विश्व में सुपरपावर बनने की चाह रखने वाले चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हकीकत में एक डरपोक व्यक्तित्व वाले लोग हैं। चीन की सीमा लगभग 20 अलग-अलग देशों से लगी है। इन तमाम देशों से चीन का सीमा को लेकर विवाद चल रहा है। चीन की सरकार अपनी जनता से भी हमेशा डरी रहती है। अपने लोगों की हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए चीन की सरकार ने अपने देश में सीसीटीवी कैमरे का एक विशाल नेटवर्क स्थापित कर रखा है। चीन की विशाल जनसंख्या के हर आदमी के एक-एक मिनट की जानकारी ये कैमरे लेते रहते हैं। चीन की जनता आनी सरकार से नाराज है। चीन अपने देश के अल्पसंख्यकों उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही है और उन्हें परेशान करने के लिए कैंपों में धकेल रही है। चीन ऐसा ही व्यवहार तिब्बत की जनता के साथ भी कर रही है। तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन की सरकार ने उनके धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की बात कही थी। पर अब तिब्बत की धर्म-संस्कृति को नष्ट करने के लिए चीन की सरकार उन पर जोर-जुल्म कर रही है।
इन सभी घटनाओं में चीन का डरपोक स्वभाव साफ दिखाई दे रहा है। चीन पड़ोसियों से डर रहा है। चीन अपनी जनता से डर रहा है। हद तो तब हो गई, जब चीन हांगकांग के 73 साल के बूढ़े व्यक्ति जिमी लाइ से भी डर रहा है। जिमी लाइ एक अखबार के मालिक हैं और चीन की सरकार के अत्याचारी कारनामों के खिलाफ निर्भीकता से आवाज उठाते हैं। परिणामस्वरूप चीन की सरकार समय-समय पर उन्हें गिरफ्रतार करती रही है। परंतु जिमी लाइ चीन सरकार के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं। हकीकत यह है कि चीन की सरकार अपने सामने आंख उठाने वाले हर किसी से डर रही है और अपनी ताकत दिखा कर उसे डराने की कोशिश कर रही है। जबकि जिमी लाइ अकेले चीन की सरकार से दो-दो हाथ कर रहे हैं।
अखबार के मालिक जिमी लाइ की कहानी भी जानने लायक है। हांगकांग के उत्तर-पश्चिम मेें मेनलैंड चीन का एक शहर है ग्वानचो। इसी शहर में सन 1948 में जिमी लाइ का जन्म हुआ था। जिमी लाइ का परिवार काफी अमीर था, पर 1949 में जब चीन में कम्युनिस्टों ने सत्ता संभाली तो जिमी के परिवार की तमाम संपत्ति जब्त कर ली गई। 1960 में चीन की सरकार से त्रस्त होकर जिमी का परिवार एक नाव में सवार होकर हांगकांग भाग गया। उस समय जिमी की उम्र 12 साल थी। हांगकांग में परिवार की मदद के लिए जिमी को जहां काम मिला, वहीं मजदूरी की। कुछ दिनों बाद उन्हें एक कपड़े की फैक्ट्री में काम मिल गया।
लेख/विचार
महिलाएंः आत्महत्या नहीं संघर्ष करो
आंखों में सतरंगी सपने सजा कर जीवन रूपी बाग में कदम बढ़ा रहा व्यक्ति जीवनपथ पर आगे बढ़ने के बजाय मृत्यु रूपी खाई में समा जाए तो आश्चर्य की अपेक्षा आघात अधिक लगता है। आखिर अचानक कोई व्यक्ति मृत्यु को अपना कर जीवन का करुण अंत क्यों पसंद करता है?
