कुरवाई/विदिशा। “जहां चाह, वहां राह” को चरितार्थ करते शासकीय माध्यमिक शाला सिरावली के शिक्षक व पूर्व सैनिक प्रमोद कुमार चौहान की एक ओर सकारात्मक पहल जिसमे विद्यालय के शिक्षक और स्वयंसेवी शिक्षक और पूर्व छात्र अर्जुन सेन, अनुज दांगी, सुरेन्द्र अहिरवार, मुकेश सेन और करन सेन ने मिलकर विद्यालय का रंग रोगन कर एक नया रूप देकर संवारा और इस कहावत को चरितार्थ किया कि यदि आप में कुछ करने का जज्बा है तो रास्ते स्वयं निकलने लगते हैं।
शिक्षा
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक को नहीं मानते विद्यालय
दुर्बल वर्ग के बच्चे का लाटरी में नाम होने पर भी नर्चर इण्टर नेशनल स्कूल में प्रवेश लेने से इंकार
कानपुर दक्षिण, जन सामना संवाददाता। शहर के बर्रा-2 हेमन्त विहार के निवासी शुभम शुक्ला ने निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत ऑनलाइन लाटरी के माध्यम से नर्चर इण्टर नेशनल स्कूल में अपने बच्चे की शिक्षा के लिए सीट आवंटित हुई थी। लेकिन उसके बाद जब एडमीशन की प्रक्रिया के लिए विद्यालय गए तो उन्हें वापस लौटा दिया गया। आरोप है कि विद्यालय कार्यालय प्रभारी ने यह कहकर वापस कर दिया कि अभी कोई भी किसी तरह का प्रवेश नहीं हो रहा है। शुभम शुक्ला ने बताया वह अपने बच्चे को अच्छी उच्च शिक्षा कराने के लिये बहुत ज्यादा चिंतित है। उन्होंने बताया कि विद्यालय में बार-बार गुहार लगाने पर भी पर कोई सुनवाई नहीं हुई। कार्यालय जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, कानपुर नगर से गुजारिश करने पर विद्यालय के प्रबंधक/प्रधानाचार्य नर्चर इण्टर नेशनल स्कूल को दिनांक 24 जून 2020 को पत्र लिखा गया। लेकिन विद्यालय प्रशासन ने इस पत्र को कोई महत्व नहीं दिया है।
शैक्षिक फलक पर रचनात्मकता के सितारे टांकते शिक्षक -प्रमोद दीक्षित ‘मलय’
शिक्षक अपने काल का साक्षी होता है। वह वह विद्या का उपासक और साधक है तथा अप्रतिम कलाकार भी। वह अपनी मेधा, कल्पना, आत्मीयता, संवाद, सौंदर्यानुभूति से प्रेरित हो मानव जीवन को गढ़ता है, रचता है। वह बच्चों का मीत है, सखा है। वह बच्चों की प्रतिभा की उड़ान के लिए अनंत आकाश देता है तो नवल सर्जना हेतु वसुधा का विस्तृत कैनवास भी। वह बच्चों को मौलिक चिंतन-मनन करने, तर्क करने, सीखने, कल्पना एवं अनुमान करने एवं उनके स्वयं के ज्ञान निर्माण हेतु अनन्त अविराम अवसर और जगह उपलब्ध कराता है, फिर चाहे वह कक्षा हो या कक्षा के बाहर का जीवन। सीखने-सिखाने की रचनात्मक यात्रा में शिक्षक सदैव साथ होता है, पर केवल सहायक की भूमिका में। वह बच्चों के चेहरों पर खुशियों का गुलाल मल देता है। आंखों में रचनात्मकता की उजास और मस्तिष्क में कल्पना के इंद्रधनुषी रंग भरता है।
अनाथों के नाथ हैं अच्युत सामंत, देवदूत बन कर रहें कोरोना पीड़ितों की सेवा
अनाथों के नाथ हैं अच्युत सामंत, देवदूत बन फ्री में दे रहें शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं
जिस कोरोना काल के शुरु होते भारत के तमाम नेता अपने—अपने आवास में दुबुक के बैठ के गये थे और अभी तक अपने घरों से निकलने में डर रहे हैं, उस महामारी से बेखौफ होकर डॉ. सामंत एक कोरोना योद्धा की तरह अपने संस्थान के बच्चों और आम जनता से लेकर प्रशासन तक की हर संभव मदद करते नजर आ रहे हैं। पिछले 6 महीनों के भीतर उन्होंने अपनी ओर से ओडिशा सरकार का समर्थन प्राप्त करते हुए चार-चार कोविद-19 अस्पताल खोले हैं।
