गुनहगार की तरह अपने ही बच्चों को जन्म देने की सज़ा काट रहे होते है माँ-बाप उस वृद्धाश्रम नाम की जेल में। क्या महसूस करते होंगे वो बुढ़े मन सिर्फ़ सोचकर ही आँखें नम हो जाती है।
कोई कैसे द्रोह कर सकता है उस पिता का जिस पिता ने तुम्हारी जीत के लिए अपना सबकुछ हारा हो, और जिस माँ को तुमने हर बार हर मुश्किल पर पुकारा हो। बच्चें माँ-बाप के लिए जान से ज़्यादा किंमती जेवर जैसे होते है। बच्चों की एक आह और तकलीफ़ पर कलेजा कट जाता है माँ-बाप का। बच्चे का रोना सौ मौत मारता है माँ बाप को।
लेख/विचार
अपनी गलतियों, कमियों को स्वीकार करना, अपने सुरक्षित उज्जवल भविष्य का द्वार खोलने के बराबर
परिस्थितियों अनुसार थोड़ा झुकना, तालमेल बैठाना, भूल स्वीकार करना, गम खाना, जिंदगी को बहुत आसान, आनंदित करने का मूल मंत्र
वैश्विक रूप से मानव जीवन में हम देखें तो अधिकतम मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वह सब कुछ अर्जित करना चाहता है। मैं और सब कुछ मेरा, यह स्वाभाविक रूप से मानव जीवन का एक संकल्प है। आज इस मानव जीवन के दौर में और वह प्राप्त भी कर रहा है। मानव का यह स्वभाव है कि आज वह आधुनिक जीवन, सारी विलासितापूर्ण सुख सुविधाओं आराम देह जिंदगी को अपनी पहली पसंद बताना चाहेगा। स्वाभाविक रूप से आज के युग में यह ठीक भी है।…. बात अगर हम भारतीय अपने हमारे, बड़े बुजुर्गों की करें तो आज के युग में उनकी एक एक बात, वाणी, बोल, अनमोल हीरे की तरह हम अपनी जिंदगी में महसूस भी करते हैं।
टीकाकरण की धीमी प्रक्रिया कोरोना को फैलने की दावत दे रही है
लाॅकडाउन ज़्यादा से ज़्यादा कितने समय तक लगाते रहोगे ? जब लाॅकडाउन हटेगा तब वापस लोग इकट्ठा होंगे, काम काज हेतु घर से बाहर निकलेंगे तो कुछ संपर्क से और कुछ बेदरकारी से वापस कोरोना फैलेगा ही, और कोरोना की लहरें आती ही रहेंगी जब तक टीकाकरण की कारवाही संपूर्णत: पूरी नहीं होती।
वायरस के फैलने की गति से कितना प्रतिशत धीमी गति से टीकाकरण हो रहा है। कुछ सीनियर सिटीजन लोग एक डोज़ लेने के बाद दूसरे डोज़ को तरस रहे है। पहले उनसे कहा गया दूसरा डोज़ 6 सप्ताह के बाद लेना है, ऐसे में 18 प्लस की घोषणा कर दी उनको भी नहीं पहुँच पा रहे। उतने में तीसरी लहर बच्चों को भी चपेट में ले रही है। पहला डोज़ लेने वाले 6 सप्ताह बाद दूसरे डोज़ के लिए जाते तो अब कहा जाता है सरकार ने अब 12 सप्ताह के बाद दूसरा डोज़ लेने की गाइडलाइन जारी की है।
एलोपैथी वर्सेस आयुर्वेद, होम्योपैथी आपसी विवाद वर्तमान कोरोना काल में दुर्भाग्यपूर्ण
चिकित्सीय क्षेत्र में एलोपैथी और आयुर्वेद, होम्योपैथी के आपसी विवाद से कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी – एड किशन भावनानी