भारतीय समाज में पुरुष जहां 64 प्रतिशत आत्महत्या करते हैं, वहीं महिलाएं 36 प्रतिशत आत्महत्या करती हैं। परंतु लेंसेट पब्लिक हेल्थ के 2017 के सर्वे के अनुसार दुनिया की जनसंख्या की गणना के अनुसार युवा और मघ्यमवर्गीय युवतियों की आत्महत्या के मामले में भारत तीसरे स्थन पर है। सोचने वाली आत यह है कि अगर भारतीय स्त्री सहनशीलता-सहिष्णुता और संघर्ष की मूर्ति कहलाती है, तब पराजय स्वीकार करके जिंदगी से स्वयं पलायन करने का कदम क्यों उठाती है?
शिक्षा और आधुनिकता के विकास के साथ महिलाओं को सपना देखने वाली आंखें मिलीं तो खुले आकाश में उड़ने के लिए पंख मिले, साथ ही आकाश भी मिला। पर उसके आजादी के साथ उड़ने वाले पंखों को काट कर बीच में तड़पने के लिए छोड़ने की सत्ता समाज ने पुरुषों के हाथों मे सौंन दी। यह भी कह सकते हैं कि पुरुषों ने अपने पास रखी। हमारा पुरुष प्रधान समाज, अनेक खामियों वाली विवाह व्यवस्था, गलत सामाजिक मूल्य, अधिक संवेदनशीलता और स्त्रियों की परतंत्रता के कारण पैदा होने वाली लाचारी एक हद तक असह्य बन जाती है। ऐसे में भयानक हताशा ही स्त्रियों केा आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर करती है।
थाॅम्सन फाडंडेशन और नेशनल क्राइम ब्यूरो के पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार 15 से 49 साल की भरतीय महिलाओं में से 33-5 प्रतिशत घरेलू हिंसा, 8-5 प्रतिशत यौनशोषण, 2 प्रतिशत दहेज को लेकर महिलाओं ने आत्महत्या की है। भारत में संपत्ति के अधिकार से लेकर दुष्कर्म तक के कानून महिलाओें के हक में है, फिर भी देखा जाए तो महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है। अध्ययन कहते हैं कि अगर अन्यायबोध हमेशा चलता रहा तो मन में घुटन सी होती रहती है। अगर यह घुटन बढ़ती रही और रही और अपनी हद पार कर गई तो महिला आत्महत्या का मार्ग अपनाती है।
हिंदी भाषा- जरूरत जुड़ाव की
कोई भी भाषा खराब नहीं होती। हर भाषा अपने आप में समृद्ध है लेकिन जो भाषा बातचीत में सरल और स्पष्ट हो वही मान्य है। आम बोलचाल की भाषा में हिंदी सबसे सरल भाषा है। आप कहीं भी जाइए किसी भी प्रांत में वहाँ की भाषा न समझने पर हिंदी के जरिए हम अपनी बात आसानी से कह समझ लेते हैं लेकिन आधुनिकीकरण और समय के साथ समाज में हो रहे बदलाव ने हिंदी को नगण्य बनाकर रख दिया है। आज बच्चे हिंदी ठीक से पढ़ नहीं सकते, बोल नहीं सकते। यहाँ तक कि शिक्षक भी ठीक से हिंदी नहीं पढ़ाते। शिक्षकों को जानकारी का अभाव और अनुभव का न होना हिंदी जैसे विषय के लिए एक दुखद प्रश्न बनकर खड़ा है। बच्चे जब हिंदी ही सही तरीके से नहीं पढ़ सकते तो हिंदी साहित्य के बारे में क्या जानकारी हासिल करेंगे?
भारत-अमेरिका को लक्ष्य बना कर चीन चाहता क्या है ?
