Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

कामयाबी के थप्पड़

अपने खिलाफ बातें
करने वालों को कभी
कोई जवाब भले ना देना
पर एक दिन उनके
सोच पर अपनी
कामयाबी का
थप्पड़ जरूर मारना
हो सकता है कि
थप्पड़ मारने में तुम्हें
थोड़ी विलम्ब हो जाए

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कैसे रोका जाए इस धर्मांतरण के प्रयासों को?

आज के अखबार में पढ़ा तो एक धक्का सा लगा, क्या हैं वो? गुजरात के भरूच में १०० लोगों को लालच दे धर्म परिवर्तन करवाया गया। एक यूके के नागरिक और मौलवी के साथ ९ लोगों के सामने फरियाद– ये हैं हेड लाइन्स। जो लालच से नहीं माने उनको डरा कर धर्मांतरण करवाया गया की उनकी पहचान कश्मीर से पाकिस्तान तक हैं, फरियाद करने वालों को मार दिया जायेगा। ३७ परिवारों के १०० लोग उनके झांसे में आ गए। क्या हो रहा हैं ये? क्यों गरीबों को निशाना बनाया जा रहा हैं?

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औरंगाबाद घृष्णेश्वर मंदिर

हमारी हिंदू सभ्यता और संस्कृति पौराणिक स्थलों में बखूबी दिखाई देती है। वास्तुकला, शिल्प कला और दर्शन इन सब की भव्यता और जानकारी हमें यही से मिलती है। वास्तव में जो भी पौराणिक मंदिर या पर्यटन स्थलों में जो चित्र या कलाकृतियां होतीं हैं वो उस समय के जीवन काल और दिनचर्या का आभास देती है। मेरी एक और यात्रा का संस्मरण औरंगाबाद से शुरू होता है।
घृष्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के छोटे से गांव वेरूल में स्थित है। वैसे यह ज्योतिर्लिंग बाबा का अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है लेकिन जो भी दर्शन पहले हो जाए वहीं बाबा के आगे सर झुक जाता है। बिल्कुल बनावटीपन दूर शोर शराबे से अलग एक शांत वातावरण में बाबा के दर्शन किए। लाल पत्थरों से बना हुआ यह मंदिर वाकई बेहद खूबसूरत है उसके दरवाजे पर बैठकर मन को बहुत शांति मिलती है।

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बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां

छठ पर्व पर एक भयावह तस्वीर यमुना नदी दिल्ली की सामने आयी, जिसमें सफेद झाग से स्नान वा अर्क देते श्रद्धालु दिखे।
यह बात तो जगजाहिर है कि समूचे विश्व में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां नदियों को माँ की उपमा दी गई है, पवित्र माना गया है। लेकिन वर्तमान समय में जितनी दुर्दशा हिन्दुस्तान में नदियों की है शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में हो। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग-अलग राज्यों की निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारे महत्वपूर्ण सतही जल स्त्रोतों का लगभग 92 प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने लायक नही बचा है। वहीं रिपोर्ट में देश की अधिकतम नदियों में प्रदूषण की मुख्य वजह कारखानों का अपशिष्ट गंदा जल, घरेलू सीवरेज, सफाई की कमी व अपार्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन तथा साफ – सफाई के लिए नीतियों की गैरमौजूदगी को माना गया है।

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15 नवंबर 2021 भारत नें पहला जनजातीय गौरव दिवस मनाया

जनजातीय शिल्पकारों, कारीगरों और महिलाओं के उत्पादों के लिए पर्याप्त विपणन मार्ग तैयार करने रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी
भारत की संस्कृति को मज़बूत करने में जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान – जनजातीय लोगों के प्राकृतिक कौशल को निखारने, उनके आय के स्रोतों में सुधार करना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
भारतीय संस्कृति में शिल्पकारों, भाषा, रीति-रिवाजों, कारीगरों, प्रथाओं परंपराओं, व्यंजनों इत्यादि अनेकउपलब्धियों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जानकारों का कहना है कि यह संस्कृति 5 हज़ार ईसवी से भी पुरानी है। याने इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारी संस्कृति सोलह सौ से भी अधिक वर्ष पुरानी है, जो कि आज की पीढ़ी के नवयुवक सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे। साथियों इस हमारी अणखुट संस्कृति, अनोखी परंपराओं मेंसे अनेक विलुप्त भी हो चुकी है और अनेक विलुप्तता की और भी हैं, जिन्हें हमें सभी को साथ मिलकर बचाना होगा। साथियों बात अगर हम जनजातीय समुदाय की करें तो भारतीय संस्कृति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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क्या सयाना कौआ……… जा बैठा?

