पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद जरूरी है वन्य जीवों का संरक्षण
वन्य जीव हमारी धरती के अभिन्न अंग हैं लेकिन अपने निहित स्वार्थों तथा विकास के नाम पर मनुष्य ने उनके प्राकृतिक आवासों को बेदर्दी से उजाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है और वनस्पतियों का भी सफाया किया है। धरती पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त उन सभी चीजों का आपसी संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है, जो उसे प्राकृतिक रूप से मिलती हैं। इसी को पारिस्थितिकी तंत्र या इकोसिस्टम भी कहा जाता है। धरती पर अब वन्य जीवों और दुर्लभ वनस्पतियों की कई प्रजातियों का जीवनचक्र संकट में है। वन्य जीवों की असंख्य प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। पर्यावरणीय संकट के चलते जहां दुनियाभर में जीवों की अनेक प्रजातियों के लुप्त होने से वन्य जीवों की विविधता का बड़े स्तर पर सफाया हुआ है, वहीं हजारों प्रजातियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वन्य जीव-जंतु और उनकी विविधता धरती पर अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का आधार रहे हैं। वन्य जीवों में ऐसी वनस्पति और जीव-जंतु सम्मिलित होते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता।
लेख/विचार
बसन्त
लो बसंत फिर से आया,
सज गई फूलों से हर डाली।
बह रही सुगंध लेकर हवा,
ये कूक रही कोयल काली।
धरती ओढ़ सतरंग चुनरिया,
लहराती खेतों में हरियाली।
मधु मस्त हो रहा है भंवरा,
रंग मोह में फंसी है तितली।
सज गए बौर से पेड़ यहां,
लग गई है बेर झरबैली।
महके पुष्प बेला, गेंदा,
जुगनू से रोशन रात रानी।
कामदेव ने रची कामना,
जीवन में भर गई खुशहाली।
बसंत पंचमी ऋतुराज बना,
बन गई “नाज़” भी ऋतु रानी।
विंशति-भुजा चक्रेश्वरी शासनदेवी की अनोखी मूर्ति
हिंदू एवं बौद्ध धर्म की भांति ही जैन धर्म में भी विभिन्न देवी एवं देवताओं का उल्लेख आता है। इन देवी एवं देवताओं को अधिष्टायिका देव-देवी, यक्ष-यक्षिणी व शासन देव-देवी आदि नामों से जाना जाता है। जैन ग्रन्थों में उल्लेखित प्रत्येक चौबीस तीर्थंकरों के अलग-अलग शासन देव और शासन देवियां होती हैं। जैन आगम के अनुसार प्रत्येक तीर्थंकर के समवशरण के उपरांत इन्द्र द्वारा प्रत्येक तीर्थंकर के सेवक देवों के रूप में एक यक्ष-यक्षिणी को नियुक्त किया गया है। हरिवंश पुराण के अनुसार इन शासन देव-देवीयों के प्रभाव से शुभ कार्यों में बाधा डालने वाली शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं।
Read More »ड्रोन खरीद से मजबूत होगी समुद्री सुरक्षा
इस माह की शुरुआत में अमेरिका ने 3.99 अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत पर भारत को 31 एमक्यू-9 बी सशस्त्र ड्रोन की बिक्री को मंजूरी प्रदान कर दी। इस सौदे से भारत की समुद्री सुरक्षा और समुद्री जागरुकता बढ़ेगी। इससे समुद्री मार्गों में मानवरहित निगरानी व टोही गश्त के जरिए वर्तमान एवं भविष्य के खतरों से निपटने के लिए भारत की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो जाएगी। समुद्री क्षेत्र में जागरुकता क्षमता का मतलब है कि समुद्री क्षेत्र से जुड़ी ऐसी हर बात को लेकर जागरुक होना जो सुरक्षा, अर्थव्यवस्था या पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा इस बिक्री से अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक संबंधों को भी मजबूती मिलेगी। साथ ही हिन्द-प्रशांत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आर्थिक प्रगति का नया मार्ग प्रषस्त होगा। सशस्त्र ड्रोन सौदे से सैन्य सहयोग और द्विपक्षीय रणनीतिक प्रौद्योगिकी सहयोग के आगे बढ़ने की प्रबल संभावनाएं बन गई हैं। इस ड्रोन सौदे की घोषणा जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ऐतिहासिक अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान की गई थी।
अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स से जिस मानवरहित प्रीडेटर ड्रोन एमक्यू-9 बी की खरीदारी पर मंजूरी मिली है वह संसार का सबसे उन्नत श्रेणी का ड्रोन है। इस मानव रहित प्रीडेटर ड्रोन एमक्यू-9 बी के दो वर्जन हैं। पहला स्काई गार्डियन और दूसरी सी गार्डियन। एमक्यू-9 बी, सी गार्डियन ड्रोन तीनों सेनाओं के लिए खरीदे जा रहे हैं। अमेरिका से लिए जाने वाले इन 31 ड्रोन में से 15 ड्रोन नौसेना को तथा आठ-आठ ड्रोन सेना व वायु सेना को दिए जाएंगे। सेनाएं एमक्यू-9 बी ड्रोन का उपयोग निगरानी एवं आक्रमण के लिए कर सकती हैं। इसके अलावा भी ये ड्रोन अन्य कई तरह की यौद्धिक भूमिकाएं निभा सकते हैं। इस मानवरहित प्रीडेटर ड्रोन ने अपनी पहली उड़ान दो फरवरी 2001 को भरी थी। यह ड्रोन थर्माेग्राफिक कैमरे और सेंसर से लैस है।
धर्म को पहना दिया गया लोकतंत्र का जामा !
जहां तक मैं देखती हूं और महसूस करती हूं कि दुनिया भर में धार्मिक कट्टरवाद हावी है और आज धर्म को ही लोकतंत्र का जामा पहना दिया गया है और लोग भी उसी की रोशनी में अंधे हो रहे हैं जबकि धर्म और राजनीति दोनों अलग – अलग बातें हैं। किसी भी परंपरा को निभाना धर्म नहीं है (टोपी, जनेऊ, चोटी, दाढ़ी) मानवता और व्यक्ति का मानसिक और चारित्रिक विकास ही धर्म है। लगभग सभी धर्म एक ईश्वरी शक्ति को मानते हैं, जिसने इस सृष्टि की रचना की है।
संत कबीर दास पाखंड का मजाक उड़ाते हुये कहते हैं, ‘‘चढ़ मुल्ला जा बांग दे क्या बहरा भयो खुदाय, ….बार बार के मूढ़ते भेड़ ना बैकुंठ जाये।’’ कबीर की परिभाषा में अजान पुकारना और सिर मुड़ाना धर्म नहीं है और ‘गीता’ में तो ‘कर्तव्य’ को ही धर्म माना गया है। जब ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं तब भी हम पाखंड को महत्व देते हैं। लोकतंत्र धर्म से जुदा एक अलग व्यवस्था है जो जनता के द्वारा जनता के लिए निर्धारित की जाती है।
जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि देश की व्यवस्था संभालता है लेकिन आज के बदलते हुए परिदृश्य में राजनीति को और भी ज्यादा मुश्किल बना दिया गया है जिसमें वैचारिकता नगण्य होकर ओछेपन की सीमाएं लांघ रहीं है।
सत्ता में बने रहने की हवस अब भाषा की मर्यादा भी खत्म कर रही है। राजनीति में वैचारिक मतभेद हमेशा से रहे लेकिन एक दूसरे के सम्मान का ध्यान रखा जाता था साथ ही भाषा की मर्यादा का मान भी रखा जाता था। वैचारिक मतभेदों की बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की अखंडता दिखाई देती थी। आज के इस बदले हुए माहौल में ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जो लोगों को दिखाई भी देते हैं और समझ में भी आते हैं लेकिन मीडिया दिखाती नहीं या फिर लोग नजरअंदाज कर देते हैं।
आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए चुनौतियाँ बढ़ते जा रही है।
प्रकृति में रंग भरती मोहित बंसल की बोलती पेंटिंग