भारत और चीन के बीच तनाव घटने का नाम नहीं ले रहा है। देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अभी जल्दी ही रूस और ईरान की जो यात्र की है, चीन के साथ संभावित टकराव के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण है। राजनाथ सिंह ने इस यात्र के दौरान चीन के विदेशमंत्री से स्पष्ट कहा है कि सीमा पर शांति और सुरक्षा बहुत जरूरी है। इसके लिए आपस में विश्वास होना चाहिए। किसी भी तरह का उकसाने वाला कृत्य नहीं होना चाहिए। इंटरनेशनल नियमों के प्रति सम्मान होना चाहिए। तभी कोई शांतिपूर्ण हल निकल सकता है।
जबकि चीन की हरकतों से साफ लगता है कि चीन अभी भी भारत के साथ जबरदस्ती संघर्ष पर उतारू है। पिछले काफी दिनों से चीन की यह नीति रही है कि चीन अपने दो प्रतिद्वंद्वियों अंतराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और क्षेत्रीय स्तर पर भारत को अपनी ताकत दिखाने का प्रयत्न कर रहा है। इंडिया पेसेफिक क्षेत्र में अमेरिका के बर्चस्व को चुनौती देने के लिए चीन ने तमाम मिसाइलों के परीक्षण किए हैं। जबकि भारत को चुनौती देने के लिए चीन ने लद्दाख बार्डर पर सैनिकों को तैनात कर के एलएसी पर तनाव पैदा किया है।
प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, युवाओं को बना रही है आत्मनिर्भर
राज्य के शिक्षित बेरोजगार युवकों की बेरोजगारी की समस्या दूर करने और प्रदेश के हुनरमंद व कर्मठ युवाओं को अपने पैरो पर खड़ा करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की शुरूआत की है। इस योजना का मुख्य उदद्देश्य युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को अपना उद्योग शुरू कर स्वरोजगार स्थापित करने के लिए 25 लाख रूपये तक एवं सेवा क्षेत्र हेतु 10 लाख रूपये तक का ऋण बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है। इसमें राज्य सरकार द्वारा 25 प्रतिशत मार्जिन मनी अनुदान लाभार्थी को उपलब्ध कराया जाता है, जो कि उद्योग क्षेत्र हेतु अधिकतम रू0 6.20 लाख तथा सेवा क्षेत्र हेतु रु0 2.50 लाख तक देय होता है। जो उद्यम के दो वर्ष तक सफल संचालन के उपरान्त अनुदान में परिवर्तित हो जाता है।
प्रदेश में बहुत से ऐसे युवा है जो शिक्षित और किसी न किसी ट्रेड में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अपना खुद का कोई उद्योग, स्वरोजगार शुरू नहीं कर पाते। मुख्यमंत्री जी का ध्येय है कि राज्य के ऐसे युवा इस योजना के अन्तर्गत आवेदन करें और अपना रोजगार शुरू करे, इसके लिए सरकार उनकी आर्थिक सहायता करेगी। प्रदेश के युवाओं को मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजनान्तर्गत लाभान्वित कराते हुए उनको आत्मनिर्भर एवं सशक्त तथा आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनाने के लिए सरकार बड़ी तेजी से कार्य कर रही है।
आजीवन शिक्षा को समर्पित रहे डा0 राधाकृष्णन
कोरोनाकाल में त्योहार और धार्मिक-सामाजिक आयोजन मर्यादित लोगों की उपस्थिति में आयोजित हो रहे हैं। ऐसे में लगता यही है कि इस साल शिक्षक दिवस भी शायद बंद स्कूलों और कालेजों के माहौल में विद्यार्थियों की प्रत्यक्ष उपस्थिति के बिना ही मनाया जाएगा। पर इससे गुरु-शिष्य के परस्पर के प्रेम और आदर में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जिनके जन्मदिन पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, उन डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन को वैसे तो लोग देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में जानते हैं। परंतु उनकी असली पहचान अद्वितीय और आजीवन शिक्षक के रूप में है। जब वह देश के राष्ट्रपति के रूप में चुने गए तो 1962 में उनके विद्यार्थी उनके जन्मदिन को मनाने का निवेदन ले कर उनके पास आए। तब डा0 राधाकृष्णन ने उनसे कहा कि अगर मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाओगे तो मुझे विशेष खुशी होगी और तभी से राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितंबर देश के शिक्षकों के लिए समर्पित दिन बन गया।
