मार्च 2017 में उप्र के चुनावी नतीजों के बाद देश भर के विभिन्न मीडिया सर्वे में जुलाई तक जिस मोदी को एक ऐसे तूफान का नाम दिया जा था जिसे रोक पाना किसी भी पार्टी के लिए ‘मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन है’, वही मीडिया सर्वे सितम्बर माह के आते आते मोदी के तेजी से दौड़ते विजयी रथ को ब्रेक लगाते दिखाई दे रहे हैं।
अगर उनके द्वारा दिए गए आंकड़ों की बात की जाए तो पिछले साल की तुलना में मोदी सरकार से संतुष्ट लोगों की संख्या में 2 प्रतिशत की गिरावट आई है (46 प्रतिशत से 44 प्रतिशत) वहीं दूसरी तरफ इस सरकार से असंतुष्ट लोगों की संख्या में 3 प्रतिशत से 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।
कल तक जो सोशल मीडिया मोदी की तारीफों से भरा रहता था आज वो ही विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार के दुष्प्रचार का सबसे बड़ा जरिया बन गया है।
बात यहाँ तक कही जा रही है कि ‘द टेलीग्राफ‘ के अनुसार संघ के एक अन्दरूनी सर्वे में यह बात सामने आई है कि 2019 में मोदी की चुनावी राह में बिछे फूलों की जगह काँटों ने ले ली है।
तो आखिर इन दो महीनों में ऐसा क्या हो गया?
देश की जनता जो मोदी के हर निर्णय को सर आँखों पर इस कदर बैठाती थी कि उसे श्अन्धभक्तश् तक का दर्जा दे दिया गया था आज देश हित में दूरगामी प्रभाव वाले पेट्रोल की बढ़ती कीमत को सहजता के साथ स्वीकार नहीं कर पा रहीं है।
लेख/विचार
बिटकॉइन आधुनिक दुनियाँ की मुद्रा या सिर्फ निवेश का नया माध्यम?
बिटकॉइन अगर ये शब्दसुनने के बाद आपके मन में आ रहा है के “शायद ये किसी देश की मुद्रा होगी और उस देश का नाम आपको नहीं पता ” अगर आप ऐसा ही सोचते है तो मैं आपको बताता चलु के आप नयी तकनिकी दुनियां से थोडा सा पीछे है ,दरसल बिटकॉइन किसी एक देश की मुद्रा का नाम नही है और ना ही इसका कोई आकार बल्कि ये एक नई और डिजिटल मुद्रा है। जो की अद्रश है जिसको ना तो हम अपनी जेब में रख सकते है और नाहीं छु सकते है दरसल इन दिनों इसका उपयोग सिर्फ कंप्यूटर नेटवर्किंग पर आधारित भुगतान हेतु किया जा रहा है। बिटकॉइन एक वर्चुअल यानी आभासी मुद्रा है आभासी मतलब कि अन्य मुद्रा की तरह इसका कोई भोतिक स्वरुप नहीं है यह एक डिजिटल करेंसी है | यह केवल इलेक्ट्रॉनिक स्टोर होती है अगर किसी के पास बिटकॉइन है तो वह आम मुद्रा की तरह ही सामान खरीद सकता है |
वर्तमान में संसार मे बिटकॉइन काफी लोकप्रिय हो रहा है इसका आविष्कार सातोशी नकामोतो नामक एक अभियंता ने 2008 में किया था और 2009 में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में इसे जारी किया गया था परन्तु ये अभी तक ज्ञात नही हुआ है के सातोशी नकामोतो असलियत में कौन व्यक्ति है बिटकॉइन के प्रसिद होने तक कई लोगो ने सातोशी नकामोतो होने का दावा की है परतु अभी तक ये पुख्ता नही हुआ है के असल व्यक्ति कौन है?