कला का एक टुकड़ा किसी की रचनात्मकता को व्यक्त करता है। वह उसकी भावनाओं और विचारों का भी खुलासा करता है। कला के ये टुकड़े कहानियां कहते हैं। कला की प्रसांगिकता बनी हुई है तो इसलिए भी कि यह अपनी भावनायें व्यक्त करने का और रचनात्मक तरीका है। यह तनाव मुक्त करने का एक खामोश जरिया भी है। पेंटिंग के अनेक विषय हो सकते हैं उनमें प्रकृति से जुडी कलायें दृऔर काम आपको सर्वाधिक खींचती हैं। दर्शकों की यही चाहत कलाकर को और बेहतर करने को प्रेरित करती है।
युवा कलाकार मोहित बंसल की प्रकृति से जुड़ी पेंटिग्स आपको सुकुन देती है। उनकी रोमांचित करने वाली हैं।वह आपको अपनी तरफ खींचती है। एक कलाकार की यह चाहत होती है। प्रकृति से ही जीवन मिलता है । मोहित कहते हैं- वायल दृतैल्य माध्यम से बनी मेरी पेंटिग्स में नदियां, समुद्र , पहाड़ और पेड़-पौधे और प्रकृति की छाया की प्रमुखता ।
पिछले दिनो राजधानी दिल्ली में द हार्ट आफ आर्ट द्वारा देश व्यापी सतर पर आयोजित तीन दिवसीय पेंटिंग्स -कला प्रर्दशनी में देश भर के जिन दो सौ से अधिक कलाकारों ने भाग लिया उनमें मोहित बंसल की पेंटिंग भी थी। हालांकि इनमें खासकर युवा और मध्य आयु के कलाकार थे। अनेक नवोदित कलाकारों ने भी पेंटिग्स के जरिए अपनी रचनात्मक काम को भी दर्शकों की भारी भीड़ के सामने पेश की थी। पेश से प्राध्योगिकी इंजीनियर मोहित की पेंटिंग प्रदर्शनी परिषर में आकर्षण और कौतुहल के केंद्र में था। दर्शको की जिज्ञांसा से वह बहुत प्रसन्न हैं।
प्रकृति, व्यापक अर्थ में, प्राकृतिक दुनिया, भौतिक ब्रह्मांड, भौतिक दुनिया या भौतिक ब्रह्मांड के बराबर है। ष्प्रकृतिष् का तात्पर्य भौतिक संसार की घटनाओं से है, और सामान्य रूप से जीवन से भी है। प्रकृति हमारे चारों ओर और हमारे भीतर गहराई में मौजूद है। हम प्रकृति से अविभाज्य हैं – हमारे शरीर, जीवन और दिमाग उस हवा पर निर्भर करते हैं जिसमें हम सांस लेते हैं। पृथ्वी हमारी जीवन शक्ति को कायम रखती है। पृथ्वी के बिना – प्रकृति के बिना – हम क्या होंगे? युवा कलाकार की यह टिप्पणी खासे माने इसलिए भी रखते हैं क्योंकि तपकी धरती , कोयला उत्सर्जन और वायुप्रर्दूषण विषयों पर दुनिया के देश विमर्श कर रहें हैं। मोहित इनमें एक एक प्तनिधि सरीखे हैं जो प्रृति की पीड़ा को अपने ब्रश से पेश कर रहे हैं।
मोहित कहतें हैं प्रकृति पर आधारित कलाकृति कई रूप ले सकती है और कई उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती है। क्योंकि ‘प्रकृति’ एक ऐसा विशाल विषय है जिसमें बहुत सारी चीज़ें शामिल हैं। प्रकृतिष् का तात्पर्य भौतिक संसार की घटनाओं से है, और सामान्य रूप से जीवन से भी है।
अपने-अपने ‘भारत रत्न’
भारत रत्न पुरस्कार की चयन पद्धति क्या हो, निर्णय की प्रणाली क्या हो, इसमें कौन-कौन से लोग शामिल होने चाहिए? अभी इस पर बात नहीं हो रही है। अब तक जिन हस्तियों को भारत रत्न मिल चुका है। हम उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल नहीं उठाते। लेकिन एक प्रश्न जरूर है कि माँ भारती के वो लाडले आखिर हर बार क्यों छूट जाते है जिनको देश की जनता दिल से भारत रत्न मानती है। हमारे देश में कलंकितों और घोटालेबाजों को भी खैरात की तरह सम्मान बांटे जाने का इतिहास है। ऐसे में सवाल लाजिम है कि क्या इसमें भी प्रलोभन चलते हैं और लाबिंग होती है? अपना सर्वस्व न्यौछावर करके देश की आजादी के लिए के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ जाने वाले अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव को ‘भारत