखने लगी है। लेकिन खुले में शौच से मुक्त के लिए क्रियान्वित करने में बनाये जा रहे शौचालय भी भ्रष्टाचार के गारे में संलिप्त हैं। खासबात यह भी है इस प्रकरण पर आने वाली शिकायतों को अधिकारी व कर्मचारी पूरी तरह से नजरअन्दाज भी करते रहते हैं। शायद उनकी मंशा यहीी है कि मोदी सरकार की वापसी पुनः ना होने पावे। इससे यह भी लगता है कि भारत सरकार को 2019 तक हर घर में शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य एक भ्रष्ट मार्ग से ही गुजर पायेगा। आंकड़ों की माने स्वच्छ भारत अभियान के तहत दो अक्टूबर 2014 तक 4.90 करोड़ शौचालय बन चुके थे। वहीं पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार 24 सितंबर 2017 तक 2.44 लाख गांव और 203 जिले खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिए गए हैं। बताते चलें कि 2012 में केवल 38 प्रतिशत क्षेत्र स्वच्छता कवरेज से जुड़े थे। अब यह बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया है। लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है क्योंकि इससे जुड़े तमाम पहलू आज भी फोटो खिचाऊ कार्यक्रम ही साबित हो रहे हैं। कई नजारे तो ऐसे देखने को मिल रहे है कि देखा देखी में उन्हीं के अनुयायी कूड़ा-कचरा को इकट्ठा कर खबरों में आने का माध्यम बना रहे हैं जबकि उन्हें इस अभियान से शायद ईमानदारीपूर्ण लगन नहीं है।

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स्वच्छता पर जोर

देश के प्रधानमंत्री के आहवाहन पर पूरे देश में मनाये जा रहे स्वच्छता पखवाड़े से स्वच्छ भारत अभियान को काफी गति मिलती दिख रही है। साफ-सफाई को विशेष बल देने वाले सरकारी कार्यक्रमों से आम लोगों की जागरूकता में एक ओर कई गुणा बढ़ोतरी हुई है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी पिछले तीन वर्षों में स्वच्छता और साफ-सफाई को लेकर काफी जागरूक हुए है लेकिन यह कहना उचित ही होगा कि कई जगहों पर यह कार्यक्रम फोटो खिचाऊ अभियान तक ही सीमित है। महानगरों में तमाम नजारे आज भी दिखते हैं जो पीएम के स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2014 में गांधी जयंती के अवसर पर इस महत्वाकांक्षी अभियान का शुभारंभ किया था। सुरक्षित पेयजल और साफ-सुथरे शौचालय के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है और इससे स्वच्छता को एक नया अर्थ मिला है। लेकिन शौचालय योजना जहां एक ओर लोगों को खुले में शौच करने से बचाव का माध्यम बनी है तो दूसरी ओर शौचालय योजना में भी भ्रष्टाचाररूपी ईंटगारे का बोलबाला दिख रहा है और यह योजना भी जेब भरने का माध्यम बनती दिखी है।
शौचालय अभियान के तहत बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण हुआ है। फिर भी यह कहना अनुचित नहीं कि जो परिणाम आने चाहिए वो लाख प्रयासों के बावजूद नहीं आये क्योंकि कागजी हकीकत कुछ और है और जमीनी हकीकत कुछ और।

