Thursday, April 25, 2024
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शिक्षा

‘हम चलायेंगे ई- पाठशाला’

पीलीभीत। शिक्षा ही बच्चों की बहुँमुखी प्रतिभा को उजागर करती है। बच्चों को रोचक व सरल गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना मिशन प्रेरणा उत्तर प्रदेश का लक्ष्य है। इसी क्रम में शिक्षक अभिषेक कुमार ने प्राथमिक विद्यालय लदपुरा, पीलीभीत में अध्ययनरत बच्चों के अभिभावकों से सम्पर्क कर ई- पाठशाला के दूसरे सत्र जो कि 21 सितम्बर से प्रारंभ हो चुका है, उसके बारे मे जानकारी दी। उन्होनें बताया कि वॉट्सएप्प ग्रुप के माध्यम से शिक्षण सामग्री शिक्षकों द्वारा बच्चों को उपलब्ध करायी जायेगी। अभिभावक बच्चों को सीखने- सिखाने की प्रक्रिया मे सहयोग करे और बच्चों द्वारा किये गये कार्य की फोटो क्लिक करके शिक्षकों को भेजे ताकि वह प्रतिक्रिया करके कार्य का मूल्याकंन कर सके।

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इस वर्ल्‍ड हार्ट डे पर बादाम खाकर अपने दिल को स्‍वस्‍थ बनाएं

हर साल 29 सितंबर को वर्ल्‍ड हार्ट डे मनाया जाता है, ताकि कार्डियोवैस्कुलर डिसीज (सीवीडी) और उनकी रोकथाम पर जागरूकता उत्पन्न की जा सके। वर्ल्‍ड हार्ट डे दुनियाभर के लोगों को याद दिलाता है कि वे अपने और अपने परिवार के लिये लाइफस्‍टाइल से संबंधित विकल्‍पों का मूल्‍यांकन करना शुरू करें और इस रोग से अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा का ध्‍यान रखने के लिये कठोर कदम उठाने की जरूरत को पहचानें।
शोध से पता चला है कि अपनी आनुवांशिकी के कारण भारतीय हृदय रोगों के लिये ज्यादा संवेदनशील होते हैं। कार्डियोवैस्कुलर डिसीज कई भारतीय परिवारों के लिये स्वास्थ्य सम्बंधी एक गंभीर चिंता बन रहे हैं, लेकिन बदलाव लाने और जोखिम के कारकों को कम करने में डाइट तथा जीवनशैली से सम्बंधित सुधार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, ताकि हृदय का स्वास्थ्य बेहतर हो।

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100 % नम्बर अर्जित कर साबित किया, मैरिट किसी की बपौती नहीं

– मौके की जरूरत, वंचित- पिछडे समाज के युवा साबित कर रहे योग्यता
– कम्पटीशन एग्जाम हों या एकेडमिक कोर्स और या हों शोध, युवा दर्ज कर रहे इतिहास
कानपुर/नई दिल्ली, पंकज कुमार सिंह। सदियों से उपेक्षा के शिकार रहे वंचित-पिछडे समाज के युवा साबित कर रहे हैं कि योग्यता किसी की बपौती नहीं है। लगातार मैरिट लिस्ट में स्थान पाकर उस मानसिकता का भी खंडन कर रहे हैं जिसमें वंचित वर्ग को हीन दृष्टि से देखा जाता रहा है। लेकिन अब सब उपेक्षाओं को दरकिनार कर युवा हुनर के साथ लामबन्द हो गए है। हक के लिए लङकर वह आगे आ रहे हैं। इनके माता पिता भी अथक परिश्रम और मुफलिसी में भी बच्चों की शिक्षा के लिए दिनरात एक किए हैं। साफ जाहिर है कि मौके की जरूरत है, योग्यता तो साबित करके दिखा रहे हैं।
गत सप्ताह सीबीएसई के परीक्षा परिणाम घोषित हुए। बारहवीं में 500 में 500 नम्बर हांसिल कर बुलन्दशहर के तुषार सिंह जाटव ने 100 फीसदी अंक अर्जित कर देशभर में कीर्तिमान स्थापित कर दिया।

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शिक्षा माफियाओं के दबाव में स्कूल और डिजिटल शिक्षा