हमे चीन को पहचानने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती। हम १९६२ से जानते है उस देश की नीतियों को, लोमड़ी सा चंट और चालबाज। हिंदी चीनी भाई भाई बोलते बोलते अपनी चालाकी से अक्साई चीन हथिया लिया। और उसके बाद भी बार बार हमलों की तैयारी बता कर हमारी जमीनों पर अतिक्रमण करता रहा। अभी हर हाल में उसे अतिक्रमण करके अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाना हैं।

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तुलसी गौड़ा : इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट – वीरेंद्र बहादुर सिंह

किसी को भी सम्मान, इनाम और अवार्ड मिलता है तो ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि गलत व्यक्ति को अवार्ड दिया गया है। खास कर जब सरकार की ओर से मान, सम्मान या अवार्ड दिया जाता है, तब हमेशा इस तरह की बातें होती हैं। देश में सर्वोच्च अवार्ड दिए जाने का इतिहास हमेशा विवादास्पद रहा है। ऐसे में 9 नवंबर सोमवार को राष्ट्रपति के हाथों पद्म, पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण अवार्ड दिए गए। उनमें से कुछ ऐसे व्यक्ति भी अवार्ड लेने वाले थे, जिन्हें देख कर चौंके बिना नहीं रहा गया।

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सुख और कल्याण की प्रतीक तुलसी

भारतीय परंपरा में घर-आंगन में तुलसी होना बेहद जरूरी है। तुलसी की पूजा-अर्चना की जाती है तथा इसे सुख एवं कल्याण की प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
तुलसी के गुणों का वर्णन करते-करते कवि ने एक ही वाक्य में प्रार्थना पूरी कर दी-
अमृतोऽमृतरुपासि अमृतत्वदायिनी। त्व मामुद्धर संसारात् क्षीरसागर कन्यके।।
विष्णु प्रिये ! तुम अमृत स्वरुप हो, अमरत्व प्रदान करती हो, मेरा उद्धार करो। तुलसी के गुणों को उसके नामों से ही तो जाना जाता है।

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फास्ट फूड स्वास्थ्य के लिए बेहतर नहीं

उस दिन वर्मा जी बड़े खुश-खुश मेरे कक्ष में पधारे। जब तक उनके रिकॉर्डों की फाइल मेरे समझ आती, मैंने यूं ही उनसे पूछ ही डाला- ‘क्या बात है, आज बहुत खुश नजर आ रहे हो ! क्या लड़का-बहू अमेरिका से आ गए?’ वर्मा जी, मानो इस प्रश्न की प्रतीक्षा कर रहे हो, तत्काल बोले- ‘लड़के बहू की बात छोड़िए, अच्छा समाचार यह है कि मेरे पड़ोस में एक फास्टफूड की दुकान खुल गई है।’
आगे मैं फिर पूर्ववत् निश्चल और अनंत विचाराकाश में स्वच्छंद विचरण करने लगा। कैसे बताऊं इस निरीह प्राणी को कि वह स्वयं आग के दरिया में छलांग लगा रहा है। फास्टफूड स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक होते हैं इस तथ्य को वर्माजी के संज्ञान में कैसे लाऊं?

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वीरांगना लक्ष्मीबाई

19 नवंबर को वीरांगना लक्ष्मीबाई का जन्मदिन आता है जिसने पूरे विश्व में विश्व की मातृशक्ति का डंका बजा दिया था। भारत के ज्ञात ढाई हजार वर्षों के इतिहास में शायद ऐसी कोई नारी शक्ति नहीं जन्मी जिसने इस कौशल से व्यूह रचना की है और इतनी अतुल वीरता के साथ आत्म विसर्जन किया हो। लक्ष्मीबाई के पिता आश्रय में पाले दीन ब्राम्हण थे और मां इतने पूर्व मर गई की बालिका लक्ष्मी को कोई स्मृति भी न रही होगी। कुल 23 वर्ष का जीवन जी कर वह सारी धरती को चमका कर शून्य में विलीन हो गई। परंतु भारत ही नहीं पूरे संसार के इतिहास में वह शौर्य एवं आहुति का पुंज बनकर चमक गई।

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