5 सितंबर, 1888 के तमिलनाडु की राजधानी चेन्नै से 40 किलोमीटर दूर गांव तिरुतानी में डा0 राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। पूर्वजों का गांव सर्वपल्ली था, जो उनका कुलनाम बना रहा। निम्न ब्राह्मण परिवार के इस बच्चे के तहसीलदार पिता पढ़ाने के बजाय उसे मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे। पर वह पढ़-लिख कर हिंदू दर्शनशास्त्र के महान विद्वान और उच्चकोटि के दार्शनिक बन गए। डा0 राधाकृष्णन की लगभग समस्त शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल-कालेज में हुई। शायद यही वजह थी कि बाद में उन्होंने ‘द हिंदू व्यू आफ लाइफ’ जैसे ग्रंथ की रचना की, जिसमें क्रिश्चियन मिशनरी शिक्षण संस्थाओं के मुक्त वातावरएा का बखान किया गया है। वैसे मिशनरी स्कूलों में हिंदू धर्म को निम्न धर्म के रूप में पढ़ाया जाता था। किशोर-युवा राधाकृष्णन के मन पर इसका गहरा असर पड़ा। इसलिउ उन्होंने ‘द हिंदू व्यू आफ लाइफ की रचना की थी।
1904 से 1908 के दौरान उन्होंने मद्रास यूनीवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद दर्शनशास्त्र के महापंडित के रूप में प्रख्यात हुए राधाकृष्णन कालेज समय से ही दर्शनशास्त्र विषय की ओर आकर्षित हुए थे। उनका एक चचेरा भाई दर्शनशास्त्र से स्नातक था। छुट्टियों में उसकी किताबें राधाकृष्णन को मिलीं तो परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रख कर मुफ्रत में मिली किताबों की वजह से उन्होंने दर्शनशास्त्र को ही उच्च शिक्षा का विषय बनाया। एमए की डिग्री के लिए उन्होंने ‘वेदांत का नीतिशास्त्र’ पर शोध निबंध लिखा था।
डिजिटल हेल्थ मिशन से किस का होगा फायदा ?
स्वतंत्र दिवस के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘डिजिटल हेल्थ मिशन’ की घोषणा की थी। सरकारी सूत्रें के अनुसार पूरी तरह टेक्नोलॉजी आधारित इस पद्धति को लागू करने के बाद स्वास्थ्य सेक्टर में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। हर नागरिक को एक हेल्थ आईडी कार्ड मिलेगा, जिसमें उसकी स्वास्थ्य संबंधी तमाम जानकारियां हांगीं। सरकार का मानना है कि इस योजना के लागू होने के बाद गैरजरूरी दवाओं और नकली मेडिकल बिलों पर लगाम लगेगी।
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन कहने के लिए तो भारत सरकार की योजना है, जिसे 2018 में नीति आयोग की सलाह पर स्वास्थ्य विभाग के एक पैनल ने तैयार किया था। पर हकीकत यह है कि यह एक तरह से बड़ी दवा कंपनियों, अस्पतालों की चेन चलाने वाले कार्पोरेट घरानों, बड़ी प्राइवेट लैबोरेटरियां और वैक्सीन से जुड़ी कंपनियों के एजेंडै का विस्तार है। केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले में जो ब्लूप्रिंट तैयार किया है, उसे ध्यान से देखें तो बारबार पढ़ने में आता है कि देश के लोगों को इससे बहुत लाभ पहुंचेगा। जबकि हकीकत में कहीं यह नहीं बताया गया है कि लोगों को इससे किस तरह फायदा पहुंचेगा। इस मिशन के अंतर्गत छह डिजिटल सिस्टम तैयार करने की बात की गई है- हेल्थ आईडी, डिजिडाक्टर, हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री, पर्सनल हेल्थ रेकार्ड, इन्फार्मसी और टेलिमेडिसिन। अब सोचिए कि यह सब बन जाएगा तो इससे सामान्य आदमी को क्या फायदा होगा और किस तरह होगा?