रत्न’ क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? क्या भारत रत्न जैसे सम्मान भी अब सरकारी हो गए हैं? जब सत्ता में एक पार्टी रहती है, तो वो अपने लोगों को सम्मानित करती है और जब दूसरी आती है, तो वो अपनों को इस सम्मान के लिए चुनती है। जिसकी भी सरकार होती है वो अपने लाभ-हानि के हिसाब से अपने-अपने भारत रत्न प्रदान करती है। इस पुरस्कार को लेकर संसद में एक कानून बनाकर एक दिशा-निर्देश तय किए जाने की आवश्यकता है जिसमें सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के निर्णय के अलावा विपक्षी पार्टियों और गैर सरकारी संस्थानों के अधिकारियों को शामिल किया जाना चाहिए। तभी इस सर्वाेच्च सम्मान की प्रतिष्ठा शिखर पर रहेगी। -डॉ. सत्यवान सौरभ
भारत की जिन विभूतियों ने अपनी ज़िन्दगी में ‘भारत रत्न’ के पैदा होने से पहले ऐसा रुतबा हासिल कर लिया हो तो क्या उन नामों को इस सम्मान से परे रखा जाना चाहिए? आप पूछेंगे कि यह सवाल क्यों किया जा रहा है? यह सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं क्योंकि भारत रत्न के मामले में कुछ ऐसी गलतियां हुई हैं जिसके बाद यह सवाल ‘भारत रत्न’ की हर घोषणा के साथ ज़िन्दा हो जाता है। देश के लिए अपनी जान तक न्योछावर करने वालों को शहीद का दर्जा देने में मुश्किलों का पहाड़ खड़ा करें और जब अपनी ही सरकार में सरकार के शीर्ष नेता को भारत रत्न मिले तो हज़ारों प्रश्न स्वयं पैदा हो जाते है।
कहां है बापू के सपनों का भारत ?
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों का भारत तो उसी समय मिट गया था जिस समय अहिंसा के पुजारी को हिंसा के आगे अपने प्राण न्यौछावर करने पड़़े थे। इतिहास का वह काला दिन था 3० जनवरी सन 1948, महात्मा गांधी की 125 वर्ष तक जीने की इच्छा सदैव के लिए उन्हें उस लोक में ले गई, जहां से कोई लौटकर नहीं आता। स्वयं तो चले गये और अपने पीछे छोड़़ गये असंख्य नेत्रों में अश्रु। पिछली शताब्दी के महान पुरूष के कितने ही अधूरे कार्र्याे को पूरा करने वाला आज कोई नहीं। आज एक कुर्सी खाली होते ही उसे भरने वालों की कतारें लग जाती हैं, परन्तु जो पद बापू के जाने के बाद रिक्त हुआ उसे आज तक कोई न भर सका।
वह बापू जिनकी हर बात एक कानून का काम किया करती थी, संकेत मात्र पर हजारों लोग मर-मिटने को तैयार हो जाया करते थे आज उन्हीं की सेवाओं को नकारने वालों की भी कमी नहीं है। महात्मा गांधी 125 वर्ष तक जीकर इस देश में राम-राज्य लाना चाहते थे। लेकिन जैसे-जैसे देश स्वराज प्राप्ति की ओर बढ़़ रहा था, विभाजन की मांग और साम्प्रदायिक दंगे भी बढ़ते जा रहे थे। यही कुछ ऐसे कारण रहे होंगे जिनसे उनमें जीने का उत्साह भी समाप्त हो चला था। वह अपने आपको बोझ मानने लगे थे। 15 अगस्त सन् 1947 को जहां एक ओर भारत स्वतंत्र हुआ वहीं हुए भारत मां के दो टुकड़़े उससे तो गांधी जी भी टूट कर रह गये। फिर भी वह अपने अंतिम समय तक भारत और पाकिस्तान को पुनरू एक करने के प्रयास करते रहे। इसी कड़़ी में ही गांधी जी ने सरोजिनी नायडू को पाकिस्तान भेजा बातचीत करने को अभी वह वहीं थी कि गांधी जी चलते बने और बात फिर खटाई में पड़़ गई।
बापू सच में महात्मा थे।
धार्मिक उन्माद का परिणाम थी महात्मा गांधी की हत्या