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उपेक्षा का शिकार हिन्दी

कहा जाता है कि ज्ञान जितना अर्जित किया जाये उतना ही कम होता है फिर चाहे वह किसी क्षेत्र का हो, सांस्कृतिक हो या भाषायी। लेकिन भाषायी क्षेत्र की बात करें तो हिन्दी भाषा को सम्मान व उचित स्थान दिलाने के लिए हर वर्ष पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। बावजूद इसके हिन्दी को उचित सम्मान नहीं मिल पा रहा है। ज्यादातर सरकारी विभागों में सिर्फ हिन्दी दिवस का बैनर लगाकर हिन्दी पखवाड़ा मनाकर इति श्री कर ली जाती है। यह एक श्रृद्धान्जलि ही हिन्दी के प्रति कही जा सकती है। वहीं न्यायालयी क्षेत्र की बात करें तो वहां भी सिर्फ लकीर ही पीटी जाती है। लिखा पढ़ी में अंग्रेजी प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है अपेक्षाकृत हिन्दी लिखने व बोलने वालों के। यह नारा भी सिर्फ मुंह चिढ़ाने के अलावा कुछ नहीं दिखता कि ‘हिन्दी में कार्य करें, हिन्दी एक….।।’ लेकिन क्या आप जानते हैं कि 14 सितम्बर के दिन ही हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है? कहा जाता है कि जब वर्ष 1947 में भारत से ब्रिटिश हुकूमत का पतन हुआ तो देश के सामने भाषा का सवाल एक बड़ा सवाल था क्योंकि भारत देश में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां थीं और उस दौरान भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा बनाए गए। बाद में डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष चुना गया। वहीं डाॅ0 भीमराव आंबेडकर संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी (संविधान का मसौदा तैयार करने वाली कमेटी) के चेयरमैन थे। संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। इसके बाद भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ।

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कौशल विकास एक मिशन!

ss panwar newवर्तमान की बात करें हमारे देश में दुनियां की सबसे बड़ी युवाओं की आबादी है। भारत की कुल आबादी के लगभग पैंसठ प्रतिशत लोग 35 वर्ष से कम के हैं। सम्भवतः अगर देश की इतनी बड़ी आबादी को अगर कौशल से सुज्जित कर दिया जाए तो भारत देश दुनिया का सबसे दक्ष कार्यबल बन जाएगा। वर्तमान में रोजगार की तलाश में बाजार में दस लाख युवक आ रहे हैं लेकिन कौशल के अभाव में उनको उचित अवसर नहीं मिल पाता।
भारत को रोजगार सम्पन्न बनाने की भावना के अनुरुप कौशल विकसित करने के मुहिम को तेज किया जाना जरूरी है। इसके लिए मंत्रालय की ओर से रोजगार के अनुकूलमाहौल बनाने को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से पीएमकेवीवाई का प्रशिक्षण केंद्र खोलकर स्थानीय स्तर पर कौशल विकास का काम हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में व्यापक स्तर पर शुरु किया जा चुका है। बीते महीनों तीनों राज्यों में प्रशिक्षण केंद्रों की बाढ़ सी आ जाने के कारण राष्ट्रीय स्कील डेवलपमेंट काॅउसिल (एनएसडीसी) को यह निर्णय लेना पड़ा कि मंत्रालय की ओर से यह तय किया गया कि इन राज्यों में पीएमकेवीवाई के किसी भी जाॅब के लिए फिलहाल कोई प्रशिक्षण केंद्र शुरु नहीं किया जाएगा। गौरतलब हो कि पीएमकेवीवाई के केंद्रों पर केंद्र सरकार की मदद से अठारह वर्ष से ज्यादा उम्र के नियमित पढ़ाई न करने वाले बेरोजगार व्यक्तियों को विभिन्न ट्रेड में मुफ्त कौशल प्रशिक्षण देने की सुविधा है। यह रोजगार प्राप्ति की दिशा में कौशल विकास परियोजनाओं की सफलता इतिहास रच सकती हैं। भारत में महज दो से तीन प्रतिशत लोगों का ही वर्क फोर्स है।

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युवाओं को पथ से भटकने को रोकें