जब तक सही समय न आये डिजिटल शिक्षा से काम चलाना बेहतर है -प्रियंका सौरभ
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल स्कूलों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन भारत में कुछ राज्य इन सबके बावजूद भी स्कूल खोलने की कवायद में जी- जान से जुड़े है। पता नहीं उनकी क्या मजबूरी है? मुझे लगता है वो स्कूल माफियाओं के दबाव में है। आपातकालीन स्थिति में इस तकनीकी युग में बच्चों को शिक्षित करने के हमारे पास आज हज़ारों तरीके है। ऑनलाइन या डिजिटल स्टडी से बच्चों को घर पर ही पढ़ाया जा सकता है तो स्कूलों को खोलने में इतनी जल्दी क्यों ? वैश्विक महामारी जिसमे सोशल डिस्टन्सिंग ही एकमात्र उपाय है के दौरान स्कूल खोलने में इतनी जल्बाजी क्यों ? सरकारों को चाहिए की जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आती स्कूल न खोले जाए। शिक्षा माफियाओं के दबाव में न आये। ऐसे लोगों को न ही ज़िंदगी और न बच्चों के भविष्य की चिंता है। इनको चिंता है तो बस फीस वसूलने की।

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कोविड-19 लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री का राष्‍ट्र के नाम संदेश

मेरे प्यारे देशवासियों,
कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई, बहुत मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है। आपकी तपस्या, आपके त्याग की वजह से भारत अब तक, कोरोना से होने वाले नुकसान को काफी हद तक टालने में सफल रहा है। आप लोगों ने कष्ट सहकर भी अपने देश को बचाया है, अपने भारत को बचाया है।
मैं जानता हूं, आपको कितनी दिक्कते आई हैं। किसी को खाने की परेशानी, किसी को आने-जाने की परेशानी, कोई घर-परिवार से दूर है। लेकिन आप देश की खातिर, एक अनुशासित सिपाही की तरह अपने कर्तव्य निभा रहे हैं। और आप सबको आदर पूर्वक नमन करता हूँ। हमारे संविधान में जिस “We the People of India” की शक्ति की बात कही गई है, वो यही तो है।
बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की जन्म जयंती पर, हम भारत के लोगों की तरफ से अपनी सामूहिक शक्ति का ये प्रदर्शन, ये संकल्प, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।

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तनाव रहित जीवन जीने का नुस्खा- एम. अफसर खान ‘सागर’

पुस्तक – जीवन के अनसुलझे रहस्य की खोज
लेखक – मनीष
प्रकाशक – नोशन प्रेस, चेन्नई
कीमत – 199 रुपए
जिन्दगी की भाग दौड़ में इंसान भौतिक संसाधन जरूर हासिल कर रहा है मगर उसके जीवन से सकून गायब सा होने लगा है। तनाव रहित जीवन जीने के लिए लोग न जाने कितने तदबीर कर रहे हैं। ‘जीवन के अनसुलझे रहस्य की खोज’ पुस्तक के माध्यम से मनीष ने मेडिटेशन और योग को अपना कर तनाव रहित जीवन जीने की कला को बहुत फलसफाने अंदाज में बयान किया है। लेखक ने बतलाया है कि योग सही तरह से जीवन जीने का विज्ञान है। यह व्यक्ति के सभी पहलुओं पर काम करता है – भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक। पुस्तक के माध्यम से लेखक ने लोगों को योग के गूढ़ रहस्यांे से परिचय कराया है। भारतीय रेल सेवा के अधिकारी मनीष ने अति दुरूह ध्यान प्रयोगों के माध्यम से उस रहस्य को जानने का कामयाब कोशिश किया है। लेखक ने तकरीबन पन्द्रह सालों तक विश्व के तमाम धर्मों के विभिन्न शाखओं का अध्ययन एवं समकालीन विचारकों के ग्रंथों का गहन अध्ययन एवं विशलेषण करने के पश्चात यह पुस्तक लिखा है। लेखक ने बतलाया है कि भारतीय दर्शन की नींव सत्य, प्रेम, अहिंसा एंव सर्व कल्याण को ध्यान में रखते हुए रखी गयी है। इस संस्कृति में सत्य को प्रतिपादित करते हुए मानव कल्याण की खातिर मनसा, वाचा, कर्मणा की अवधारणा को महत्व दिया गया है। लेखक बतलाता है कि हमारा सबका सुख सामूहिक सुख है, और दुःख है। भारतीय दर्शन में अध्यात्म मनुष्य के वास्तविक स्वरूप को जानने के साथ-साथ भौतिक जगत के सम्बंध को भी पहचाना है।

