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Daily Archives: 10th February 2019

शिवपाल यादव का 64वां जन्मदिन मनाया

कानपुर। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव का 64वां जन्मदिन रामादेवी में स्थित नरेश सिंह चौहान प्रदेश सचिव (यूथ ब्रिगेड) के कार्यालय में केक काटकर बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर सभी कार्यकर्ताओं ने चाचा जी यानिकि शिवपाल यादव की लंबी उम्र की कामना कामना की और ढेरों बधाई दी। इस मौके पर इरफान अहमद (महाराजपुर विधानसभा), राजकिशोर, ऋषभ राज, अर्चना सिंह, राजेश सिंह, यश गुप्ता, जयदेव कुमार, बबलू यादव, शिवानी सिंह, राजन, रामसजीवन, सत्यम तिवारी, शुभम तिवारी, अजीत कुमार, अशद अख्तर आदि लोग मौजूद रहे।

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स्वाइन फ्लू के वायरस के उपायों एवं उपचार के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी हेतु सघन प्रचार-प्रसार के मुख्य सचिव के निर्देश

स्वाईन फ्लू से ग्रसित कैटेगरी-सी के रोगियों के स्वाब नमूनों की प्रयोगशाला में निःशुल्क जांच की सुविधा प्रयागराज तथा झांसी जनपदों में भी उपलब्ध करायी जाए: मुख्य सचिव
लखनऊ, जन सामना ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव डाॅ0 अनूप चन्द्र पाण्डेय स्वाइन फ्लू (एन्फ्लुएन्जा-ए-एच1एन1) के सम्बन्ध में आमजन को इस वायरस जनित रोग के प्रमुख लक्षणों, रोकथाम एवं बचाव के उपायों एवं उपचार के सम्बन्ध में व्यापक जानकारी दिए जाने हेतु सघन प्रचार-प्रसार कराए जाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि प्रचार अभियान के दौरान इस बात की विस्तृत जानकारी दी जाए कि आमजन इस सम्बन्ध में क्या करें या क्या न करें।

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प्राथमिक शिक्षा में विज्ञान शिक्षण की चुनौती भरी राह

विज्ञान का अध्ययन बच्चों को तर्कशील एवं विवेकवान बनाता है। वे अवलोकन, प्रेक्षण, परिकल्पना, प्रयोग, निरीक्षण एवं निष्कर्ष के सोपानों से गुजरकर किसी तथ्य का अन्वेषण करते हुए एक सैद्धान्तिक फलक की रचना करते हैं जिसमें सच की इबारत लिखी होती है। फलतः बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टि एवं सोच विकसित होती है और वह किसी घटना के निहितार्थ को विज्ञान की कसौटी पर कस कर ही आगे बढ़ते हैं न कि आंख मूंद स्वीकार कर अंधविश्वास के गहन अंधेरे पथ पर फिसलतेे हैं। अवैज्ञानिक सोच का ही परिणाम है कि कभी गणेश मूर्तियां दूध पीने लगती है तो कभी क्रास से रक्त की धारा फूट बहने लगती है। आस्था, कर्मकाण्ड या अंधविश्वास का रास्ता विज्ञान के प्रासाद के द्वार पर आकर ठहर जाता है। विज्ञान के उपवन में अंदर वही प्रवेश कर सकता है जिसकी चेतना विज्ञानमय हो और दृष्टि एवं सोच दर्पण की मानिंद निर्मल। पर दुर्भाग्य से देश में ऐसा है नहीं। उपग्रह प्रक्षेपण के पूर्व विध्नहरण के लिए वैज्ञानिकों द्वारा किये जाने वाले हवन-पूजन के दृश्य उनके स्वयं के प्रयोग के विश्वास प्रति सवाल खड़ा करते हैं। यदि विज्ञान के शिक्षक बिल्ली के रास्ता काट जाने पर अपनी यात्रा स्थगित कर दें, सिर पर कौवा बैठ जाने को मृत्यु की सूचना समझ लें, रास्ते पर पानी से भरी बाल्टी और बछड़े को दूध पिलाती गाय मिलना शुभ और सफलता की गारंटी मान लिया जाये तो सोचना पडेगा कि वह विद्यार्थियों को कैसा विज्ञान बोध करा रहे होंगे। उल्लेखनीय है कि बच्चों में इसका बीजवपन समाज एवं घर-परिवार द्वारा पहले ही कर दिया गया होता है और हमारी प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र उसके निर्मूलन की बजाय खाद-पानी दे पोषण का काम करते हैं। कालेज तक आते आते उसके अन्तर्मन में अंधविश्वास और ठकोसलों की जड़ें इतनी गहरी और पुष्ट हो जाती हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना असम्भव सा हो जाता है। रही सही कसर शिक्षकों का अतार्किक अवैज्ञानिक आचरण पूरी कर देता है।
आजादी के सत्तर सालों के बाद भी हम देश में एक वैज्ञानिक वातावरण क्यों नहीं बना पाये। क्यों हमने अपनी प्राथमिक शिक्षा को विज्ञान का दृढ़ आधार नहीं दे सके। क्यों किसी भी प्राथमिक स्कूल में विज्ञान का कोई छोटा-सा भी उपकरण बच्चों के हाथ में नहीं पहुंच पा रहा। क्यों विज्ञान को किताबांे से लिखाया और रटाया जाता रहेगा। प्रयोग के लिए जगह और अवसर कब-कहां मिलेगा। क्यों विज्ञान के शोधों में हम वैश्विक स्तर पर कहीं दिखाई नहीं देतें। कब तक हम विश्वगुरु होने का थोथा गान गाते फिरते रहेंगे। उत्तर कौन देगा, सर्वत्र मौन पसरा है। जाति, धर्म एवं भाषा के नाम पर तो आये दिन आंदोलन होते हैं पर प्राथमिक विद्यालयों में वैज्ञानिक उपकरणों एवं प्रयोगशालाओं की व्यवस्था के लिए क्यों नहीं कोई आंदोलन होता। प्राथमिक विद्यालयों से उभर रहे दृश्य निराश करतेे हैं क्योंकि उनमें विज्ञानमय जीवन की धड़कन सुनाई नहीं देती बल्कि अंधविश्वास की जड़ता का कर्कश स्वर गूंजता है।