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साहब भारत इसी तरह तो चलता है
वैसे तो भारत में राहुल गाँधी जी के विचारों से बहुत कम लोग इत्तेफाक रखते हैं (यह बात 2014 के चुनावी नतीजों ने जाहिर कर दी थी) लेकिन अमेरिका में बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में जब उन्होंने वंशवाद पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में “भारत इसी तरह चलता है ” कहा, तो सत्तारूढ़ भाजपा और कुछ खास लोगों ने भले ही उनके इस कथन का विरोध किया हो लेकिन देश के आम आदमी को शायद इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा होगा। काबिले तारीफ बात यह है कि वंशवाद को स्वयं भारत के एक नामी राजनैतिक परिवार के व्यक्ति ने अन्तराष्ट्रीय मंच पर बड़ी साफगोई के साथ स्वीकार किया, क्या यह एक छोटी बात है? यूँ तो हमारे देश में वंश या ‘घरानों’ का आस्तित्व शुरू से था लेकिन उसमें परिवारवाद से अधिक योग्यता को तरजीह दी जाती थी जैसे संगीत में ग्वालियर घराना,किराना घराना, खेलों में पटियाला घराना,होलकर घराना,रंजी घराना,अलवर घराना आदि लेकिन आज हमारा समाज इसका सबसे विकृत रूप देख रहा है।
अभी कुछ समय पहले उप्र के चुनावों में माननीय प्रधानमंत्री को भी अपनी पार्टी के नेताओं से अपील करनी पड़ी थी कि नेता अपने परिवार वालों के लिए टिकट न मांगें। लेकिन पूरे देश ने देखा कि उनकी इस अपील का उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं पर क्या असर हुआ। आखिर पूरे देश में ऐसा कौन सा राजनैतिक दल है जो अपनी पार्टी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले एक साधारण से कार्यकर्ता को टिकट देने का जोखिम उठाता है?
उपेक्षा का शिकार हिन्दी
कहा जाता है कि ज्ञान जितना अर्जित किया जाये उतना ही कम होता है फिर चाहे वह किसी क्षेत्र का हो, सांस्कृतिक हो या भाषायी। लेकिन भाषायी क्षेत्र की बात करें तो हिन्दी भाषा को सम्मान व उचित स्थान दिलाने के लिए हर वर्ष पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। बावजूद इसके हिन्दी को उचित सम्मान नहीं मिल पा रहा है। ज्यादातर सरकारी विभागों में सिर्फ हिन्दी दिवस का बैनर लगाकर हिन्दी पखवाड़ा मनाकर इति श्री कर ली जाती है। यह एक श्रृद्धान्जलि ही हिन्दी के प्रति कही जा सकती है। वहीं न्यायालयी क्षेत्र की बात करें तो वहां भी सिर्फ लकीर ही पीटी जाती है। लिखा पढ़ी में अंग्रेजी प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है अपेक्षाकृत हिन्दी लिखने व बोलने वालों के। यह नारा भी सिर्फ मुंह चिढ़ाने के अलावा कुछ नहीं दिखता कि ‘हिन्दी में कार्य करें, हिन्दी एक….।।’ लेकिन क्या आप जानते हैं कि 14 सितम्बर के दिन ही हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है? कहा जाता है कि जब वर्ष 1947 में भारत से ब्रिटिश हुकूमत का पतन हुआ तो देश के सामने भाषा का सवाल एक बड़ा सवाल था क्योंकि भारत देश में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां थीं और उस दौरान भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा बनाए गए। बाद में डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष चुना गया। वहीं डाॅ0 भीमराव आंबेडकर संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी (संविधान का मसौदा तैयार करने वाली कमेटी) के चेयरमैन थे। संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। इसके बाद भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ।