घर—घर पहुंचाई पुस्तकें और अनाज
‘हम चलायेंगे ई- पाठशाला’
पीलीभीत। शिक्षा ही बच्चों की बहुँमुखी प्रतिभा को उजागर करती है। बच्चों को रोचक व सरल गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना मिशन प्रेरणा उत्तर प्रदेश का लक्ष्य है। इसी क्रम में शिक्षक अभिषेक कुमार ने प्राथमिक विद्यालय लदपुरा, पीलीभीत में अध्ययनरत बच्चों के अभिभावकों से सम्पर्क कर ई- पाठशाला के दूसरे सत्र जो कि 21 सितम्बर से प्रारंभ हो चुका है, उसके बारे मे जानकारी दी। उन्होनें बताया कि वॉट्सएप्प ग्रुप के माध्यम से शिक्षण सामग्री शिक्षकों द्वारा बच्चों को उपलब्ध करायी जायेगी। अभिभावक बच्चों को सीखने- सिखाने की प्रक्रिया मे सहयोग करे और बच्चों द्वारा किये गये कार्य की फोटो क्लिक करके शिक्षकों को भेजे ताकि वह प्रतिक्रिया करके कार्य का मूल्याकंन कर सके।
इस वर्ल्ड हार्ट डे पर बादाम खाकर अपने दिल को स्वस्थ बनाएं
हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाता है, ताकि कार्डियोवैस्कुलर डिसीज (सीवीडी) और उनकी रोकथाम पर जागरूकता उत्पन्न की जा सके। वर्ल्ड हार्ट डे दुनियाभर के लोगों को याद दिलाता है कि वे अपने और अपने परिवार के लिये लाइफस्टाइल से संबंधित विकल्पों का मूल्यांकन करना शुरू करें और इस रोग से अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा का ध्यान रखने के लिये कठोर कदम उठाने की जरूरत को पहचानें।
शोध से पता चला है कि अपनी आनुवांशिकी के कारण भारतीय हृदय रोगों के लिये ज्यादा संवेदनशील होते हैं। कार्डियोवैस्कुलर डिसीज कई भारतीय परिवारों के लिये स्वास्थ्य सम्बंधी एक गंभीर चिंता बन रहे हैं, लेकिन बदलाव लाने और जोखिम के कारकों को कम करने में डाइट तथा जीवनशैली से सम्बंधित सुधार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, ताकि हृदय का स्वास्थ्य बेहतर हो।
100 % नम्बर अर्जित कर साबित किया, मैरिट किसी की बपौती नहीं
– मौके की जरूरत, वंचित- पिछडे समाज के युवा साबित कर रहे योग्यता
– कम्पटीशन एग्जाम हों या एकेडमिक कोर्स और या हों शोध, युवा दर्ज कर रहे इतिहास
कानपुर/नई दिल्ली, पंकज कुमार सिंह। सदियों से उपेक्षा के शिकार रहे वंचित-पिछडे समाज के युवा साबित कर रहे हैं कि योग्यता किसी की बपौती नहीं है। लगातार मैरिट लिस्ट में स्थान पाकर उस मानसिकता का भी खंडन कर रहे हैं जिसमें वंचित वर्ग को हीन दृष्टि से देखा जाता रहा है। लेकिन अब सब उपेक्षाओं को दरकिनार कर युवा हुनर के साथ लामबन्द हो गए है। हक के लिए लङकर वह आगे आ रहे हैं। इनके माता पिता भी अथक परिश्रम और मुफलिसी में भी बच्चों की शिक्षा के लिए दिनरात एक किए हैं। साफ जाहिर है कि मौके की जरूरत है, योग्यता तो साबित करके दिखा रहे हैं।
गत सप्ताह सीबीएसई के परीक्षा परिणाम घोषित हुए। बारहवीं में 500 में 500 नम्बर हांसिल कर बुलन्दशहर के तुषार सिंह जाटव ने 100 फीसदी अंक अर्जित कर देशभर में कीर्तिमान स्थापित कर दिया।
शिक्षा माफियाओं के दबाव में स्कूल और डिजिटल शिक्षा
जब तक सही समय न आये डिजिटल शिक्षा से काम चलाना बेहतर है -प्रियंका सौरभ