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विद्यालय में अभिव्यक्ति के मायने

जनवरी 2015 की एक सुबह, सूरज अपनी आग को शनैः-शनैः धधकाने कोशिश में था। सूरज का ताप ओढ़े हुए मैं अपनी बीआरसी नरैनी अन्तर्गत पू0मा0वि0 बरेहण्डा गया। प्रार्थना सत्र पूरा हो चुका था और बच्चे कमरों में बैठें या बाहर, शिक्षक और बच्चे यह तय कर रहे थे। यहां पहले भी जाना होता रहा है तो बच्चे खूब परिचित थे। पहुँचते ही बच्चों ने घेर लिया। सबकी चाह थी कि पहले मैं उनकी कक्षा में चलूँ। कोई हाथ पकडे था तो कोई बैग। मैंने सभी कक्षाओं में आने की बात कही लेकिन असल लड़ाई तो बस यही थी कि मैं पहले किनकी कक्षा में चलूँगा। खैर, मेरी काफी मान-मनौव्वल के बाद कक्षा 8 से मेरी यात्रा प्रारम्भ हुई। बाहर धूप में ही बच्चे बैठे थे। बातचीत शुरु ही हुई थी कि कक्षा 7 के बच्चे भी वहीं आ डटे। त्योहार और शीत लहर के कारण लगभग एक पखवारे की लम्बी छुट्टियों के बाद हम लोग मिल रहे थे। पिछले एक-डेढ़ महीने के अपने अनुभव बच्चों ने साझा किए। परस्पर खेले गये विभिन्न प्रकार के खेलों की चर्चा, घर में बने पकवानों की चर्चा, खेत-खलिहान की बातें, मकर संक्रान्ति पर पड़ोस के गाँव ‘बल्लान’ में लगने वाले ‘चम्भू बाबा का मेला‘ की खटमिट्ठी बातें। गुड़ की जलेबी, नमकीन और मीठे सेव, गन्ना (ऊख), झूला मे झूलने की साहस और डर भरी बातों के साथ साथ नाते-रिश्तेदारों की बातें, दादी और नानी की किस्सा-कहानी की बातें, गोरसी में कण्डे की आग में मीठी शकरकन्द भूनकर खाने की स्वाद भरी बातें और न जाने क्या क्या, हां, थोडा बहुत पढ़ने की बातें भी। बातें पूरी हो चुकने के बाद (हालांकि बच्चों की बातें कभी पूरी होती नहीं) ‘‘चकमक‘‘ के दिसम्बर अंक में विद्यालय के कक्षा 8 के बच्चों के छपे गुब्बारे वाले प्रयोग पर विचार-विमर्श हुआ। आगामी मार्च अंक के ज्यामितीय प्रयोग पर अभ्यास हुआ। ‘‘खोजें और जानें‘‘ के पिछले अंक में कवर पर छपे यहाँ की ‘बाल संसद‘ के चित्र पर भी बच्चों ने अपने और अपने माता पिता के अनुभव बताये। स्कूल की दीवार पत्रिका के आगामी अंक के कलेवर पर संपादक मण्डल के साथ बातें करके मुद्दे तय हुए। यह भी निर्णय हुआ कि अब हर अंक पर एक साक्षात्कार अवश्य छापा जायेगा। मनोज और केशकली मिलकर अपने गांव के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले का साक्षात्कार लेंगे। साक्षात्कार क्या है और क्यों? साक्षात्कार कैसे लें, क्या और कैसे बातें करें किन मुद्दों पर किस-किस तरह से प्रश्न किया जा सकता है। मिल रहे उत्तर से प्रश्न कैसे पकड़ें आदि बिन्दुओं पर थोड़ी बातें हुईं। थोड़ी ही देर में वे दोनों बच्चे 10-12 प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार कर लाये। वास्तव में प्रश्न चुटीले थे और उनसे कुम्हारगीरी का पूरा चित्र उभरने वाला था। मुझे बेहद खुशी हुई। कौन कहता कि सरकारी विद्यालयों में प्रतिभाएं नहीं है, कोई सोच नही है। उन्हें ऐसे बच्चों से मिलना चाहिए। अभ्यास के तौर पर कक्षा में ही दोनों बच्चों ने मेरा साक्षात्कार लिया।

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स्कूल जाने की खुशी में रात भर जागता रहा-प्रमोद दीक्षित ‘मलय‘