आज के दिन महात्मा गांधी की नाथूराम गोड़से ने हत्या करके देश का हीरो बनने की कोशिश की थी। महात्मा गांधी जैसा महान व्यक्तित्व शायद सदियों में पैदा न हो। भगवान ने मनुष्य को दुनिया का सबसे श्रेष्ठ प्राणी बनाया है क्योंकि उसके पास अनमोल वस्तु है दिमाग। उसके पास सोचने की शक्ति है, विचारों को प्रगट करने की स्वतंत्रता है, लेकिन यदि इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो यह बात खरी नहीं उतरती। हमेशा सच्चाई का गला घोंटा गया। अपने विचार दूसरों पर थोपने के लिए मजबूर किया गया। मानवता को कुचलने के लिए दरिन्दों ने हमेशा अत्याचार किए। सच्चाई के लिए सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा, ईसा मसीह को अपने कंधों पर सलीब ढोनी पड़ी, आजादी की मांग करने वालों को नाजी जर्मनों ने मौत के घाट उतार दिया। सत्य कहने वाले को या तो जेलो में भेज दिया गया या कठोर यातनाएं दी गई।
विश्व के सभी धर्म सद्भावना प्रेम, प्यार आपस में मेल जोल का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन इतिहास साक्षी है कि विश्व में सबसे अधिक खून खराबा धर्म के नाम पर ही हुआ है। गोडसे का कहना था कि अहिंसा के नारे में हिन्दुओं को नपुंसक बना दिया है। अतः हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर एक हिन्दू ने दूसरे हिन्दू की हत्या कर दी। वह भी ऐसे हिन्दू की जिसने सभी धर्मों का आदर किया था। भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा लेकिन जो भूमिका गांधी जी ने अदा की भारत ही नहीं पूरा विश्व उसे स्वीकार करता है। उस समय हिन्दुओं में एक ऐसा वर्ग भी था जो भारत के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को दोषी ठहराता था। कुछ लोग भारत के सम्राट शहीदों भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा को न रोकने के लिए महात्मा गांधी की मुख्य भूमिका मानते थे। महात्मा गांधी सदैव कहते थे कि पाकिस्तान का निर्माण मेरी लाश पर बनेगा लेकिन गांधी की विनम्र नीति पाकिस्तान बनने में सहायक साबित हुई। महात्मा गांधी ने सदैव नेहरू का पक्ष लिया।
1978 में संघ परिवार ने कर्पूरी ठाकुर व विश्वनाथ प्रताप सिंह का किया था विरोध
वह वर्ष 1978 था, जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने वंचित और हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। यह उस समय एक अद्वितीय पहल थी और ठाकुर उत्तर भारत में सामाजिक न्याय आंदोलन के एक वास्तविक अग्रदूत के रूप में उभरे।
ठाकुर तब जनता पार्टी में जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) गुट के समर्थन से अपनी सरकार चला रहे थे। बिहार में जनसंघ के संस्थापक कैलाशपति मिश्रा ठाकुर के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे।
वरिष्ठ समाजवादी नेता और राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘‘इस गुट के विधायक खुलेआम सड़कों पर आ गए, ठाकुर का विरोध किया और उन्हें मौखिक रूप से गाली दी।’’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं, जिनमें से अधिकांश ‘उच्च’ जाति से थे, ने नारा लगाया, ‘ये आरक्षण कहां से आई, कर्पूरी के माई बियायी।’ यह पूछता है, ‘यह आरक्षण कहां से आया? कर्पूरी की माँ ने इसे जन्म दिया है।’
संघ परिवार के कार्यकर्ता अक्सर हिंसक हो जाते थे और कई जगहों पर ‘उच्च’ जातियों को पिछड़ी जातियों के खिलाफ भड़काते थे, जिससे खूनी झड़पें होती थीं। इस आरक्षण के लागू होने के तुरंत बाद 1979 में ठाकुर की सरकार गिर गई, लेकिन ठाकुर ने इसे लागू करके सामाजिक न्याय आंदोलन के लिए एक आदर्श स्थापित किया जो आगे चलकर उत्तर भारत की राजनीति को प्रभावित किया।