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल स्कूलों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन भारत में कुछ राज्य इन सबके बावजूद भी स्कूल खोलने की कवायद में जी- जान से जुड़े है। पता नहीं उनकी क्या मजबूरी है? मुझे लगता है वो स्कूल माफियाओं के दबाव में है। आपातकालीन स्थिति में इस तकनीकी युग में बच्चों को शिक्षित करने के हमारे पास आज हज़ारों तरीके है। ऑनलाइन या डिजिटल स्टडी से बच्चों को घर पर ही पढ़ाया जा सकता है तो स्कूलों को खोलने में इतनी जल्दी क्यों ? वैश्विक महामारी जिसमे सोशल डिस्टन्सिंग ही एकमात्र उपाय है के दौरान स्कूल खोलने में इतनी जल्बाजी क्यों ? सरकारों को चाहिए की जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आती स्कूल न खोले जाए। शिक्षा माफियाओं के दबाव में न आये। ऐसे लोगों को न ही ज़िंदगी और न बच्चों के भविष्य की चिंता है। इनको चिंता है तो बस फीस वसूलने की।
कोविड-19 लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश
मेरे प्यारे देशवासियों,
कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई, बहुत मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है। आपकी तपस्या, आपके त्याग की वजह से भारत अब तक, कोरोना से होने वाले नुकसान को काफी हद तक टालने में सफल रहा है। आप लोगों ने कष्ट सहकर भी अपने देश को बचाया है, अपने भारत को बचाया है।
मैं जानता हूं, आपको कितनी दिक्कते आई हैं। किसी को खाने की परेशानी, किसी को आने-जाने की परेशानी, कोई घर-परिवार से दूर है। लेकिन आप देश की खातिर, एक अनुशासित सिपाही की तरह अपने कर्तव्य निभा रहे हैं। और आप सबको आदर पूर्वक नमन करता हूँ। हमारे संविधान में जिस “We the People of India” की शक्ति की बात कही गई है, वो यही तो है।
बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की जन्म जयंती पर, हम भारत के लोगों की तरफ से अपनी सामूहिक शक्ति का ये प्रदर्शन, ये संकल्प, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।
तनाव रहित जीवन जीने का नुस्खा- एम. अफसर खान ‘सागर’
पुस्तक – जीवन के अनसुलझे रहस्य की खोज
लेखक – मनीष
प्रकाशक – नोशन प्रेस, चेन्नई
कीमत – 199 रुपए
जिन्दगी की भाग दौड़ में इंसान भौतिक संसाधन जरूर हासिल कर रहा है मगर उसके जीवन से सकून गायब सा होने लगा है। तनाव रहित जीवन जीने के लिए लोग न जाने कितने तदबीर कर रहे हैं। ‘जीवन के अनसुलझे रहस्य की खोज’ पुस्तक के माध्यम से मनीष ने मेडिटेशन और योग को अपना कर तनाव रहित जीवन जीने की कला को बहुत फलसफाने अंदाज में बयान किया है। लेखक ने बतलाया है कि योग सही तरह से जीवन जीने का विज्ञान है। यह व्यक्ति के सभी पहलुओं पर काम करता है – भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक। पुस्तक के माध्यम से लेखक ने लोगों को योग के गूढ़ रहस्यांे से परिचय कराया है। भारतीय रेल सेवा के अधिकारी मनीष ने अति दुरूह ध्यान प्रयोगों के माध्यम से उस रहस्य को जानने का कामयाब कोशिश किया है। लेखक ने तकरीबन पन्द्रह सालों तक विश्व के तमाम धर्मों के विभिन्न शाखओं का अध्ययन एवं समकालीन विचारकों के ग्रंथों का गहन अध्ययन एवं विशलेषण करने के पश्चात यह पुस्तक लिखा है। लेखक ने बतलाया है कि भारतीय दर्शन की नींव सत्य, प्रेम, अहिंसा एंव सर्व कल्याण को ध्यान में रखते हुए रखी गयी है। इस संस्कृति में सत्य को प्रतिपादित करते हुए मानव कल्याण की खातिर मनसा, वाचा, कर्मणा की अवधारणा को महत्व दिया गया है। लेखक बतलाता है कि हमारा सबका सुख सामूहिक सुख है, और दुःख है। भारतीय दर्शन में अध्यात्म मनुष्य के वास्तविक स्वरूप को जानने के साथ-साथ भौतिक जगत के सम्बंध को भी पहचाना है।