आधुनिकता के दौर में दीपोत्सव पर मिट्टी की दीये जलाने की परंपरा विलुप्त हो रही है। इससे सामाजिक रूप से व पर्यावरण पर ग़लत प्रभाव पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है। पर्यावरण को बचाने के लिए ज़रूरी है आमजन दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने व पटाखे नहीं चलाने का संकल्प लें। इस दीपावली मिट्टी के दीये जलाएँ, तभी पर्यावरण बचाने में हम सफ ल हो पायेंगे।आधुनिकता के दौर में दीपोत्सव पर मिट्टी की दीये जलाने की परंपरा विलुप्त हो रही है। इससे सामाजिक रूप से व पर्यावरण पर ग़लत प्रभाव पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है। पर्यावरण को बचाने के लिए ज़रूरी है आमजन दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने व पटाखे नहीं चलाने का संकल्प लें। इस दीपावली मिट्टी के दीये जलाएँ, तभी पर्यावरण बचाने में हम सफल हो पायेंगे।
लेख/विचार
मणिपुर की जातीय हिंसा, अधिकारियों की अग्नि परीक्षा
हिंसा और जातीय विभाजन के कारण एस्प्रिट डे कॉर्प्स (अधिकारियों के बीच एकता और आपसी सम्मान) तनाव में है, जिससे अधिकारियों के बीच सहयोग और विश्वास कमजोर हो रहा है। संघर्ष ने एआईएस अधिकारियों के बीच पारस्परिक सम्बंधों पर गहरा प्रभाव डाला है, सामाजिक आदान-प्रदान और सहयोग दुर्लभ हो गए हैं। नफ़रत फैलाने वाले भाषण, प्रचार और ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से सार्वजनिक चर्चा के ध्रुवीकरण ने रिश्तों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है, जिससे विभिन्न जातीय पृष्ठभूमि के अधिकारियों के लिए एक साथ काम करना मुश्किल हो गया है। मणिपुर में जातीय हिंसा ने गहरे जड़ें जमा चुके सांप्रदायिक संघर्षों से निपटने में भारत की प्रशासनिक प्रणाली की कमजोरी को उजागर कर दिया है। हालाँकि यह स्थिति अखिल भारतीय सेवाओं की अखंडता के लिए गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है, यह संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में शासन के दृष्टिकोण पर पुनर्विचार और सुधार करने का एक अनूठा अवसर भी प्रदान करती है। क्षमता निर्माण, अनुसंधान और नवीन नीति उपायों पर ध्यान केंद्रित करके, आईएएस और अन्य सेवाएँ संकट को एक सीखने के अनुभव में बदल सकती हैं जो भविष्य के संघर्षों में “स्टील फ्रेम” के लचीलेपन को मज़बूत करती है।
-प्रियंका सौरभ
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा 3 मई, 2023 को भड़क उठी। इस संघर्ष में 200 से अधिक मौतें हुईं और 60, 000 लोग विस्थापित हुए। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच संघर्ष की जड़ें मणिपुर के जातीय और ऐतिहासिक संदर्भ में गहराई से जुड़ी हुई हैं।
प्रियंका गांधीः 25 साल प्रचार, अब उम्मीदवार..