Read More »रोहिंग्या शरणार्थियों का बढ़ता संकट
– डाॅ0 लक्ष्मी शंकर यादव
म्यामांर के रखाइन में 25 अगस्त को प्रातः 24 पुलिस पोस्ट और आर्मी बेस पर रोहिंग्या उग्रवादियों के हमले में एक दर्जन सुरक्षा कर्मियों सहित लगभग 89 लागों की मौत हो गई। स्टेट काउंसलर के कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक तकरीबन 150 रोहिंग्या उग्रवादियों ने दो दर्जन से ज्यादा पुलिस चैकियों एवं एक सैन्य अड्डे पर तेज हमला किया। इस हमले में देशी बारूदी सुरंगों का भी प्रयोग किया गया। रखाइन के साथ-साथ बुथिदाउंग शहर भी भीषण हिंसा का शिकार हुआ। धार्मिक घृणा के चलते बंटे तटीय देश में पिछले साल अक्टूबर से चल रही हिंसा में यह सबसे बड़ा भीषण हमला था। रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश से आए हुए बताए जाते हैं। अवैध प्रवासी बताकर म्यांमार ने इन्हें नागरिकता देने से इंकार कर दिया है। रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ पिछले वर्ष सेना ने बड़ी कार्रवाई की थी जिसके परिणामस्वरूप लगभग 87 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश चले गए थे।
म्यांमार के अशान्त रखाइन प्रान्त की स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। 24 अगस्त के हमले के बाद सेना ने रोहिंग्या विद्रोहियों और उनके अड्डों को खत्म करने का अभियान छेड़ दिया है। एक सितम्बर तक इस खूनी टकराव में लगभग 400 लोग मारे जा चुके हैं। म्यांमार सेना के द्वारा बताई गई जानकारी के मुताबिक मरने वालों में 370 रोहिंग्या विद्रोही, 13 सेना के जवान, दो सरकारी अधिकारी और 14 आम नागरिक हैं। इसके अलावा कुछ विद्रोहियों को पकड़ा भी गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस सैन्य अभियान के बाद 38 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश कर गए हैं और तकरीबन बीस हजार से ज्यादा शरणार्थी सीमावर्ती इलाकों में फंसे हुए हैं। इस दौरान शरणार्थियों से लदी एक नौका म्यामांर तथा बांग्लादेश को बांटने वाली नफ नदी में डूब गई थी जिसमें तकरीबन 40 लागों की मौत हो गई। बांग्लादेश के सीमाई इलाके काॅक्स बाजार में हजारों की तादाद में भूखे-प्यासे रोहिंग्या शरणार्थी पहुंच रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने हिंसा में आम लोगों मारे जाने की रिपोर्ट पर गहरी चिन्ता जताई है। गुतेरस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिका की ओर से जारी बयान में बांग्लादेश से शरणार्थियों का सहयोग करने आग्रह किया गया है।
हिंदी के श्राद्ध पर्व पर हिंदी पत्रकारिता का पिंडदान
हिंदी दिवसः पखवारे पर गुरू स्मरण
हिन्दी और हिन्दी पत्रकारिता के कर्मकांडी श्राद्धपर्व के माहौल में हिन्दी बोलने पर जुर्माने की सजा! हिन्दी का पिण्डदान करने सरकारी अय्याशों के साथ ‘कामसूत्र’ की नई विधा तलाशने का सपना संजोए हिंदी पुत्रों के विदेश जाने का शुल्क बस पांच हजार! देश में रोमन लिपि में लिखी हुई हिंदी का पाठ करके या फेसबुक पर हिन्दी के पुरखों का तर्पण करते हुए अंग्रेजी को एक आंख दबाकर सच्चे प्रेमी होने का दावा मुफ्त में बरकरार। हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता के शंकराचार्यों की पालकियां भी अपने-अपने मठों से निकल कर प्रेमचंद, निराला, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की