portal head web news2आधुनिकता के दौर में हमने हर क्षेत्र में उन्नति के झण्डे गाड़ने का कार्य किया है। लेकिन एक ओर जहां हमने विज्ञान को वरदान के रूप में अपनाया है तो दूसरी ओर अपराधों के क्षेत्र में भी अपराध कारित करने के तरीकों में आधुनिकता को अपनाते हुए विज्ञान को अभिशाप बनाने का भी काम किया है। पहले लोग कहा करते थे कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना जरूरी है नहीं तो बड़े होकर गलत कामों को करेंगे। लेकिन, आज के दौर की बात करें तो बड़े बड़े अपराधों को कारित करने या उनमें संलिप्तता पाये जाने वालों की संख्या में शिक्षित नौजवानों की संख्या एक विचारणीय विषय है। पहले के दौर की बात करें तो कम पढ़े लिखे या अशिक्षित लोग ही लड़ने-झगड़ने, चोरी-छिनैती की घटनाओं को अंजाम देते हैं लेकिन आज के दौर में इस तरह की घटनाओं को अन्जाम ज्यादातर शिक्षित युवावर्ग दे रहा है।

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शिक्षा का गिरता स्तर

शिक्षा का स्तर सुधारने में सरकारें असफल होती रहीं नतीजन लगभग सभी प्राथमिक विद्यालय सिर्फ नाम के विद्यालय रह गए। यह कहने में जरा भी संकोच नहीं रहा कि सरकारी शिक्षालय हमारे बच्चों को मजदूर जरूर बना रहे हैं और जिनसे आशा है कुछ वो हैं निजी शिक्षण संस्थान, जो शिक्षा को खुलेआम बेंच रहे हैं और सरकारें शिक्षा की बिक्री को रोकने में असहाय दिख रहीं हैं। शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने की बात तो मोदी सरकार कर रही है लेकिन कोई ठोस कदम उठाने में लाचार दिख रही है और स्पष्ट नहीं दिख रहा नजरिया इस ओर।
एक तरफ बच्चों को भविष्य का निर्माता कहा जाता है। लेकिन उनके साथ दुराभाव भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। एक तरफ सभी सरकारें अच्छी शिक्षा दिलाने की वकालत करती है लेकिन शिक्षा के प्रति किसी भी सरकार का नजरिया स्पष्ट नहीं है।

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नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक नया आयाम

भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। दो दसकों के अन्तराल में सरकारों द्वारा यह पहल की जाती रही है कि देश को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विकसित किया जा सके, विशेषरूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में देश की तरक्की ने भारत देश को विश्व के ऊर्जा नक्शे पर विशेष पहचान दिलाई है। पिछली सरकारों का भी प्रयास यही रहा है और वर्तमान सरकार के भी तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं, ऐसे में हाल ही में भारत की ऊर्जा क्षमता में परमाणु ऊर्जा के रूप में 7 गीगा वाॅट ऊर्जा क्षमता को शामिल किए जाने का निर्णय, जोकि एक ही बार में भारत के घरेलू परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की दिशा में सबसे बड़ी मंजूरी, एक स्थायी रूप से कम कार्बन विकास रणनीति की दिशा में भारत सरकार की गंभीरता और प्रतिब(ता को दर्शाता है।

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प्रकृति से जुड़ाव मानव जाति के जीवित रहने का आधार

portal head web news2तेजी से बढ़ता शहरीकरण अब चिन्ता का विषय बनने लगा है। विकास के नाम पर अन्धाधुन्ध तरीके से वृक्षों का कटान किया जा रहा है। पर्यावरण में असन्तुलन का प्रमुख कारण वृक्षों की कटान है। इसी लिए वन और पर्यावरण संरक्षण के व्यापक मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए 1972 से दुनिया भर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के अवसर पर लोगों को घरों से बाहर निकलकर प्रकृति के संसर्ग में उसकी सुंदरता की सराहना करने तथा जिस पृथ्वी पर रहते हैं, उसके संरक्षण का आग्रह किया जाता है। आधुनिक व्यक्ति के जीवन में व्यस्तता है और उसका दिमाग तो और भी व्यस्त है। ऐसी परिस्थितियों में मन को शांत करने के लिए प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना अति महत्वपूर्ण है। ग्रामीण परिवेश को अगर अलग कर दें तो, शहरों में उपलब्ध हरित स्थानों विशेष रूप से वृक्षों और पार्कों के जरिये लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने का अवसर मिलता है। प्रकृति से दोबारा जुड़ने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान शुरू किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों सहित लगभग 12000 संगठन शामिल हैं।