राजनीति की ‘स्टार’ प्रियंका गांधी कुछ ही वर्षों से कांग्रेस महासचिव है। पहले यूपी की प्रभारी भी रहीं। पार्टी में इस पद के पहले उनकी शुद्ध भूमिका प्रचारक की रही। पापा (पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी) के साथ अमेठी में राजनीति का ककहरा सीखा। मां सोनिया गांधी और पापा के बालसखा कैप्टन सतीश शर्मा के प्रचार की कमान संभाल कर व्यवहारिक पाठ पढ़ा। लगातार जीत का इतिहास गढ़ा। भाई राहुल गांधी के साथ विपक्ष में जीवन को कढ़ा। ढाई दशक तक केवल और केवल परिवार और पार्टी के लिए पसीना बहाते हुए प्रियंका गांधी अब राजनीति के उस मुकाम पर पहुंच रही हैं जो हर राजनीतिक का सपना होता है। वह चाहती तो कभी का इस मुकाम पर पहुंच चुकी होतीं लेकिन परिवार की मर्यादा तोड़ी न छोड़ी। सिर्फ मां, भाई और विरासत में मिली पार्टी की सेवा ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा।
हाँ! इन 25 वर्षों के प्रचार अभियान कभी मनमुताबिक मां और भाई को वोट न मिलने पर प्रियंका कार्यकर्ताओं नेताओं से नाराज भी हुई और अच्छा रिजल्ट आने पर सबकी तारीफ में भी कोई कमी नहीं की। यह उनका अपना स्टाइल है। पब्लिक से भावनात्मक और मुद्दे के रूप में ‘कनेक्ट’ करना जितना वह जानती हैं, उतना शायद ही कोई और नेता जानता हो। सोनिया गांधी के 20 वर्षों के कार्यकाल में हमने उनकी यह खूबी बहुत नजदीक से देखी है। एक अवसर तो ऐसा भी आया जब प्रियंका गांधी ने हम जैसे सामान्य पत्रकार को भी व्यक्तिगत रूप से जीत दिलाने में श्रेय देते हुए हाथ जोड़ दिए। ऐसा केवल हमारे साथ ही हो ऐसा भी नहीं। उन्होंने मां और भाई के चुनाव क्षेत्र में हर छोटे बड़े आम और खास सबका ख्याल रखा।
पीएचडी छात्रों के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के मायने
नेट पर बढ़ती निर्भरता अनजाने में भारत में शोध के दायरे को सीमित कर सकती है। अनुसंधान विचार, कार्यप्रणाली और परिप्रेक्ष्य की विविधता पर पनपता है। नेट जैसे मानकीकृत परीक्षण, जो आलोचनात्मक सोच पर याद रखने को प्राथमिकता देते हैं, ऐसे विद्वान पैदा कर सकते हैं जो परीक्षा उत्तीर्ण करने में माहिर हैं लेकिन ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाने की क्षमता का अभाव है, पूछताछ की यह संकीर्णता नवाचार और मूल विचारों के विकास, दोनों को सीमित कर सकती है शैक्षणिक क्षेत्रों में प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। पीएचडी प्रवेश के लिए प्राथमिक मानदंड के रूप में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) का उपयोग अकादमिक जांच और आलोचनात्मक सोच के दायरे को सीमित कर रहा है।
-प्रियंका सौरभ
नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट जिसे यूजीसी नेट या एनटीए-यूजीसी-नेट के रूप में भी जाना जाता है, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर के लेक्चररशिप के लिए योग्यता और भारतीय नागरिकों के लिए जूनियर रिसर्च फेलोशिप के पुरस्कार के लिए निर्धारित करने के लिए एक परीक्षा है।
दहन स्रोतों से बिगड़ती हवा की गुणवत्ता
स्वच्छ हवा हासिल करने के लिए हमें बेहतर विकल्पों या कुशल प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों की ओर जाना होगा।
नीति निर्माताओं को महामारी विज्ञान, पर्यावरण, ऊर्जा, परिवहन, सार्वजनिक नीति और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए। यह दृष्टिकोण जलवायु और वायु गुणवत्ता उपायों को गति देगा। हमें समझना होगा कि अधिकतम वायु प्रदूषण दहन स्रोतों से पैदा होता है। वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। पराली, आतिशबाजी और इंडस्ट्री का धुआं घातक हो रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपनी कमाई के सिवाय कुछ नहीं कर रहा। इंडस्ट्रियल एरिया में पुराने टायर जलाकर जहरीला वायु प्रदूषण रोजाना पैदा किया जा रहा है इसे कोई नहीं रोक रहा। इसलिए स्वच्छ हवा हासिल करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ये होगा कि फॉसिल ईंधन की खपत और उसे जुड़े उत्सर्जनों को कम किया जाए, जिसके लिए हमें बेहतर विकल्पों या कुशल प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों की ओर जाना होगा।
-डॉ सत्यवान सौरभ
निर्वाचन आयोग का हरियाणा चुनाव में गड़बड़ी से इंकार, क्या करेगी कांग्रेस ?