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ताला तोड़कर घर में चोरी, समाचार पत्र विक्रेता को चोरों ने बनाया निशाना

घाटमपुर/कानपुर, शीराजी। बीती रात अज्ञात चोरों ने समाचार पत्र विक्रेता के सूने घर का ताला तोड़कर नगदी व जेवर चोरी कर लिए और मौके से फरार हो गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार कस्बे के मोहल्ला आछीमोहाल पश्चिमी निवासी राजन शुक्ला का पुत्र रविंद्र कुमार शुक्ला समाचार पत्र विक्रेता है। पीड़ित ने बताया कि 9 फरवरी को वह अपनी भतीजी की शादी में शरीक होने के लिए सपरिवार बिठूर गया था। घर में ताला बंद था। अज्ञात चोरों ने घर का ताला तोड़ने के बाद बक्से में रखे RS 82000 नगद व सोने की बेसर दो चांदी की पायल 8 कीमती साड़ियां आदि सामान बक्से का लॉक तोड़कर चोरी कर लिए हैं। आज अपराहन जब वह वापस घर लौट कर आया तो देखा घर में सामान बिखरा पड़ा था। पीड़ित ने अपने साथियों को घटना से अवगत कराया। समाचार पत्र विक्रेता संघ के कार्यवाहक अध्यक्ष टिंकू बाजपेई ने हरीश चंद्र अवस्थी, अशोक दीक्षित, प्रमोद कुमार, राजू गुप्ता, मदन गोपाल गुप्ता आदि के साथ थाने में पहुंचकर लिखित शिकायत की है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

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नागा साधुओं की रहस्यमयी जीवनशैली

नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो या उनका रहन-सहन सब कुछ रहस्य मय है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हो, तो सिर्फ गेरुआ रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुआ वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते।नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है। नागाओं का यह श्रृंगार सिर्फ कुंभ के दौरान होने वाले स्नान के वक्त नजर आता है।मान्यता है कि सभी श्रृंगारों से युक्त नागा के दर्शन से कई जन्मों का पुण्य मिलता है।अखाड़ों से जुड़े नागा संतों का कहना है कि इस श्रृंगार की एक विधि है और यह सिर्फ खास अवसर पर किया जाता है। 17  श्रृंगार से सुसज्जित नागा अपने इष्ट यानी भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु की पूजा करता है।
एक नागा श्रृंगार में लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेस, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई बताएं जटायें, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप, बाहों पर रुद्राक्ष की माला शामिल होती है। आमतौर पर एक सुहागिन महिला सोलह सिंगार करती है लेकिन यह नागा साधु अपने 17वें सिंगार के लिए जाने जाते हैं। 17वाँ सिंगार है “भस्म” जो कि नागा साधुओं का एकमात्र परिधान होता है। हर नागा अपने शरीर पर सफेद भस्म और रुद्राक्ष की मालाओं के अलावा कुछ नहीं पहनता। मान्यता है कि भगवान शंकर ऐसे ही 11000 रुद्राक्ष मालायें धारण करते थे।

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