क्षेत्र के सबसे बड़े अवसरवादी नेता साबित हुए अतुल सिंह
रायबरेली ,पवन कुमार गुप्ता। कहते हैं कि जो भी क्षेत्रीय नेता अथवा कार्यकर्ता जिस पार्टी में रहता है उसी के नाम का जप वह आठोयाम करने लगता है लेकिन आश्चर्य तब होता है कि जब वही नेता जो कि एक राष्ट्रीय पार्टी का कार्यकर्ता हो और वह अपने स्वार्थ के लिए दल बदल ले तो उन नेता से जुड़े लोग यानि की समर्थक भ्रमित हो जाते हैं और दल बदलने वाले नेताओं के बहकावे में विकास के मायने को भी भूल जाते हैं और जो विपक्ष की बुराई करते रहते थे आज भी पक्ष में शामिल होकर उसका गुणगान कर रहे हैं।
राष्ट्रीय पार्टी भाजपा के क्षेत्रीय नेता जो कि दशकों से पार्टी के साथ जुड़े रहे अतुल सिंह ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया है। कहा जाता है कि भाजपा के सभी बड़े नेताओं और मंत्रियों के साथ अतुल सिंह की अच्छी खासी पकड़ थी उन्होंने सिर्फ अपने टिकट के लिए उस पार्टी को छोड़ दिया जिस के गुण वह हर पहर दोहराते थे। आज उन्होंने अपनी पार्टी की नीतियों को भूल कर कांग्रेस पार्टी की नीतियों से नाता जोड़ लिया है। कांग्रेस पार्टी से क्षेत्रीय नेता अतुल सिंह की उम्मीदवारी घोषित होने पर क्षेत्र में भ्रमण के दौरान उनका एक काफिला भी निकला जिसमें कई गाड़ियां शामिल थी इसके साथ ही समर्थक भी चौराहे पर उनका स्वागत करते नजर आए। देखा जाए तो यह एक तरीके का प्रदर्शन है और चुनाव आयोग के गाइडलाइन के अनुरूप भी नहीं है।
वहीं जनपद के अंदर दल बदल का यह खेल नया नहीं है। कई पार्टियों के साथ ऐसा हुआ है कि लोग विधायक के पद पर होते हुए भी जिस पार्टी के नाम पर विधायक बने उसी पार्टी को डूबती हुई समझ कर उभरती हुई पार्टी पर सवार हो लिए।
खैर, दशकों से जो कार्यकर्ता राष्ट्रीय पार्टी के साथ बने रहे और उसके विकास कार्यों का गुणगान क्षेत्र में जनता के सामने करते रहे आज वही नेता जब उन्हें पार्टी ने लाख कोशिशों के बावजूद टिकट नहीं दिया तो वह दूसरी राष्ट्रीय पार्टी पर सवार हो लिए।
गौर करने वाली बात यह है कि आखिर क्षेत्र की जनता ऐसे कार्यकर्ताओं पर ऐसे नेताओं पर क्यों भरोसा करती है जो कि अपनी भलाई के लिए,अपने स्वार्थ हेतु समय पड़ने पर पार्टी बदल लेते हैं। यदि इसे अनुशासन की दृष्टि से देखें तो क्षेत्र में होने वाली अधिकतर आपराधिक घटनाएं नेता और कार्यकर्ताओं की बदौलत होती हैं। क्योंकि आज जो नेता जिस पार्टी में है वह अपने समर्थकों को भी उसके अतिरिक्त किसी भी नेता पर भरोसा नहीं करने देते और इस पार्टीवाद के चक्कर में नेताओं के समर्थक चौराहों पर प्रचार/चर्चा के दौरान आपस में भिड़ जाते हैं और देखते ही देखते ऐसे विवाद एक बड़ा रूप ले लेते हैं जिसमें वही नेता अपना मतलब सिद्ध करते हुए नजर आते हैं।