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतगणना के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी के कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया है। कांग्रेस की शिकायत थी कि डाक मतपत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली थी लेकिन ईलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की गिनती के बाद यह काफी कम हो गई।
कांग्रेस के आरोप पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा, ‘जनता मतदान में भाग लेकर सवालों का जवाब देती है। जहां तक ईवीएम का सवाल है वह 100 फीसदी फूलप्रूफ (सुरक्षित) हैं।’ उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले कहा कि पहले भी कई बार साबित हो चुका है कि ईवीएम सही है। इसमें किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं है।
महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों की घोषणा करने के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजीव कुमार ने एक बार फिर गारंटी दी है कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित है। पेजर से ईवीएम की तुलना पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा है कि पेजर कनेक्टेड होता है लेकिन ईवीएम किसी भी तरह से कनेक्टेड नहीं होता है इसीलिए इसे हैक नहीं किया जा सकता है।
ऋषि परम्परा के उद्योगपति रतन टाटा
रतन टाटा आजाद भारत में उद्योग जगत के ऐसे नायक कहें या महानायक थे जिन्हें हर कोई स्नेह करता था। वे 86 साल के थे, उनका जाना दुखी करता है लेकिन उनका जीवन कभी भी शोक का क्षोभ का कारण नहीं रहा । क्योंकि उनके हिस्से में यश-कीर्ति के अलावा कुछ और था ही नहीं। वे अपयश से कोसों दूर रहे। जो उनसे मिला वो भी और जो उनसे नहीं मिला वो भी रतन टाटा का मुरीद था।
मैं रतन टाटा से कभी नहीं मिला,लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वे हमारे घर के ही बुजुर्ग सदस्य हैं। वे न हमारी जाति के थे और न बिरादरी के ,फिर भी अपने से थे। वे पारसी थे ,ये बहुत कम लोग जानते होंगे,क्योंकि उन्होंने कभी अपने पारसी होने का डंका नहीं पीटा । हिन्दुस्तान के बच्चे -बच्चे की जुबान पर रतन टाटा का नाम था । आखिर क्यों न होता? एक जमाने में टाटा उद्योग समूह ने भारतीयों के लिए छोटे से लेकर बड़े उपभोक्ता सामिन का गुणवत्ता के साथ निर्माण किया और जन-जन तक उसे पहुंचाया। रतन टाटा दरअसल आज के भारत में एक अपवाद थे, जो उद्योगपति होते हुए भी सादगी पसंद थे। उनका जीवन हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है । उनके जीवन के तमाम ऐसे किस्से हैं जो आपको चौंकाएंगे भी और प्रभावित भी करेंगे।
आज के युग में जहाँ कोई भी उद्योगपति विवादों से परे नहीं है । विवाद भी ऐसे जो कि जो आपको हैरान भी करें और दुखी भी। लेकिन रतन टाटा इन सबसे बचे रहे। कैसे बचे रहे ये शोध का विषय हो सकता है। रतन टाटा को हालाँकि भारतरत्न अलंकरण नहीं मिला लेकिन वे थे तो भारतीय उद्योग जगत के रतन ही। उनकी चमक दमक आखरी वक्त तक कायम रही । उनका नाम सड़क से संसद तक सम्मान के साथ ही लिया गया । कभी किसी भी सरकार के साथ उनकी न नजदीकी रही और न दूरी। किसी सरकार को उनकी वजह से और उन्हें किसी सरकार की वजह से न विवादित होना पड़ा और न अपमानित। उन्हें लेकर संसद में कभी कोई उत्तेजक बस नहीं हुई ।