भारत में कोरोना महामारी से महायुद्ध में शासन-प्रशासन, न्यायपालिका क्षेत्र, चिकित्सा क्षेत्र, व्यापारिक, सामाजिक क्षेत्र, गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं, एनजीओस, धार्मिक संस्थाओं सहित अन्य क्षेत्र के नागरिकों सहित सभी एक साथ मिलकर, एक लक्ष्य से कोरोना महामारी को हराने के लिए रणनीतिक रूप से एक कुचल सैनिक बनकर युद्ध लड़ रहे हैं और मन में ठान लिया है कि कोरोना महामारी को भारत से, पूरी तरह से, जड़ से मिटा देंगे। दिनांक 25 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा घोषित आंकड़े दो लाख़ से भी कम बताए गए। जबकि एक महीने पूर्व चार लाख से अधिक रोज़ाना आंकड़े आ रहे थे।
फ़िज़ूल खर्च को पहचानो, कंपनियों के दावों को पहचानो
क्यूँ आज सबकी जेब पर बोझ पड़ रहा है ? क्यूँ महंगाई और सरकार को कोसते है सब। कभी ये क्यूँ नहीं सोचते की बिनजरूरी चीज़ों पर व्यर्थ खर्च कर रहे है हम। आज से कुछ साल पहले के रहन सहन में और आज के रहन सहन पर एक नज़र डालेंगे तो पता चल जाएगा कि कुछ चीजों पर कितना फ़िज़ूल खर्च कर रहे है हम। खुद को नये ज़माने के जताने के चक्कर में नयी नयी प्रोडक्ट से घर भर देते है। जीवन जीने के चोंचले बढ़ गए है।
ये जीवन-मृत्यु का गंभीर समय है, आपसी रस्साकशी का नहीं
(कोविड ने स्मार्ट गवर्नेंस की जगह पैदा कर दी है, सहकारी संघवाद के जरिये केंद्र और राज्यों को अविलंब विश्वास की कमी को दूर करना चाहिए, यह जीवन और मृत्यु का मामला है। आपसी रस्साकशी को रोकें जैसा कि दिल्ली और पश्चिम बंगाल में देखा गया है।)
21वीं सदी में कोरोना के क्रूर काल में हमें नागरिक केंद्रित शासन सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है, आज मानवता के सामने गंभीर और अभूतपूर्व समस्याएं हैं। मौजूदा सदी में सुपर साइक्लोन से लेकर उत्परिवर्तित वायरस का हमेशा के लिए खतरनाक चुनौतियों का सामना करने की संभावना है। ऐसे समय में स्मार्ट गवर्नेंस समय की जरूरत है।
महामारी के समय में नागरिक केंद्रित शासन को ध्यान में रखकर विशेषज्ञ निर्णय लेना अति आवश्यक था, शीर्ष डॉक्टरों, महामारी विज्ञानियों, वैज्ञानिकों, यहां तक कि रसद विशेषज्ञों की एक स्वायत्त पूरी तरह से अधिकार प्राप्त टास्क फोर्स को वायरस पर नज़र रखने, जीनोम अनुक्रमण, ऑक्सीजन के परिवहन और टीके की खरीद पर भारत का नेतृत्व करने की आवश्यकता थी।
कोरोना से भी ख़तरनाक वायरस पल रहे है हमारे भीतर
क्यूँ सब कोरोना को कोसते हो घ् ये तो महज़ छोटा सा वायरस है। कोरोना वायरस ने सिर्फ़ इंसानों की दुनिया ही तो हिला दी है। शरीर के भीतर घुसते ही सर से पैर तक हर अवयव को खोखला कर देता है और ये वायरस जान तक ले लेता है इतना ही तो ख़तरनाक है बस।
पर सोचा है। कभी समाज को और देश को खोखला करने वाले और धरती से इंसानियत को जड़ से ख़त्म करने वाले कोरोना से भी भयंकर और बर्बाद करने वाले कई वायरसों को हम अपने भीतर बड़े प्यार से गर्व के साथ पालते रहते है।लालच, स्वार्थ, इर्ष्या, किसीके प्रति वैमनस्य, धर्मांधता, छोटी सोच, कपट और षडयंत्र जैसे वायरसों को ख़त्म करने वाली वैक्सीन कब कोई विकसित करेगा। दिमागी कारखानों में हम पालते है इन सारे वायरसों को बड़े नाज़ों से, जो अपनेपन को, मानवता को, भाईचारे को और इंसानियत को निगल रहे है। देश में अराजकता और समाज में बैर भाव का ज़हर फैला रहे है। परिवारों को विभक्त कर रहे है।
कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों के भविष्य का रणनीतिक रोडमैप, योजनाएं सरकारों द्वारा तात्कालिक बनाना जरूरी
कोविड-19 से अनाथ बच्चों की मदद के लिए गैर सरकारी संस्थाओं, एनजीओस का बेसहारा बच्चों को सेवायज्ञ से मदद सराहनीय – एड किशन भावनानी
वैश्विक महामारी कोविड-19 ने काल का ग्रास बनाकर लाखों मानव जीवो की इह लीला समाप्त कर ली। और अभी भी तांडव मचाना जारी है।..बात अगर हम भारत की करें तो यहां इस महामारी की दूसरी लहर की तीव्रता में हल्का सा सुधार आना शुरू हुआ था, लेकिन इससे घातक बीमारी ब्लैक फंगस और वाइट फंगस ने तीव्रता से पैर पसारना शुरू कर दिया है और 15 राज्यों में पैर पसार दिया है जिसमें से 12 राज्यों ने इसे महामारी अधिनियम 1897 के तहत महामारी घोषित कर दिया है…बात अगर हम इन महामारीयों से ग्रस्त भारतीय परिवारों की करें तो इस भारी त्रासदी में देश के बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हो गए हैं
लेखक और वक्ता समाज का आईना
एक लेखक और वक्ता समाज का आईना होते है। दुन्यवी हर शै पर समाज के हर मुद्दों पर लिखन-बोलना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। पर आजकल के कुछ लेखक और वक्ता बिकाऊ सामान जैसे बन गए है। समाज को सही राह दिखाना और असत्य को कुरेद कर सत्य तक पहुँचना और सत्य को उसके असली स्वरूप में प्रजा के सामने रखना उनका धर्म है पर आज पैसों की खनकार पर नाचते नज़र आ रहे है।
लेखक की कलम और वक्ता की वाणी जब किसीकी गुलाम बन जाती है तब अपना मूल रुप और कलात्मक अभिव्यक्ति खो देते है। चाहे सरकार हो, चाहे कोई राजनीतिक पार्टी हो या कोई भी मुद्दा हो, एक तरफ़ा समीक्षा लोगों के दिमाग में उस मुद्दे के प्रति नकारात्मक ग्रंथी को जन्म देती है।
ब्लैक फंगस अनेक राज्यों ने महामारी घोषित किया- बच्चों, बुजुर्गों को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की तैयारी जरूरी
देश के भविष्य बच्चों और मार्गदर्शक बुजुर्गों की सुरक्षा, जीवनरक्षा के लिए तात्कालिक राष्ट्रीय रणनीतिक रोडमैप बनाना जरूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से महामारीओं, तूफान, ज्वालामुखी फूटना, जंगलों में आग इत्यादि अनेक प्राकृतिक विपत्तियों का पहाड़ सभी देशों पर टूट पड़ा है। जिसमें कोरोना महामारी से क़रीब क़रीब सभी देश ग्रस्त हुए हैं और बाकी तूफ़ान और ज्वालामुखी फटने की घटनाएं कुछ देशों में चालू है। हालांकि इनका सुरक्षित मुकाबला करने वैक्सीन का इज़ाद भी कुछ देशों ने किया है और टीकाकरण अभियान अनेक स्तर पर शुरू है तथा अमेरिका, ब्रिटेन, रूस सहित कुछ देशोंमें अधिकांश टीकाकरण पात्र लोगों को वैक्सीन लगा दी गई है। परंतु फिर भी वहां पूर्ण रूप से महामारी समाप्त नहीं हुई है।…