परिक्रमा कर चंदे-धंधे जुगाड़ लेंगी और श्राद्ध पर्व का समापन हो जाएगा बगैर यह जाने, बांचे कि अरबी-फारसी, उर्दू, अंग्रेजी के मजबूत किलों को हिन्दी के किन महारथियों की कलम ने ध्वस्त किया था? हिन्दी पत्रकारिता के किस पितामह ने अपना सर्वस्व होम किया था। चंदनामों के आगे घंटा-घड़ियाल बजा उनकी आरती का सस्वर पाठ शायद रोजी-रोटी का इंतजाम कर देता हो, लेकिन नई पीढ़ी को तो अज्ञानता के प्रदूषण का शिकार बना रहा है। तभी तो ताजादम पत्रकारों की पीढ़ी ‘माधुरी’ पत्रिका का प्रकाशक ‘गंगा-पुस्तक माला’ और प्रेमचंद को ‘माधुरी’ का सम्पादन करने लखनऊ आने को लिखने की भूल कर बैठती हैं।
लखनऊ में हिन्दी पत्रकारिता के भीष्म पितामह आचार्य पं. दुलारेलाल भार्गव ने हिन्दी की कीर्ति पताका तब फहराई जब फारसी, उर्दू और अंग्रेजी आम भाषा थी। सबसे पहले उन्होंने सन् 1923 में ‘माधुरी’ का प्रकाशन अपने चाचा विष्णु नारायण भार्गव के साथ किया। इसके साथ ही लाटूश रोड स्थित अपने निवास से गंगा-पुस्तक माला प्रकाशन संस्था की शुरूआत की थी। इस संस्था में लाल बहादुर शास्त्री, निराला, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, गोपाल सिंह नेपाली, इलाचन्द्र जोशी, प्रेमचन्द, मिश्रबंधु जैसे दिग्गज भार्गव जी के सहयोगी रहे। सन् 1927 में ‘सुधा’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, इसमें उनके सहयोगी थे पं0 रूप नारायण पाण्डेय, इसके सह सम्पादक रहे प्रेमचन्द। एक सौ बीस पृष्ठ की पत्रिका में तीन-चार रंगीन चित्र छपते थे।
पुस्तकें भेंटकर स्वागत-सत्कार की पहल को सराहनीय पहल बताया
बांदा, शिव प्रसाद भारती। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी की तर्ज पर उ0प्र0 के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व म0प्र0 के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने भी अपना स्वागत बुके या अन्य भेंट वस्तुओं के स्थान पर पुस्तकों से करने का निर्णय लिया है। यह अत्यन्त सराहनीय कदम है, राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास ने भारत के प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का इस नये कदम का स्वागत किया है। इससे पुस्तक संस्कृति को निश्चय ही बढ़ावा मिलेगा और लोगों की पढ़ने-लिखने में रूचि बढ़ेगी।
राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास के बुन्देलखण्ड संयोजक ने कहा है कि प्रधानमंत्री जी ने जो पुस्तकें भेंटकर स्वागत-सत्कार की पहल शुरू की है। उससे समाज में एक नया सन्देश गया है। लेखक, साहित्यकार, कवि, चिन्तक, बुद्धजीवी वर्ग सोचने लगा है कि शासन के मुखिया द्वारा उनकी बात को महत्व दिया जा रहा है, इससे वे समाज से जुड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं। अन्यथा वे अपने को अलग-थलग समझते थे। अब उनमें जीवन्तता आयेगी।
देश में न्याय की उम्मीद जगाते हाल के फैसले
अभी हाल ही में भारत में कोर्ट द्वारा जिस प्रकार से फैसले दिए जा रहे हैं वो देश में निश्चित ही एक सकारात्मक बदलाव का संकेत दे रहे हैं। 