रतन टाटा को ईश्वर ने बेहद खूबसूरत बनाया था। वे यदि उद्योगपति न होते और फ़िल्मी दुनिया में काम कर रहे होते तो शायद वहां भी उनका स्थान शीर्ष पर ही होता । रतन जी खास होकर भी हमेशा आम आदमी कि बारे में सोचते थे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के छोटे बेटे की कल्पना से जैसे सबसे सस्ती पारिवारिक कार मारुति-800 का जन्म हुआ था उसी तरह रतन टाटा ने भी एक लाख की कीमत वाली नैनो कार का निर्माण कराया और आम आदमी के कार वाले सपनों में रंग भरे थे। नैनो को मारुति-800 जैसा प्रतिसाद नहीं मिला लेकिन उनकी सोच को प्रणाम किया गया और उसे एक कीर्तिमान की तरह हमेशा याद किया जाएगा।
रतन टाटा अविवाहित थे, क्यों थे इसकी एक अलग कहानी है।
देवी में निहित श्रृद्धा
शक्ति आराधना पर्व शारदीय नवरात्रि समापन की ओर है। हमने नौ दिवस माता के प्रत्येक रूप की महिमा एवं स्वरूप का गुणगान किया है। नौ दिन माँ ही हमारे लिए सर्वस्व रही है। प्रत्येक कन्या आदिशक्ति दुर्गाजी का प्रतिरूप है, जिसमें सृजन की शक्ति है जो सदैव परिवार के लालन-पालन, भरण-पोषण के लिए समर्पित रही है। जगतमाता जगदंबा ने प्रत्येक प्राणी को अपनी ममता की छाव प्रदान की है। सभी को संतति मानकर स्नेह और प्रेम से सींचा है। कन्या पूजन के समय हम कन्याओं को देवी का प्रत्यक्ष स्वरूप मानकर पूजते है, पर उस शक्ति स्वरूपिणी देवी की उत्कंठा, प्रताड़ना, भय, संत्रास, घुटन एवं पीड़ा हमें वर्ष भर दर्शनीय नहीं होती। भ्रूण हत्या के समय हम उस मातृ शक्ति को स्मरण रखना भूल जाते है। बलात्कार के समय हम उस देवी के आशीर्वाद, उसकी प्रार्थना, ध्यान, अर्चना एवं उसकी सृजन शक्ति सभी को नगण्य मानते है।
नारी की विशालता का वर्णन तो असंभव है। प्रत्येक स्वरूप में नारी ने उत्कृष्टता, समर्पण, श्रृद्धा, निष्ठा, त्याग एवं प्रेम को प्रदर्शित किया है। जब सीता बनी तो अपनी पवित्रता के लिए अग्निपरीक्षा दे दी। सावित्री बनी तो अपने पति के प्राणों के लिए निडर होकर यमराज के समक्ष प्रस्तुत हुई। राधा बनी तो प्रेम की उत्कृष्टता को दर्शाया। सती बनी तो पति सम्मान में देह त्याग दी। मीरा बनी तो सहर्ष विष का प्याला ग्रहण किया। लक्ष्मी बनी तो नारायण के चरण दबाकर सेवा का महत्व समझाया। उर्मिला बनी तब वियोग की पीड़ा को सहन किया। शबरी बनकर प्रभु के प्रति अगाध श्रृद्धा एवं भक्ति भाव को दर्शाया। भगवान शिव माता गंगा को शीश पर धारण करते है। वे नारी के प्रति सम्मान को बताते है। सीता स्वयंवर में नारी की स्वेच्छा को कितना महत्वपूर्ण बताया गया है।
आज पुनः महिषासुर रूपी राक्षस का आतंक, क्रूरता एवं भय दृष्टिगोचर हो रहा है। माता की पूजा शक्ति आराधना पर्व में तो हमने पूर्ण पवित्रता रखी है, परंतु हमारे विचार कलुषित हो गए है। वात्सल्य रूपी माँ भगवती को आज दैत्य शुंभ-निशुंभ एवं रक्तबीज का वध करना होगा। आज का मानव पुनः दानव में परिवर्तित होता नजर आ रहा है, जो स्त्री की गरिमा, निष्ठा एवं सम्मान का हनन कर रहा है, जिसके कारण दुर्गा रूपी कन्या का हृदय दहल गया है, जिससे शक्ति की आराधना करने वाले समाज में नारी स्वयं को असुरक्षित अनुभव करती है।