हकीकत में यह पूरा ब्लूप्रिंट सामान्य आदमी का मेडिकल डेटा एक जगह इकब््ठा करने की बात करता है। इसमें कहीं भी स्वास्थ्य के मुलभूत ढ़ांचे को सुधारने की बात नहीं कही गई है। न ही सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का कोई उल्लेख है, न ही डाक्टरों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई है और न ही नर्सिंग स्टाफ की संख्या या गुणवत्ता सुधारने की बात। सही दाम पर जेनेरिक दवा आसानी से लोगों को किस तरह मिलेंगी, इसका भी इसमें कोई उल्लेख नहीं है। अगर में गांवों अस्पताल नहीं खुलेंगे, सरकारी अस्पतालों की स्थिति नहीं सुधरेगी, डाक्टरों की संख्या नहीं बढ़ेगी और स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह प्राइवेट सेक्टर के हवाले कर दिया जाएगा तो लोगों को हेल्थ आईडी कार्ड बनवाने से क्या फायदा होगा? क्या कार्ड बन जाने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने लगेंगी? इस समय कोरोना वाइरस ने देश की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल वेसे ही खोल दी है। फिर भी सरकार इसमें सुधार करने के बजाय हेल्थ आईडी बनाने में लगी है।
दरअसल, यह आधार कार्ड जैसी ही एक योजना है। जिसमें हर व्यक्ति के पास से उसके स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम जानकारी प्राप्त की जाएगी। उसके तमाम हेल्थ पैरामीटर उसमें नोट रहेगें। जिसमें व्यक्ति की ऊंचाई, वजन, रक्त का दबाव, सुगर का स्तर, एलर्जी से होने वाली बीमारियां, उसकी अब तक हुई जांचें, वह जो दवाएं ले रहा होगा, उसकी जानकारियां, किन-किन डाक्टरों को दिखया है, वैक्सीन ली है या नहीं, स्वास्थ्य बीमा है या नहीं, ये तमाम जानकारियां उस कार्ड में रहेंगी। सरकार ये सारी जानकारी लोगों से किस तरह लेगी, इसलिए उसमें ‘डिजिडाक्टर’ और ‘हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री’ की बात भी जोड़ दी गई हैै। जिसके अंतर्गत देश के सभी डाक्टरों को डिजिटल रेकार्ड बनाने और स्वास्थ्य सेवाएं यानी कि अस्पताल वगैरह की जानकारी देने की बात शामिल की गई है। सही बात तो यह है, इसका उद्येश्य लोगों को भ्रम में रखना है कि सरकार यह काम तुम्हारे लिए कर रही है।
आदत से मजबूरः चालबाज चीन की चालाकियाँ
प्राचीन काल से भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं। परंतु सीमा विवाद का भी अपना एक इतिहास है। जिसके तीन प्रमुख सैन्य संघर्ष हैं- 1962 का भारत चीन युद्ध 1967 का चोल घटना 2017 में डोकलाम क्षेत्र में विवाद और हाल ही में मई महीने के अंत में गए गलवान नदी की घाटी में भारतीय सड़क निर्माण पर चीन को आपत्ति थी जो 25-26 जून को काफी उग्र झड़प हुई और दोनों तरफ के कई सैनिक मारे गए। खास तौर पर भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए।
इस झड़प के बाद दोनों देशों ने शांति पूर्वक विवाद सुलझाने की कोशिश की परंतु विवादित सीमा क्षेत्रों में चीन तेजी से बड़े पैमाने पर अपने बुनियादी ढांचे को बढ़ा रहा है तो इसी बीच भारत ने भी 12000 अतिरिक्त श्रमिकों व सीमा सड़क संगठन (बी आर ओ) के साथ बुनियादी ढांचा पूरा किया गया गलवान घाटी की घटना के पूर्व संपूर्ण देश में आक्रोश उत्पन्न हुआ जो गुस्सा चीनी उत्पादों के बहिष्कार के रूप में फूटा वहीं सरकार ने भी अपनी कार्यवाही पूरी करते हुए चीनी एप्स पर कड़ा प्रतिबंध लगाया सबसे लोकप्रिय टिक टाॅक पर।