24 साल पुराने मुम्बई बम धमाकों के लिए अबु सलेम को आजीवन कारावास का फैसला हो या 16 महीने के भीतर ही बिहार के हाई प्रोफाइल गया रोडरेज केस में आरोपियों को दिया गया उम्र कैद का फैसला हो , देश भर में लाखों अनुनाईयों और राजनैतिक संरक्षण प्राप्त डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम का केस हो या फिर देश के अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े तीन तलाक का मुकदमा हो। इन सभी में कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों ने देश के लोगों के मन में न्याय की धुंधली होती तस्वीर के ऊपर चढ़ती धुंध को कुछ कम करने का काम किया है। देश के जिस आम आदमी के मन में अबतक यह धारणा बनती जा रही थी कि कोर्ट कचहरी से न्याय की आस में जूते चप्पल घिसते हुए पूरी जिंदगी निकाल कर अपनी भावी पीढ़ी को भी इसी गर्त में डालने से अच्छा है कि कोर्ट के बाहर ही कुछ ले दे कर समझौता कर लिया जाए। वो आम आदमी जो लड़ने से पहले ही अपनी हार स्वीकार करने के लिए मजबूर था आज एक बार फिर से अपने हक और न्याय की आस लगाने लगा है। जिस प्रकार आज उसके पास उम्मीद रखने के लिए कोर्ट के हाल के फैसले हैं इसी प्रकार कल उसके पास उम्मीद खोने के भी ठोस कारण थे।
Read More »भारत विरोध की बढ़ती प्रवृत्ति
बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियां तथा आतंकवाद की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन ने पिछले कुछ समय में चटगांव के पहाड़ी क्षेत्रों से भारी मात्रा में अवैध हथियारों तथा गोला-बारूद के साथ अनेक जेहादियों तथा कट्टरपंथी आतंकियों को समय-समय पर गिरफ्तार किया है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ‘एनआईए’ को भी इस आशय की सूचनाएं निरंतर मिलती रही हैं कि बांग्लादेश के चटगांव स्थित पहाड़ी क्षेत्रों में कट्टर आतंकी गुटों तथा जेहादी संगठनों द्वारा आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाए जा रहे हैं।
‘एनआईए’ द्वारा इस प्रकार की सूचनाओं को बांग्लादेश रैपिड बटालियन के साथ साझा कर समय-समय पर आवश्यक कार्रवाई की जाती रही है। इन आतंकवाद निरोधी अभियानों में समय-समय पर भारी मात्रा में राइफल, पिस्तौल, आधुनिक आग्नेयास्त्र, विस्फोटक सामग्री तथा कारतूस इत्यादि जब्त किए जाते रहे हैं।
आतंकवाद के विरुद्ध आधी-अधूरी लड़ाई
आतंकवाद के अनेक खौफनाक विवरणों और उनके बढ़ते दायरे की दास्तानों के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि वे इतने सक्षम हो गए हैं कि संपूर्ण विश्व की शासन व्यवस्था को अपने हाथों में ले सकें। मुठ्ठीभर आतंकी केवल इसलिए अपनी शक्ति और दायरे को बढ़ा सके हैं, क्योंकि वैश्विक महाशक्तियों द्वारा निहित स्वार्थों के कारण उनको हथियारों से लेकर समस्त अन्य संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। बहरहाल अब यह सिद्ध हो गया है कि ‘अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद’ में अंतर का सिद्धांत पूरी तरह विफल रहा है। अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाने के बाद यह आतंकी संगठन अंततः किसी के भी नियंत्रण में नहीं रह जाते हैं और यह संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए घातक सिद्ध होते हैं। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रकार के अनुभवों के बाद वैश्विक महाशक्तियों को यह ज्ञान अवश्य हो गया होगा कि इस प्रकार की घातक रणनीति अंततः उनके लिए भी विनाशकारी सिद्ध होती है। वैसे भी वैश्विक महाशक्तियों का यह दायित्व बनता है कि वह संपूर्ण विश्व और मानव सभ्यता की सुरक्षा के प्रति अपने दायित्व और जिम्मेदारियों को न केवल ठीक से समझें, वरन पूरी ईमानदारी के साथ उसका अनुसरण भी करें।
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