माँ के स्वरूप में आदि-अनंत, सृजन-विनाश, क्रूर-करुणा एवं काल सब कुछ व्याप्त है, तो माँ के इस स्वरूप के दर्शन हमें सदैव प्रत्येक नारी में करने चाहिए और कन्या के प्रति अपने विचारों को दिव्यता प्रदान करनी चाहिए।
हरियाणा ने जातिवाद को नकारा, क्षेत्रीय पार्टियां पूरी तरह साफ़
हरियाणा के जनादेश ने देश को एक बड़ा संकेत दिया है, उसकी तरफ़ भी लोगों को ध्यान देना चाहिए। हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टियां पूरी तरह साफ़ हो गई हैं। हरियाणा ने फिलहाल क्षेत्रवाद और जातिवाद को नकार दिया है। जनता ने चुप रहकर सबका हित चाहने वालों को दिया वोट। पब्लिक सब जानती है किस में और कहाँ है कितना खोट। कांग्रेस ने दो दिन खूब खुशियाँ मनाई, किसने रोका था, मना भी लेनी चाहिए। लेकिन अतिआत्मविश्वास बहुत घातक होता है, जो कांग्रेस के सर चढ़कर बोला दो दिन। इनको क्या पता था कि बिस्मार्क को पटकनी देगी बीजेपी। शाह की चाल बड़ी शांत है, मगर विजेता जैसी है। कौटिल्य भी हरियाणा के परिणाम देखकर सोच रहे होंगे कि मैं क्या पढ़ना भूल गया। एग्जिट पोल ने जैसी हवा छोड़ी, वह बिलकुल उल्टा हुआ है। इसका मतलब मीडिया और उसकी एजेंसियाँ जनता के हित में काम क्यों नहीं कर रही या इनको केवल अपनी टीआरपी और विज्ञापनों से मतलब है। ये एक तरह से धंधा है, इनको ये सब अफवाह फैलाने का पैसा मिलता होगा। एग्जिट पोल वालों कभी तो सही पोल दिखाओ,कांग्रेस वालों को डर था कि लोकसभा वाले एग्जिट पोल की तरह ये भी झूठ ना हो और झूठा साबित हो गया। खुले आम सट्टा चला, क्या ये कानून सही है? अगर नहीं, तो एजेंसियाँ इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करतीं?
-प्रियंका सौरभ
हरियाणा में मोदी के विकास और गारंटी की राजनीति का सिक्का चला
हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद यह पहला चुनाव था जिसमें विपक्ष खासकर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा और वह आत्मविश्वास से लबरेज थी। इस बार भी कांग्रेस का चुनाव प्रचार आक्रामक था और उसके निशाने पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस के बाकी नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मोदी को घेरने के लिये तरह तरह की धारणाएं बनाने की कोशिश की और ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई जैसे मोदी की लोकप्रियता ढलान पर है।
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की लगातार तीसरी बार स्पष्ट बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीत गई। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिये ये चुनाव वर्चस्व की लड़ाई थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन पहले की अपेक्षा कमजोर रहा था और उसने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बाकी घटक दलों के बल पर केन्द्र में सरकार बनाई है।