Saturday, May 18, 2024
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’नाचत श्याम मोरन संग मुदित ही श्याम रिहझावत’

⇒मोर कुटी पर हुई मयूर लीला देख गदगद हुए भक्त
मथुरा। ऐसी कोकिला अलावत पपैया देत स्वर ऐसो मेघ गरज मृदंग बजावत। रसिक शिरोमणि स्वामी हरिदास का यह पद श्याम सुंदर की मयूर लीला को दर्शाता है। पांच हजार वर्ष पूर्व द्वापर काल की लीलाओं के दर्शन आज भी ब्रज में जगह जगह देखने को मिलते हैं। मयूर लीला बरसाना के ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित प्राचीन लीला स्थली मोर कुटी पर श्रीराधारानी के जन्माभिषेक अगले दिन होती है। लीला में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण मोर बन श्री वृषभानु नंदिनी श्रीराधा के कर कमलों से मेवा, लड्डू आदि का भोग लगाते हैं। श्रीराधारानी की सखियां इस विचित्र मोर के रूप रंग का वर्णन और इस मोर की महिमा का गायन करती हैं। श्रीराधारानी द्वारा मोर भगवान को लड्डू भोग लगाया जाता है।

भक्तों को प्रसाद लुटाए जाते हैं। हजारों की संख्या में इस महाप्रसादी लड्डू को लूटने की होड भक्तों में लगी रही। एक दुसरे से लड्डू को लूटते हैं। वहीं मोर कुटी महन्त जयदेव बाबा मोर बिहारी जू के घोडा बन मोर बने भगवान श्रीकृष्ण को रास में घुमाया, और मोर बिहारी भगवान का स्वयं भोग लगाया। इस प्राचीन स्थल का प्राकट्य आज से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले ब्रजाचार्य श्रील् नारायण भट्ट जी जो देवऋषि नारद मुनी के अवतार कहे जाते हैं ने किया था। कहा जाता है कि पहले यहां सिर्फ रास चबूतरा था। इसके बाद जयपुर नरेश माधो सिंह ने इस चबूतरा पर एक कमरा बनवाया था। लेकिन आज प्राचीन स्थल पर एक भव्य मंदिर बना हुआ है। जहां आज भी राधा कृष्ण के मयूर चित्र की पूजा अर्चना होती है। कहा जाता है कि एक बार राधा रानी मोर देखने के लिए मोरकुटी पर पहुंची, लेकिन वहां एक भी मोर न दिखने पर वो मायूस हो गईं। वृषभानु नन्दनी श्रीराधा को उदास देख खुद भगवान श्रीकृष्ण मोर का रुप धारण कर नृत्य करते है। इस दौरान मोर को नाचता देख राधारानी उसे लड्डू खिलाती हैं तो तभी उनकी सखियां पहचान जाती है कि खुद श्याम सुंदर मयूर बन के आयौ है, कहती हैं राधा ने बुलायो कान्हा मोर बन आयो। आज ही के दिन श्रीराधारानी के निज महल में बाबा बृषभानोत्सव में बधाई गायन लीला होती है। ढाढिन ढाडी बाबा वृषभानु और कीर्ति मइया को नाज गाकर बधाई सुनाते है और बधाई लेकर खुशीयाँ मनाते हुए जाते है। जिनकी सेवा होती है वे गोस्वामी बडे जोरशोर से ढाढिन ढाडी को बधाई देते हैं। यह परपंरा सैकडों वर्षाे से श्रीजी मन्दिर में होती चली आ रही है। प्राचीन मोरकुटी स्थल पर कई संतों ने तपस्या की। वहीं राधा बल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवि नागरी दास ने भी इस प्राचीन स्थल पर तपस्या की थी। आज यहाँ जयदेवदास बाबा महाराज रहते जो आज के दिन मोरकुटी लीला के साथ सन्तो का भण्डारा व भक्तों को मोर भगवान के प्रसादी लड्डू लुटाये जाते है।

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