बात 1988 की है। मेरी इंटरमीडिएट की परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं और मैं बेसब्री से रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था। जून के मध्य में परिणाम आ गया। उस जमाने में आज के जैसी नेट की कोई सुविधा नहीं हुआ करती थी। परीक्षा परिणाम अखबारों के विशेष संस्करण में छपा करते थे। और दूसरे दिन देखने को मिला करते थे। रिजल्ट देखा, द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था, मुहल्ले के कुछ सहपाठी फेल हो गये थे और कालेज का रिजल्ट भी द्वितीय श्रेणी का था।। मुझे याद है, मेरी इस उपलब्धि पर भी घर और पास-पडोस में लड्डू बांटे गये थे। जुलाई आया और बी.ए. में स्थानीय महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया था। एक दिन बस ऐसे पिता जी ने पूछ लिया था कि मुझे आगे क्या करना है। मेरा उत्तर उन्हें खुश कर गया था क्योंकि मैंने परिवार की शिक्षकीय परम्परा को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था। मैंने कहा था,‘‘ मुझे सरकारी प्राईमरी स्कूल में शिक्षक बनना है। और अभी जल्दी बीटीसी प्रशिक्षण के लिए आवेदन हेतु विज्ञापन आने वाला है, मैं फाॅर्म डाल दूंगा।‘‘ ध्यान देना होगा कि उस समय प्राइमरी शिक्षक को बहुत कम वेतन मिलता था और बहुत कम बच्चे प्राथमिक शिक्षा में एक शिक्षक के रूप में जाना चाहते थे।

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‘शैक्षिक संवाद मंच’ की मासिक बैठक सम्पन्न

शिक्षक नियमित डायरी लिख कर अनुभवों को दर्ज करें: प्रमोद दीक्षित ‘मलय’
शैक्षिक साहित्य पढ़ने हेतु लघु पुस्तकालय बनाने का लिया गया निर्णय
बांदा, जन सामना ब्यूरो।‘‘शैक्षिक संवाद मंच’’ बांदा की मासिक बैठक सह कार्यशाला गत दिवस प्रा.वि. अतर्रा प्राचीन, अतर्रा में सम्पन्न हुई। बैठक का प्रारम्भ प्रमोद दीक्षित द्वारा प्रस्तुत चेतना गीत ‘जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो’ के सामूहिक गायन से हुआ। परस्पर परिचय के बाद मंच के संस्थापक प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ ने कहा कि शिक्षकों के लिए डायरी लेखन बहुत जरूरी है। हमारे विद्यालयों में कक्षा एवं कक्षा के बाहर तमाम रचनात्मक गतिविधियां आयोजित होती हैं। कुछ अनायास घटित हो जाता है जो महत्वपूर्ण होता है। ऐसे सभी अनुभवों को लिखना चाहिए ताकि भविष्य में काम आ सकें। मंच की ओर से शिक्षकों के अनुभवों को शामिल करके एक डायरी प्रकाशित की जायेगी। इस अवसर पर शिक्षकों द्वारा अपने डायरी-अंश पढे गये। शैक्षिक नेतृत्व एवं विद्यालय प्रबंधन अन्तर्गत पिछली बैठक में हुई चर्चा पर आधारित तीन समूहों द्वारा पोस्टर तैयार कर प्रस्तुतीकरण किया गया जिसमें एक अच्छे नेतृत्वकर्ता के गुणों को अंकित किया गया।

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शिक्षा का अधिकार,मौलिक अधिकार है-शिवकुमारी

हाथरस, नीरज चक्रपाणि। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वाधान में विधिक सेवा दिवस के अवसर पर एम.एल.डी.वी. इण्टर कालेज में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव श्रीमती शिव कुमारी की अध्यक्षता में किया गया।शिविर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव ने छात्र,  छात्राओं तथा जनता को शिक्षा का अधिकार, मौलिक अधिकारों तथा प्राधिकरण के उद्देश्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि शिक्षा के  अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया। किसी भी कार्य को करने के लिये जानकारी होना आवश्यक है तभी हम योजनाओं का लाभ उठा सकते है। सरकार द्वारा 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार दिया गया है। सचिव ने कहा कि पढ़ने के लिये कोई उम्र निर्धारित नहीं होती है। उन्होंने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों द्वारा यदि कोई अपराध किया जाता है किशोर न्याय  अधिनियम में उसे बाल अपचारी माना जाता है।

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