अब अगस्त महीने के अंत तक आते हुए भारत ने भी चीन को उसकी भाषा में समझा दीया उसकी कमर व्यवसायिक रूप में तोड़ी आत्मनिर्भर भारत के तहत व सीमा क्षेत्रों पर भी। चीन हमेशा कमांडर लेवल की बातचीत के दिखावे के दौरान अवैध तरीके से सीमा पर कब्जा करता था और सीमा पर डटे वीरों के साथ उग्र झड़प पर उतर आता था परंतु इस बार भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) जिन्होंने 1962 के युद्ध पूर्व चीन को खदेड़ा था। उन्हीं वीरों ने चूशूल घाटी व पैंगोंग सो नदी के दक्षिणी किनारे की तरफ रेकिन पीक को वापस हासिल कर लिया जो चीन ने 1962 की लड़ाई में कब्जा कर लिया था। साथ ही भारतीय सैनिक दमचोक व चुमर पर अपना प्रभुत्व बनाए हुए हैं व नजर लहासा काशगर हाईवे पर भी रखी है जो चीनी सेना का मुख्य रसद की आपूर्ति है। हालांकि हमारे एक वीर कंपनी लीडर नयामा तेंजिन इसी एस एफ एफ के शहीद हो गए उनका पार्थिव शरीर तिरंगे व पहाड़ी शेर (आजाद तिब्बत का ध्वज) में लिपटा हुआ अपने गांव आया। अनेकों तिब्बती व नेपाल के कई लोग हमारी सेना में शामिल हो चुके हैं और डटकर दुश्मन का सामना करते हैं उन्हें स्थानीय क्षेत्रों का ज्ञान भी है।
प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, युवाओं को बना रही है आत्मनिर्भर
राज्य के शिक्षित बेरोजगार युवकों की बेरोजगारी की समस्या दूर करने और प्रदेश के हुनरमंद व कर्मठ युवाओं को अपने पैरो पर खड़ा करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की शुरूआत की है। इस योजना का मुख्य उदद्देश्य युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को अपना उद्योग शुरू कर स्वरोजगार स्थापित करने के लिए 25 लाख रू0 तक एवं सेवा क्षेत्र हेतु 10 लाख रू0 तक का ऋण बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है। इसमें राज्य सरकार द्वारा 25 प्रतिशत मार्जिन मनी अनुदान लाभार्थी को उपलब्ध कराया जाता है, जो कि उद्योग क्षेत्र हेतु अधिकतम रू0 6.20 लाख तथा सेवा क्षेत्र हेतु रु0 2.50 लाख तक देय होता है। जो उद्यम के दो वर्ष तक सफल संचालन के उपरान्त अनुदान में परिवर्तित हो जाता है।
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जातिवादी ताकतों के खिलाफ आवाज़ उठाकर न्याय की लड़ाई लड़ने और ढोंगी बाबाओं के आश्रम में चल रहे गलत कामों को उजगार कर उनका असली चेहरा दुनिया के सामने पेश करती है बॉबी देओल की आश्रम सीरीज -डॉo सत्यवान सौरभ
प्रकाश झा की नई वेब सीरीज आश्रम 28 अगस्त को रिलीज हो चुकी है, इस सीरीज के जरिए प्रकाश झा आधुनिक जमाने के बाबाओं और संत-महात्माओं की कहानी लोगों के सामने पेश करने में कामयाब हुए है . इस सीरीज के जरिए बॉबी देओल भी डिजिटल डेब्यू कर गए हैं. वेब सीरीज में असली सच को दिखया गया है कि किस तरह एक बाबा आम लोगों से लेकर राजनीति के गलियारों तक अपना रसूख रखता है.
बाबाओं को किस तरह हमारे देश में भगवान का दर्जा दिया जाता है, इस सीरीज में दिखाया गया है,ढोंगी बाबाओं के द्वारा कैसे लड़कियों और औरतों के साथ होने वाले अत्याचार से लेकर उनकी रहस्यमयी दुनिया को भी उजागर किया जाएगा.