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पौधारोपण एक पुण्य कार्य

हमारे देश में वृक्षों को देव माना गया है और धर्मशास्त्रों में वृक्षारोपण को बहुत ही पुण्यदायी कृत्य बताया गया है। सभी जानते हैं कि वृक्षों की मौजूदगी धरती पर जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। आदि काल से लोग तुलसी, पीपल, केला, बरगद को पूजते आए हैं। वहीं विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि ये पेड़-पौधे हमारे लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं । वृक्ष ही पृथ्वी को हरा- भरा बनाकर रखते हैं, जिन स्थानों में पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में होते हैं वहाँ निवास करना आनंददायी प्रतीत होता है। पेड़ छाया तो देते हैं औषधियों को देते हैं, साथ ही पशु-पक्षियों को आश्रय भी प्रदान करते हैं । इनकी ठंडी छाया में मनुष्य एवं पशु विश्राम कर आनंदित होते हैं । वृक्ष हमें फल, फूल, गोंद, रबड़, पत्ते, लकड़ी, जड़ी-बूटी, झाडू, पंखा, चटाई आदि विभिन्न प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ सौगात में देते हैं । ऋषि-मुनि भी वनों में रहकर अपने जीवन-यापन की सभी आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे लेकिन जैसे-जैसे सभ्यता विकसित हुई लोग वृक्षों को काटकर उनकी लकड़ी से घर के फर्नीचर बनाने लगे, वहीं कागज, दियासलाई, रेल के डिब्बे आदि बनाने के लिए लोगों ने जंगल के जंगल साफ कर दिए। इससे जीवनोपयोगी वस्तुओं का अकाल पड़ने लगा। साथ ही साथ पृथ्वी की हरीतिमा भी घटने लगी है। वृक्षों की संख्या घटने के दुष्प्रभावों का वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला है कि वृक्षों के घटने से वायु प्रदूषण की मात्रा बड़ी है । वृक्ष वायु से हानिकारक कार्बन डायआॅक्साइड का शोषण कर लाभदायक आॅक्सीजन छोड़ते हैं। आॅक्सीजन ही जीवन है और जीवधारी इसी पर निर्भर रहते हैं । अतः धरती पर वृक्षों की पर्याप्त संख्या का होना बहुत आवश्यक होता है ।

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पृथ्वी का बदलता स्वरूप

portal head web news2भारत देश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व, पृथ्वी और उसके पर्यावरण की सुरक्षा हेतु विचाररत है, इसी लिए संकल्पबद्ध होकर पिछले 47 सालों से निरन्तर 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाता चला आ रहा है। यह स्मरण रहे कि वर्ष 1970 में पहली बार पूरी दुनिया ने पृथ्वी दिवस का शुभारम्भ एक अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के पर्यावरण संरक्षण के लिये किये गए प्रयासों को समर्थन देने के उद्देश्य से किया था। तब से जैसे यह एक विश्व परम्परा बन गई है और पृथ्वी दिवस ने हर देश के एक वार्षिक आयोजन का रूप ले लिया है। पर्यावरण की रक्षा के लिये भारत सहित कई देशों में कानून भी बनाए गए हैं, जिससे विभिन्न पर्यावरणीय असन्तुलनों पर काबू पाया जा सके। लेकिन पर्यावरण में प्रदूषण की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। क्योंकि पृथ्वी दिवस के सफल आयोजनों के बावजूद भी विश्व के औसत तामपान में हुई 1.5 डिग्री की वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने और अन्धाधुन्ध विकास कार्यों और पेट्रोल, डीजल तथा गैसों के अधिक इस्तेमाल के कारण काॅर्बन उत्सर्जन की बढ़ोत्तरी, ग्लेशियरों के पिघलाव और असन्तुलित भयंकर बाढ़ों और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने पृथ्वी का स्वरूप ही बदल दिया है। इससे लगता है कि पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ रहा है और यह विकराल रूप ले सकता है।

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